नेहरु जमाने का पटाक्षेप,लेकिन इसकी कीमत क्या,इसे भी बूझ लीजिये,बंधु!
पलाश विश्वास
नेहरु जमाने का पटाक्षेप,लेकिन इसकी कीमत क्या,इसे भी बूझ लीजिये,बंधु!
दरअसल दो दलीय वेस्टमिनिस्टर शैली की लोकतांत्रिक वर्चस्ववादी इस राज्यतंत्र में संघ पिरावर का जैसे कभी अंत हुआ नहीं है,वैसे ही कांग्रेस का अंत भी असंभव है।
नेहरु गांधी वंश अश्वत्थामा की तरह अमर है तो संघ परिवार उसीका प्रतिरुप है।
भारतीय लोकतंत्र में इन दो विकल्पों के अलावा किसी तीसरे विकल्प को चुनने का कोई रास्ता अभी तक नहीं खुला है क्योंकि तीसरे विकल्प का दावा जो लोग करते हैं वे इन्हीं दो समूहों में समाहित हो जाने को अभिशप्त है।
जैसे अटल शौरी आडवानी जमाने को खारिज करके मनमोहिनी प्रधानमंत्रित्व के माध्यमे आर्थिक सुधारों के अमेरिकी एजंडे को परवान चढ़ाया जाता रहा है,वैसे ही मुक्त बाजार ने दूसरे चरण के जनसंहारी आर्थिक सुधारों के लिए नमो सुनामी की रचना कर दी।
याद करें कि वाम सहयोगे भाजपा ने भारत अमेरिका परमाणु संधि को खारिज करने के लिए संसद में क्या हंगामा नहीं किया था,जिसकी नींव लेकिन अटल ने डाली थी।संसद के उस लाइव प्रसारण और देशभक्ति के उन महानतम उद्गारों को याद कीजिये।
अब संघ परिवार के कार्यकर्ता बतौर प्रधान सेवक उसी भारत अमेरिकी परमाणु संधि को लागू करने की कवायद में हर अमेरिकी शर्त पूरी कर रहे हैं।
एफडीआई,विनिवेश,निजीकरण,निर्माण विनिर्माण,सेज महासेज,स्मार्ट सिटी,औद्योगिक गलियारा,निरंकुश बेदखली और अबाध विदेशी पूंजी के साथ सरकार और सरकारी हर चीज तके साथ संविधान और लोकतंत्र का सफाया हो रहा है तो नागरिकमानवाधिकारों की क्या बिसात।
अब दूसरे चरण के बाद गणीतीय हिसाब ऐसे तीसरा चरण भी आयेगा।वैसे ही जैसे कंप्यूटर के बाद रबोट चला आया।
विकेंद्रीकरण के बाद केंद्रीकरण का महाविस्फोट हो गया।
तीसरे चरण के एजंडे को लागू करने में राजनीतिक वैचारिक बाध्यताओं से अगर फिर नीतिगत विकलांगकता का पुनरूत्थान हुआ,तो वैश्विक जायनी व्यवस्था मोदी को बख्शेगी नहीं तो फिर वही कांग्रेस ही विकल्प।वृत्त फिर घूमे जायेगा।
दरअसल यह नेहरुगांधी वंश का पटाक्षेप है नहीं,यह भारतीयइतिहास का महाप्रस्थान है।सशरीरे स्वार्गारोहण अभियान है यह।
जिसे हम मुक्त बाजार का भारतीय जनगण और भारतीय लोकगणराज्य,भारतीय संविधान और भारत की संप्रभुता के विरुद्ध,प्रकृति और पर्यावरण के विरुद्ध परमाणु विस्फोट कहें तो कयामत का सही मंजर नजर आयेगा,जिसकी झांकियां हम पंजाब,यूपी, भोपाल,गुजरात,असम,मध्य भारत और बाकी देश में खंड खंड विस्फोट मध्ये पिछले तेईस सालों से देखते देखते अभ्यस्त हो गये हैं और किसी को न आंच का अहसास है और न किसीको तपिश महसूस होती है।
मुक्त बाजार ने रक्तरंजित यूरोप,तेल युध्द में झुलस रहे मध्यपूर्व और भारतीय महादेश का साझा भूगोल बना दिया है और इसी भूगोल के मध्य खड़े हमारी इतिहासदृष्टि सिरे से विस्मृति विपर्यय है।
आज के अखबारों में नेहरु जमाने के पटाक्षेप का कार्निवाल सजा है।टीवी पर तो यह सिलसिला मोदी के प्रधानमंत्रित्व की संघी उम्मीदवारी तय होते ही शुरु हो गया था।
नेपाल में राजतंत्र की वापसी की कवायद में लगे तमाम तत्व तभी से बाग बाग हैं।
यह कार्निवाल और जश्न कोई मौलिक भी नहीं है।
आपातकालउपरान्ते मध्यावधि चुनाव में इंदिरागांधी की भारी शिकस्त के दिनों को याद करें या फिर नवउदारवाद के शुरुआती दौर में नरसिंह राव के शासनकाल को याद करें,तो बारबार हो रही पुनरावृत्तियों की ओर शायद ध्यान जाये।
बहरहाल नेहरु गांधी वंश के बदले मुखर्जी गोवलकर वंशजों की जयजयकारमध्ये सच यह है कि शायद अंतिम तौर पर गुजराती पीपीपी माडल ने सोवियत नेहरु विकास के माडल का निर्णायक खात्मा कर दिया है।
इसी परम उपलब्धि की वजह से मीडिया के अंदरमहल में भी अश्वमेध अश्वों की टापें प्रलयंकर हैं।नौसीखिये पत्रकार बिरादरी केसरिया हुई जाये तो बाकी समाज अपनी पुरानी सारी विरासत तिलांजलि देने के मूड में है।
इसी के मध्य हैरतअंगेज ढंग से जनसत्ता में जो प्रभू जोशी जैसे लोग लिखने लगे हैं या मुक्तिबोध की विरासत पर चर्चा होने लगी है,वह राहत की बात है।हिंदी समाज इस वक्त के जनसत्ता के संपादकीय पेज को पढ़ने की तकलीफ करें तो सूचनाओं के महातिलिस्म से बाहर निकलने का रास्ता भी निकल सकता है।
हमने आज सुबह पहला काम यह किया कि समयांतर में छपे आनंद तेलतुम्बड़े का मोदी का नवउदारवाद वाला आलेख अपने ब्लागों में लगाने के बाद फेसबुक दीवालों पर भी उसे टांग दिया।
इससे पहले कि मेल खुलने पर पंकजदा के सौजन्य से यह लेख मिलता,आज ही के जलसत्ता रविवारी में छपे मुख्य आलेख प्याली से थाली तक जहर के लेखक अभिषेक का अता पता खोजने के लिए अपने अभिषेक को फोन लगाया।एक कवि भी अभिरंजन हैं।
गाजीपुर के रास्ते अभिषेक मिला तो ट्रेन में उनके साथ अपने महागुरु आनंद स्वरुप वर्मा भी थे।उनसे अरसा बाद बातें हुई और मैंने कह ही दिया कि सबकी उम्र हो रही है,कब कौन लुढ़क जाये,इससे पहले दिल्ली आकर एक और मुलाकात की मोहलत चाहिए।
आनंदजी भी बोले कि गिर्दा के अवसान के बाद नैनीताल जाना नहीं हुआ।
मैं एक बार गया था और हीरा भाभी से मिलकर भी आया।लेकिन सच तो यह है कि अब गिर्दा के बिना नैनीताल नैनीताल नहीं लगता।
शेखर और उमाभाभी इन दिनों मुक्त विहंग हैं,जिनसे नैनीताल में मुलाकात की उम्मीद न रखिये।तो राजीव लोचन शाह भी अब शायद ज्यादातर वक्त हल्दानी में बिताते हैं।हरुआ भी वहीं बस गया है।
बाकी पवन राकेश और जहूर से मिलने के लिए फिर भी नैनीताल जाने की तलब लगी रहती है,लेकिन गिर्दा बिना नैनीताल सचमुच सूना सूना है।
ये निजी बातें इसलिए कि जिस पहाड़ की अभिव्यक्ति गिर्दा के हुड़के के बोल से मुखर हुआ करती थी,वहां अब मुक्तिबोध,प्रेमचंद और बाबा नागार्जुन के नामोल्लेख से बमकने लगे हैं लोग।
गिर्दा की यादें सिर्फ मित्रमंडली की तसल्ली में तब्दील है,पहाड़ की चेतना पर उसका कोई चिन्ह नहीं बचा है।
बाकी देश में भी वही हादसा है।
बांग्ला अखबारों में तो नेहरु गांधी वंश के अंत का आख्यान भरा पड़ा है।
बंगाली होने की वजह से ,खास तौर पर पूर्वी बंगाल से विस्थापित शरणार्थी पिवार की संतान होने की वजह से इस घृणा का वारिस मैं भी हूं।
नेताजी के भारतीय राजनीति में हाशिये पर चले जाने से लेकर उनके मृत्युरहस्य के बवंडर की वजह से बंगीयमानस राजनीति भले कांग्रेस की करें,लेकिन नेहरु गांधी वंश से अंतरंग हो ही नहीं सकता।
फिर विभाजन का ठीकरा भी तो वही नेहरु गांधी जिन्ना पर फोड़ा गया है।
