घाघरे वाली क्या कर लेगी पंचायत जाकर
पांच महिला पंचों के संघर्ष और साहस की कहानी
गांवों में पुरूषों की राजनीति थी. पंचायतों में उनका राज था, महिलाएं कभी पंचायत में पहूंच भी जाती थीं तो घूंघट तान चुपचाप एक तरफ बैठी रहती थीं. जब हम पहली बार चुनाव लड़ीं तो लोगों ने कहा कि क्या कर लेगी ये घाघरी वाली पंचायत में जाकर...
लखन सालवी
घूंघट त्यागा, रूढि़वादी विचारों को त्यागा, सामाजिक कुरीतियों को छोड़ा, बैठक की, महिलाओं को संगठित किया, शिक्षित हुर्इं, अपने अधिकारों को जाना और आज ग्राम पंचायत में भागीदारी सुनिश्चित कर गांव के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही हैं.ये सब आसानी से नहीं हुआ. दहलीज लांघी तो समाज के बुजुर्गों ने बंदिशे लगाईं, पतियों ने मारपीट की, देवली (देऊ) बाई के पति ने तो कुल्हाड़ी से उसके सिर पर वार कर दिया.
आंखों के आगे घूंघट का पर्दा पीढि़यों से पड़ा था जो उजाले की ओर बढ़ने नहीं देता था.बढ़ती भी तो ढोकर खाकर गिर जातीं या गिरा दी जाती थीं.पर्दे ने अभिव्यक्ति की आजादी को भी दबाए रखा.लेकिन इन महिलाओं पर तो जुनून सवार था बदलाव का.एक सामाजिक संगठन के संपर्क में आर्इं, शिक्षित हुईं और ग्राम सभा व ग्राम पंचायत की ताकत को समझा.फिर पंचायतीराज व आरक्षण का लाभ लिया. देवली बाई कहती हैं, 'लोग देखे तो भले देखे, मैं तो ग्राम सभा में जो कहना होता है बिना घूंघट के खुलकर कहती हूं, मैं घूंघट नहीं निकालती हूं, घूंघट निकालूं तो बोल नहीं पाती हूं.'
राजस्थान के उदयपुर जिले से 20-25 किलोमीटर दूर के पई गांव की आदिवासी समुदाय की 5 महिलाएं देवली बाई, कडौली बाई, चैखी बाई, वेल्की बाई व सोमुदी बाई बदलाव के लिए सतत प्रयास कर रही हैं.दो दशक पूर्व वे एक सामाजिक संस्था आस्था से प्रेरणा लेकर, बंदिशों से आजाद हुईं और चुप्पी तोड़कर घर से बाहर निकलीं.मौजूदा समय में पांचों महिलाएं पई ग्राम पंचायत में वार्ड पंच है. (जनता की नायिकाएं : बाएं से चैखी बाई, कडौली बाई, सोमुदी बाई, देवली बाई और वेल्की बाई)
देवली बाई 3 बार, कडौली बाई 3 बार, रोड़ी बाई 2 बार, चैखी बाई 4 बार तथा सोमुदी बाई 2 बार वार्ड पंच रह चुकी है.कडौली बाई तो पंचायत समिति सदस्य भी चुनी गई.इन महिलाओं ने अन्य महिलाओं को भी आगे लाने का प्रयास किया.इस बार वेलकी बाई को भी वार्ड पंच का चुनाव लड़वाया.ग्राम पंचायत में इनकी पूर्ण भागीदारी नजर आती है.कोरम में इनका बहुमत है.सभी एक सूर में गांव के विकास के लिए प्रस्ताव रखती हंै.
