अक्तूबर तक कोयला ब्लाकों के आबंटन के अलावा दिसंबर तक कोलइंडिया को छोटे छोटे टुकड़ों में बांटकर बेच देने का कार्यक्रम
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
कोयला मंत्रालय का एजंडा अब विनिवेश और पुनर्गटन के मामले में एकदम साफ रोड मैप के साथ लागू करने की पूरी तैयारी है। अक्तूबर तक कोलगेट के कारण विवादित कोयला ब्लाकों के आबंटन के अलावा दिसंबर तक पुनर्गठन के बहाने कोलइंडिया को छोटे छोटे टुकड़ों में बांटकर बेच देने का कार्यक्रम है। अब कोल इंडिया का विभाजन सर्वोच्च प्राथमिकता पर है। कोयला सेक्टर की यूनियनों को मनाने के लिए कोल इंडिया की हिस्सेदारी बेचने का लक्ष्य फिलहाल पीछे चला गया है। लेकिन विनिवेश भी होकर रहेगा। निरंतर बदलती कोयलानीति में ही भ्रष्टाचार की गहरी जड़ें हैं। इन्हीं नीतियों के तहत ही कोयलाक्षेत्र के निजीकरण का एजंडा है।
गौरतलब है कि कोयला मंत्रालय और भारत सरकार का यह एजंडा कोई गोपनीय भी नहीं है। इस सिलसिले में कोयला मंत्रालय की ओर से बाकायदा Result Framework for FY14' नामक नीति दस्तावेज जारी कर दिया गया है जिसमें अक्तूबर तक कोयला ब्लाकों के आबंटन और दिसंबर तक कोल इंडिया के पुनर्गठन के कार्यभार का खुलासा किया गया है। यूनियन प्रसंग इस कार्यक्रम में प्रस्थान बिंदू जरुर हैं, लेकिन यूनियनें इस एजंडा को रोकने में उसीतरह कामयाब नहीं हो सकते, जैसे भारत और पाकिस्तान के विभाजन का विरोध करने वाली ताकतों का हश्र हुआ। कर्मचारी अपनी यूनियनों के भरोसे जो कूद फांद रहे हैं, उन्हें दिसंबर तक रानीगंज और झरिया के हाथ से निकलने के बाद ही असलियत मालूम होगी। तब तक सौदेबाजी और नौटंकी का सिलसिला जारी रहेगा।
कोल इंडिया के 3.50 लाख से ज्यादा कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने वाले सभी वर्कर्स यूनियन ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने की धमकी दी है और अब यूनियन ने अपना विरोध दर्ज कराने के लिए कोलकाता में संयुक्त सम्मेलन भी कर लिया। लेकिन इससे भारत सरकार के एजंडा बदला नहीं है, सिर्फ रणनीति बदल गयी है। यूनियनों की तसल्ली के लिए प्रधानमंत्री उनसे मिल भी लेंगे। केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने दोहराया है कि सरकार कोल इंडिया की 10 फीसदी की हिस्सेदारी का विनिवेश करेगी, वहीं दूसरी ओर यूनियन इस कदम का विरोध करते नजर आ रहे हैं।सरकार ने विनिवेश लक्ष्य को पीछे करके विभाजन की प्रक्रिया चालू कर दी।लेकिन यूनियनों की रणनीति बदली हों, ऐसी सूचना नहीं है।
हर कदम पर,हर कीमत पर विनिवेश के प्रतिरोध करने का संकल्प दोहराने वाली यूनियनों को कोयलामंत्री और प्रधानमंत्री से कोल गेट के बाद अब भी न्याय की उम्मीद है। यूनियनें प्रधानमंत्री से मिलकर विनिवेश और विभाजन रोकना की उम्मीदे पाल रही हैं जबकि प्रधानमंत्री के ही दिशानिर्देश और वित्त मंत्री की प्रत्यक्ष निगरानी में झरिया और रानीगंज कोयला क्षेत्रों के हस्तांतरण की गुरिल्ला कार्रवाई की योजना बन चुकी है।कोल इंडिया लिमिटेड के पुनर्गठन के लिए सरकार ने कवायद तेज कर दी है। इसके तहत कोयला मंत्रालय ने शॉर्टलिस्ट की गई नौ फर्मों से रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल (आरएफपी) मंगाए हैं।