भारत विभाजन में मुस्लिम लीग के दो राष्ट्र सिद्धांत को भारत में धर्मांध राष्ट्रीयता का आलोकस्तंभ बना दिया गया है और पाकिस्तान को इस राष्ट्रीयता का मुख्य शत्रु।इस्लामी चूंकि शत्रूदेश है,इसलिए इस्लाम भी शत्रुओं का धर्म है और चूंकि भारत विभाजन में मुख्यभूमिका जिन्ना और मुस्लिम लीग की है,तो सारे मुसलमान पाकिस्तानी हैं।
इसी दलील पर हिंदुस्तान में सारे विधर्मियों के हिंदू बनाये जाने का अभियान है।
इतिहास विरोधी यह मिथ भारत विभाजन में हिंदू महासभा और राष्ट्रीयस्वयं सेवक संघ और उनसे नेहरु गांधी वंश वंशजों के अविरल संपर्कसूत्र की नजरअंदजी के तहत गढ़ा गया है।
दरअसल दो राष्ट्र सिद्धांत की रचनाप्रक्रिया में संघ की भूमिका,औपनिवेशिक काल में संघी सक्रियता और भारत विभाजन में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और हिंदू महासभा की खास भूमिका पर शोध धर्मनिरपेक्ष इतिहासकारों ने भी नहीं किया है।
धर्मनिरपेक्ष वर्णवर्चस्वी नस्ली पाखंड का यह चरमोत्कर्ष है।
कल ही पंकजदा से मैंने कहा भी कि समझ लीजिये कि वाम कैडर और जनाधार पूरी तरह संघी कैडर और संघी जनाधार में अनूदित है,इतनी भयावह स्थिति है।
वाम ने भी बंगाली राष्ट्रीयता की घृणा पूंजी अस्मिता के तहत राष्ट्रीय राजनीति करने की हिमालयी भूल धर्मोन्मादी तौर तरीके से किये,जिसके नतीजतन बंगाल की भूमि सुधार आंदोलन की विरासत सिरे से गायब हो गयी है।
अब यह समझना जरुरी है कि भारत जो आज अमेरिकी उपनिवेश है,उसमें गैर कांग्रेसवाद की क्या भूमिका है।
गैरकांग्रेसवाद के समाजवादियों और वामदलों ने जो संघ परिवार के साथ आपातकालउरांते चोली दामन का साथ बनाया,जो वीपी के मंडल के जवाब में केसरिया कमंडल मध्ये हिंदुत्व के पुनरूत्थान,सिखों का संहार और बाबरी विध्वंस के बाद गुजरात नरसंहार तक राजकाज और संसदीय सहमति के मध्य राजनैतिक समीकरणों के समांतर जारी रहा लगातार,उसीसे मोदी का यह केसरिया नवउदारवादी कारपोरेट युद्द घोषणा है आम जनता के खिलाफ।
अंबेडकरवादी तो इस अवसरवादी सत्ताखिचडी में दाल चावल आलू कुछ भी बनकर अंबेडकर की ही हत्या के दोषी हैं।
मोदी के प्रधानमंत्रित्व के साथ ही मनमोहनी अधूरे दूसरे चरण के आर्थिक सुधारों के एजंडे को सर्वोच्च प्रातमिकता दी जा रही है जो दरअसल अमेरिकी हितों को ही सर्वोच्च प्राथमिकता है।
परमाणु संधि लागू करने से पहले प्रतिरक्षा,बीमा,मीडिया,खुदरा कारोबार समेत तमाम क्षेत्रों में एफडीआई अमेरिकी युद्धक अरथव्यवस्था की जमानत की सबसे बड़ी शर्ते हैं।
तो आतंक के विरुद्ध जो अमेरिका का युद्ध है,मध्यपूर्व में तेल युद्ध जो अनंत है और गाजापट्टी में इस्लाम के खिलाफ जो धर्मयुद्ध है,उसमें साझेदार केसरिया सत्ता की भूमिका की जाच करें तो कश्मीर,पंजाब,यूपी या असम में बदलते मंजर का रहस्य समझ में आयेगा और इसका बंग कनेक्शन भी खुलता जायेगा।
इस पूरे जनविरोधी तंत्र मंत्रयंत्र को समझने के लिए जो इतिहास बोध,वैज्ञानिक दृष्टि,विवेक,साहस,आर्थिक समझ,लोक विरासत,सांस्कृतिक जमीन और साहित्यिक मानवता की आवश्यकता है,शिक्षा मंत्रालय के डायरेक्ट टेकओवर और एफडीआई पर जी रहे मीडिया के मिथ्या अभियान से वह हर स्तर पर खत्म होने को है।
अब नागार्जुन,मुक्तिबोध और प्रेमचंद को,माणिक और मंटो को,भीष्म साहनी को और भाषाई बहुलता को खत्म करने का वक्त है।जो दरअसल जनपक्षधर हैं,उनको ही राष्ट्रद्रोही और जनशत्रू बनवाने के तंत्र को मजबूत करने का यह कुरुक्षेत्र बन गया है सारा भारत।वे तमाम लोग अब ब्रह्मराक्षस हैं।
मुक्त बाजार में अब सचमुच इतिहास का अंत है।
मुक्त बाजार में अब सचमुच अर्थव्यवस्था और उत्पादनप्रणाली,श्रमशक्ति और कृषि का अंत है।
मुक्त बाजार में अब सचमुच प्रकृति और पर्यावरण का अंत है।
मुक्त बाजार में अब सचमुच जनचेतना,जनांदोलन, विचारधारा ,विवेक और साहस का अंत है।
मुक्त बाजार में अब सचमुच भाषाओं,सौदर्यशास्त्र,विधाओं का अंत है।
मुक्त बाजार में अब सचमुच संस्कृति,अस्मिता,राष्ट्रीयता,स्वतंत्रता और संप्रभुता का अंत है।
मुक्त बाजार में अब सचमुच नागरिककता,निजता,बहुलता,नागरिक और नमानवाधिकारों का अंत है।
मुक्त बाजार में अब सचमुच अब राष्ट्र और राष्ट्रीय सरकार का अंत है।
बाकी बचा पद्म प्रलय अनंत गाथा।
बाकी बचा रामायण ,महाबारत और कुरुक्षेत्रे धर्मक्षेत्रे अनंत विनाशलीला।
बाकी बचा हिमालयी जल सुनामी का अनंत सिलसिला।
बाकी बचे वे विद्वतजन जो मारे जा रहे जनगण,मारे जाने वाले जनगण की कीमत पर संस्थानों,विश्वविद्यालयों में अनंत मैथुन मध्ये नये नये विमर्श और नये नये सौंदर्यशास्त्र की रचना कर रहे हैं।
जनता के हक में पल छिनसंध्यासकाले हर शब्द में गुरिल्ला युद्ध की तैयारी कर रहे नवारुण दा के इस मृत्यु उपत्यका से महाप्रस्थान के बाद मैंने लिखा था, यह सत्ता दशक का अंत है।
लीजिये,लालेकिले की प्राचीर से अंततः घोषणा हो गयी कि यह भारत का अंत है और महाभारत का पुनरूत्थान है।
একগুচ্ছ পরিকল্পনা, উঠে যাবে যোজনা কমিশন |
লালকেল্লায় চমকপ্রদ 'প্রধান সেবক'দিল্লি, ১৬ আগস্ট (সংবাদ সংস্হা)– স্বাধীনতা দিবসে চমক দেবেন নরেন্দ্র মোদি, তেমন খবর আগেই ছিল৷ হলও তাই৷ লালাকেল্লা থেকে প্রধানমন্ত্রীর ভাষণটি ছিল এবার তাৎক্ষণিক৷ লিখিত ভাষণ পড়ার প্রথা থেকে বেরিয়ে এলেন মোদি৷ নিজস্ব ঢঙে হিন্দিতে টানা ৭৫ মিনিট ভাষণে মোদি বললেন, বোঝাতে চাইলেন, 'প্রধানমন্ত্রী নয়, আজ আমি আপনাদের সামনে দাঁড়িয়ে আছি প্রধান সেবক হিসেবে৷' তাঁর আবেগঘন ভাষণের ছত্রে ছত্রে ভারতের জয়গান৷ একই সঙ্গে বেশ কিছু গুরুত্বপূর্ণ সিদ্ধাম্তও ঘোষণা করেছেন৷ যা একই সঙ্গে সাহসী এবং চমকপ্রদ৷ আবার বিতর্কের ইন্ধন জোগানকারীও বটে৷ যেমন, ১৯৫০-এ প্রতিষ্ঠিত যোজনা কমিশন তুলে দেওয়ার কথা ঘোষণা করেছেন তিনি৷ জানিয়েছেন, তার পরিবর্তে গঠন করা হবে একটি নতুন প্রতিষ্ঠান৷ স্বভাবতই তাতে আলোড়িত হয় সমবেত জমায়েত৷ দেশ-বিদেশের বহু অতিথি অভ্যাগতরা, রাষ্ট্রপ্রধানদের প্রতিনিধিরা ছিলেন দর্শকাসনে৷ তাঁদের উদ্দেশে ছিল বিনিয়োগের আহ্বান৷ বিদেশি বিনিয়োগকারীদের প্রতি তাঁর বার্তা ছিল, আসুন, এদেশে কিছু করুন৷ স্বাধীনতা দিবসের ভাষণে মোদির সবচেয়ে বড় চমক 'প্রধানমন্ত্রী জন-ধন যোজনা'৷ এই যোজনার আওতায় দেশের প্রতিটি অম্ত্যজ পরিবার ব্যাঙ্ক অ্যাকাউন্ট খোলার সুবিধা পাবে৷ পাবে ডেবিট কার্ড. এবং ১ লক্ষ টাকার বিমা৷ ব্যক্তিগত অভিজ্ঞতা প্রসঙ্গ তুলে বলেন, হতদরিদ্র পরিবারের সম্তান হয়ে আজ দেশের সর্বোচ্চ পদে তিনি৷ এটাই গণতন্ত্র৷ ই-গভর্নেন্সের মাধ্যমে দেশকে ডিজিটাল গড়ে তোলার কথা বলেন প্রধানমন্ত্রী৷ গতকাল লালকেল্লার সামনে