वेदप्रकाश
कंप्यूटर व सूचना प्रौद्योगिकी शब्दकोश: विनोद कुमार मिश्र; राधाकृष्ण प्रकाशन; मूल्य: रु. 500
ISBN : 978-81-8361-507-5
भारत में अब कंप्यूटर और इंटरनेट का प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा है। इसके लिए किसी महंगे कंप्यूटर की जरूरत नहीं है, अपने मोबाइल या टैब (टेबलेट पीसी) द्वारा भी इंटरनेट तक पहुंचा जा सकता है। शुरुआती हिचक के बाद अब इंटरनेट को अपना लिया गया है। इंटरनेट और कंप्यूटर के जन-जन तक पहुंचने में सबसे बड़ी बाधा इसका अंग्रेजी में होना है। इस मिथक को कि 'यदि आप अंग्रेजी नहीं जानते तो कुछ नहीं जानते', कंप्यूटर ने और बढ़ाया है। नतीजतन समाज में डिजिटल विभाजन बढ़ता ही जा रहा है। इससे यह गलतफहमी बढ़ती है कि यदि आप अंग्रेजी नहीं जानते तो कंप्यूटर पर काम नहीं कर सकते।
लेकिन क्या वास्तव में कंप्यूटर केवल अंग्रेजी में ही काम करता है?
नहीं। आज यह साबित करना मुश्किल नहीं है कि कंप्यूटर पर हिंदी में भी काम किया जा सकता है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि न केवल आम कंप्यूटर प्रयोक्ता बल्कि कंप्यूटर इंजीनियर भी इस बात से अनजान हैं कि कंप्यूटर पर हिंदी में काम किया जा सकता है। अगर आप उन्हें ज्यादा मजबूर करेंगे तो किसी 10 साल पुराने हिंदी फोंट को वे आपके कंप्यूटर में डाल देंगे, पर यह भी बता देंगे कि इन्हें चलाना हम नहीं जानते। साथ ही आगाह भी कर जाएंगे कि अगर आपके कंप्यूटर में इनके कारण कोई वायरस आ गया तो हम जिम्मेवार नहीं होंगे।
फलस्वरूप उन कुछ लोगों को छोड़कर जो हिंदी पुस्तकों की टाइपिंग के रोजगार से जुड़े हैं, बाकी लोग हिंदी फोंट लोड करवाने से तौबा कर लेते हैं। आम हिंदी भाषी समझता है कि कंप्यूटर पर हिंदी में काम तो हो सकता है, पर यह है बहुत मुश्किल। नतीजतन वह उससे दूर रहने में ही अपनी भलाई समझता है। पर वास्तव में स्थिति ऐसी है नहीं। जब से कंप्यूटर में एस्की कोड के स्थान पर यूनिकोड आया है, तब से कंप्यूटर पर हिंदी में टाइप करना उतना ही आसान और सहज हो गया है जितना कि अंग्रेजी में। यह सही है कि आज ब्लॉग, फेसबुक और ई-मेल पर खूब हिंदी लिखी जा रही है। बहुत सी साइटें हिंदी में जानकारियां भी उपलब्ध कराती हैं। काफी संख्या में ऐसी वेबसाइटें हैं जो आपको यूनिकोड में काम करना सिखाती हैं। विभिन्न तरह की तकनीकी सहायताएं नि:शुल्क उपलब्ध कराती हैं। फिर भी कितने फीसदी लोग जानते हैं कि हिंदी में काम करने के लिए किसी भी प्रकार का सॉफ्टवेयर खरीदने की जरूरत नहीं है? कि हिंदी में टाइप करने के लिए किसी तरह के प्रशिक्षण के बिना भी काम चल सकता है।