कोयला मंत्रालय ने आज कहा कि उसने निजी इस्तेमाल के लिए आवंटित खानों के बेशी कोयले के उपयोग की नीति का एक मसौदा तैयार किया है। कोयला सचिव एस के श्रीवास्तव ने कहा, 'हमने बेशी कोयले के उपयोग के लिए नीति का मसौदा तैया किया है और इसे टिप्पणी के लिए विभिन्न मंत्रालयों के पास भेज दिया है।' उन्होंने कहा, 'सचिवों की समिति इसकी समीक्षा करेगी।'यह बयान सरकार द्वारा निजी खानों से बेशी कोयले के उपयोग से जुड़े मामले पर विचार के लिए योजना आयोग के सदस्य बी के चतुर्वेदी की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति के गठन की घोषणा की एक दिन बाद आया है। इस समिति में अन्य लोगों के अलावा श्रीवास्तव भी होंगे।
कोयला मंत्रालय और कोयलामंत्री को इसी वित्तीय वर्ष में विनिवेश और विभाजन के काम निपटाने की जिम्मेवारी सौंपी गयी है। यूनियनें घोषित कार्यक्रम के तहत बेमियादी हड़ताल करके सारा खेल गुड़गोबर न कर दें, इसी मकसद से य़ूनियनों को मनाने की कवायद हो रही है।यूनियनें भी इस दुश्चक्र में अच्छी तरह फंस गयी है औरमहज सौदेबाजी से विनिवेश और विभाजन रोक देना चाहती हैं। लेकिन विनिवेश और विभाजन पर जिनका दांव लगा है, वे कहीं ज्यादा ताकतवर हैं।यूनियनों ने दावा किया है कि साल 2010 में सीआईएल के शेयर बिक्री के समय तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने आश्वासन दिया था कि सरकार की और हिस्सेदारी नहीं बेची जाएगी। रॉय ने कहा, साल 2011 में यूनियनों ने कोयला मंत्रालय के साथ इस बाबत समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। दूसरे क्षेत्रों के मुकाबले कोयला क्षेत्र अलग है। कोल इंडिया के साथ सरकार ऐसा नहीं कर सकती।
इसी बीच कोल इंडिया लिमिटेड ने कहा है कि जून २०१३ में कंपनी अपने उत्पादन लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकी है। जून में कंपनी ने ३.५ करोड़ टन उत्पादन का लक्ष्य रखा था, जबकि इस दौरान वह ३.२५ करोड़ टन का ही उत्पादन कर सकी।बांबे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) को दी एक जानकारी में कंपनी ने बताया कि समीक्षाधीन महीने में उसने ३.९८ करोड़ टन कोयला उठान का लक्ष्य निर्धारित किया था। कंपनी इस लक्ष्य से भी भटकते हुए सिर्फ 3.7 करोड़ टन कोयले के उठान में सफल हो सकी।
कंपनी के बयान में कहा गया है कि पिछले दो महीनों यानी मई और जून को मिलाकर कंपनी ने १२.०७ करोड़ टन कोयला उठान का लक्ष्य निर्धारित किया था। हालांकि इन दो महीनों में सिर्फ ११.५ करोड़ टन कोयले का उठान हो सका। कोयला मंत्रालय ने कोल इंडिया के लिए वित्त वर्ष २०१३-१४ के दौरान ४८.२ करोड़ टन उत्पादन और ४९.२ करोड़ टन उठान का लक्ष्य दिया हुआ है।
सीआईएल के एक बयान के मुताबिक कंपनी के चेयरमैन व एमडी एस. नरसिंग राव तथा कोयला सचिव एस. के. श्रीवास्तव के बीच हुए एक करार में यह लक्ष्य रखा गया। गौरतलब है कि सीआईएल ने वित्त वर्ष २०१२-१३ के दौरान ४५.२५ करोड़ टन आउटपुट का लक्ष्य हासिल किया था।
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