জড়ো হয়েছিলেন কমপক্ষে ১০ হাজার সাধারণ মানুষ৷ এই প্রথম জনসাধারণের জন্য অবারিত ছিল রাজপথ৷ মোদি সরকার নজির গড়েছে সেখানেও৷ ট্রেড মার্ক মোদি কুর্তা এবং খাস গুজরাটি বুটিদার গেরুয়া পাগড়ি পরে থেকে থেকে তাঁদের অভিবাদন, জয়ধ্বনি গ্রহণ করছিলেন প্রধানমন্ত্রী৷ একের পর এক সামাজিক বিষয়ও ছুঁয়ে গেছেন তিনি৷ বৈদিক যুগের উদাহরণ দিয়ে জাতীয় চরিত্র গঠনের ওপর জোর দিয়েছেন৷ লিঙ্গ-বৈষম্য বেড়েই চলেছে৷ এই অবস্হায় সোচ্চার হয়েছেন কন্যাভ্রূণ হত্যা নিয়ে৷ যেসব অসাধু চিকিৎসক এই অন্যায় কাজ করেন, তাঁদের উদ্দেশে প্রধানমন্ত্রী বলেছেন, দয়া করে এসব বন্ধ করুন৷ অভিভাবকদের বলেছেন, ছেলে-মেয়ের মধ্যে ভেদাভেদ করবেন না৷ মেয়েদের সুযোগ দিন৷ নিজের পায়ে দাঁড়াতে দিন৷ মেয়ে বাড়ির বাইরে থেকে ফিরলে কোথায় গেছে, কী করেছে, সব জানতে চান৷ ছেলেদের ক্ষেত্রে কি তা করেন? প্রশ্ন ছুঁড়ে দেন প্রধানমন্ত্রী৷ বলেন, ধর্ষণের মতো সামাজিক অপরাধ লজ্জায় দেশের মাথা নিচু করেছে৷ এই ধরনের ঘটনা রুখতে মেয়েদের স্বাধীনতা নিয়ন্ত্রণ নয়৷ বরং ছেলেদের সুশিক্ষা দিতে বার্তা দিয়েছেন তিনি৷ গুজরাট-দাঙ্গার সঙ্গে জড়ানো নিজের অতীত-পরিচয় থেকে বেরিয়ে আসার চেষ্টাও করেছেন মোদি৷ জাতপাত এবং সাম্প্রদায়িকতার বিরুদ্ধে রুখে দাঁড়াতে আহ্বান জানিয়েছেন৷ প্রশ্ন তুলেছেন, আর কতদিন এই বিষ ছড়াবে? এতে কার কী লাভ? তাঁর কথায়, 'অনেক হানাহানি, খুনোখুনি হয়েছে৷ তাকিয়ে দেখুন এতে ভারতমাতার ভাবমূর্তি কলুষিত হয়েছে শুধু৷' ২০১৯-এ মহাত্মা গান্ধীর জন্ম সার্ধশতবর্ষের মধ্যে 'পরিছন্ন ভারত'-এর লক্ষ্যমাত্রা পূরণ করতে চান প্রধানমন্ত্রী৷ এ বছর গান্ধীজয়ম্তীতে তার সূচনা করার কথা বলেছেন তিনি৷ দেশের শহরে শহরে, গ্রামে গ্রামে রাস্তাঘাট, হাসপাতাল, স্কুল, উপসনালয়ে– কোথাও যেন এক এক কণা ধুলো না থাকে৷ দেশবাসীকে এ বিষয়ে প্রতিশ্রুতিবদ্ধ হতে বলেছেন প্রধানমন্ত্রী৷ জোর দিয়েছেন মেয়েদের স্কুলে শৌচালয় গড়ায়৷ নির্বাচিত সাংসদেরা যাতে তাঁদের কেন্দ্রে অম্তত একটি করে 'মডেল গ্রাম' গড়তে করতে পারেন, তার জন্য 'সাংসদ আদর্শ গ্রাম যোজনা'র পরিকল্পনা ঘোষণা করেছেন প্রধানমন্ত্রী৷ পাঁচ বছর সাংসদ থাকাকালে সাংসদদের কাছে কমপক্ষে ৫টি মডেল গ্রাম গড়ে তোলার লক্ষ্যমাত্রা দিয়েছেন তিনি৷ আগামী ১১ অক্টোবর জয়প্রকাশ নারায়ণের জন্মবার্ষিকীতে 'সাংসদ আদর্শ গ্রাম যোজনা'র আনুষ্ঠানিক সূচনা হবে৷ দীর্ঘ ভাষণে পাকিস্তানের নাম পর্যম্ত উল্লেখ করেননি প্রধানমন্ত্রী৷ তবে সদ্য নেপাল ও ভুটানে সফর করা মোদি ওই দুই দেশের জন্য কিছু প্রশংসাসূচক কথা বলেছেন৷ দেশের ইতিহাসে মোদিই প্রথম প্রধানমন্ত্রী, যাঁর জন্ম স্বাধীনতার পরে৷ হটিয়ে দিলেন কাচের বর্ম রাজীব গান্ধীর পর, নিরাপত্তার ঝুঁকি সব থেকে বেশি নাকি বর্তমান প্রধানমন্ত্রীরই৷ গোয়েন্দাবাহিনীর বক্তব্য সেরকমই৷ কিন্তু কাচের ঘেরাটোপে থেকে স্বাধীনতা দিবসের ভাষণ দেওয়াটা একেবারেই মেনে নিতে পারেননি তিনি৷ লাল কেল্লার ভাষণে এবার তাই ছিল না সেই বুলেট-প্রুফ কাচের বর্ম৷ ১৯৮৫ সালে প্রথম এই কাচের ঘেরাটোপের সুরক্ষা চালু হয়৷ রাজীব গান্ধীর জন্য৷ প্রধানমন্ত্রী হওয়ার পর ভি পি সিংয়ের এই নিয়ে অস্বস্তি থাকায় ১৯৯০-এর স্বাধীনতা দিবসে এই ঘেরাটোপের উচ্চতা কমিয়ে অর্ধেক করে দেওয়া হয়৷ পি ভি নরসিংহ রাও আসার পর আবার মানুষ-প্রমাণ উঁচু ঘেরাটোপ৷ মোদি এবার তাতে বাদ সাধলনে৷ তাঁর যুক্তি, মানুষের সঙ্গে সরাসরি সংযোগের বোধে এই ঘেরাটোপ একটি বাধা৷ শুক্রবার অনুষ্ঠানের ঘণ্টা কয়েক আগে সরিয়ে দেওয়া হয় ঘেরাটোপ৷ বলাই বাহুল্য, নিরাপত্তা-কর্তারা সমস্যাতেই পড়েন প্রধানমন্ত্রীর সিদ্ধাম্ত নিয়ে৷ ঘণ্টা তিনেকের এক বৈঠকের পর অন্যভাবে নিরাপত্তা আরও আঁটোসাঁটো করার সিদ্দাম্ত নেন তাঁরা৷ প্রধানমন্ত্রীকে কাছ থেকে ঘিরে রাখা এস পি জি রক্ষীদের সংখ্যা বাড়ানো হয়৷ গৌরাশঙ্কর মন্দির, দিগম্বর জৈন মন্দির, বাস টার্মিনাস-সহ লাল কেল্লার আশপাশের সমস্ত উঁচু বাড়িগুলির মাথায় মোতায়েন করা হয় সুদক্ষ বন্দুকবাজদের৷ রাতে রাষ্ট্রপতি ভবনের অনুষ্ঠানে প্রধানমন্ত্রী মোদি আরও একবার ব্যতিব্যস্ত করে তোলেন তাঁর রক্ষীদের৷ নিরাপত্তার বেষ্টনী ভেঙে এগিয়ে গেলেন অতিথি-অভ্যাগতদের কাছে৷ হাত মেলালেন তাঁদের সঙ্গে৷ শিশুদের অটোগ্রাফও দিলেন৷ ফৌজি শক্তিই যুদ্ধ ঠেকাতে পারে: মোদি মুম্বই, ১৬ আগস্ট (পি টি আই)– দেশীয় প্রযুক্তিতে তৈরি বৃহত্তম যুদ্ধজাহাজ আই এন এস কলকাতা যুক্ত হল নৌবাহিনীতে৷ শনিবার এক অনুষ্ঠানে মাজগাঁও ডকইয়ার্ডসে তৈরি জাহাজটিকে ওয়েস্টার্ন ফ্লিটের হতে তুলে দিলেন প্রধানমন্ত্রী নরেন্দ্র মোদি৷ 'কেউ যাতে আমাদের চ্যালেঞ্জ জানাতে না পারে' সে জন্য সেনাবাহিনীর সর্বস্তরে আধুনিকীকরণের প্রতিশ্রুতি দিয়ে প্রধানমন্ত্রী বলেন, সর্বাধুনিক অস্ত্রে সজ্জিত শক্তিশালী সেনাবাহিনীই এখন যুদ্ধের বিরুদ্ধে সেরা গ্যারান্টি৷ যুদ্ধ প্রতিরোধী৷ ক্রমশ বাড়তে থাকা আম্তর্জাতিক বাণিজ্যে সামুদ্রিক নিরাপত্তা গুরুত্বপূর্ণ হয়ে উঠেছে৷ প্রধানমন্ত্রী আশা প্রকাশ করেন, উন্নত যোগাযোগ ব্যবস্হা-সহ আই এন এস কলকাতা এক্ষেত্রে উল্লেখযোগ্য ভূমিকা নেবে৷ প্রতিরক্ষায় ৪৯শতাংশ বিদেশি বিনিয়োগের অনুমতি দেওয়ার সিদ্ধাম্তের উল্লেখ করে তিনি বলেন, সামরিক প্রয়োজনে ছোটখাটো জিনিস আমদানি করার পরিবর্তে ভারত এবার সেগুলি রপ্তানি করবে৷ প্রধানমন্ত্রী উদ্বোধন করে দিলেও জাহাজটির প্রধান লং রে? সারফেস টু এয়ার ক্ষেপণাস্ত্র ব্যবস্হা এখনও তৈরি নয়৷ ইজরায়েল এখনও ক্ষেপণাস্ত্রগুলি সরবরাহ করতে পারেনি৷ জাহাজটির জন্য নিজস্ব প্রযুক্তিতে বিশেষ রেডার ব্যবস্হা তৈরি করছে ডি আর ডি ও৷ কিন্তু সেটাও এখন প্রস্তুত নয়৷ তার প্রথম পরীক্ষা ব্যর্থ হয়েছে৷ এদিন অনুষ্ঠানে ছিলেন প্রতিরক্ষামন্ত্রী অরুণ জেটলি, রাজ্যপাল কে শঙ্করনারায়ণন, মুখ্যমন্ত্রী পৃথ্বীরাজ চৌহান প্রমুখ৷ |
অবসান ঘটাবেন নেহরু যুগের, ইঙ্গিত লালকেল্লার বক্তৃতায়
জয়ন্ত ঘোষাল
নয়াদিল্লি, ১৭ অগস্ট, ২০১৪, ০২:৪৫:৫৬
স্বাধীনতার পর থেকে আজ পর্যন্ত ১৫ অগস্ট লালকেল্লায় কোনও প্রধানমন্ত্রী লাল পাগড়ি পরে বক্তৃতা দেননি। ইদানীং কালে বুলেটপ্রুফ জ্যাকেট না-পরে, বুলেটপ্রুফ কাচের ঘেরাটোপে না দাঁড়িয়ে এমনকী মাথার উপর কালো ছাতা না রেখেও বক্তৃতা দেননি কেউ।
সেই রীতি বদলালেন নরেন্দ্র দামোদরদাস মোদী। কিন্তু চোখে পড়া এই বদলের বাইরে দীর্ঘ এক ঘণ্টার বক্তৃতায় আরও একটা বদল নিঃশব্দে করে ফেললেন তিনি। ভারতের সুদীর্ঘ নেহরুবাদী রাজনৈতিক সংস্কৃতির অবসান ঘটিয়ে শুরু করলেন নতুন বিজেপি যুগ।
