प्रायोजक न मिलने से कलकतिया फुटबाल खतरे में!
जनरोष ठंडा पड़ते ही सबकुछ सामान्य है।आईपीएल घोटाला के बावजूद क्रिकेट का बाजार गरमा रहा है और फिल्म निर्माण भी जारी है। लेकिन पोंजी प्रकरण का शिकार हो गया कोलकाता फुटबाल।
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
कलकतिया फुटबाल चिटफंड कारोबार से संचालित होता रहा है हाल के वर्षों में।शारदा समूह फर्जीवाड़े के भंडापोड़ से ही पता चल गया ता कि फुटबाल ही नहीं, क्रिकेट और बाकी खेल के अलावा बांग्ला फिल्म जगत पर भी चिटफंड कंपनियों का कसा हुआ शिकंजा है।सुदीप्त और देवयानी की गिरफ्तारी से बंगाल में सैकड़ों चिटफंड कंपनियों का कारोबार बंद नहीं हुआ। सेबी और केंद्रीय एजंसियों ने जिनके खिलाफ नोटिस जारी की,उनका कारोबार भी बेरोकटोक जारी है। केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से भड़कते जनाक्रोश के मद्देनजर तुरत फुरत नया कानून बनाने की कवायद भी हुई। पर जनरोष ठंडा पड़ते ही सबकुछ सामान्य है।आईपीएल घोटाला के बावजूद क्रिकेट का बाजार गरमा रहा है और फिल्म निर्माम भी जारी है। लेकिन पोंजी प्रकरण का शिकार हो गया कोलकाता फुटबाल।
ईस्टबंगाल और मोहन बागान कल्ब समेत तमाम बड़े क्लबों को नयी टीम बनाने में पापड़ बेलने पड़ रहे हैं तो कोलकाता प्रीमियर डिवीजन फुटबाल लीग के लिए दलबदल की अवधि 5 जुलाई को खत्म हो रही है लेकिन अर्थ संकट की वजह से 16 में से 10 क्लब अपनी टींम बनाने में नाकाम रहे। उनके लिए प्रायोजक नहीं है। इसीतरह आयुवर्ग की फुटबाल अकादमियां बी बंद हो रही है। फ्रीममियर लीग के जिन छह क्लबों ने टीमंजैसे तैसे बना ली है,उनके सामने भी संकट यह है कि कैसे अग्रिम भुगतान करके खुलाड़ियों से दस्तखत करा लिये जाये।इस स्थिति में लीग बंद करने के विकल्प के बारे में सोच रहे हैं आयोजक। तीन टीमों से लीग टुर्नामेंट चूंकि असंभव है।
वैसे इस बार प्रीमियर लीग में सबसे ज्यादा बीस टीमों का भाग लेना तय हुआ था।आईलीग में शामिल चार बड़े क्लब मोहन बागान, यूनाइटेड स्पोरट्स,ईस्टबंगाल और महमेडान के अलावा पिछले सालों में भवानीपुर,सादार्न समिति,कालीघाटएम ेस और एरियंस जैसे क्लबों ने करोड़ों की टीमें बनाती रही है। लेकिन अबकि दफा सबके यहां ठनठनगोपाला है।
इस पर तुर्रा यह कि ईस्ट बंगाल को फेडरेशन कप जीते हुए आठ महीने हो गए हैं लेकिन कोलकाता के इस फुटबाल क्लब को अब तक अखिल भारतीय फुटबाल महासंघ के ढुलमुल रवैये के कारण इस टूर्नामेंट की इनामी राशि नहीं मिली है। ईस्ट बंगाल ने पिछले साल अक्तूबर में गोवा के डेम्पो स्पोर्ट्स क्लब को 3 . 2 से हराकर खिताब जीता था।
चिटफंड घोटाले के सामने आने के बाद ऐसी कंपनियां अपना हाथ खींच रही हैं. इससे इन क्लबों के अस्तित्व और फटबॉल के खेल पर संकट के गहरे बादल मंडराने लगे हैं। इस घोटाले से हजारों निवेशक मुश्किल में पड़ गये हैं जिसका मतलब है कि क्लबों के लिए फंड मिलना भी कम हो जाएगा। मौजूदा स्थिति को देखते हुए सबसे ज्यादा नुकसान आई लीग टीम यूनाईटेड एससी को होगा क्योंकि उनके टाइटल प्रायोजक `प्रयाग' का भाग्य ही अधर में लटका हुआ है जिससे उनका अस्तित्व भी अनिश्चित हो गया है। टीम ने पिछले सत्र में आई लीग के शीर्ष स्कोरर रैंटी मार्टिंस और कोस्टा रिका के विश्व कप फुटबालर कालरेस हर्नांडीज को 13 करोड़ रुपए के बजट का खर्च किया था। यूनाईटेड एससी के निदेशक नवाब भट्टाचार्य ने कहा कि पहले देखते हैं कि हमारा अस्तित्व रहेगा या नहीं! अभी तक `प्रयाग' अपनी प्रतिबद्धता पर कायम है, लेकिन स्थानांतरण सत्र में क्या होगा, हम नहीं जानते।
