चन्द्रशेखर करगेती कुछ तो रहम करो माई बाप !
कुछ तो रहम करो माई बाप !
जो सदियों से रहे हैं वेही सदियों तक रहेंगे । पहाड़ उनसे ही आबाद रहा है उनसे ही आबाद रहेगा । लेकिन टीआरपी का खेल उनके आंगन में खेला गया और उनकी बात नहीं हुई । टीआरपी का ज्वार अब भाटे में बदल गया हैं । बड़ी-बड़ी तेज रफ्तार गाडि़यों में दिल्ली के धुरंधर पत्रकार अब अपने धरौदों की तरफ लौट रहे हैं । मसूरी और ऋषिकेश की तरफ से फरार्ट भरती ये गाडि़यों बैठे तेज तर्रार लोग बस ज्योलीग्रांट एयरपोर्ट का पता पूछ रहे हैं । कार के डैसबोर्ड (शायद यही कहते हैं।) में अपनी फूकनी (हरिद्वार के एक पत्रकार साथी टीवी पत्रकारों के मायक को यही कहते हैं।) टिकाए भाई लोग जमाने को अपनी पहचान भी बताते चल रहे हैं । कार के आगे पहले ही कागज लगाकर लिखा हुआ है ।
सेना ने भी यात्रियों, पर्यटकों और भक्तों को बचाने का काम करीब-करीब कर लिया है । अब वह भी देर सबेर लौट जाएगी । जितने यात्रा इस रास्तों में फसे थे उससे कहीं अधिक लोग इन घाटियों में सैकड़ों सालों से रह रहे हैं । पहाड़ों, सड़कों, मकानों का टूटना-गिरना और बह जाना, नदियों, नालों और खालों में बाढ़ आ जाना आदि आदि आपदाओं को ये लोग साल दर साल पीढ़ियों से झेलते आ रहे हैं और आगे भी झेलेंगे ।
टीआरपी और सबसे पहले वाले इस खेल में अगर इन गांव और गांववासियों की भी थोड़ी बात हो जाती तो इन घटनाओं के सच के थोड़ा और करीब पहुंचा जाता ? यह समझने की कोशिश होती कि किन कारणों से मंजर इतना खौफनाक हो गया, तो शायद इन लोगों के बारे में कहीं कुछ सोचने की शुरूआत होती ? वैसे पहाड़ के लोगों को इससे ज्यादा फर्क भी नहीं पड़ता ! वहां आपके देश की तरह बारिस मिमी में नहीं नापी जाती, यहाँ बरसात के लगातार होने के दिन गिने जाते हैं । बरसात और जिंदगी पहाड़ में साथ साथ चलती है, बरसात से वहां जिंदगी थमती नहीं ! काश तुम ये भी कैद कर ले जाते !
साभार : Praveen Kumar Bhatt — with Jagmohan Phutela and 18 others.
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