লোকসভা ভোটের প্রচারপর্বেই 'কংগ্রেসমুক্ত ভারত' গড়ার কথা বলেছিলেন মোদী। সরকার গড়ার পরে সর্দার বল্লভভাই পটেলের ১৮২ মিটার উঁচু মূর্তি স্থাপনের জন্য বাজেটে আড়াই হাজার কোটি টাকা বরাদ্দ করা থেকে শুরু করে অটলবিহারী বাজপেয়ী এবং সুভাষচন্দ্র বসুকে ভারতরত্ন দেওয়ার প্রস্তাব হাওয়ায় ভাসিয়ে সেই পথেই হাঁটতে শুরু করেছেন তিনি। শুক্রবার স্বাধীনতা দিবসের বক্তৃতায় উৎপাদনমুখী এক নতুন ভারত নির্মাণের কথা বললেন প্রধানমন্ত্রী। এবং সমাজতান্ত্রিক নেহরুকে স্মরণ করার প্রয়োজন নেই।
যোজনা কমিশন বিলোপ করার ঘোষণা বিজেপি-যুগ সূচনার লক্ষ্যে সবচেয়ে বড় পদক্ষেপ। কারণ, নেহরুর সমাজতান্ত্রিক মডেলের সঙ্গে যোজনা কমিশন ওতপ্রোত ভাবে জড়িত। সমাজতান্ত্রিক সোভিয়েত ইউনিয়নের ধাঁচে নিজে এই সংস্থা গড়েছিলেন তিনি। বলতেনও, 'আমি সমাজতন্ত্রী'। (যদিও অনেকের মতে, নেহরু প্রকাশ্যে নিজেকে সমাজতন্ত্রী দাবি করলেও তিনি উৎপাদনমুখী বৃদ্ধিই চেয়েছিলেন। সোভিয়েত ইউনিয়নের ঘনিষ্ঠ হওয়া সত্ত্বেও উৎপাদনে জোর দিয়েছিলেন ইন্দিরা গাঁধীও।) মোদী বলেছেন, "সাবেকি সমাজতন্ত্রের সোভিয়েত মডেলের তো কবেই অপমৃত্যু ঘটেছে। এখন আমাদের প্রয়োজন ভারতের শিল্পক্ষেত্রে জোয়ার আনার জন্য উৎপাদন বৃদ্ধি।"
যে ঘোষণাকে সনিয়া গাঁধীর বিপরীত অবস্থান হিসেবেই দেখা হচ্ছে। ইউপিএ-র চেয়ারপার্সন এবং জাতীয় উপদেষ্টা পরিষদের প্রধান হিসেবে উৎপাদনের চেয়ে সরবরাহের উপরেই গুরুত্ব দিয়েছিলেন সনিয়া। সেই অভিমুখ ১৮০ ডিগ্রি ঘুরিয়ে দিতে চান মোদী। সরকারি প্রকল্প থেকে মুছে ফেলতে চান গাঁধী পরিবারের ছাপ।
তবে এত দিন ধরে চলে আসা সামাজিক প্রকল্পগুলির উপরে তিনি যে স্টিমরোলার চালাতে চান না, সেটাও বুঝিয়ে দিয়েছেন মোদী। তাই বলেছেন, তিনি চান প্রতিটি সাংসদ একটি করে গ্রামকে দত্তক নিয়ে তার উন্নয়ন করুন। বলেন, মেয়েদের স্কুলে শৌচাগার নির্মাণকে অগ্রাধিকার দেওয়ার কথা। অনেকের মতে, সামাজিক সমস্যাগুলিকে চিহ্নিতের মধ্যে একটা জিনিস স্পষ্ট। তা হল, বিপুল সংখ্যাগরিষ্ঠতার জোরে মোদীর রাজনৈতিক কর্তৃত্ব প্রবল হলেও তিনি তাঁর দক্ষিণপন্থী সংস্কারের অভিমুখকে সুকৌশলে বাস্তবায়িত করতে চান।
লিখিত বক্তৃতা নিয়ে লালকেল্লায় যাননি মোদী। কয়েকটা পয়েন্ট লেখা কাগজ দেখে তাৎক্ষণিক বক্তৃতা দিয়েছেন। কিন্তু এতটুকু অগোছালো ছিল না সেই ভাষণ। যেখানে যে বার্তা দেওয়ার, দিয়েছেন সুকৌশলে। যেমন বলেছেন, তিনি সকলকে নিয়ে চলতে চান। প্রতিটি রাজনৈতিক দল, এমনকী বিরোধীদেরও নিয়ে। বোঝাতে চেয়েছেন, কংগ্রেস যদি অসহযোগিতার পথে হাঁটে, সেই দায় তাঁর নয়।
বন্ধুত্বের বার্তা দিয়েছেন প্রতিবেশী দেশগুলিকে। তাদের সঙ্গে হাত মিলিয়ে আর্থিক বিকাশ ঘটিয়ে এই অঞ্চলে দারিদ্র দূর করতে চেয়েছেন। এমনকী তীব্র করেননি পাকিস্তান বিরোধিতাও। অতীতে অনেক প্রধানমন্ত্রীই যা করেছেন। দু'দিন আগে কার্গিলে গিয়ে পাকিস্তান সম্পর্কে যা বলার বলেছেন মোদী। ১৫ অগস্ট এড়িয়েছেন নতুন করে সংঘাতের আবহ। বরং তাৎপর্যপূর্ণ ভাবে বলেছেন, "যে মারে, তার চেয়ে যে বাঁচায় তার শক্তি বেশি।"
সরকার পরিচালনা থেকে কূটনীতি, সর্বত্রই নয়া পথে হাঁটতে চান মোদী। কিন্তু দার্শনিক ম্যাকিয়াভেলি তাঁর 'প্রিন্স' বইয়ে লিখেছিলেন, "রাজার পক্ষে সবচেয়ে কঠিন কাজ হল নতুন কিছু করা। স্থিতাবস্থা বজায় রাখা সহজ।" নতুন 'প্রিন্স' বক্তৃতায় যা-ই বলুন, বাস্তবে থোড় বড়ি খাড়ার বদলে সত্যিই নতুন ভারত গড়তে পারবেন তো প্রশ্ন বিরোধীদের।
• প্রধানমন্ত্রী নই, আমি আপনাদের প্রধান সেবক।
• দিল্লিতে এসে, ক্ষমতার অলিন্দে তাকিয়ে চমকে উঠেছি। সরকারের ভিতরে যেন ডজন সরকার চলছে। মনে হচ্ছে আলাদা আলাদা জমিদারি।
• মেয়ে হলে এতো প্রশ্ন, কিন্তু ছেলেদের কি আমরা প্রশ্ন করি, কোথায় যাচ্ছে, বন্ধু কে? ধর্ষণকারীরা তো কারও না কারও ছেলে।
• কাঁধে বন্দুক নিয়ে মাওবাদীরা মাটিকে লাল করে তুলতে পারে। কখনও কি ওরা ভেবেছে, যদি কাঁধে হাল হতো, তা বলে মাটি কেমন সবুজ হয়ে উঠতে পারত।
• জাতিবাদ, সাম্প্রদায়িকতা নিয়ে লড়াই বন্ধ থাকুক। পরের দশ বছর এই অশান্তি থেকে দূরে থাকার মন তৈরি করুন।
• সরকারি কর্মীদের প্রতি আমার প্রশ্ন, তাঁরা যে পরিষেবা দেওয়ার কথা বলেন, সেই শব্দটা জোর হারিয়ে ফেলেনি তো?
• সাংসদরা প্রত্যেকে একটা করে গ্রাম দত্তক নিক।
http://www.anandabazar.com/national/modi-calls-the-end-of-nehru-age-1.60146
বিদেশি বিনিয়োগ টানতে এ বার ১০টি স্মার্ট সিটি চিহ্নিত করল রাজ্য
নিজস্ব সংবাদদাতা
১৭ অগস্ট, ২০১৪, ০১:১১:৪৬
বিদেশি লগ্নি ও কেন্দ্রীয় আর্থিক সহায়তা টানতে দশটি জায়গাকে 'স্মার্ট সিটি' হিসেবে চিহ্নিত করেছে রাজ্য। আজ থেকে মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের সিঙ্গাপুর সফরের পরিপ্রেক্ষিতে বিষয়টি গুরুত্বপূর্ণ বলে মনে করছে সংশ্লিষ্ট শিল্পমহল। তার কারণ বিদেশমন্ত্রী সুষমা স্বরাজ শনিবারই তাঁর একদিনের সিঙ্গাপুর সফর শেষে বলেছেন, স্মার্ট সিটি প্রকল্পে সহায়তা করতে রাজি সিঙ্গাপুর।
শনিবার ন্যাশনাল অ্যাসোসিয়েশন অব রিয়েলটর্স এবং রিয়েলটর্স অ্যান্ড এস্টেট কনসালট্যান্টস অ্যাসোসিয়েশন অব কলকাতা আয়োজিত আলোচনাসভায় জানানো হয়, স্মার্ট সিটি-র তকমা দেওয়া হচ্ছে, নিউটাউন, বোলপুর, দুর্গাপুর, বাউড়িয়া, রঘুনাথপুর, জয়গাঁ, ফুলবাড়ি, গঙ্গাসাগর, হুগলি, কল্যাণীকে। নগরোন্নয়ন সচিব দেবাশিস সেন সভায় জানান, এই তালিকা-সহ পরিকল্পনার খুঁটিনাটি কেন্দ্রের কাছে পাঠানো হবে।
পুর ও নগরোন্নয়নমন্ত্রী ফিরহাদ হাকিম ওই সভায় বলেন, "স্মার্ট সিটিগুলি মূলত গড়ে উঠবে তথ্যপ্রযুক্তির উপর নির্ভর করে। সেই কারণে আমরা যে সিঙ্গাপুর যাচ্ছি, সেখানে একই সঙ্গে তথ্যপ্রযুক্তি পার্ক তৈরি এবং আবাসন-সহ বিভিন্ন পরিকাঠামোর কাজে দক্ষ সংস্থার সঙ্গে আলোচনা করব। পাশাপাশি, মোনো-রেল-এর মতো গণ পরিবহণ ব্যবস্থা তৈরি করতে সরকার পিপিপি মডেলে কাজ করতে চায়। সে জন্য এই ধরনের কাজে দক্ষ, এমন সব বিদেশি সংস্থার সঙ্গেও কথা বলা হবে।"
গত জুলাই মাসে পেশ হওয়া কেন্দ্রীয় বাজেটে 'স্মার্ট সিটি'-র প্রসঙ্গ উঠে আসে। অর্থমন্ত্রী অরুণ জেটলি জানান, উন্নয়নের ফলে গ্রাম ছেড়ে শহরে বাস করার প্রবণতা বাড়ছে। তৈরি হচ্ছে নতুন মধ্যবিত্ত শ্রেণি। যাদের লক্ষ্য উন্নতমানের জীবনযাত্রা। আর এই নতুন মধ্যবিত্তদের জন্য চাই নতুন শহর। বর্তমান বড় শহরগুলির পাশে ছোট ছোট এ সব শহরে গড়ে উঠবে আবাসন-সহ অন্যান্য পরিকাঠামো। এ ধরনের শহরকেই 'স্মার্ট সিটি' বলেছেন জেটলি। দেশ জুড়ে ১০০টি স্মার্ট সিটি তৈরির পরিকল্পনা করেছে কেন্দ্র। বরাদ্দ হয়েছে ৭০৬০ কোটি টাকা।
