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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Friday, August 8, 2014

जीवंत रंगमंच में अग्निकांड या फिर आगजनी? नवारुण दा के बागी साहित्य के मंचन के लिए मशहूर रंगकर्मी सुमन मुखोपाध्याय और बागी नाटककार कौशिक सेन के नाटकों के मंचन के मध्य अकादमी में लगी आग पलाश विश्वास

जीवंत रंगमंच में अग्निकांड या फिर आगजनी?


नवारुण दा के बागी साहित्य के मंचन के लिए मशहूर रंगकर्मी सुमन मुखोपाध्याय और बागी नाटककार कौशिक सेन के नाटकों के मंचन के मध्य अकादमी में लगी आग

पलाश विश्वास


Ei Samay










अकादमी आफ फाइन आर्ट्स,कोलकाता में आग लगने के बाद सुमन मुखापाध्याय के वक्तव्य पर गौर करें कि उन्होंने कहा है कि अजीब बात है कि मेरे और कोशिक के नाटकों के मंचन के वक्त ही रंगमंच के स्क्रीन में आग लग लगी।सुमन का नाटक है,जो आगजनी करते हैं,संजोग यह कि उनके नाटक के मंचन के दौरान ही अकादमी में यह अग्निकांड हो गया।


संकरे प्रवेशद्वार और अनुपस्थित दमकल नजरदारी के मध्य इस अग्निकांड से भगदड़ नहीं मची तो इसके लिए इन नाटकों को देखने के लिए उपस्थित विशिष्ट दर्शक तबके को धन्यवाद देना चाहिए,जनकी दिलेरी और प्रतिबद्धता की वजह से भारतीयरंगमंच अब भी सत्ता से लोहा लेने का दुस्साहस कर सकता है।



कविता को सपने और जिदंगी से जोड़, परिवर्तन की बात करने वाले बांग्ला के सामाजिक यथार्थ के विद्रोही कवि नवरूण भट्टाचार्य ने बीते 31 जुलाई अग्नाशय में कैंसर से जूझते हगए इस दुनिया को अलविदा कह दिया।


'मत्यु उपत्यका नहीं है, मेरा देश' जैसी कविताएं लिखकर नक्सलबाड़ी आन्दोलन के दौरान हो रहीं युवकों की हत्याओं पर सवाल खड़ा करने वाले कवि नवारूण भट्टाचार्य की कविताओं में वो उर्जा,जनसरोकार और प्रतिबद्धता है,चाबुक की तरह धारदार भाषा है और दील और दिमाग को झकझोर देने वाली दृष्टि धार है, जो ठहरे हुए वक्त को चलाने के साथ-साथ सोचने पर भी मजबूर कर देती है।


भाषा बंधन के दिनों में इन्हीं नवारुण दा ने वैश्वीकरण सब्द पर गहरा ऐतराज जताया था।उनके मुताबिक वैश्वीकरणऔर विश्वबंधुत्व तो कविगुरु रवीन्द्र नाथ की कविता से लेकर भारतीय संस्कृति और साहित्य की समूची विरासत के कथातत्व का स्थाईभाव है और यह भारतीय दर्शन की अटूट परंपरा है।इसके विपरीत ग्लोबेलाइजेशन तो नरसंहार संस्कृति  है,जिसका न वैश्वीकरण और न विश्वबंधुत्व से नाता है।एकध्रूवीय साम्राज्यवाद एकाधिकारवादी नस्ली पूंजी का विश्वव्यापी नरसंहार है और यह वैश्वीकरण आवारा पूंजी और जनसंहार संस्कृति का मुक्तबाजार है।ग्लोबीलाइजेशन को गद्लोबीकरण लिखना चाहिए।


तब से मैं अपने लिखे में ग्लोबीकरण का ही इस्तेमाल करता हूं।


ऐसा था हमारे नवारुण दा का फोकस।


मंगलेश दा डबराल ने मृत्यु उपत्यका को हिंदी पाठकों के बीच ला पटका तो जनसत्ता के सबरंग में हमारे पुरातन सहयोगी अरविंद चतुर्वेद ने हर्बट का अनुवाद छापा।


भाषाबंधन से पहले सबरंग में ही अलका के कलिकथा बायपास से लेकर हर्बट,बेबी हल्दर की आत्मकथा और प्रभा खेतान से लेकर जया मित्र की तमाम महत्वपूर्ण कृतियों का अनुवाद छपता रहा है तो भाषाबंधन में शुरुआती दौर में ही पंकजदा के लेकिन दरवाजा और विभूति नारायण राय के शहर में कर्फ्यू समेत तमाम भारतीय भाषाओं के साहित्य का बांग्ला अनुवाद छपता रहा है। बतौर संपादक भी नवारुण दा अद्वितीय थे।


