अभी-अभी डी. पी. जोशी जी की अर्थी उठी है
अभी-अभी डी. पी. जोशी जी की अर्थी उठी है. बयानबे के आसपास की उम्र होगी. बेहद शिष्ट और सज्जन बुजुर्ग. अस्सी के आसपास अविभाजित उत्तर प्रदेश में चीफ कंजरवेटर थे. एक कर्मठ और ईमानदार अधिकारी की उनकी छवि थी. खैर, हम उन दिनों वन आन्दोलन में जिस तरह मुब्तिला थे, हमें हर वनाधिकारी खलनायक ही नज़र आता था. मगर फिर १९८४ में स्व. चन्द्र लाल साह ठुलघरिया के प्रयासों से श्री माँ नयना देवी मंदिर अमर उदय ट्रस्ट की स्थापना हुई और जोशी जी उसके अध्यक्ष बने. उनके साथ काम करते हुए बहुत कुछ सीखा. उन्हें आभास भी नहीं होगा कि आंदोलनों के अनुभवों से निहायत अराजक हो चुके एक नौजवान को उन्होंने सभा-सोसाइटी में काम करने का कैसा तमीज सिखा दिया. मैं ताउम्र उनका शुक्रगुज़ार रहूँगा.
मगर आज सबसे ज्यादा खटकने की बात यह थी कि उनकी अंतिम यात्रा में इतने कम लोग थे. जबकि अख़बार में उनके देहांत की खबर सुबह छप चुकी थी. उनके एक पुत्र अरुण जोशी सुशीला तिवारी अस्पताल में कार्डियोलॉजिस्ट हैं और बेहद भले डाक्टर माने जाते हैं. इसके बावजूद श्रद्धांजलि देने वालों की इतनी कम संख्या से अफ़सोस हुआ. हम अपने समाज की शानदार हस्तियों से कितना उपेक्षापूर्ण बर्ताव करने लगे हैं. हमारे पतनोत्मुख समाज का ये एक अच्छा उदाहरण है. कुछ साल पहले डा. डी. डी. पंत की अंत्येष्टि में भी ऐसी ही कसक हुई थी. मैं सोच रहा था कि उनका पुत्र एक ईमानदार non practising doctor न होकर बिल्डर या खनन व्यवसायी होता तो अभी कितनी ढेर गाड़ियाँ दौड़ रही होतीं रानीबाग की ओर...
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