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Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Thursday, December 17, 2015

दलित आंदोलन के बुनियादी सिद्धांत खुद पर फ़िदा! मार्क्सवादियों और छद्म अम्बेडकरवादियों के नाम! रिजर्वेशंस! जाति का उन्मूलन : कल आज और कल!

हम भी नहीं बचेंगे और न हमारा हस्तक्षेप जारी रहेगा।कमसकम जो हमारे साथ हैं या होने का जिन्हें अहसास हैं,वे हाथ नहीं बढ़ायेंगे तो वैकल्पिक मीडिया इसतरह चलनेवाला नहीं है।

हमें अफसोस है कि वैकल्पिक मीडिया के बिना हमारा कोई मुद्दा या मसला विदेशी पूंजी के हवाले कारपोरेट मीडिया उठा नहीं रहा है और न हमारी चीकें कहीं दर्ज हो रही हैं।दसों दिशाओं से हमपर कयामत बरप रही है और फिरभी हम वैकल्पिक मीडिया के बारे में सोचने को तैयार नहीं है,जो हमारा निर्णायक हथियार है।

आधार प्रकाशन द्वारा युवा रचनाकार रुबीना सैफ़ी के संपादन में शीघ्र प्रकाश्य प्रख्यात चिंतक आनंद तेलतुंबड़े की वैचारिक पुस्तक 'जनवादी समाज और जाति का उन्मूलन' का महेश्वर द्वारा तैयार किया गया कवर।


पलाश विश्वास


हमें अफसोस है कि वैकल्पिक मीडिया के बिना हमारा कोई मुद्दा या मसला विदेशी पूंजी के हवाले कारपोरेट मीडिया उठा नहीं रहा है और न हमारी चीकें कहीं दर्ज हो रही हैं।दसों दिशाओं से हमपर कयामत बरप रही है और फिरभी हम वैकल्पिक मीडिया के बारे में सोचने को तैयार नहीं है,जो हमारा निर्णायक हथियार है।


समकालीन तीसरी दुनिया कब तक चलेगी यह हम नहीं जानते तो काउंटर करंट के भी लगातार चलाने के आसार नहीं हैं।पंकजदा समयांतर नियमित निकल रहे हैं निजी कोशिश के तहत,उनके बाद इसे जारी रखने की हमें कोई चिंता नहीं है जबकि पंकजदा की सेहत ठीक नहीं है।


यशवंत ने मीडिया के हाल हकीकत के सारे किस्से कहने का जिगरा दिखाया तो उसे भी भड़ास के सात दिल्ली से विदा होना पड़ा लेकिन पटठा हारा नहीं है और खूब लड़ रहा है।


अमलेंदु उपाध्याय हस्तक्षेप किन हालात में निकाल रहे हैं,हम बार बार इसका खुलासा करके अपील करते करते हार गये हैं।अब हालात है कि सर्वर रिनिउ करने की भी हालत में हम नहीं हैं।


मई में हमारी नौकरी खत्म हैं तो हम भी नहीं बचेंगे और न हमारा हस्तक्षेप जारी रहेगा।कमसकम जो हमारे साथ हैं या होने का जिन्हें अहसास हैं,वे हाथ नहीं बढ़ायेंगे तो वैकल्पिक मीडिया इसतरह चलनेवाला नहीं है।


बेहतर है कि जो सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय लोग हैं,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्षधर लोग हैं और असहिष्णुता के प्रकतिरोध करने का दावा करते हैं,वे जनसुनवाई के हमारे बचे खुचे मंचों को बचाने की कोशिश करें।


वरना खून की नदियों में तैरते हुए हम चीख भी नहीं सकेंगे।आप नहीं जानते कि हस्तक्षेप में जो सामग्री हमारे पास देस विदेश लगातार आ रही है,वह हम लगा नहीं पा रहे हैं।जितना लगा पा रहे हैं,बिना संसाधन वह भी आगे लगा पाना असंभव है।



इन विषम परिस्हथितियों में हमें यह बताते हुए खुशी हो रही है कि हमारे परम आदरणीय मित्र की महाड़ आंदोलन पर शोध पुस्तक अंग्रेजी में Mahad: The making of the First Dalit Revolt आ गयी है।


इसपर विद्वतजनों ने जो मंतव्य किये हैं,वह हम पहले ही साझा कर चुके हैं और एकबार फिर साझा कर रहे हैं।


दलित आंदोलन और बाबासाहेब डा.बीआर अंबेडकर के मिशन और उनके विचारों को समझने के लिए इस अनिवार्य पुस्तक को इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने इंट्रोड्युस किया है।


दो तीन दिन में ग्लोबीकरण,निजीकरण और उदारीकरण के एफडाआई राज के प्रसंग और संदर्भ में आरक्षण और कोटा के मौजूदा हाल हकीकत और उसके बहाने जाति व्यवस्था को मजबूत करने की साजिश की परत दर परत और जाति युद्ध में उलझाकर बहुजन समाज के सात ही देश के बंटवारे पर आनंद तेलतुंबड़े  का विस्तृत शोध निबंध मशहूर मेइन स्ट्रीम  पत्रिका के वार्षिक अंक में आ रहा है,जिसे पढ़े बिना हम मौजूदा परिदृश्य को सही सही पहचान नहीं सकते।    