लेकिन इस तरह की सहायता आपको अपने कंप्यूटर वाले से नहीं मिलेगी। इंटरनेट पर हिंदी का प्रसार कुछ एक उत्साही लोगों के मिशनरी काम ने किया है। अधिकांश लोग इससे अनजान हैं। हिंदी से संबंधित समस्याएं न तो हमारी स्कूली शिक्षा का हिस्सा हैं और न ही कंप्यूटर शिक्षा का।
बेशक आज यह बात सभी जानते हैं कि कंप्यूटर पर हिंदी में काम किया जा सकता है, पर क्या कंप्यूटर के आइकॉन, मेन्यू आदि भी हिंदी में हो सकते हैं, क्या ऑपरेटिंग सिस्टम भी हिंदी में काम कर सकता है। यानी क्या यह संभव है कि मैं अंग्रेजी से अनजान रह कर भी कंप्यूटर में महारत हासिल कर लूं।
हां, यह बात भी अब यानी पिछले 10 सालों से संभव है। तो फिर आखिरी सवाल? क्या कोई व्यक्ति बिना अंग्रेजी जाने कंप्यूटर विज्ञान की शिक्षा हासिल कर सकता है? जहां तक कंप्यूटर तकनीक का सवाल है, बेशक यह संभव है। न केवल संभव है, बल्कि काफी सहज भी है।
फिर क्या कारण है कि जब पिछले दिनों मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने स्कूली छात्रों को कम कीमत पर 'आकाश' टैब उपलब्ध करवाने की महत्त्वपूर्ण घोषणा की, जिसकी ठीक ही मुक्त कंठ से प्रशंसा भी हुई, उस आकाश में हिंदी या भारतीय भाषाओं में काम करने की सुविधा नहीं थी। और वह भी तब जब इसके लिए कोई अतिरिक्त खर्च करने की आवश्यकता नहीं थी।
जाहिर है कि इसका कारण हमारे शासक वर्ग की इस अहमन्यता के अलावा और कुछ नहीं है कि सब कुछ हमारी ही शर्तों पर होना चाहिए। यानी अगर आपको तकनीक चाहिए तो पहले अंग्रेजी सीखिए। यह एक बड़ी समस्या है जिसके गहरे आर्थिक-राजनीतिक कारण हैं। जैसाकि होता है कि प्रभुत्वशाली वर्ग के विचार समाज के विचार बन जाते हैं। इसी तरह यह विचार कि अंग्रेजी के बिना हम विकास और तकनीक में पिछड़ जाएंगे, आज मोटे तौर पर सभी का विचार बन चुका है।
कंप्यूटर में हिंदी के प्रयोग के तकनीकी सवाल को तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है। एक, कंप्यूटर पर हिंदी में केवल टाइप करने की सुविधा होना जबकि बाकी दूसरी सभी चीजें, जैसे किसी सॉफ्टवेयर के मेनू, कमांड आदि अंग्रेजी में हों और दूसरा, जब हिंदी में टाइप करने की सुविधा के साथ-साथ सॉफ्टवेयर के मेनू, कमांड आदि भी हिंदी में हों। यानी अंग्रेजी का एक भी शब्द जाने बिना कंप्यूटर पर हिंदी में काम किया जा सकता हो। और तीसरा, इसी से जुड़ा सवाल है कि क्या हिंदी में कंप्यूटर विज्ञान और अनुप्रयोगों की शिक्षा दी जा सकती है?
