नेहरू इंदिरा और राजीव को नमन कर प्रणव ने ली राष्ट्रपति पद की शपथ
प्रणव मुखर्जी ने तेरहवें राष्ट्रपति के बतौर शपथ ले ली. संसद के सेन्ट्रल हाल में शपथ लेने से पहले वे महात्मा गांधी की समाधि को नमन करने राजघाट भी गये. लेकिन राजघाट पर बापू की समाधि को नमन करने के साथ ही प्रणव बाबू ने नेहरू की समाधि शांति वन, इंदिरा गांधी की समाधि शक्ति स्थल और राजीव गांधी की समाधि वीरभूमि जाकर उनकी समाधियों पर श्रद्धासुमन अर्पित किये. इसके बाद वे संसद के सेन्ट्रल हाल के लिए रवाना हुए जहां उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एच एस कापडिया ने उन्हें तेरहवें राष्ट्रपति के रूप में पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई.
कांग्रेस में इंदिरा गांधी ही वह नेता हैं जिन्होंने प्रणव मुखर्जी को राजनीतिक रूप से दिल्ली दरबार में प्रवेश दिया था और 1973 में पहली बार प्रणव मुखर्जी उन्हीं की कैबिनेट में मंत्री बने थे. शायद यही कारण है कि जब वे राजघाट पर महात्मा गांधी की समाधि पर पुष्प अर्पित करने गये तो उन्होंने इंदिरा गांधी और राजनीव गांधी की समाधि पर जाना जरूरी समझा जो कि प्रोटोकॉल का हिस्सा नहीं है. प्रणव मुखर्जी पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री की समाधि पर भी गये और उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किये.
राजघाट और शक्तिस्थल से लौटने के बाद संसद भवन के सेन्ट्रल हाल में उन्होंने तेरहवें राष्ट्रपति के बतौर पद और गोपनीयता की शपथ ली. शपथ ग्रहण समारोह में उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, लोकसभा की सभापति मीरा कुमार, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम सहित अनेक राज्यों के मुख्यमंत्री और राज्यपाल उपस्थित थे. शपथ ग्रहण समारोह में ममता बनर्जी मौजूद थीं और जैसे ही प्रणव मुखर्जी शपथ लेने के लिए मंच की ओर आगे बढ़े तो ममता बनर्जी ने खड़े होकर उनका अभिवादन किया, जिसके जवाब में प्रणव मुखर्जी ने भी हाथ जोड़कर उनका अभिवाद स्वीकार किया और शपथ ग्रहण के लिए मंच की ओर आगे बढ़ गये.
राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने अपने संबोधन में कहा कि देश का प्रथम नागरिक होकर वे बहुत गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं. प्रणव मुखर्जी ने कहा कि "इस पद की जिम्मेदारी प्रमुख रूप से संविधान के संरक्षक के रूप में काम करने की है. मैं अपने संविधान की सुरक्षा, संरक्षा तथा रक्षा न केवल उसके शब्दों से बल्कि उसकी भावना से करने के लिए प्रयत्नशील रहूंगा."
अपने संबोधन के आखिर में स्वामी विवेकानंद का जिक्र करते हुए राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने कहा कि हमारा दायित्व है काम करना, परिणाम खुद ही आ जाएंगे.
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