इसी बीच देश निर्मोही ने सूचना दी है कि आधार प्रकाशन द्वारा युवा रचनाकार रुबीना सैफ़ी के संपादन में शीघ्र प्रकाश्य प्रख्यात चिंतक आनंद तेलतुंबड़े की वैचारिक पुस्तक 'जनवादी समाज और जाति का उन्मूलन' का भी प्रकाशन हो रहा है।


हम इन तमाम मुद्दों और मसलों को लेकर बदलाव की जमीन बानान अपना सबसे बड़ा काम मानते हैं लेकिन यह सब करने के लिए हमारा जिंदा रहना भी जरुरी है।कोलकाता में पार्कस्ट्रीट के अलावा जादवपुर और सोदपुर में ही चौबीसों घंटा नेट की आई फाई व्यवस्था है और इसी वजह से हम रोज रोज डेढ़ दोघंटे के प्रवचन में सारे प्रसंग संदर्ब खोलते हुए सारी अकादमिक और शोध सामग्री आप तक पहंचा पा रहे हैं।सोदपुर छोड़ने के बाद बार बार नेट बाधित हो तो हम कमसकम यह भी नहीं कर सकते।


हस्तक्षेप और दूसरे हमारे मंच बंद हो तो हमारा लिखा आप तक कुछ भी नहीं पहुंच सकता।


आनंद तेलतुंबड़े और दूसरे विद्वतजनों के जनपक्षधर विचारों के मार्फत  हम देस दुनिया और जनता के जरुरी मुद्दों पर लागातर संवाद और हस्तक्षेप के साथ जनसनवाई कर रहे हैं,वह भी संभव नहीं है।


अभी आप इस बारे में न सोचे तो प्रतिरोध और बदलाव के बारे में बातचीत भी बंद होने वाली है।क्योकि दिल्ली के मुख्यमंत्री तक की महिषासुर गति है तो हम लोग तो गाजर मूली हैं,जब मर्जी तब पानसरे दाभोलकर कलबुर्गी की तरह कलम कर दिये जायेंगे क्योंकि अब यह देश नाथूराम गोडसे का है।

Mahad: The making of the First Dalit Revolt


PRAISE FOR MAHAD

"Based on a rich array of primary sources in both Marathi and English, this fascinating book is the first substantial analysis of a major landmark in modern Indian history: the Mahad Satyagraha of 1927. At once instructive and inspirational, this book shall be indispensable for all students and scholars of social and political history."

-RAMACHANDRA GUHA, a noted historian, writer of several books and columnist for The Telegraph and Hindustan Times.


We were waiting for this book to understand Dalit Movement as well as Babasaheb Dr BR Ambedkar.We would discussing it as soon as we read the fine print!The book will be made available for on line buy within a couple of days at usual sites like Flipkart and Amazon.


I am happy that Dr.Anand Teltumbde wrote:

Dear Palash,


I am happy to inform you that my new book - Mahad: The making of the First Dalit Revolt is eventually out. The publisher (Aakar Books) had given me some 10 copies to be delivered to a book shop at Hyderabad as I was attending the CLC conference at Guntur. All the copies were sold out as I landed in Guntur before reaching even the venue.


It may be good to inform our people about the book. I am attaching herewith the blurb on the back cover as Praise for Mahad and something About the book which appears on the flap, which might give them some idea about the contents.


The book will be made available for on line buy within a couple of days at usual sites like Flipkart and Amazon.


PRAISE FOR MAHAD

"Based on a rich array of primary sources in both Marathi and English, this fascinating book is the first substantial analysis of a major landmark in modern Indian history: the Mahad Satyagraha of 1927. At once instructive and inspirational, this book shall be indispensable for all students and scholars of social and political history."

-RAMACHANDRA GUHA, a noted historian, writer of several books and columnist for The Telegraph and Hindustan Times.

"Anand Teltumbde is a scholar who's work we must pay close attention to. This important book, a detailed study of the Mahad Satyagraha gives us a perspective that has been ignored in the narrative of what is commonly accepted as our "official" history. It ought to become compulsory reading in every history classroom."

-ARUNDHATI ROY, a political activist, Man Booker Prize winner, and several other works.

"This book makes an original contribution to our understanding of Dr Ambedkar and the Ambedkarites' struggle for emancipation. It acquires special significance for two reasons: first, it offers enabling critique of Gandhi and second, it provides us the most comprehensive account of the participation of common masses in Mahad Satyagraha as the first dalit revolt."   

- GOPAL GURU, noted scholar of Dalit movement and professor Centre for Political Studies, JNU, New Delhi

After Anand Teltumbde's fine-grained history of what happened in Mahad in 1927, there can be no excuse for our collective amnesia. The first civil rights struggle in the modern world finally gets the attention it deserves.

-Meera Nanda, writer, historian, philosopher of science and creative interpreter of Ambedkar.  

"This fascinating book by the noted Ambedkar scholar authentically presents Mahad to the global readership. His reflective analysis helps us take an introspective look at the past and present of dalit political engagement and understand the contemporary Dalit movement. It is a must read by all interested in Ambedkar, Dalits, and civil right movement.

-S. V. RAJADURAI, noted scholar, writer of several books, translator and civil rights activist

"This book coming from a noted scholar known for his social commitment and academic rigour becomes a must read for not only academics and scholars, but also for activists and common readers, who will find it extremely insightful and informative with its exhaustive notes and references."

- CHAMAN LAL, noted scholar on Bhagatsingh and former Professor, Jawaharlal Nehru University, New Delhi



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