দেবাশিসবাবু জানান, এ ধরনের স্মার্ট সিটির নাগরিক পরিকাঠামো গড়ে তুলবে রাজ্য। রাস্তাঘাট, নিকাশি, আলো ও জলের মতো ন্যূনতম পরিষেবা ব্যবস্থার দায় সরকার নেবে। তবে আবাসন ও সামাজিক পরিকাঠামো তৈরির জন্য দেশি-বিদেশি নির্মাণ সংস্থার লগ্নির দিকেই তাকিয়ে রয়েছে রাজ্য। মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের সিঙ্গাপুর সফর চলাকালীন এ ধরনের প্রকল্পে বিনিযোগ করতে আগ্রহী সংস্থা এগিয়ে আসতে পারে বলে তিনি মনে করেন। প্রসঙ্গত, সিঙ্গাপুরের সংস্থা কেপেল ম্যাগাস রাজারহাটে আবাসন তৈরিতে বিনিয়োগ করেছিল। কিন্তু সেই ব্যবসা বিভিন্ন স্থানীয় সংস্থাকে বিক্রি করে দিয়ে প্রকল্প থেকে সরে গিয়েছে এই সংস্থা।
সংশ্লিষ্ট মহলের দাবি, এ ধরনের শহরে আবাসন তৈরির জন্য প্রত্যক্ষ বিদেশি লগ্নি টানতে কেন্দ্র প্রকল্পের মাপ ২০ হাজার বর্গ মিটারে নামিয়ে এনেছে। আগে ৫০ হাজার বর্গ মিটারের নীচে কোনও প্রকল্প প্রত্যক্ষ বিদেশি লগ্নি নেওয়ার ছাড়পত্র পেত না। একই সঙ্গে নামিয়ে আনা হয়েছে লগ্নির পরিমাণ। নতুন নিয়মে ন্যূনতম লগ্নির পরিমাণ ৫০ লক্ষ মার্কিন ডলার (৩০ কোটি ডলার)। আগে তা ছিল ১ কোটি ডলার। প্রকল্প থেকে বেরিয়ে যাওয়ার সময়সীমা অবশ্য তিন বছরই রয়েছে।
কোমায় যাওয়ার পথে শহরের পরিবহণ
17 Aug 2014, 08:50
মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় সোমবার থেকে প্রায় এক সপ্তাহ শহরে থাকবেন না৷ তাঁর অনুপস্থিতিতে কাল সোমবার থেকে সপ্তাহের চার দিনই ট্যাক্সিচালকদের ধিক্কার আন্দোলন এবং বাস-মিনিবাসের ধর্মঘটের জেরে রাজ্যে গণ পরিবহণ অচল হওয়ার মুখে৷
লগ্নির খোঁজে আজ মমতার সিঙ্গাপুর পাড়ি
17 Aug 2014, 08:56
বিদেশি বিনিয়োগ আনার লক্ষ্যে আজ, রবিবার সিঙ্গাপুর যাচ্ছেন মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়৷ মুখ্যমন্ত্রী হওয়ার পর মমতার এই প্রথম বিদেশ সফরকে ঘিরে রাজ্যের শিল্প ও বণিক মহলে প্রত্যাশার পাশাপাশি উন্মাদনাও তৈরি হয়েছে৷
ইবোলা নিয়ে হয়রানি দেশে ফেরা বাঙালির
17 Aug 2014, 09:05
পুলিশ যেমন মাঝেসাঝে সন্দেহভাজন জঙ্গি ধরে নিজেদের দর বাড়ায়, জেলা প্রশাসনের কোথাও কোথাও তেমন সন্দেহভাজন রোগী ধরে নিজেদের করিত্কর্মা প্রমাণ করতে তত্পর হয়ে উঠেছে৷ এই অতি সক্রিয়তার মাসুল গুনতে হল নাইজিরিয়া প্রবাসী বার্নপুরের এক বাঙালি পরিবারকে৷
শীর্ষ খবর
এই শহর
নির্বাচন করাকলকাতাহাওড়া
http://eisamay.indiatimes.com/
নেপথ্য ভাষন -অশোক দাশগুপ্ত |
অমিত শাহ এখানে এসে কী করবেন? |
প্রয়াত, প্রখ্যাত ঐতিহাসিক ড. অশীন দাশগুপ্ত ১৯৯২ সালে বাবরি মসজিদ ধ্বংসের পর আজকাল-এ একটি নিবন্ধ লিখেছিলেন৷ বাবরি ধ্বংসের তীব্র নিন্দা করলেও, ধর্মনিরপেক্ষ দেশের পক্ষে সওয়াল করলেও, লিখেছিলেন, এই অপরাধের জন্য বি জে পি-কে ভারতীয় রাজনীতিতে অচ্ছুৎ করে দিলে ভুল হবে৷ তাহলে আরও দায়-দায়িত্বহীন হয়ে যাবে ওরা৷ বরং সংসদীয় গণতন্ত্রের কাঠামোর মধ্যেই রেখে ওদের নিয়ন্ত্রণ করতে হবে৷
১৯৯৮-৯৯ সালে এসেছে বি জে পি তথা এন ডি এ সরকার৷ ক্ষমতায় থেকে ৬ বছরে অযোধ্যায় রামমন্দির গড়ার কর্মসূচিতে ঢুকতে পারেনি বি জে পি৷ পরেও না৷ ভারতের সংসদীয় গণতন্ত্রে থেকেই দলটা উগ্রতর হতে পারেনি৷ সাম্প্রদায়িকতার বিষ ছড়িয়েছে, গুজরাটে গণহত্যা করেছে, কিন্তু প্রচারের মূল অভিমুখ সব মিলিয়ে উন্নয়নের আওয়াজের সঙ্গে মিশিয়ে দিতে হয়েছে৷ জোটের স্বার্থে নিজেদের অ্যাজেন্ডা সিন্দুকে ভরে রেখেছে৷ এবার বি জে পি নিরঙ্কুশ সংখ্যাগরিষ্ঠ৷ তবু, চূড়াম্ত সাম্প্রদায়িক পথে প্রকাশ্যে বিচরণ সম্ভব নয়৷ শিক্ষায় ও প্রশাসনে গৈরিক ছাপ পড়ছেই, কিন্তু দেশটাকে চূর্ণ-বিচূর্ণ করে দেওয়ার পথে এগনো যাবে না৷ ধর্মনিরপেক্ষ ভারতবাসী অম্তত এটুকু নিশ্চিত করতে পেরেছেন৷
রাজনাথ সিং সাম্প্রতিক লোকসভা নির্বাচনে পশ্চিমবঙ্গে দলের সাফল্যকে গুরুত্ব দিয়ে বলে গেছেন, ভবিষ্যৎ খুবই উজ্জ্বল৷ নতুন সভাপতি অমিত শাহর লক্ষ্য, 'দেশের সব রাজ্যে সরকার গড়া৷' তিনি আসছেন বাংলায়, সেপ্টেম্বরে৷ উত্তরপ্রদেশে ৮০-র মধ্যে ৭১ আসন তুলে নিয়ে তিনি মোদির 'ম্যান অফ দি ম্যাচ'৷ সেই মহাতারকা এখানে এসে কী করবেন?
৬ থেকে ১৭ শতাংশ৷ ভোটের অঙ্কে এই অগ্রগতি বি জে পি নেতাদের উদ্দীপ্ত করেছে৷ তৃণমূল ও কংগ্রেস থেকে কিছু, বাম দলগুলোর থেকেও অনেক লোক পদ্ম-জাহাজে উঠে পড়ছেন৷ রাহুল সিনহাদের দলকে গুরুত্ব না দিয়ে উপায় নেই৷ লক্ষ্য ২০১৬, তার আগে বিশেষত কলকাতা ও শিলিগুড়ি পুরসভা ভোটে চমকপ্রদ সাফল্য আশা করছেন নেতারা৷
খুচরো হিসেবটা আগে হয়ে যাক৷ না৷ কলকাতা বা শিলিগুড়ি পুরসভা দখল করা সম্ভব নয়৷ শিলিগুড়িতে তৃণমূল এবং বামফ্রন্ট তো আছেই, কংগ্রেসও একটা শক্তি৷ চতুর্মুখী লড়াই জমতে পারে, বি জে পি কয়েকটা আসন পেতে পারে, কিন্তু ক্ষমতা দখল দিবাস্বপ্ন৷ মোর্চার হাত ধরে দার্জিলিং আসনে জয় এসেছে, কিন্তু সেজন্যই শিলিগুড়িতে বি জে পি ঝড় উঠবে না৷ এগোতে পারে অবশ্যই৷
কলকাতা পুরসভাও যে আসন্ন ভোটে তৃণমূলের দখলে যাবে, বলে দেওয়া যায়৷ কংগ্রেস শূন্য হবে না, বামপম্হীরা নিশ্চয়ই কিছু আসন পাবেন৷ বি জে পি-র বাস্তব লক্ষ্য হতে পারে পুরসভার প্রধান বিরোধী দল হওয়া৷ দক্ষিণ কলকাতায় লোকসভা ভোটে কিছু এলাকায় দারুণ ফল করেছে বি জে পি৷ একটা কারণ, সম্পন্ন অবাঙালিরা ঢেলে ভোট দিয়েছেন৷ বি জে পি-কে নয়, মোদিকে৷ সেই জায়গাটা মজবুত করার জন্য উঠেপড়ে লেগেছে তৃণমূল৷ ওখানে মোদি এখানে মমতা, এই সূত্র কাজ করতে পারে৷
সঙঘপ্রধান মোহন ভাগবত বলে দিয়েছেন, কোনও বিশেষ ব্যক্তির জোরে বি জে পি জেতেনি, দেশবাসী কংগ্রেসকে সরাতে চেয়েছে, তাই নতুন সরকার৷ অর্ধসত্য৷ চমকপ্রদ জয়ে বড় ভূমিকা অবশ্যই নরেন্দ্র মোদির, যে হাওয়া পুরভোটে থাকবে না৷
২০১৬ বিধানসভা ভোট বড় লক্ষ্য৷ অমিত শাহ বলছেন, সরকার দখলের স্বপ্ন দেখতে হবে৷ শমীক ভট্টাচার্য বলছেন, 'পরিবর্তন' দেখেছেন মানুষ, এখন চাইছেন 'পরিত্রাণ'৷ কে পরিত্রাতা? বি জে পি? ওদের উত্থানে মমতা ব্যানার্জি উদ্বিগ্ন৷ ক্ষতিগ্রস্ত বামফ্রন্ট৷ তৃণমূলবিরোধী ভোট ভাগ হয়ে গেছে৷ বেশ কিছু বাম কর্মী আম্তর্জাতিক মানের ডিগবাজি খেয়ে বি জে পি-র দিকে গেছেন৷ অনেকেই ভয়ে, বি জে পি-কে নিরাপদ আশ্রয় ভেবে৷ এই নব্য গেরুয়ারা অধিকাংশ ক্ষেত্রেই দলের বোঝা হবেন৷ 'পরিত্রাণ' আনার শক্তি (বা 'নিষ্ঠা') এদের নেই৷
বাপী লাহিড়ী কোথায়? চন্দন মিত্রর মতো পরিণত রাজনীতিকই বা রাজ্যে এখন কতটা সক্রিয়? বাবুল সুপ্রিয় শুধু কঠিন কেন্দ্রে জেতেননি, সাংসদ হিসেবেও ছাপ রাখছেন৷ হাওড়া কেন্দ্রে পরাজিত জর্জ বেকার 'যথাসাধ্য' খাটছেন৷ তথাগত রায়ের মতো প্রবীণ নেতা আছেন, বাবুল সুপ্রিয় উঠে এসেছেন, শমীক ভট্টাচার্য দুরম্ত বক্তা, সংগঠনের দায়িত্ব খুব ভালভাবে সামলাচ্ছেন রাহুল সিনহা৷ কিন্তু, রাজ্যবাসীর সামনে বিকল্প মুখ্যমন্ত্রী হিসেবে কাউকে তুলে ধরা যাচ্ছে কি?