जहां तक पहले सवाल, यानी हिंदी में टाइप करने की सुविधा की बात है, तो यह अब हर सॉफ्टवेयर में उपलब्ध है, और वह भी बिना किसी अतिरिक्त कीमत के। बल्कि कई बार तो हिंदी संस्करण जैसे माइक्रोसॉफ्ट विंडोज या माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस अपने अंग्रेजी संस्करणों से कहीं ज्यादा सस्ते आते हैं। दूसरा सवाल, यानी हिंदी में मेन्यू आदि होना। जैसाकि हमने पहले ही बताया है कि आज तकनीकी रूप से यह संभव है। इसके लिए मात्र कंप्यूटर सॉफ्टवेयरों के स्ट्रिंगों का, यानी स्क्रीन पर दिखाई देने वाले टैक्स्ट का, हिंदी रूपांतरण करने की जरूरत है। अगर हमें मौजूदा स्ट्रिंग्स का यानी अंग्रेजी की स्ट्रिंग्स का हिंदी में रूपांतरण करना है, तो तकनीकी शब्दावली की समस्या सामने आती है।
विनोद कुमार मिश्र की प्रस्तुत पुस्तक 'कंप्यूटर व सूचना प्रौद्योगिकी शब्दकोश' इस अर्थ में एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक है कि यह कंप्यूटर संबंधी तकनीकी शब्दावली की समस्या को हल करने की दिशा में एक अहम कदम है। और इस तरह यह कंप्यूटर और सूचना प्रौद्योगिकी के हिंदीकरण की दिशा में एक जरूरी और अपरिहार्य प्रयास है। इस शब्दकोश में न केवल कंप्यूटर स्क्रीन पर दिखाई देने वाले टैक्स्ट के लिए हिंदी शब्द सुझाए गए हैं, बल्कि कंप्यूटर विज्ञान की जटिल अवधारणाओं के लिए भी हिंदी रूपांतरण उपलब्ध कराए गए हैं।
इस किताब पर विचार करते हुए भारत में तकनीकी शब्दावली की समस्या पर बात करना लाजिमी है। किसी ऐसे विषय में, जिसका विकास अमरीका या योरोप में हुआ है और इस कारण उसकी शब्दावली अंग्रेजी शब्दों और मिजाज से भरपूर है, हिंदी में शब्दावली तैयार करते हुए एक तनी हुई रस्सी पर चलना पड़ता है। एक तरफ इस बात का ध्यान रखना पड़ता है कि अवधारणा का सटीक अनुवाद हो, और दूसरी तरफ इस बात का कि वह सुबोध हो ताकि उसे समझने के लिए शब्दकोश खोलने की जरूरत न पड़े।
खेद की बात है कि अधिकांश शब्दावलियां बनाते समय संबंधित विषय के विद्वानों ने उसके अर्थ की सटीकता पर तो जोर दिया, पर उसकी सुबोधता को महत्त्व नहीं दिया। तकनीकी शब्दावली की कठिनता के कारण उसे हिंदी भाषी समाज ने अपनाया ही नहीं। पर यह इस शब्दावली के प्रचलित न होने का मात्र एक कारण है, एकमात्र कारण नहीं। पर है यह बहुत महत्त्वपूर्ण कारण।
कोई भी समाज भाषा के बारे में परंपरागत होता है। परंपरागत इस अर्थ में कि वह पुराने शब्दों की नजर से ही नए शब्दों और अवधारणाओं को देखता है। उन्हीं में जोड़-घटा कर उन्हें समझना चाहता है। इसलिए शब्दावली बनाने का सही तरीका तो यह है कि पहले तो हिंदी भाषा और उसकी सह-भाषाओं के शब्दों का संग्रह किया जाए। फिर उनके निकटतम अंग्रेजी समानार्थी शब्द ढूंढे जाएं, और फिर इन्हें उलट दिया जाए। इससे अधिकतर शब्द वे होंगे जो पहले से ही प्रचलित होंगे। दूसरी बात, नई अवधारणाओं के लिए उन्हीं शब्दों को अर्थ-विस्तार द्वारा या अर्थ-परिसीमन द्वारा नए अर्थ दिए जाएं। यह भी किसी भी समाज का नई अवधारणाओं को समझने का तरीका होता है। तीसरी बात, तब भी काम न चले तो मौजूदा शब्दों में कुछ जोड़-घटाकर उन्हें नई अवधारणाओं के लिए ढाला जाए। और चौथी बात, यदि फिर भी शब्द न मिलें तो उनका अनुवाद करने के स्थान पर मूल शब्दों को ही स्वीकार कर लिया जाए।
यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तो चाहे हम कितने ही विद्वत्ता पूर्ण शब्द बना लें, वे प्रचलित नहीं होंगे। लोग उनके स्थान पर मूल शब्द यानी अंग्रेजी या अन्य भाषाओं के शब्दों को ही इस्तेमाल करेंगे। हम वैज्ञानिक व तकनीकी शब्दावली आयोग द्वारा बनाई गई विज्ञान की तकनीकी शब्दावली उठा कर देखें तो पाएंगे कि इनमें बहुत से ऐसे शब्द बना दिए गए हैं, जो मूल अंग्रेजी शब्दों से भी ज्यादा दुर्बोध हैं।
भारत सरकार के वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग ने जब कंप्यूटर शब्दावली अपनाई तो उन्होंने वही प्रचलित तरीका अपनाया कि एक, संस्कृत के शब्दों से कृत्रिम शब्दों का निर्माण करना और दो, अंग्रेजी के शब्दों को यथावत उठा लेना। दोनों ही तरीकों से यह शब्दावली खासी दुरूह हो गई। विनोद कुमार मिश्र के कोश ने इस दिशा में एक कदम आगे बढ़ाया है, इन्होंने मोटे तौर पर तकनीकी शब्दावली आयोग की शब्दावली को स्वीकार किया है, पर कहीं-कहीं सरल शब्द रखने की कोशिश की है। आश्चर्य की बात यह है कि उन्होंने इस बात का कहीं जिक्र नहीं किया है कि उन्होंने सरकारी शब्दावली का उपयोग किया है।
एक अच्छी शब्दावली के लिए जरूरी है कि परिभाषा कोश बनाए जाएं। नए शब्द गढऩे के साथ-साथ उन अवधारणाओं की व्याख्या भी की जाए। और यही विनोद कुमार मिश्र ने अपनी पुस्तक में किया है। उन्होंने इस पुस्तक में अंग्रेजी शब्दों के विकल्प बताने के साथ-साथ अवधारणाओं की सरल शब्दों में व्याख्या भी की है ताकि विषय से अनभिज्ञ लोग भी अवधारणाओं को समझ सकें। इससे इस पुस्तक का महत्त्व काफी बढ़ जाता है। इसीलिए हमें लगता है कि यह पुस्तक छात्रों और हिंदी के पत्रकारों आदि के लिए काफी उपयोगी साबित होगी।
यहां यह कहे बिना नहीं रहा जा सकता है कि कोई भी शब्दावली तब तक अर्थहीन है, जब तक कि वह उपयोग में न लाई जाए। किसी शब्दावली की स्वीकृति बढ़ाने का सबसे सही तरीका उसे पब्लिक डोमेन में डाल देना है। पब्लिक डोमेन में यानी उसे इंटरनेट पर इस रूप में डाल देना कि कोई भी उसका उपयोग कर सके तथा उसमें अपने सुझाव दे सके। मुक्त स्रोत सॉफ्टवेयर समूह ने जब अपने अनुप्रयोगों का हिंदीकरण करना शुरू किया तो उन्होंने यही किया। उन्होंने एक शब्दकोश तैयार किया और उसे इंटरनेट पर डाल दिया। जहां बहुत से उपयोक्ताओं ने उसमें अपने सुझाव दिए। इन सुझावों पर चर्चा करने के लिए गोष्ठी आयोजित की गई। इसके पश्चात जो शब्दावली तैयार हुई उसे स्वीकार कर लिया गया। आज माइक्रोसॉप्ट विंडोज के विंडोज 2000 और उसके बाद के सभी संस्करण, माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस 2000 और उसके बाद के सभी संस्करण, ओपनऑफिस, लिब्रेऑफिस और लिनक्स के विभिन्न अवतार अपने सारे मैन्यू के साथ हिंदी में भी उपलब्ध हैं। यानी कि आपको यदि अंग्रेजी का एक शब्द भी नहीं आता तो भी आप हिंदी में कंप्यूटर पर काम कर सकते हैं। कंप्यूटर को खोलना, बंद करना, किसी फाइल को खोलना, बंद करना, किसी टैक्स्ट या चित्र का काटना, नकल करना, चिपकाना आदि सब काम भी हिंदी में किए जा सकते हैं। इसके लिए जरूरी है कि हिंदी भाषी समाज को यह जानकारी होना कि ये काम हिंदी में कैसे किए जा सकते हैं, तथा इसके बारे में स्कूल, कॉलेज के स्तर पर जानकारी होना।
इसके बाद सिर्फ एक ही काम रह जाता है हिंदी माध्यम से कंप्यूटर अनुप्रयोगों की शिक्षा देना। इस बारे में प्रस्तुत पुस्तक काफी सहायता प्रदान करती है। क्योंकि इस पुस्तक में विभिन्न अवधारणाओं की व्याख्या भी दी गई है। निश्चय ही यह पुस्तक भारत में डिजिटल विभाजन को पाटने की दिशा में एक अहम कदम है।
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