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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Monday, May 21, 2012

माफी चाहूंगी मैम, मैं माओवादी नहीं हूं..

माफी चाहूंगी मैम, मैं माओवादी नहीं हूं..



हम बदलाव चाहते हैं, लेकिन हम डरे हुए हैं कि कहीं हम फ्राइपैन से निकलकर जलती हुई भट्ठी में न पहुंच जाएं. आप मुझे डरी हुई कह सकती हैं. लेकिन मैं किसी राजीतिक दल को बंगाल के लिए सकारात्मक विकल्प के रूप में नहीं देखती हूं...

पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस सरकार ने अपना एक साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है. इस अवसर पर बीते शुक्रवार को कोलकाता के टाउन हाल में अंग्रेजी चैनल सीएनएन-आईबीएन ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ बातचीत का एक कार्यक्रम आयोजित किया था. इसका नाम था, 'क्वेश्चन टाइम दीदी'. इसमें मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से सवाल-जवाब के लिए कोलकाता शहर के लोग आमंत्रित किए गए थे. लेकिन यह कार्यक्रम करीब 12 मिनट ही चल पाया था और केवल पांच सवाल ही पूछे गए थे कि ममता बनर्जी अपना आपा खो बैठीं और कार्यक्रम बीच में ही छोड़कर चली गईं. उन्होंने कार्यक्रम में आमंत्रित श्रोताओं पर माओवादी और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) का कार्यकर्ता होने का आरोप लगाते हुए कहा कि वे माओवादियों के सवालों का जवाब नहीं देंगी. ममता बनर्जी कोलकाता के प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र की छात्रा तानिया भारद्वाज के सवाल से भड़की थीं. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के इस व्यवहार से आहत तानिया ने अंग्रेजी दैनिक 'दी टेलीग्राफ' के जरिए उन्हें एक पत्र लिखा है. तानिया के पत्र को हम 'दी टेलीग्राफ' से साभार प्रकाशित कर रहे हैं...राजेश कुमार 

taniya_bhardwaj_1'माफी चाहूंगी मैम, लेकिन मैं माओवादी नहीं हूं'

टाउन हाल में शुक्रवार शाम (18 मई) आयोजित सीएनएन-आईबीएन के कार्यक्रम में बंगाल की सबसे मशहूर हस्ती ने मेरे ऊपर किस तरह का लेबल चस्पा कर दिया. क्या मैं इसी के लायक हूं? मैंने तो आपसे केवल एक सवाल ही तो पूछा था.

मैं शुक्रवार को टाउन हाल करीब एक साल बाद गई थी. इसके पहले वहां मैं तब गई थी जब पिछले साल 21 अप्रैल को सीएनएन-आईबीएन ने ' बैटल फार बंगाल' नाम से परिचर्चा का आयोजन किया था. उसके कुछ दिन बाद मैं वहां बदलाव के लिए वोट देने गई थी.मैंने 28 अप्रैल 2011 के 'दी टेलीग्राफ' में लिखा भी था, ' चेंजेथॉन-2011 हाल के इतिहास में सबसे प्रत्याशित है. क्या 200 दिन में एक नया कलकत्ता बनाना संभव है, बड़ी संख्या में नए चेहरे चुनाव लड़ रहे हैं, उन्होंने औद्यगिकरण की उम्मीदों को फिर नया कर दिया है, मैं सही मायने में बदलाव के लिए पूरे मन से मतदान करुंगी. जब मैं मतदान के लिए मतदान केंद्र की ओर बढ़ रही होउंगी, तो वह केवल एक मतदान कक्ष ही नहीं होगा बल्कि उससे बढ़कर वह बदलाव का एक कमरा होगा.'

मैंने यह भी लिखा था,'हम बदलाव चाहते हैं, लेकिन हम डरे हुए हैं कि कहीं हम फ्राइपैन से निकलकर जलती हुई भट्ठी में न पहुंच जाएं. आप मुझे डरी हुई कह सकती हैं. लेकिन मैं किसी राजीतिक दल को बंगाल के लिए सकारात्मक विकल्प के रूप में नहीं देखती हूं.'

यह दुखद है कि एक साल बाद आपने एक राष्ट्रीय टीवी चैनल पर यह सिद्ध कर दिया कि मैं कितनी सही थी. मैंने ऐसा क्या कर दिया था कि आपने मेरे ऊपर माओवादी या माकपा का कार्यकर्ता होने का ठप्पा लगा दिया? 

मैंने तो आपसे केवल इतना ही पूछा था कि क्या आपके मंत्री मदन मित्रा और सांसद अरबुल इस्लाम को और जिम्मेदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वाह करना चाहिए था. 

मैं अन्य लोगों की ही तरह बहुत व्यथित हुई थी जब दुष्कर्म के एक मामले में पुलिस जांच पूरी होने से पहले ही मदन मित्रा ने अपना फैसला सुना दिया था. अरबुल इस्लाम का मामला अभी भी अखबारों में सुर्खियां बना हुआ है.

मैंने आपसे वहीं पूछा था जो मेरे आसपास के ज्यादातर लोग पूछना चाहते थे. जिन्होंने बदलाव के लिए मतदान किया था. क्या हम अपने नेताओं से यही अपेक्षा रखते हैं. वे जो उदाहरण पेश करते हैं और दूसरे जो उसका अनुसरण करते हैं. यही सब मैं आपसे जानना चाहती थी.  लेकिन मुझे पता क्या चला कि आज बंगाल में सवाल पूछना माओदादी कृत्य जैसा हो सकता है.

आपने मेरे सवाल से पहले पूछे गए सवालों के जवाब में 'जनता' 'लोकतंत्र' और 'बंगाल' जैसे शब्दों बार-बार जिक्र किया. लेकिन सच्चे लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण लक्षण यह भी है, जैसा मैंने राजनीतिशास्त्र के एक विद्यार्थी के रूप में सीखा है, वह है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता. इस स्वतंत्रता का अर्थ होता है अपनी राय जाहिर करना, सवाल पूछना, किसी से डरे बिना अपनी बात कहना, महत्वपूर्ण लोगों के कार्टून बनाना और उनकी चुटकी लेना.

यह काफी दुखद है कि आज राज्य में लोकतंत्र विफल होता दिख रहा है, ठीक उसी तरह जिस तरह मैं केवल इसलिए माओवादी नहीं हो जाऊंगी क्योंकि आपने मुझे कहा है. वैसे ही राज्य में लोकतंत्र तबतक नहीं दिखेगा जबतक कि हर क्षेत्र सही अर्थों में लोकतांत्रिक न हो जाए. 

सभी लोगों ने कहा, आपने जो भी किया हड़बड़ी में किया और इससे मैं चर्चा का केंद्र बन गई. आप जिस तरह गुस्से में चली गईं, उससे आपने स्वयं अपनी खेल बिगाड़ने वाली छवि बना ली. अगर आप रुकी होतीं और हमें सुना होता, तो हममे से कई लोग इसकी जगह, बहुत ईमानदारी से यह सोचते हुए टाउन हाल से निकलते कि आप एक अलग तरह की मुख्यमंत्री हैं. 

आपने कई बार बंगाल से प्रतिभा पलायन की बात की है. मेरे पास यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन और स्कूल आफ ओरियंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज से विकास और प्रशासन की पढ़ाई करने का प्रस्ताव है और शायद मैं चली भी जाऊं. अब आपको यह तो पता ही होगा कि इसकी वजह क्या है. 
एक साधारण सी लड़की
(तानिया भारद्वाज)
प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय, राजनीति शास्त्र विभाग

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