कंसेप्ट महाश्वेता दी का था और वे ही प्रधान संपादक थीं।वे वर्तनी के मामले में बेहद सतर्क है और संपादकीय बैठक में वर्तनी में चूक के लिए हम जैसे नौसीखिये से लेकर नवारुण दा तक को डांटने से परहेज नहीं करती थीं।जबकि महाश्वेता दी के ही शब्दों में नवारुण ने एक शब्द भी फालतू नहीं लिखा कभी।


नवारुण दा के साथ भाषाबंधन की टीम टूट जाने का अफसोस रहेगा।


बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि पिता बिजन भट्टाचार्य के अवसान के बाद युवा नवारुण ने उनके ग्रुप थिएटर की बागडोर भी संभाली थी।


कुछ वर्षों से अपनी हर्बर्ट,फैताड़ु और कंगाल मालसाट जैसी अंत्यज जीवन के सामाजिक यथार्थ और यथास्थिति के विरुद्ध युद्धघोषणा की कथा को लेकर नवारुण दा रंगमंच पर भी उपस्थित हो रहे थे और उनको उपस्थित करने वाले थे सुमन मुखोपाध्याय,जिन्होंने मंचन के अलावा नवारुण कथा पर फिल्माकंन भी किया।


सुमन मुखोपाध्याय इसी कारण वे सत्ता की आंखों की किरकिरी बने हुए हैं।हाल में एक फाइव स्टार होटल में भूतेर भविष्यत से मशहूर अभिनेत्री स्वस्तिका के जख्मी होने के सिलसिले में उनको पुलिस ने बिना उनके खिलाफ किसी की शिकायत के हिरासत में ले लिया,बवाल होने पर पुलिस हिरासत से मुकर भी गयी पुलिस।


इसके विपरीत 26 मई 2014 की सबसे सनसनीखेज खबर यह थी कि न्यूटाउन थाने की पुलिस ने बंगाल के मशहूर रंग कर्मी सुमन मुखोपाध्याय को गिरफ्तार किया है। पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार उन्होंने गत 22 मई को न्यूटाउन-राजारहाट के एक निजी होटल के कर्मियों के साथ मारपीट की थी। सिर्फ इतना ही नहीं उन्होंने होटल में तोड़फोड़ की एवं कर्मियों को जान से मार देने की धमकी भी दी थी। होटल प्रबंधन द्वारा दर्ज की गई शिकायत के आधार पर शनिवार शाम से ही उनसे बार-बार पूछताछ की जा रही थी जिसके बाद सोमवार सुबह न्यूटाउन थाने की पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया।


कंगाल मालसाट को लेकर तो लंबा विवाद चला।कंगाल मालसाट को सेंसर बोर्ड ने  सर्टिफिकेट देने से इंकार कर दिया था।सेंसर बोर्ड ने एक बंगाली फिल्म 'कंगाल मलसाट' को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के शपथ ग्रहण समारोह और सिंगूर आंदोलन के दृश्यों की वजह से प्रदर्शन की अनुमति नहीं दी । सिंगूर आंदोलन की वजह से ही टाटा को अपनी लखटकिया कार 'नैनो' के प्लांट को राज्य से बाहर गुजरात ले जाना पड़ा था। सेंसर बोर्ड के इस फैसले के खिलाफ फिल्म निर्देशक ने फिल्म प्रमाणन अपीलीय ट्रिब्यूनल में अपील की।

इस फिल्म में तृणमूल कांग्रेस के तत्कालीन बागी सांसद और फिल्म अभिनेता कबीर सुमन ने अभिनय किया है। फिल्म का निर्देशन सुमन मुखोपाध्याय ने किया है। यह फिल्म नबरून भट्टाचार्या के उपन्यास पर आधारित है.


