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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Wednesday, May 16, 2012

Fwd: पूंजीवाद: एक प्रेत कथा



---------- Forwarded message ----------
From: reyaz-ul-haque <beingred@gmail.com>
Date: 2012/5/16
Subject: पूंजीवाद: एक प्रेत कथा



अरुंधति राय का यह शानदार लेख अपने समय का महाकाव्य है, जब लेखक-संस्कृतिकर्मियों का एक हिस्सा साम्राज्यवादी प्रचारतंत्र का हिस्सा बना हुआ है. जब सरकारों और प्रशासन के भीतर तक साम्राज्यवाद की गहरी पैठ को दशकों गुजर चुके हैं और व्यवस्थाएं वित्त पूंजी और उसके एजेंटों के हाथों बंधक बना दिए जाने को जनवाद के चमकदार तमाशे के साथ प्रस्तुत कर रही हैं. जब जनता के संसाधनों की लूट को विकास का नाम देकर फौज और अर्धसैनिक बल देश के बड़े इलाके में आपातकाल लागू कर चुके हैं. यह आज के दौर का महाकाव्य है, जब अपनी रातों को वापस छीनने का सपना समाज को पूरी तरह बदल डालने की लड़ाई के साथ मिल जाता है.

पूंजीवाद: एक प्रेत कथा



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