পরবর্তী বিধানসভা ভোটে মোদি হাওয়া থাকবে না৷ বিপুল প্রত্যাশা ফেরি করে ক্ষমতায় এসেছেন মোদি৷ আড়াই মাসে মনে হয়নি, দারুণ কিছু করে দেখাতে পারছেন৷ এই ধারা যদি অব্যাহত থাকে, ২০১৬ সালে এ রাজ্যেও এক ধরনের প্রতিষ্ঠান-বিরোধিতা মুশকিলে ফেলতে পারে বি জে পি-কে৷
তা, অমিত শাহ এসে কী করবেন? উত্তরপ্রদেশে সাম্প্রদায়িক মেরুকরণ ঘটিয়ে আশাতীত সাফল্য পেয়েছেন 'ম্যান অফ দি ম্যাচ'৷ উত্তরপ্রদেশ আর পশ্চিমবঙ্গ এক নয়৷ একজন মুলায়মের ওপর এখানে সাম্প্রদায়িক শক্তির বিরোধিতা নির্ভরশীল নয়৷ গ্রহণযোগ্য বিকল্প হিসেবে উঠে আসার জন্য এ রাজ্যে উপযুক্ত প্রমাণিত হতে পারেন না অমিত শাহ৷ যা করার করতে হবে রাজ্য নেতাদেরই৷ অমিতজির উপস্হিতি ও ভাষণ নিশ্চয় বি জে পি নেতা ও কর্মীদের উৎসাহিত করবে৷ কিন্তু সে উৎসাহের আয়ু সাত দিনের বেশি নয়৷ মনে হয়, রাহুল সিনহারাও জানেন৷
মুম্বই, ওড়িশায় ৬০ জায়গায় তল্লাশিতে মিলল সূত্র | |
বরেন্দ্রকৃষ্ণ ধল, ভুবনেশ্বর প্ত সোমনাথ মণ্ডল, কলকাতা | |
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এক সরকারে এত সরকার কেন: মোদী
নিজস্ব সংবাদদাতা
নয়াদিল্লি, ১৭ অগস্ট, ২০১৪, ০২:৪৭:৪২
উত্তর নেই। বরং প্রশ্ন তুলতেই আরও গাঢ় হল রহস্য।
স্বাভাবিক। যখন লাল পাগড়ি মাথায় দিয়ে লালকেল্লায় দাঁড়িয়ে প্রশ্নটা ছুড়ে দেন স্বয়ং প্রধানমন্ত্রী! এক মাস আগেও বলেছিলেন। ফের বললেন।
কী সেই বিষয়, যা চমকে দিয়েছে বিপুল ভোটে জিতে আসা প্রবল ক্ষমতাশালী নরেন্দ্র মোদীকেও? সরকার গড়ার দু'মাস পরে স্বাধীনতা দিবসে প্রথম বক্তৃতাতেও তা মেলে ধরতে হয় জনসাধারণের কাছে?
গত কাল এক ঘণ্টার বেশি বক্তৃতার প্রায় গোড়ার দিকেই প্রসঙ্গটা তোলেন মোদী। তাঁর বক্তব্য, দিল্লিতে তিনি 'আউটসাইডার' (বহিরাগত)। দিল্লির অভিজাত শ্রেণির কাছেও অচ্ছুৎ! প্রধানমন্ত্রী এখানেই থেমে গেলে তার একটা মানে করা যেত। কিন্তু লালকেল্লার মঞ্চে স্বাধীনতা দিবসের বক্তৃতায় প্রধানমন্ত্রী অনেক বেশি সোজাসাপটা। বললেন, নিজে 'আউটসাইডার' ঠিকই, কিন্তু গত দু'মাসে 'ইনসাইডার' হয়ে ভিতরের হাল দেখে চমকে গিয়েছেন তিনি। কেন? প্রধানমন্ত্রীর কথায়, "আমার মনে হল, একটি সরকারের ভিতরেও কয়েক ডজন সরকার চলছে! প্রত্যেকের যেন নিজের নিজের জমিদারি তৈরি হয়ে রয়েছে! আমি দেখলাম সকলে ছত্রভঙ্গ, যুযুধান! এতটাই যে, এক বিভাগ অন্য বিভাগের সঙ্গে লড়াই করার জন্য সুপ্রিম কোর্ট পর্যন্ত চলে যায়!"
মোদীর এই বিস্ময়, প্রশ্ন নতুন নয়। সরকারের এক মাস পূর্ণ হওয়ার পর মোদী নিজের ব্লগে কতকটা এই ভাষাতেই লিখেছিলেন, সরকারের মধ্যে একটি 'সিলেক্ট গ্রুপ' কাজ করছে। দিল্লির অলিন্দের পরিভাষায় যাকে বলা হয় 'পাওয়ার ব্রোকার'। শুক্রবার সেই বক্তব্যকে আরও খোলসা করে তুলে ধরলেন তিনি। কিন্তু কারা এই পাওয়ার ব্রোকার? কারা সরকারের মধ্যে আরও কয়েক ডজন সরকার তৈরি করে রেখেছেন? মোদীর মতো একজন প্রধানমন্ত্রীকেও কেনই বা বারবার বিষয়টি প্রকাশ্যে আনতে হচ্ছে? উত্তর অবশ্য দেননি প্রশ্নকর্তা, স্বয়ং মোদী। কিন্তু তাঁর তোলা প্রশ্নই এখন ঘুরপাক খাচ্ছে দিল্লির অলিন্দে। চায়ের পেয়ালায়, কফিশপের টেবিলে। এমনকী প্রশাসনের কড়িকাঠেও।
মোদীর কড়া শাসনের সামনে এমনিতেই ত্রস্ত তাঁর মন্ত্রীরা। কেউ আর মুখ খুলতে চান না। কিন্তু মোদীর তোলা প্রশ্ন তাঁদেরও ভাবাচ্ছে। এমনই এক শীর্ষ মন্ত্রীর কথায়, "কোনও দ্বিমত নেই, দিল্লিতে এমন ক্ষমতার ভরকেন্দ্র অনেক রয়েছে। ইউপিএ-র এক দশকের জমানায় প্রশাসনের বিভিন্ন স্তরে 'ল্যান্ডমাইন' পুঁতে রাখা হয়েছে! মোদী সেগুলিই দূর করতে চাইছেন!" মন্ত্রীদের শাসনে রাখতে গিয়ে তাঁদের সচিব নিয়োগের পদ্ধতি পর্যন্ত বদলে ফেলেছেন মোদী। এমনকী এখন স্বরাষ্ট্রমন্ত্রী রাজনাথ সিংহকেও কিছুটা অপ্রাসঙ্গিক করে যাবতীয় রাশ নিজের হাতে তুলে নিয়েছেন। কিন্তু দেখেছেন, তাতেও সমস্যা মেটেনি। দেখেছেন, মন্ত্রকে-মন্ত্রকে তুমুল বিবাদ। এক মন্ত্রকের সুপারিশ খারিজ করে দেয় অন্য মন্ত্রক। এটি মূলত হয় আমলা স্তরেই। আর এর পিছনে থাকে কোনও না কোনও গোষ্ঠীর হাত। এই চাপ ঘুরপথে আসে মন্ত্রীদের উপরেও। মোদী-ঘনিষ্ঠ মন্ত্রীদের অনেকেই বলছেন, সম্ভবত এই সব কথাই মোদী বারবার বলতে চাইছেন। যে কারণে এই সমস্যা থেকে বেরোনোর পথ বাতলাতে গিয়ে তিনি বারবার আমলাতন্ত্রের উপরেই খড়্গহস্ত হয়েছেন। মোদী বলেছেন, "এই ছত্রভঙ্গ অবস্থা, যুযুধান দশা কাটাতে আমি চেষ্টা শুরু করেছি। যাতে এই দেওয়াল ভেঙে একটি ইউনিট হিসেবে এক সরকারের এক লক্ষ্য, এক মন, এক দিশা, এক গতিতে কাজ করতে পারি। চাপরাশি থেকে ক্যাবিনেট সচিব সকলের মধ্যেই ক্ষমতা রয়েছে। সেই শক্তিকে জাগিয়ে দেশের উন্নয়নে ব্যবহার করাই আমার লক্ষ্য।" অফিসারদের এক হাত নিয়ে প্রধানমন্ত্রীর কটাক্ষ, "নতুন সরকারে অফিসারেরা সময় মতো অফিস আসছেন, খবরে এটি শুনে সরকারের মুখিয়া হিসেবে আমি খুশি হতে পারতাম। কিন্তু এটিই যদি খবর হয়, তা হলে আমরা কতটা নীচে নেমে গিয়েছি, তার প্রমাণ হয়ে যায়।"
লালকেল্লায় প্রথম বক্তৃতায় আমলাতন্ত্রের প্রতি এমন তীক্ষ্ন আক্রমণের কারণ ব্যাখ্যা করতে গিয়ে বিজেপির এক নেতা আজ বলেন, "যোজনা কমিশনকেই বিলোপ করে প্রধানমন্ত্রী ক্ষমতার বিকেন্দ্রীকরণ করতে চাইতে পারেন। রাজ্যের হাতেও আরও ক্ষমতা তুলে দিতেও চান তিনি। কিন্তু কেন্দ্রে গোটা সরকারের রাশ তিনি নিজের হাতেই রাখতে চান। যেমনটি গুজরাতের মুখ্যমন্ত্রী হিসেবে তিনি করতে পেরেছেন।"
বিজেপির ওই নেতা যা-ই বলুন, বাস্তব হল, মোদী এখন গোটা দেশের প্রধানমন্ত্রী, গুজরাতের মুখ্যমন্ত্রী নন। আর রাজধানী দিল্লি, আমদাবাদ নয়। অভিজ্ঞরা জানেন, বিভিন্ন ক্ষেত্রের রাঘব-বোয়ালরা বহু আগে থেকেই এখানে বসে রয়েছেন। মোদী তাঁদেরই শায়েস্তা করতে চান। বলা ভাল, আনুগত্যে আনতে চান। তাঁর পূর্বসূরি মনমোহন সিংহ যে কাজ করতে পারেননি, সেই ব্যবস্থা বদলে সকলকে এক সুরে বাঁধতে তিনি মরিয়া। একটি বিষয় স্পষ্ট, সে কাজে এখনও তিনি সফল হননি। তাই বারবার বিষয়টি প্রকাশ্যে এনে ঘা দিচ্ছেন ব্যবস্থার মূলে। সময়ই বলবে, পোড় খাওয়া এই প্রাচীন দেওয়ালকে তিনি কতটা বদলাতে পেরেছেন।
কংগ্রেস অবশ্য মোদীর এই প্রয়াসকে ব্যঙ্গ করতে ছাড়েনি। দলের নেতা অভিষেক মনু সিঙ্ঘভি বলেন, "মোদী নিজেকে 'আউটসাইডার' বলে আসলে নির্দোষ হওয়ার ভান করছেন। যাতে নির্বাচনী প্রতিশ্রুতি পূরণের ব্যর্থতাকে ঢাকতে পারেন।"
http://www.anandabazar.com/national/modi-comments-on-government-policies-1.60148
যোজনাই বহির্ভূত
ইতিহাসের ইতি
নিজস্ব সংবাদদাতা
নয়াদিল্লি, ১৭ অগস্ট, ২০১৪, ০২:৫৫:০১
বিদায়, যোজনা কমিশন।
দিল্লির সাবেক বাবুতন্ত্রের অন্যতম প্রতীক অ্যাম্বাসাডর গাড়ির শেষের ঘণ্টা বেজেছে এই সে দিন। এ বার সোভিয়েত যুগের নিদর্শন যোজনা কমিশনের পালা। গত কাল লালকেল্লা থেকে তাঁর প্রথম স্বাধীনতা দিবসের ভাষণে প্রধানমন্ত্রী নরেন্দ্র মোদী বলেন, যোজনা কমিশনের বদলে শীঘ্রই তৈরি হবে একটি নতুন প্রতিষ্ঠান। অর্থ বরাদ্দ আর উন্নয়ন প্রকল্পের নকশা তৈরি যার কাজ হবে না। কাজ হবে উদ্ভাবনী চিন্তাভাবনার জোগান দেওয়া।