देवली बाई कहती हैं गांवों में पुरूषों की राजनीति थी. पंचायतों में उनका राज था, महिलाएं कभी पंचायत में पहूंच भी जाती थी तो घूंघट तान चुपचाप एक तरफ बैठी रहती थी.जब हम पहली बार चुनाव लड़ीं तो लोगों ने कहा कि ''क्या कर लेगी ये घाघरी वाली पंचायत में जाकर.'' नयाफला गांव के भैरूलाल का कहना है कि वार्ड पंच महिलाओं का यह ग्रुप सरकार की विकास योजनाओं का लाभ लोगों तक पहूंचाने में कार्य कर रहा है.ग्राम पंचायत के कार्यों पर निगरानी भी रखती है.अन्य दिनों में गांवों में जाना, लोगों की समस्याओं को जानना एवं कोरम में उन समस्याओं के निराकरण करवाना ही इनका मुख्य कार्य है.
पांचों पंच महिलायें निरक्षर थीं इसलिए साक्षरता कार्यक्रम से जुड़कर पहले खुद अक्षर लिखना-पढ़ना सीखीं.फिर गांवों की महिलाओं को पढ़ने के लिए प्रेरित किया, बच्चे बच्चियों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित किया.संघर्ष किया और ज्ञापन दे दे कर आंगनबाडि़यां व स्कूल खुलवाए और जनसमस्याओं का समाधान करना ही इनका मुख्य ध्येय बन गया है.
इनके जुझारू संघर्शो का नतीजा है कि क्षेत्र की करीब 3000 महिलाएं इनसे जुड़ी हुई हैं.इन सभी ने मिलकर शराबबंदी का महत्वपूर्ण कार्य किया है.वन भूमि अधिकार, सूचना का अधिकार, रोजगार का अधिकार जैसे मुद्दों पर पांचों महिला पंचों ने सक्रिय भूमिका निभाई है.देवली बाई ग्राम पंचायत व पंचायत समिति से सूचना के अधिकार के तहत सूचनाएं लेती रहती हंै.देवली बाई अधिकारियों से कहती हैं-सूचना दो.अगर नहीं देते हो तो लिखकर दो.
देवली के सवाल सुनकर अधिकारी भी झेंप जाते हैं.बकौल देवली, 'सूचना प्राप्त करना हमारा अधिकार है, सूचना देनी ही पडेगी.' कई बार अधिकारियों ने उनके आवेदन लेने से ही इंकार कर दिया गया, दो मर्तबा आवेदन की रसीद नहीं दी.एक विकास अधिकारी ने यहां तक कहा कि सूचना लेकर क्या करोगी ? लेकिन देवली बाई की तर्कसंगत बहस एवं जागरूकता के आगे अधिकारियों को झूकना पड़ा और उन्होंने आवेदन लिए और सूचनाएं भी दीं.देवली बाई ने हाल ही में 27 फरवरी को सूचना के अधिकार के तहत आवेदन करके सूचना मांगी है कि ''उदयपुर से सराड़ा तक कितने लोगों की जमीन कब्जाई गई है?''
सामन्य सी दिखने वाली देवली बाई जब वन भूमि अधिकार के पट्टों आदि के आंकड़े बताती हंै तो हर कोई चकित रह जाता है.बताती हैं कि 103 लोगों को पट्टे दिलवा दिये गये हैंं और लगभग 400 आवेदनों पर कार्यवाही चल रही है.इन्होंने पेंशन योजनाओं के लाभ दिलवाने में सराहनीय कामे किए हैं.2000 मजदूरों को मनरेगा के तहत काम नहीं मिल रहा था, इन्होंने बैठक की और जिला कलक्टर को अवगत कराया, संघर्ष की बदौलत उन्हें रोजगार मिला.
सरकार के 'प्रशासन गांव के संग अभियान' की तरफदारी करते हुए कड़ौली बाई कहती हैं, 'इस अभियान के तहत आयोजित शिविरों में लोगों के प्रशासन से संबंधित अधिक से अधिक कार्य करवाए जा सकते हैं.गांव वालों की समस्याओं के समाधान करने में इस प्रकार के अभियान महत्वपूर्ण हैं.हमने इस कार्यक्रम के तहत लोगों की राशनकार्ड, जाॅब कार्ड, पेंशन, प्रमाण पत्र, बिजली कनेक्शन, जमीन संबंधीत समस्याओं के समाधान करवाए हंै.'