ईस्ट बंगाल और मोहन बागान जैसे मशहूर क्लबों के साथ भी सह-प्रायोजक के तौर पर चिटफंड कंपनियां जुड़ी हैं। शारदा समूह ने पिछले तीन साल में मोहन बागान में 1.8 करोड़ और ईस्ट बंगाल में साढ़े तीन करोड़ रुपए का निवेश किया था। एक अन्य चिटफंड कंपनी रोजवैली भी ईस्ट बंगाल के साथ जुड़ी है। कोलकाता के ज्यादातर छोटे-बड़े क्लबों को इन चिटफंड कंपनियों से किसी न किसी सहायता मिलती रही है। यही वजह है कि हाल के वर्षों में इन क्लबों में मशहूर फुटबॉलरों को खरीदने की प्रवृत्ति बढ़ी है और इसके लिए भारी-भरकम रकम खर्च की गई है।
मोहन बागान के देवाशीष दत्ता ने कहा कि चिट फंड घोटाला फुटबाल के लिये बहुत बड़ा झटका है। छोटे क्लबों को इससे सबसे ज्यादा नुकसान होगा। बड़े क्लब जैसे हमें भी इससे नुकसान होगा क्योंकि हमारा बजट निश्चित रूप से कम हो जायेगा। भारतीय फुटबाल संघ (आईएफए) के अंतर्गत पश्चिम बंगाल के 325 क्लब पंजीकृत हैं।
हर साल 20-25 चिटफंड कंपनियां देश के कोने-कोने से औसतन दो-ढाई हजार करोड़ रुपए समेटकर गायब हो जाती है। दूसरी ओर कुछ कंपनियां बड़े-भारी मुनाफे का लालच देकर भोले-भाले नागरिकों से पैसे जुटाती हैं और फिर बड़े समूह का स्वरूप लेकर एक-के बाद एक दिवालिया होने के कगार पर खड़े हो जाते हैं। ऑल इंडिया असोसिएशन ऑफ चिट फंड्स के मुताबिक, पूरे देश में करीब 10,000 चिटफंड कंपनियां हैं, जिनका कुल टर्नओवर करीब 30,000 करोड़ रुपए है। केंद्र सरकार के आदेश पर पश्चिम बंगाल के शारदा ग्रुप के चिटफंड घोटाले की जांच शुरू हो गई है, लेकिन इससे आम निवेशकों को धोखा देकर लाखों-करोड़ों रुपए बनाने वाली कंपनियों पर अंकुश लगने की संभावना कम ही है। पश्चिम बंगाल सरकार ने भी जांच के आदेश दिए हैं, लेकिन छोटे निवेशकों की पूंजी तो गई। भारतीय रिजर्व बैंक और सेबी की चेतावनियों के बावजूद लाखों निवेशक इन कंपनियों के लुभावने सब्जबाग में फंसकर अपनी जमापूंजी से हाथ धो रहे हैं। लोगों से सैकड़ों-हजारों करोड़ उगाहने के बाद जब पैसों की वापसी का समय आता है तो यह कंपनियां अपनी दुकान बंद कर देती हैं।
सेबी के अध्यक्ष यूके सिन्हा ने कहा कि समूह में की जाने वाली अनधिकृत निवेश योजनाओं (सीआईएस) जैसे कि चिट फंडों और निधि कंपनियों की वजह से ही घरेलू बचत और इससे जुड़ी वित्तीय योजनाओं की कमी आ रही है। सिन्हा ने अनुमान लगाया कि ऐसी अनाधिकृत निवेश योजनाओं में 10 हजार करोड़ रुपए से अधिक की रकम फंसी हो सकती है। सीआईएस पर निगरानी सेबी के अधिकार क्षेत्र में शामिल है। हालांकि निधि कंपनियों, चिट फंडों और कोऑपरेटिव को सेबी कानून के दायरे से बाहर रखा गया है। ऐसे चिट फंड और निधि कंपनियां कई साल से भारत में हैं। इनमें से हर फंड या कंपनी पर निगरानी नहीं रखी जाती। कई तो बस सुनी सुनाई बातों के आधार पर धंधा कर रही हैं। एक ही कंपनी में काम कर रहे लोग या फिर एक ही इलाके में रहने वाले लोग अक्सर समूह बना लेते हैं। वे एक चिट फंड तैयार कर लेते हैं और सदस्यों से ऊंचे रिटर्न के वादे पर फंड जुटाते हैं। लेकिन अगर कंपनी बंद हो जाती है तो निवेशकों के लिए अपना पैसा वापस पाना लगभग नामुमकिन होता है।
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