সোভিয়েত ইউনিয়নের সমাজতান্ত্রিক ভাবনা ধার করে ১৯৫০ সালে যোজনা কমিশন গঠন করেছিলেন জওহরলাল নেহরু। তিনিই হয়েছিলেন প্রথম চেয়ারম্যান। তার পর থেকে প্রধানমন্ত্রীরাই বসেছেন যোজনা কমিশনের মাথায়। কিন্তু সময়ের সঙ্গে সঙ্গে এর উপযোগিতা যে কমে এসেছে, তা উপলব্ধি করেছেন একাধিক প্রধানমন্ত্রী। কমিশন ভেঙে দেওয়ার কথা বলেছেন কেউ কেউ। যেমন, রাজীব গাঁধীই যোজনা কমিশনকে 'সাদা হাতি' বলেছিলেন। এমনকী, কমিশনের সদস্যদের 'এক পাল ভাঁড়' আখ্যা দেন বলেও দাবি কারও কারও। মনমোহন সিংহ তখন যোজনা কমিশনের ডেপুটি চেয়ারম্যান।
সংসদ মার্গে যোজনা কমিশনের বাড়িটা যে আসলে অকর্মণ্য আমলাদের বৃদ্ধাশ্রম হয়ে দাঁড়িয়েছে, তা প্রধানমন্ত্রী হওয়ার পরে বুঝেছিলেন মনমোহন নিজেও। গত মার্চে কমিশনের বৈঠকে সেটা বলেওছিলেন তিনি। তাঁর মত ছিল, সময়ের সঙ্গে বদলাতে হবে যোজনা কমিশনকে। কিন্তু সেই বদলের গতি ছিল নেহাতই শ্লথ। কমিশনের বিদায়ী সদস্য সঈদা হামিদের কথায়, "দ্বিতীয় ইউপিএ-সরকারের জমানায় বারবার যোজনা ভবনে আলোচনা হয়েছে, কমিশনের আকার বদলের সময় এসেছে কি না, তা নিয়ে। নীল নকশা তৈরি হয়েছে।" কিন্তু কিছুরই রূপায়ণ হতে দেখা যায়নি। তার বদলে মনমোহন সিংহের আমলে যোজনা কমিশনের ডেপুটি চেয়ারপার্সন হয়ে কেন্দ্রের বিভিন্ন মন্ত্রকের উপর নিজের নিয়ন্ত্রণ অনেকটাই বাড়িয়ে ফেলেন মন্টেক সিংহ অহলুওয়ালিয়া। যোজনা কমিশনের সঙ্গে নানা মন্ত্রকের সংঘাত বাধে। যোজনা কমিশনের প্রাসঙ্গিকতা নিয়ে প্রশ্ন ওঠে আরও বেশি করে।
এই অবস্থায় শুক্রবার সকালে এক ধাক্কায় জুরাসিক যুগের অবসান ঘটালেন নরেন্দ্র মোদী। বললেন, "কখনও কখনও পুরনো বাড়ি মেরামতে খরচ বেশি পড়ে, অথচ আমরা তাতে সন্তুষ্টও হই না। তাই আমাদের মনে হয়, সবাই মিলে একটা নতুন বাড়ি তৈরি করলেই ভাল।" যে ঘোষণাকে নব্বইয়ের দশকে লাইসেন্স রাজ অবসানের পরে সবচেয়ে বড় সংস্কার হিসেবে দেখা হচ্ছে। কমিশনের বিদায়ী সদস্য অরুণ ময়রার কথায়, "যোজনা কমিশন বদলাচ্ছিল ঠিকই। কিন্তু দ্রুত গতিতে নয়। এই কাজ বলে বলে করানো যেত না। এক ঝটকায় করতে হতো। মোদী তাই করেছেন।"
বিরোধীরা অবশ্য মোদীর ঘোষণা নিয়ে ইতিমধ্যেই প্রশ্ন তুলেছে। কংগ্রেস নেতা জয়রাম রমেশের কথায়, "যোজনা কমিশন তুলে দিতে চাইলে আবার আলাদা সংস্থা গড়ার কথা বলা হচ্ছে কেন! এটা কি তা হলে নিছকই নাম বদল? যোজনা কমিশনের কাজই করবে নতুন সংস্থা?"
যোজনা কমিশনের কাজ কী ছিল?
এক কথায়, উন্নয়ন ও বিনিয়োগ বাবদ অর্থের জোগান এবং কোথায়, কোন ক্ষেত্রে সেই অর্থ খরচ করা প্রয়োজন এই দু'টিকে মিলিয়ে দেওয়া। অর্থাৎ এক দিকে পঞ্চবার্ষিকী পরিকল্পনা তৈরি করে বিভিন্ন রাজ্য বা কেন্দ্রীয় মন্ত্রকের জন্য অর্থ বরাদ্দ। অন্য দিকে উন্নয়নমুখী প্রকল্পের নকশা তৈরি। কিন্তু নেহরুর যুগে প্রায় সবটাই ছিল সরকারি বিনিয়োগ। রাষ্ট্রায়ত্ত সংস্থা কোথায় ইস্পাত কারখানা বসাবে, কোথায় বিদ্যুৎ উৎপাদন কেন্দ্র তৈরি করবে, তা যোজনা কমিশনই ঠিক করে দিত। কিন্তু '৮০ থেকে '৯০-এর দশকে বেসরকারি বিনিয়োগ বাড়তে শুরু করল। কমতে থাকল যোজনা কমিশনের ভূমিকাও।
সোভিয়েত ইউনিয়নে উন্নয়নের পরিকল্পনা তৈরির কাজটি করত 'গসপ্ল্যান'। যা দেখেই নেহরুর মাথায় যোজনা কমিশনের ভাবনা আসে। সোভিয়েতের পতনের সঙ্গে সঙ্গে 'গসপ্ল্যান'-ও উঠে যায়। বিশ্বের বহু দেশেই যোজনা কমিশন বলে কোনও বস্তু নেই। কারণ সেখানে বেসরকারি বিনিয়োগই এখন প্রধান বিনিয়োগ। এমনকী চিনেও যোজনা কমিশন চরিত্র বদলেছে, নামও। সে দেশের 'ন্যাশনাল ডেভেলপমেন্ট অ্যান্ড রিফর্ম কমিশন' এখন ত্রয়োদশ যোজনা তৈরির কাজ করছে। মূলত তার কাজ হল, যেখানে উন্নয়নের অভাব রয়েছে, সরকারি-বেসরকারি যৌথ উদ্যোগে তৈরি প্রকল্পগুলি সেখানে নিয়ে যাওয়া।
মোদীর প্রস্তাবিত নতুন প্রতিষ্ঠানও অনেকটা এই পথেই চলবে বলে মনে করা হচ্ছে। মোদী বলেন, নয়া প্রতিষ্ঠানের কাজ হবে উদ্ভাবনী চিন্তাভাবনার জোগান দেওয়া। মোদী ক্ষমতায় আসার পরই যোজনা কমিশনের অধীনস্থ স্বাধীন মূল্যায়ন দফতরের সুপারিশও তেমনটাই ছিল। বলা হয়েছিল, কেন্দ্র ও রাজ্য সরকারের পাশাপাশি বেসরকারি ক্ষেত্রের অগ্রাধিকার কী হওয়া উচিত, তার রূপরেখা বাতলানোর মধ্যেই সীমাবদ্ধ থাকুক নতুন সংস্থার ভূমিকা।
এত দিন উন্নয়নের অর্থ চাইতে ফি বছর মুখ্যমন্ত্রীদের যোজনা কমিশনের ডেপুটি চেয়ারম্যানের দরবারে আসতে হতো। প্রধানমন্ত্রী বলেছেন, "সময় পাল্টেছে। দেশকে এগিয়ে নিয়ে যেতে হলে রাজ্যগুলিকে সঙ্গে নিয়ে চলতে হবে।" যার অর্থ স্পষ্ট। আগামিদিনে অর্থ ব্যয় করার ক্ষেত্রে রাজ্যগুলির হাতে অনেক বেশি ক্ষমতা থাকবে। যুক্তরাষ্ট্রীয় কাঠামোটাই বদলে যাবে।
প্রস্তুতি আগে থেকেই চলছে। সরকারি সূত্র বলছে, এক সপ্তাহের মধ্যেই নতুন সংস্থার বিষয়ে ঘোষণা হবে। বুধবার ক্যাবিনেট সচিবালয়ে যোজনা কমিশনের সচিব সিন্ধুশ্রী খুল্লারকে ডেকে পাঠানো হয়। অনেক রাত পর্যন্ত বৈঠক চলে। বৃহস্পতিবারও বৈঠক হয়েছে।
মনে করা হচ্ছে, আমেরিকায় অর্থনৈতিক উপদেষ্টাদের নিয়ে যেমন পরিষদ রয়েছে, নতুন সংস্থার ধাঁচ হবে অনেকটা সেই রকম। প্রথমে ঠিক হয়েছিল, নতুন সংস্থার নাম হবে 'ন্যাশনাল ডেভেলপমেন্ট অ্যান্ড রিফর্ম কমিশন'। কিন্তু চিনেও একই নামের সংস্থা রয়েছে। তাই অন্য নাম নিয়ে চিন্তাভাবনা চলছে। নতুন সংস্থার মাথায় আসতে পারেন সুরেশ প্রভু। যিনি অটলবিহারী বাজপেয়ীর জমানায় বিদ্যুৎ ক্ষেত্রের সংস্কারে বড় ভূমিকা নিয়েছিলেন। নাম রয়েছে প্রাক্তন বিলগ্নিকরণ মন্ত্রী অরুণ শৌরিরও।
• আর্থিক পরিকল্পনার কথা প্রথম ভাবেন সুভাষচন্দ্র বসু, ১৯৩৮ সালে। যার খসড়া তৈরি করেন মেঘনাদ সাহা।
• পরাধীন ভারতেই ১৯৪৪ সালে পরিকল্পনা বোর্ড তৈরি করে ব্রিটিশরা। ১৯৪৬ পর্যন্ত তিনটি পরিকল্পনা তৈরি হয়। যোজনা কমিশনের যাত্রা শুরু ১৯৫০-এর ১৫ মার্চ। সরকারি নির্দেশ জারি করে এটি গড়েন জওহরলাল নেহরু।
• ১৯৫১ সালে ঘোষিত হল প্রথম পঞ্চবার্ষিকী পরিকল্পনা।
• পরের দু'টি পরিকল্পনা ১৯৫৬ ও ১৯৬১ সালে।
• ১৯৬৬-তে পরিকল্পনা ঘোষণা স্থগিত রইল ভারত-পাক যুদ্ধের আবহে। তার পরের দু'বছরও।
• পঞ্চম পরিকল্পনার (১৯৭৪-১৯৭৯) মেয়াদ বাড়ানো হয় এক বছর। ষষ্ঠ পরিকল্পনা শুরু হল ১৯৮০-তে।
• রাজনৈতিক টালমাটালের কারণে পরিকল্পনা রচনা করা হয়নি ১৯৯০ ও ১৯৯১ সালেও।
• ২০১২ সালে শেষ হয়েছে একাদশ পরিকল্পনার মেয়াদ।
• ১৫ অগস্ট ২০১৪, যোজনা কমিশনের অবলুপ্তি ঘোষণা করলেন নরেন্দ্র মোদী।
http://www.anandabazar.com/national/end-of-history-1.60149
Aug 17 2014 : The Economic Times (Bangalore)
Freedom of Speeches
Narendra Modi has ended 10 years of soporific Independence Day speeches with his maiden address to the nation. His speech had more drama, announcements and pep than his predecessors' maiden I-day speeches put together. Here's why:
Aug 16 2014 : The Economic Times (Mumbai)
NO NEHRU-GANDHI EULOGISING - Mookerjee and Savarkar Turn Central Figures
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New Delhi: Our Political Bureau |
PM Modi's first I-day speech was strong on symbolisms that sought to replace the Nehruvian tradition with the Hindutva model.
