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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Thursday, December 24, 2015

क्रिकेट मूर्खों का खेल अवश्य है, लेकिन सभी क्रिकेट खिलाड़ी मूर्ख नहीं होते


क्रिकेट मूर्खों का खेल अवश्य है , लेकिन सभी क्रिकेट खिलाड़ी मूर्ख नहीं होते , यह मेरे पूर्व परिचित भागवत झा आज़ाद के सुपुत्र कीर्ति झा ने सिद्ध कर दिखाया । भागवत झा आज़ाद उन दिनों बिहार के मुख्य मंत्री थे और उनके आत्मज कीर्ति राजनीति में दाखिल होने जा रहे थे । मेरा मानना था , आज भी है , कि क्रिकेट खेलने और देखने वाले छिछोरे , कम अक़्ल और अंग्रेजों के मानसिक गुलाम होते हैं । अतः उन्हें राज काज से दूर रखना चाहिए । मैं पटना में नव भारत टाइम्स का सब एडिटर था । मैंने अपने पिता के मित्र और बिहार के वरिष्ठ मंत्री प्रो . सिद्धेश्वर प्रसाद को बोला - मैं अज़दवा को किलसाना चाहता हूँ , ताकि वह मुझे मारने लपके और मैं बवाल काटूं । प्रोफेसर जी हंसे और मुझे अपनी कार में बिठा कर मुख्य मंत्री आवास या दफ्तर कहीं ले गए । हंसता खिलखिलाता बिंदास सी एम् मैंने पहली बार देखा । मेरी ओर बेल का शर्बत बढ़ाते मुख्य मंत्री ने बताया कि किस तरह उन्होंने मंत्री पद ठुकरा दिया था , jb indiraa गांधी ने उनके जूनियर को केबिनेट और उन्हें राज्य मंत्री बनाया । फिर एक बार उन्होंने राजीव गांधी को ललकारा - संभाल तेरी घोड़ी , मैंने नौकरी छोड़ी । ,,,, " मैं अपना एजेंडा भूल गया । जिया हो बिहार में लाला हो

क्रिकेट मूर्खों का खेल अवश्य है, लेकिन सभी क्रिकेट खिलाड़ी मूर्ख नहीं होते, यह मेरे पूर्व परिचित…
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