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Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Saturday, February 27, 2016

मैं लाता हूँ अपनी गीता तुम अपना क़ुरान निकालो ..रददी के यहि पुलिंदे पूरे गाँव में आग लगा सकते है पूरे शहर को जला सकते है पूरे मुल्क में दंगा और फसाद करा सकते है लेकिन घर का चूल्हा नहीं जला सकते चावल नहीं पका सकते क्योंकि इनका ईजाद भूख मिटाने के लिए नहीं बल्कि घरों को फूंकने के लिए ही हुआ है


   
Vijay Chauhan
February 27 at 12:55pm
 
मैं लाता हूँ अपनी गीता 
तुम अपना क़ुरान निकालो 
दोनों को आग लगाकर 
जलालो 
उसपर एक पतीला 
चावल का चढ़ालो 
देख लेना 
तुम्हारे चावल 
पकने से पहले ही 
आग बुझ जायेगी 
लेकिन 
यह न समझो 
इनमें ताक़त नहीं 
रददी के यहि पुलिंदे 
पूरे गाँव में 
आग लगा सकते है 
पूरे शहर को जला सकते है 
पूरे मुल्क में 
दंगा और फसाद 
करा सकते है 
लेकिन 
घर का चूल्हा 
नहीं जला सकते 
चावल नहीं पका सकते 
क्योंकि इनका ईजाद 
भूख मिटाने के लिए नहीं 
बल्कि 
घरों को फूंकने के लिए 
ही हुआ है 
रद्दी के यही पुलिंदे 
गरीब का पेट 
नहीं भर सकते 
लेकिन 
दंगाइयों को नेता 
जरूर बना देते हैं 
रद्दी के यही पुलिंदे 
एक वक्त का 
चूल्हा नहीं जला सकते 
लेकिन अमीरों को 
सत्ता तक 
जरूर पहुंचा सकते हैं 
एक गरीब के लिए 
गीता और कुरान 
बंदरिया के 
मरे हुए बच्चे के समान है 
जो बंदरिया उसे 
सीने से चिपकाये रहती है 
नेताओ और मठाधीसों के लिए 
मुल्लाओं और न्यायाधीशों के 
लिए 
रद्दी के यही पुलिंदे 
जीवंत होते है 
उन्हें ऊर्जा देते हैं 
अमन और शांति के लिए 
परिवर्तन और क्रांति के लिए 
रद्दी के इन पुलिंदों को 
आग में झोंकना ही होगा 
आग में झोंकना ही होगा 
प्रेम
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