Sunday, 29 April 2012 11:12 |
चंद्रभान सिंह दलित साहित्य मूलत: वर्चस्ववादी व्यवस्था और सत्ता विरोधी है। मगर यहां भी कुछ लोगों को आर्थिक लाभ दिखाई देने लगा है। साहित्य कोई भी हो, उसका दरवाजा हमेशा नए व्यक्तियों और विचारों के लिए खुला होना चाहिए, नहीं तो उसकी अधोगति तय है। इस उत्तर-आधुनिक समय में कुछ दलित लेखकों का यह कहना कि दलित ही दलित साहित्य लिख सकता है, यह उसी प्रकार का अतिवाद है जैसे वैदिक काल में कहा गया था कि ब्राह्मण ही संस्कृत साहित्य का ज्ञाता-अध्येता हो सकता है। यह लोकतंत्र का जमाना है, यहां सबको अभिव्यक्ति का समान अधिकार है। दलित साहित्य में गैर-दलितों का विरोध करने वाले या तो खुद ब्राह्मणवादी-मनुवादी प्रवृत्तियों के शिकार हैं या उन्हीं के इशारों पर ऐसा कर रहे हैं। ये दोनों बातें दलित साहित्य और आंदोलन के लिए आत्मघाती हैं। अकारण नहीं है कि नामवर सिंह को सामंत और वीरेंद्र यादव को आधे मार्क्सवादी बताने वाले बेचैन जी बजरंग बिहारी तिवारी और अभय कुमार दुबे के दलित लेखन पर प्रतिकूल टिप्पणी से परहेज करते हैं। गैर-दलित जातियों द्वारा किए जा रहे दलित लेखन पर आपत्ति दर्ज करने वाले आरएसएस के संरक्षण में चल रहे मनुवादी लेखन पर भी मौन साध लेते हैं। यह वैचारिक भटकाव नहीं तो और क्या है? भाजपा-बसपा गठबंधन अल्पायु में ही बिखर गया, तो ऐसी विचारधारा से प्रेरित साहित्य का भविष्य कितना उज्ज्वल होगा? सत्ता का क्षणिक सुख प्राप्त करने के लिए यह फार्मूला जितना लाभकारी है, दलित आंदोलन के लिए उतना ही घातक। राह से भटके दलित लेखक डॉ आंबेडकर के स्थान पर बहन मायावती के पदचिह्नों पर चल रहे हैं। बसपा की राजनीतिक विवशता और महत्त्वाकांक्षा को दलित साहित्य का आदर्श बनाने का प्रयास किया जा रहा है। दलित आंदोलन और लेखन के मूल प्रेरणा स्रोत महात्मा बुद्ध उच्चवर्ग, पेरियार-फुले-शाहू जी महाराज अन्य पिछड़ा वर्ग और भीमराव आंबेडकर समाज के निम्नवर्ग से आते हैं। इस आंदोलन के लिए जाति से अधिक वैचारिक प्रतिबद्धता महत्त्वपूर्ण है। जाति-वर्ण-धर्म की प्रतिबद्धता ने हर आंदोलन को कमजोर किया है। दलित आंदोलन इसका अपवाद नहीं होगा। कुछ आलोचक अपने सिद्धांत राजनीति से गढ़ने लगे हैं। उपनाम देख कर समीक्षा करने लगे हैं। जाति-वर्ण में डूब कर जातिविहीन समाज का सपना देखना दिवास्वप्न से अधिक कुछ नहीं है। विद्रोह-विरोध, आक्रोश-नकार से आगे बढ़ कर वैज्ञानिक और आर्थिक सोच से ही दलित साहित्य को सही और नई दिशा दी जा सकती है।
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This Blog is all about Black Untouchables,Indigenous, Aboriginal People worldwide, Refugees, Persecuted nationalities, Minorities and golbal RESISTANCE. The style is autobiographical full of Experiences with Academic Indepth Investigation. It is all against Brahminical Zionist White Postmodern Galaxy MANUSMRITI APARTEID order, ILLUMINITY worldwide and HEGEMONIES Worldwide to ensure LIBERATION of our Peoeple Enslaved and Persecuted, Displaced and Kiled.
Sunday, April 29, 2012
हाशिया खींचना ठीक नहीं
हाशिया खींचना ठीक नहीं
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