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Memories of Another day

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Wednesday, July 3, 2013

एअरपोर्ट पर निजीकरण के खिलाफ यूनियनों के आंदोलन के अगुवा सौगत राय, दीदी से मदद की गुहार

एअरपोर्ट पर  निजीकरण के खिलाफ यूनियनों के आंदोलन के अगुवा सौगत राय, दीदी से मदद की गुहार


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


कोलकाता के दमदम नेताजी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे आम यात्रियों के लिए तुरत फुरत खोल तो दिया गया तलेकिन इससे कोलकाता में हवाई यातायात में कोई सुधार हुआ हो , ऐसा कहा नहीं जा सकता। टर्मिनल को खुले हुए ज्यादा वक्त नहीं हुआ कि कांच की दीवारों से पानी  चूने लगा है।वैसे भी बरसात में हवाई अड्डे तक पहुंचने में पानी के सैलाब से होकर गुजरना होता है। अंदर भी भरी बरसात का खूब अहसास हो जाता है।अब  वहां कर्मचारियों के आंदोलन से हालत और बिगड़ने के आसार हैं। हवाई अड्डे की सभी यूनियनों ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से अनुरोध किया है कि वह इस हवाई अड्डे के निजीकरण के प्रयासं के खिलाफ हस्तक्षेरप करें और विमानन मंत्री को विरोध पत्र अवश्य लिखें। दीदी क्या कर पाती हैं, केंद्र से उनके संबंधों के मद्देनजरकुछ कह पाना फिलहाल मुश्किल है।बहरहाल कर्मचारी यूनियनों का कहना है कि एअरपोर्ट आथोरिटी और विमानन मंत्रालय मिलकर टर्मिनल के रखरखाव समेत दूसरी तमाम सेवाएं निजी कंपनियों के हवाले करने वाली है। बहरहाल टर्मिनल के रखरखाव का जो हाल है, आम यात्री यूनियनों की मांग का तनिक भी समर्थन करेंगे, इसमें शक है।


मालूम ह कि पिछले 20 जनवरी को राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने दमदम हवाई अड्डे के नये टर्मिनल का उद्घाटन किया था।इस टर्मिनल से सालाना 48 लाख यात्री आते जाते हैं। नया टर्मिनल 2,325 करोड़ रुपये के लागत से बनाया गया है।


अब खास बात यह है कि हवाई अड्डे पर यूनियनों के आंदोलन की अगुवाई पूर्व केंद्रीय मंत्री और दमदम के सांसद सौगत राय कर रहे हैं, जो इन दिनों दीदी से कापी दूरी पर बताये जाते हैं। सौगत के सुझाव पर ही सभी यूनियनों ने साझा फोरम बनाया है और इसी फोरम की ओर से दीदी से मदद की गुहार लगायी गयी है।


बैंकों और दूसरी अनिवार्य नागरिक सेवाओं के मामले में सरकारी क्षेत्र के कर्मचारियों की लालफीताशाही और लापरवाही के मद्देनजर उनके निजीकरण और निजी क्षेत्र को प्राथमिकता दिये जाने के सरकारी प्रयासों का आम जनता ने अमूमन स्वागत ही किया। एअर इंडिया की उड़ानों को लेकर शिकायतें सबसे ज्यादा रही है। उड़ान नियत समय सेकितनी देरी से छूटेगी या अंततः रवाना होगी या नहीं, इसका अक्सर अंदाजा ही नहीं लगता। इस पर एक दम नये टर्मिनल के रखरखाव का जो हाल है, कर्मचारी यूनियनों के आंदोलन को आम यात्रियों का समर्थन क्या, सहानुभूति मिलना भी मुश्किल है।


सबसे बड़ी शिकायत तो यह है कि दमदम एअरपोर्ट पर यात्री सेवा बेहतर बनाने का प्रयास होता ही नही ंहै। टर्मिनल से गुरने वाले हर शख्स के चेहरे पर असंतोष है। यूनियनों ने जनसमर्थन जुटाने के लिए यात्री सेवाएं बेहतर बनाने के उपाय पर कभी गौर ही नहीं किया है।


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