दलितों-आदिवासियों पर अत्याचारों के एक लाख मामले लंबित
अत्याचार के इन मामलों के तेजी से निपटारे के लिए फास्ट ट्रैक के मौजूदा प्रावधानों में भी बदलाव जरूरी है. इसके लिए मंत्रालय ने राज्यों को कुछ सुझाव दिये गये हैं और प्रतिक्रिया मांगी है...
जनज्वार. एनसीइआरटी की इतिहास की किताबों में छपे अंबेडकर के कार्टून से आहत दलितों-पिछड़ों की करीब सभी संसदीय पार्टियों ने संसद से बाहर और अंदर खूब हंगामा काटा, लेकिन देश में दलितों-आदिवासियों पर अत्याचार के एक लाख मामले देश की अदालतों में लंबित हैं, इसको लेकर कहीं से कोई सुबुगाहट नहीं सुनायी पड़ी.
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मामलों के केंद्रीय मंत्री मुकुल वासनिक ने कल राज्यसभा में बताया कि देश में दलितों और आदिवासियों पर हुए अत्याचारों के करीब एक लाख मामले अदालतों में लंबित हैं. उन्होंने कहा कि सरकार मौजूदा अनुसूचित जाति/जनजाति कानून (अत्याचार विरोधी कानून 1989) में बदलाव करना चाहती है, जिसके लिए राज्यों को एक प्रस्ताव पत्र भी भेजा गया है.
मंत्री मुकल वासनिक ने आगे कहा कि 'अत्याचार के इन मामलों के तेजी से निपटारे के लिए फास्ट ट्रैक के मौजूदा प्रावधानों में भी बदलाव जरूरी है. इसके लिए मंत्रालय ने राज्यों को कुछ सुझाव दिये गये हैं और प्रतिक्रिया मांगी है, लेकिन छह राज्यों ने अभी तक अपनी प्रतिक्रिया मंत्रालय को नहीं भेजी है.' केंद्र ने राज्यों को इस मामले में क्या ठोस सुझाव दिये हैं और केंद्र किस तरह का बदलाव चाहता है, इस पर मंत्री ने टिप्पणी से इनकार किया.
मंत्री मुकुल वासनिक के मुताबिक 2010 के अंत तक दलितों-आदिवासियों पर अत्याचारों के सर्वाधिक लंबित मामले उत्तर प्रदेश में 19,939 मिले, जबकि 13,590 लंबित मामलों के साथ मध्यप्रदेश दूसरे नंबर पर है. वहीं राजस्थान में 11,524, गुजरात में 9,826, ओडिसा में 8,826, बिहार में 7, 776 और कर्नाटक में 6, 044 अत्याचारों के मामले अदालतों में वर्षों से लंबित हैं.
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