सेंसर बोर्ड ने फिल्म के प्रोड्यूसर को खत लिखकर कहा है, 'जिस तरह से फिल्म में मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह को दिखाया गया है, उससे प्रतीत होता है कि इतिहास को तोड़-मरोड़कर दिखाने का प्रयास किया गया है। इससे पश्चिम बंगाल की आम जनता की भावनाएं आहत हो सकती हैं और ये फिल्म सनसनी पैदा कर सकती है।' फिल्म में एक व्यक्ति को मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह को हिकारत की नजर से देखते हुए दिखाया गया है।


सेंसर बोर्ड ने खत में आगे लिखा कि फिल्म में जिस तरीके से टाटा कंपनी के राज्य से बाहर जाने को चित्रित किया गया है, उससे एक महत्वपूर्ण नागरिक आंदोलन की छवि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इसके अलावा खत में लिखा गया है कि फिल्म में गाली-गलौच वाली भाषा के गैर जरुरी इस्तेमाल और सेक्सुअलिटी के जरिए एक सामाजिक आंदोलन को पेश करने से हमारे समाज के लोगों की भावनाएं आहत हो सकती हैं।


सेंसर बोर्ड ने अपने खत में ये भी लिखा है कि फिल्म में जिस तरह से सोवियत रुस के नेता स्टालिन को दिखाया गया है, उससे उनके समर्थकों की भावनाएं आहत हो सकती हैं और फिल्म के सार्वजनिक प्रदर्शन से अव्यवस्था पैदा हो सकती है।



इस अग्निकांड को समझने के लिए इसीलिए  नवारुणदा के कथासंसार को समझना जरुरी है।क्योंकि जैसे मैं समझ रहा हूं कि यह अविराम मंचन के लिए कोलकाता में एकमात्र प्रेक्षागृह जो चित्रकला और भास्कर्य और साहित्यिक गतिविधियों का केंद्र भी है,में यह रहस्यजनक अग्निकांड चाहे दुर्घटना हो या सत्ता की बेचैनी,दरअसल यह नवारुणदा के बागी रचना संसार के विरुद्ध आगजनी ही है।


आग तो लगी थी स्टार थिएटर में भी जहां कामर्शियल नाटकों के मंचन के अलावा नटी विनोदिनी और नाट्यसम्राट गिरीशचंद्र से लेकर रामकृष्ण परमहंस की स्मृतियां भी जलीं।अब नये सिरे से बना स्टार थिएटर एक मल्टीप्लेक्स है अपनी विरासत की जड़ों से कटा हुआ।


अकादमी आफ फाइन आर्टस,कोलकाता को लेकिन बंगाल के ग्रुपथियेटर आंदोलन की कोख भी कहें तो कम होगा।यहीं से रंगकर्मी व्रात्यबसु का उत्थान और सत्ता में विलोप संपन्न हुआ तो नांदीकार का नाट्यतसवों के जरिये समसामयिक भारतीयनाट्य आंदोलन की अभिव्यक्ति का मंच भी है यह प्रेक्षागृह,जहां विजय तेंदुलकर,गिरीश कर्नाड, हबीब तनवीर और कनाीलाल जैसे रंगकर्मी एकाकार होते रहे हैं।


इस मायने में अकादमी प्रेक्षागृह की तुलना भारत के किसी दूसरे प्रेक्षागृह से की ही नहीं जा सकती।


नंदन और रवींद्र सदन के अत्याधुनिक प्रेक्षागृहों की तुलना में छोटा सा और सुविधाओं के लिहाज से बेहद मामूली इस अकादमी प्रेक्षागृह में अग्निकांड दरअसल मक्तबाजार संस्कृति वर्चस्व समय के दुःसमय और अभिव्यक्ति संकट दोनों का समन्वय है।


कृपया इसे को मामूली दुर्घटना या कोई मामूली आपराधिक वारदात न समझें,इसीलिए समन मुखोपाध्याय के साथ नवारुण दा को जोड़कर यह आलेख का प्रयोजन है।


जिन्होंने सिलसिलेवार मंटो को पढ़ा है,उन्हें नवारुण दा को समझने में दिक्कत नहीं होगी। विख्यात पिता और उनसे भी ज्यादा मशहूर माता की संतान होने के बावजूद कविता और कथा साहित्य में नवारुण दा का डीएनए मंटो,उनके खासमखास दोस्त बांग्लादेशी लेखक अख्तरुज्जमान इलियस और हाल में दिवंगत शहीदुल जहीर के डीएनए से मैच होती है।


माणिक बंदोपाध्याय सामाजिक यथार्थ के मौलिक कथाकार रहे हैं प्रेमचंद के बाद।तो ताराशंकर और अमृतलाल नागर में भी यथार्थ के विवरण सिलसिलेवार हैं।लेकिन माणिक के बाद भारतीय साहित्य में समाजवास्तव को सुतीक्ष्ण आक्रामक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने में नवारुणदा ही अग्रणी हैं और उनका कथासाहित्य दरअसल उनकी कविता मृत्यु उपत्यका का असीम विस्तार ही है।


