शीला की दीवानी सोनिया
प्रणव मुखर्जी को राष्ट्रपति भवन में सलामी दिलाकर अब सोनिया और मनमोहन सिंह यूपीए की सरकार की गारद को ठीक करने की कवायद में जुट गये हैं. वैसे तो यह कवायद 19 जुलाई को राष्ट्रपति चुनाव के दिन से ही चल रही है लेकिन अब इसमें तेजी आयेगी. आज सेन्ट्रल हाल में जो शपथ ग्रहण समारोह हुआ उसके बाद अगले कुछ दिनों एक और शपथ ग्रहण समारोह आयोजित किया जाएगा लेकिन यह सेन्ट्रल हाल में होने की बजाय उस अशोक हाल में होगा जहां वे प्रणव मुखर्जी सरकार की सेहत ठीक करेंगे जो अब राष्ट्रपति बनकर जा पहुंचे हैं.
इस कवायद के पीछे लंबे समय का सरकारी बैकलॉग है. टूजी घोटाले में डीएमके मंत्रियों के इस्तीफे के बाद से ही सरकार में अतिरिक्त चार्ज लेने देने के अलावा कोई बड़ा फेरबदल नहीं हुआ है. लेकिन अब लगता है कि सरकार में भी वह बड़ा फेरबदल होने का वक्त आ गया है. एक बार कोशिश की गई थी लेकिन उस वक्त भी कुछ छोटे मोटे बदलाव करके मामला आगे के लिए टाल दिया गया था.
जो सबसे बड़ा बदलाव करने का संकेत दिखाई दे रहा है वह यह कि वित्त मंत्री के पद पर एक बार फिर से पी चिदम्बरम को लाया जा सकता है. प्रणव बाबू के राष्ट्रपति भवन जाने के बाद चिदम्बरम सोनिया गांधी के अगले विश्वासपात्र हैं इसलिए वे उनको गृह मंत्रालय से उड़ाकर वित्त मंत्रालय पहुंचाना चाहती हैं. इसका सीधा फायदा सोनिया गांधी को होगा और इससे न केवल सरकार के वित्त विभाग पर सोनिया की नजर बनी रहेगी बल्कि सोनिया गांधी के घर का वित्त मंत्रालय भी मजूबत होगा. चिदम्बरम के बारे में उनके विरोधी आरोप भी लगाते रहे हैं कि बतौर एक वकील चिदम्बरम सोनिया गांधी के गृह मंत्रालय का वित्त विभाग संभालने में मदद करते रहे हैं इसलिए एक बार फिर मोन्टेक सिंह अहलूवालिया या फिर बूढे रंगराजन की जगह चिदम्बरम का चेहरा सोनिया के लिए बतौर वित्त मंत्री ज्यादा फायदेमंद रहेगा.
लेकिन चिदम्बरम को गृह मंत्रालय से उड़ाने के बाद संकट गृह मंत्रालय भी मंडरायेगा क्योंकि पीएमओ के बाद यही सबसे सशक्त मंत्रालय है जो शासन प्रशासन की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण है. तो खबर यह है कि शीला की दीवानी सोनिया गांधी ने इस मंत्रालय की चाभी शीला दीक्षित को सौंपने का मन बना लिया है. फिलहाल शीला दीक्षित लुटियंन्स जोन वाली दिल्ली की मुख्यमंत्री हैं. शीला सोनिया की विश्वासपात्र सहेली हैं और पहले भी उन्हें "दिल्ली" से निकालकर "दिल्ली" में बिठाने की योजनाओं पर बात होती रही है. एक बार तो एक उत्साही पोर्टल ने उन्हें अगला प्रधानमंत्री तक बता दिया था. प्रधानमंत्री न सही, गृहमंत्री के लिए तो उनका नाम आगे किया ही जा सकता है. लेकिन शर्त यह है कि शीला दीक्षित ने दिल्ली सरकार में जो फसल उगाई है उसकी रखवाली की गारंटी लिये बिना वे मंत्रालय के लिए आगे कदम नहीं बढ़ाएंगी.
दिल्ली में रामबाबू शर्मा शीला का विरोध करते करते चल बसे लेिकन उनका ऐसा भाग्य कहां था कि शीला दीक्षित की पदोन्नति होती और उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी मिलती. लेकिन अब लगता है कि बतौर मुख्यमंत्री जयप्रकाश अग्रवाल, एके वालिया या फिर अजय माकन में से किसी एक को दिल्ली सरकार का ताज सौंपा जा सकता है. लेकिन ताज की यह अदला बदली भी बिना शीला की मर्जी के संभव नहीं होगा. फिलहाल इन तीनों में शीला की किसी से नहीं पटती इसलिए शीला को यहां से वहां करना भी कम टेढी खीर नहीं है. लेकिन शीला के बारे में सोनिया की दीवानगी ऐसी है कि वे किसी भी कीमत पर दीक्षित को गृह मंत्रालय की दीक्षा देना चाहेंगी. और शीला का समर्पण ऐसा है कि जो आलाकमान कहेगा, उसे मानने के लिए वे बाध्य हैं क्योंकि अन्य सभी कांग्रेसियों की तरह ही वे भी कांग्रेस की एक "अनुशासित सिपाही" जो ठहरीं.
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