ये पंच सरकार द्वारा संचालित विभिन्न कार्यक्रमों पर निगरानी का कार्य भी करती हैं.गांव में प्राथमिक विद्यालय में अध्यापक समय पर नहीं आते थे तथा पूरे समय विद्यालय में कोई नहीं रूकता था.देवली बाई को गांव की महिलाओं से जब ये जानकारी मिली तो शिविर में इस मुद्दे को उठाया.शिविर प्रभारी ने उस अध्यापक को हटाकर दूसरे अध्यापक को नियुक्ति करवा दी.उसके बाद से विद्यालय समय पर खुलता है और अध्यापक भी पूरे समय विद्यालय में रूकता है.
इसके अलावा वो आंगनबाड़ी केन्द्रों में पोषाहार व विद्यालयों में मिल डे मिल का अवलोकन भी करती हैं.यहीं नहीं इन महिला पंचों ने साझे प्रयास कर पिपलवास, कुम्हारिया खेड़ा, सूखा आम्बा, निचलाफल, पाबा, किम्बरी में प्राथमिक विद्यालय भी खुलवाए हैं.विद्यालय खुलवाने के लिए बार-बार ज्ञापन दिए, जिला अधिकारियों से पैरवी की.
ग्राम पंचायत के वार्ड नम्बर 8 में विद्यालय भवन नहीं है, अध्यापक बच्चों को पेड़ के नीचे बैठाकर पढ़ाते हैं. वहीं वार्ड में 30 से अधिक बच्चे हैं लेकिन आंगनबाड़ी केंद्र नहीं है.आजकल पांचों महिला पंच विद्यालय भवन व आंगनबाड़ी केंद्र के लिए भवन की मांग कर रही हैं.हाल ही में 14 फरवरी को उन्होंने जिला कलक्टर को ज्ञापन देकर भवन निर्माण की मांग की है.
इन महिला पंचों की एक लड़ाई भ्रष्टाचार के खिलाफ भी है.इन्होंने सूचना के अधिकार का उपयोग कर पई ग्राम पंचायत द्वारा किए गए फर्जीवाड़े को उजागर किया.फर्जीवाडे के जानकारी मिलने बाद इन्होंने सामाजिक अंकेक्षण करवाने का प्रस्ताव रखा.सामाजिक अंकेक्षण हुआ तो पता चला कि ग्राम पंचायत द्वारा नाली निर्माण नहीं करवाया जबकि नाली निर्माण के नाम फर्जी बिल जमाकर लाखों रुपयों का गबन कर किया गया.
कड़ौली बाई कहती हैं कि जब हम पहली बार वार्ड पंच बनी तो लोग कहते थे ये क्या कर लेगी घाघरी वाली.लेकिन हमनें जो काम अब तक किए हैं उन्हें देखकर अब वही लोग हमें र्निविरोध वार्ड पंच बनाने लगे हंै.देवली बाई 3 बार वार्ड पंच रह चुकी हैं और इस बार उन्हें र्निविरोध वार्ड पंच बनाया गया.रोड़ी बाई का कहना है कि हम किसी से नहीं रूकने वाली है.हम ग्राम पंचायत में न तो कुछ गलत करती है और ना ही गलत होने देती है.
इन महिलाओं को यह डगर सामाजिक संगठन आस्था के कार्यकर्ताओं ने कोई 25 वर्ष पहले दिखाई थी.इसमें कोई दो राय नहीं कि अगर यह सामाजिक संगठन नहीं होता तो इन महिलाओं के जीवन में परिवर्तन शायद ही संभव हो पाता.संस्था के लोगों ने इन्हें इनके अधिकारों की जानकारी दी, पंचायतीराज की जानकारी दी और साथ दिया.आज ये महिलाएं घर की दहलीज पार कर चुकी हंै, इन्होंने रूढि़वादी विचारधाराओं को तोड़कर मिसाल कायम की है.
स्वतंत्र पत्रकार लखन सालवी ग्रामीण जीवन की कथा लिखते हैं.
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