हर्बट,फैताड़ु और कंगालमालसाट की तो बात ही अलग है,अटो जैसे उपन्यास में भी यथार्थ को प्याज के छिलके की तरह उतारने में उनकी कोई सानी नहीं है और यह सिर्फ  कोई ब्यौरा नहीं है,या महज कथाचित्र या तथ्यचित्र तक सीमाबद्ध नहीं,बल्कि  इसमें हमेशा वंचित सर्वहारा तबके के पक्ष में युद्ध प्रस्तुति है।


माणिक के साहित्य में वर्गसंघर्ष सिलसिलेवार है लेकिन वहां भी इतनी दुस्साहसिक युद्धघोषणा नहीं है।यह युद्धघोषणा उनकी प्रजाति के बाकी तीनों अद्भुत कथाकारों मंटो,इलियस और जहीरके साहित्य में नहीं है और न ही महाश्वेता दी के विद्रोह उपाख्यानों आख्यानों में है।


অ্যাকাডেমিতে আচমকা আগুন সুমনের নাটকে

নিজস্ব সংবাদদাতা

৮ অগস্ট, ২০১৪, ০৩:০৩:১৪


মঞ্চে নাটক চলছে। দর্শকাসনে টানটান উত্তেজনা। সেই নাটকীয়তাকে হার মানিয়ে উপরে পর্দা থেকে ঝলকে উঠল আগুন।

বৃহস্পতিবার সন্ধ্যায় বড়সড় দুর্ঘটনার হাত থেকে কান ঘেঁষে বাঁচল কলকাতার অ্যাকাডেমি অব ফাইন আর্টস মঞ্চ। নাট্যকর্মী এবং দর্শকদের একাংশই প্রাথমিক ভাবে অবস্থাটা সামাল দেন। পরে দমকলের দু'টি ইঞ্জিন পরিস্থিতি আয়ত্তে আনে। তবে ধোঁয়া ও আতঙ্কে কয়েক জন নাট্যকর্মী অসুস্থ হয়েছেন। বেসরকারি হাসপাতালে নিয়ে গিয়ে তাঁদের চিকিৎসা করানো হয়েছে।

দমকলের সূত্রের খবর, আপাত ভাবে শর্ট সার্কিট থেকেই আগুন লেগেছে বলে মনে করা হচ্ছে। মঞ্চের উপরে আলো তেতে গিয়ে পর্দার সংস্পর্শে এসে আগুন লাগার সম্ভাবনা রয়েছে। দমকলের ডিজি সঞ্জয় মুখোপাধ্যায় বলেছেন, এখনও পর্যন্ত এই ঘটনায় কারও গাফিলতি চিহ্নিত করে পুলিশে অভিযোগ দায়ের করার কথা তাঁরা ভাবছেন না।

এ দিন একই সঙ্গে দু'টি নাটিকার অভিনয় ছিল। প্রথমে কৌশিক সেনের নির্দেশনায় 'পুনশ্চ'। তার পর সুমন মুখোপাধ্যায় নির্দেশিত 'শূন্য শুধু শূন্য নয়'। সেই নাটিকারই একটি দৃশ্যে অভিনয় করতে করতে অভিনেত্রী তূর্ণা দাস উপরে তাকিয়ে দেখেন, মঞ্চের ডান দিকের পর্দা (মিড কার্টেন) থেকে আগুন ঝরছে। মুহূর্তের মধ্যে তীব্র আতঙ্ক ছড়িয়ে পড়ে প্রেক্ষাগৃহে।

ঘটনাচক্রে সুমন এবং কৌশিক দু'জনেই বর্তমান শাসক দলের বিরুদ্ধে প্রতিবাদী স্বর হিসেবে চিহ্নিত হয়ে গিয়েছেন। নাট্যজগতে শিবির-বিভাজনও এই মুহূর্তে তুঙ্গে। সে ক্ষেত্রে তাঁদের নাট্যাভিনয়ের মাঝপথে এমন ঘটনায়, নানা মহলে নানা সন্দেহও দানা বাঁধতে শুরু করেছে। তবে সুমন এবং কৌশিক এখনই এর মধ্যে চক্রান্তের ছায়া খুঁজতে রাজি নন। ঘটনাটিকে শুধু এক 'রহস্যজনক সমাপতন' হিসেবেই বর্ণনা করছেন ওঁরা। সুমনের কথায়, "বহু দিন বাদে কৌশিক ও আমি একসঙ্গে নাটক করছিলাম। কী ভাবে এমনটা ঘটল, মাথায় ঢুকছে না।"