At national broadcaster Doordarshan, the tone was set early when it ran a programme showing archival footage of RSS icon Veer Savarkar and Shyama Prasad Mookerjee, founder of Jan Sangh, the predecessor of BJP. This marked a departure from the past where Doordarshan would stick to eulogizing those members of the Nehru-Gandhi f a m i l y wh o b e c a m e P r i m e Ministers.
T h e n a t i o n a l s o n g Va n d e Mataram, although played in Parliament at the end of each session, is nor session, is normally kept away from public functions since it is considered a Hindu hymn. But M o d i ' s Independence Day speech ended with the chant.
Today's celebra tions were not an exception but a continuation of the process that began soon after Narendra Modi took over as Prime Minister in May like setting up a dedicated ministry to clean the holy river Ganga to setting up a panel to find the source of the mythical Saraswati river.
The first budget of the BJP gover nment had also launched a slew of welfare schemes that carry the names of Mookerji and ideolo gues Deen Dayal Upadhyay and Madan Mohan Malviya.
Aug 16 2014 : The Economic Times (Mumbai)
Keeping it Simple, Straight
IDENTIFYING PROBLEMS AND OFFERING SOLUTIONS Prime Minister Narendra Modi not only spoke at length on issues that impact everyday life in India, but also offered a glimpse of how he plans to address these problems in a time-bound manner
WHY THIS HOMEWORK IS DIFFICULT... In his first I-Day speech, PM Narendra Modi talked about finding ways to address the ills in the society, and highlighted the role of technology in providing basic economic and health ser vices to the masses.
A look at the numbers shows why the task is difficult...
Aug 16 2014 : The Economic Times (Mumbai) Plan Panel's Loss may be Jaitley's Gain
FM's clout may grow as most functions of body may come under finance ministry The biggest gainer when the Planning Commission is consigned to history could be finance minister Arun Jaitley , widely regarded as the most influential minister in the Modi government, as most of its functions are likely to move to the finance ministry . In the ten years of the UPA government, the Commission had acquired considerable clout, with a substantial role in policymaking besides its traditional function of dispensing money to the states. The heightened influ heightened influence was also partly because it was headed by Montek Singh Ahluwalia, a renowned economist and close associate of former Prime Minis ter Manmohan Singh. But with its historic rival out of the way , North Block, as the finance ministry is often referred to, will become the hub of economic planning and policymaking while its expenditure wing will now allocate plan resources, almost a third of government spending, to the states. The Planning Commission is likely to be replaced by a think tank, which could be headed by Shiv Sena leader and former minister Suresh Prabhu. Former disinvestment minister Arun Shourie's name is also doing the rounds as a possible head of the body The original thinking in the government was to name the body as National Development and Reforms Commission. But since a similarsounding body exists in China, the government is now thinking of a new name. A formal announcement is likely to be made early next week. "Removing the commission would cut a layer from decision making. Most of its functions would logically flow to the finance ministry," an official said, adding that North Block's expenditure and the budget division will have a much bigger role. On Friday, Prime Minister Modi clearly indicated that the panel's glory days were over. "We will very soon set up a new institution in place of the Planning Commission...We need an institution of creative thinking and for optimum utilisation of youth capability," Modi said in his Independence Day address from the historic Red Fort. A committee headed by C Rangarajan -an economic advisor to the previous PM -tasked with reviewing the role of the commission had come to a similar conclusion, suggesting that the finance ministry should manage government funds while the Planning Commission should morph into a recommendatory body providing direction to the government. The commission, a post-Independence institution created in 1950 to chart the nation's destiny through planned, public sector-led development, derived most of its importance from the power to allocate money. It had to draw up five-year plans and allocate funds to achieve various social and economic goals. In 2014-15, Rs 5.75 lakh crore, or 32% of the government budget, was set aside for plan expenditure, funds that are usually moved though the Planning Commission to the states, giving it more clout than most other government institutions. The Prime Minister's role as the ex-officio head of the institution added to its authority. The day-to-day functioning of the commission is overseen by the deputy chairman, a position of immense political importance and prestige. States lined up before the commission, presenting their demand for funds. But with the commission becoming a think tank, the days of states queuing up for funds are over. Instead there should be a project-specific approach to allocating funds, said an official. With the expenditure department in the finance ministry getting full control over the country's purse, the task of federal-state interaction, a recurrent theme of Prime Minister Modi, will have to be overseen by Jaitley, who is also the defence minister. A key priority for Jaitley will be build a consensus on the goods and services tax and get all states on board. The department of economic affairs in the finance ministry becoming the hub of economic thinking. Not everyone is enthused by the idea of a bigger role for the finance ministry. "It will give the finance ministry too much authority without any checks and balances. The Planning Commission played the check-and-balance mechanism," said Pronab Sen, Chairman of the National Statistical Commission and formerly principal adviser at the Planning Commission.
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Aug 16 2014 : The Economic Times (Mumbai) Freedom from Old India
BOLD & BEAUTIFUL In an electrifying speech, Narendra Modi makes a strong case for manufacturing, stresses on improving hygiene and wants a 10-yr moratorium to rid India of communal, sectarian tensions For the first time in more than 30 years, an Indian Prime Minister addressed the nation without the customary bullet-proof glass shield from the ramparts of the historic Red Fort, in a speech that blended political rhetoric with an action plan for inclusive development, public hygiene and skill development. Prime Minister Narendra Modi's maiden Independence Day speech also marked the end of the Planning Commission as an overarching authority on development planning, and, according to the PM, a new institution "that would respect the federal structure of the country" will replace it. Calling himself the "Pradhan Sevak" (chief servant) of the country , the PM seemed to make a case for economic nationalism with a call to focus on manufacturing so as to minimise imports while maximising exports. "Come and make in India," he said, inviting manufacturers from across the world. He called upon the youth to unleash their entrepreneurial spirit and work to ward manufacturing in India various items that add to India's import bill. "Let `Made in India' become a synonym of excellence," he added. The speech, in trademark Modi style, was replete with catchy slogans -`Make in India', `Ze ro Defect, Zero Effect', `Mera Kya, Mujhe Kya'-and touched upon aspects of public conduct, manufacturing, women's safety and bringing technology closer to people. Earlier in the speech, Modi said he was an outsider in New Delhi who has been trying to understand it for the last two months. Expressing dismay at the workings of the bureaucracy , he said there were "dozens of governments" within a government and that he has initiated steps to "demolish walls" that had come up between various departments. "People used to consider departments as their personal fiefdom. There was disintegration and fights between departments. These fights landed up in the Supreme Court. How can you go forward in this situation?" he said. The address was hailed for its tone of exhortation although lack of policy reform announcements appeared to have been a dampener. "What a relief to have a PM who understands that today's speeches have to essentially be conversations & not formal & stodgy elocution," tweeted industrialist Anand Mahindra. "It was a powerful and passionate speech by the Prime Minister which will generate tremendous energy in aligning over a billion Indians towards a better future," said Sunil Bharti Mittal, chairman, Bharti Enterprises Social scientist Shiv Visvanathan said it was interesting that Modi chose to speak about civic virtues and values such as punctuality and cleanliness, and not corruption. "The speech was about the relation between the family and the government and how everyday values when followed in a certain way can build character, make history. He set terms for his own report card, asking people to judge him by results of his actions. Hence it was all about social indicators this time, nothing rhetorical," he told ET. Modi began the speech on an inclusive note, acknowledging the contributions made to nation building by his predecessors, and said his government wanted to move forward on the basis of consensus. Asking the youth of the country to learn from Nepal and shun the path of violence, Modi said that the poison of casteism, communalism and sectarianism was a hindrance to the country's progress. He asked for a 10-year moratorium to rid the country of all such tensions. But the core of his speech was on manufacturing, an area where he repeatedly asked the country not to compromise on quality. "We want to give a collective opportunity to the world… Come, make in India, we have the strength, come to our country, I invite you," he said. "Youth should resolve that may be at a small level, they will make at least one article that the country imports, so that it may never need be imported in future," he said. Laying out his vision for financial inclusion, Modi announced the Pradhan Mantri Jan Dhan Yojana that will see all Indians opening bank accounts. The account holder will be provided with a debit card and insurance of Rs 1 lakh.
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