তবে নাট্যজগতের অনেকে বলছেন, সম্প্রতি এগ্জিকিউটিভ কমিটির সদস্যদের সঙ্গে মতভেদের জেরে অ্যাকাডেমির অছি পরিষদের (বোর্ড অব ট্রাস্টি) সদস্যরা পদত্যাগ করার পর প্রেক্ষাগৃহের দেখভালে কিছু সমস্যার জন্ম হয়েছে। ক'দিন ধরেই প্রেক্ষাগৃহের শীতাতপ নিয়ন্ত্রণ যন্ত্র নিয়ে উপর্যুপরি সমস্যা হচ্ছিল বলেও অভিযোগ।

তা ছাড়া অ্যাকাডেমির নিয়মিত নাট্যদর্শক-নাট্যকর্মীদের একটা বড় অংশেরই বক্তব্য, যে কোনও দিন কোনও দুর্ঘটনা ঘটতে পারে এবং সে ক্ষেত্রে অপরিসর জায়গার মধ্যে কী ভাবে তা সামাল দেওয়া যাবে, সে আশঙ্কা তাঁদের ছিলই!

কেন?

দীর্ঘ চার দশক ধরে নাটকের অভিনয় হচ্ছে এই মঞ্চে। বর্তমানে কলকাতার নাট্যচর্চার কেন্দ্রবিন্দু এই মঞ্চ। নিয়মিত বিপুল দর্শকের সমাগম হয়। অথচ একতলায় একটি মাত্র অপ্রশস্ত দরজাই ঢোকা-বেরনোর জন্য খোলা থাকে। কোনও দিন কোনও বিপদ ঘটলে লোকজনকে নিরাপদে বের করে আনাটাই যে বিরাট সমস্যার জন্ম দিতে পারে, এ কথা হামেশাই নাট্যজগতের অন্দরে আলোচিত হয়ে থাকে। চেয়ারে হুমড়ি খেয়ে পড়ে, সরু জায়গায় ঠেলাঠেলিতে পদপিষ্ট হয়ে মানুষ আহত হতে পারেন, দমবন্ধ হয়ে অসুস্থ হয়ে পড়তে পারেন এমন বহু সম্ভাবনার কথাই সে সব আলোচনায় উঠে আসে। কিন্তু দিল্লির 'উপহার' সিনেমা হলের ঘটনা, কলকাতার বুকে স্টিফেন কোর্ট-নন্দরাম মার্কেটের মতো মারাত্মক সব অগ্নিকাণ্ড পরপর ঘটে যাওয়ার পরেও অ্যাকাডেমির মতো প্রেক্ষাগৃহের কোনও সংস্কার হয়নি।

এ দিনও প্রত্যক্ষদর্শীরা জানাচ্ছেন, আগুন লাগার পরে দর্শকদের বার করতে গিয়েই সবচেয়ে বেশি আতঙ্ক ছড়িয়েছিল। ভিড়টাসা একতলায় প্রাণভয়ে হুড়োহুড়ি, ঠেলাঠেলির চোটে কেউ কেউ হুমড়ি খেয়ে পড়েন। তখন প্রেক্ষাগৃহের পিছনে বহু বছর ধরে বন্ধ থাকা আর একটি দরজা খুলে দেওয়া হয়। কিন্তু মরচে পড়া সে তালা খুলতে হিমসিম খেয়ে যান হলের কর্মীরা। দোতলাতেও একটিই দরজা। সেখানেও আতঙ্কের আঁচ পৌঁছে যায়।

তবে শেষমেশ বড় ধরনের বিপদ ঘটেনি। অভিনেত্রী তূর্ণা, নবনীতা বসু মজুমদার প্রমুখ কয়েক জন অসুস্থ হয়ে পড়লেও তাঁদের আঘাত গুরুতর নয়। অভিনেতা বিশ্বজিৎ চক্রবর্তী থেকে শুরু করে আলোকশিল্পী দীপঙ্কর দে সকলেই পরিস্থিতি সামলাতে হাত লাগান। নাটক দেখতে এসে অভিনেতা দেবদূত ঘোষ, নাট্যপরিচালক বিপ্লব বন্দ্যোপাধ্যায় দর্শকদের বাইরে বার করতে ব্যস্ত হয়ে পড়েন। সুমন ও কৌশিক দু'জনেই বলছিলেন, "এত জন নাট্যকর্মী একসঙ্গে থাকায় সুবিধে হয়েছে। অ্যাকাডেমির ঘাঁতঘোঁত সবারই জানা। ফলে উদ্ধারকাজ থমকায়নি।"

কিন্তু এ দিন বিপদ কাটলেও ভবিষ্যতে সুরক্ষার বন্দোবস্ত কী হবে, তা নিয়ে কোনও উত্তর মেলেনি। এগ্জিকিউটিভ কমিটির সহ-সভাপতি অসিত পালের অভিযোগ, "প্রেক্ষাগৃহে আগুন নিয়ন্ত্রণের ব্যবস্থা আরও ভাল করতে ট্রাস্টিদের সাহায্য চেয়েছিলাম। সব টাকা ওঁদেরই জিম্মায়। ওঁরা সাহায্য না-করলে সংস্কার সম্ভব নয়।" প্রেক্ষাগৃহের কেয়ারটেকার বিমল দে-র অবশ্য দাবি, হলে রাখা অগ্নিনির্বাপণ যন্ত্র ব্যবহার করেই তাঁরা পরিস্থিতি সামলান। পরে দমকল আসে!

কিন্তু নাট্যকর্মীদের অনেকেরই বক্তব্য, শুধুমাত্র অগ্নি নির্বাপণের ব্যবস্থা রাখাটা তো একমাত্র বিচার্য নয়! অগ্নি-সুরক্ষার অন্যান্য নিয়ম-সতর্কতা মানা হচ্ছে কি না, ঢোকা-বেরনোর উপযুক্ত জায়গা রাখা হচ্ছে কি না, সে প্রশ্নগুলোর মীমাংসা হওয়া দরকার। প্রশাসনও নজরদারির দায় এড়াতে পারে না। কৌশিক সেন দাবি তুলছেন, "প্রেক্ষাগৃহের দেখভালের দায়িত্বে যাঁরা আছেন, তাঁদের সবাইকে এটির নিরাপত্তা নিয়ে ভাবতে হবে।"

এর পরে অ্যাকাডেমিতে ফের কবে নাটক হবে, সেটা অনিশ্চিত। আপাতত নাট্যমোদীদের মুখে মুখে ঘুরছে, সুমন মুখোপাধ্যায়ের নতুন নাটকের নাম। 'যারা আগুন লাগায়!' সেই সুমনের নির্দেশনাতেই অন্য একটি নাটকে এই অগ্নি-কাণ্ড নাটকীয় মাত্রা যোগ করল। এও সমাপতন।

http://www.anandabazar.com/calcutta/fire-at-academy-of-fine-arts-organisers-stopped-drama-show-1.57612

নাটক চলাকালীন আগুন অ্যাকাডেমি অফ ফাইন আর্টসে, অসুস্থ অভিনেত্রী

Last Updated: Thursday, August 7, 2014 - 22:46

নাটক চলাকালীন আগুন অ্যাকাডেমি অফ ফাইন আর্টসে, অসুস্থ অভিনেত্রী

কলকাতা: এবার আগুন অ্যাকাডেমি অফ ফাইন আর্টসে। বৃহস্পতিবার সন্ধেয় নাটক চলাকালীন আগুন লাগে। নাট্যকার সুমন মুখোপাধ্যায়ের নাটক, শূন্য শুধু শূন্য নয়ের অভিনয় চলছিল সেই সময়।

মঞ্চের পর্দায় আগুন লাগায় দর্শকরা আতঙ্কিত হয়ে পড়েন। অসুস্থ হয়ে পড়েন কয়েকজন দর্শক। নাটকের এক অভিনেত্রী অসুস্থ হয়ে পড়ায় তাঁকে এসএসকেএমে ভর্তি করা হয়েছে। দমকলের ২টি ইঞ্জিন ঘটনাস্থলে পৌছে ফোমের সাহায্যে আগুন নেভায়। প্রেক্ষাগৃহ থেকে বের করে আনা হয় দর্শকদের।

অ্যাকাডেমির অগ্নি নির্বাপণ ব্যবস্থা যথাযথ নয় বলে ক্ষোভ প্রকাশ করেছেন নাট্যকার কৌশিক সেন। ঘটনায় ক্ষোভপ্রকাশ করেছেন অন্যান্য নাট্যব্যক্তিত্বরাও।


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