Monday, 27 February 2012 10:29 |
अरविंद कुमार अपने यहां विमानन कंपनियों की बदहाल माली हालत के बचाव में तर्क दिया जा रहा है कि विमानन कारोबार पूरी दुनिया में घाटे का सौदा है, जबकि हकीकत यह है कि मंदी के बावजूद विमानन उद्योग ने वैश्विक स्तर पर उम्दा प्रदर्शन किया है। क्वांटस, लुफ्थहांसा, एयर अरेबिया, सिंगापुर एअरलाइंस, साउथवेस्ट और एमिरेट्स जैसी बड़ी विमानन कंपनियां फायदे में हैं। दरअसल, भारतीय विमानन कंपनियों के बढ़ते घाटे का एक कारण बेहद प्रतिस्पर्द्धा भी है। बाकी देशों में एक या दो विमानन कंपनियों का आसमान पर अधिकार है वहीं भारतीय आकाश में छह विमानन कंपनियों के बीच कड़ा मुकाबला है। कोई भी कंपनी अपनी बाजार-हिस्सेदारी खोने के लिए तैयार नहीं है और इसी वजह से ग्राहकों को लुभाने के लिए लागत से भी कम कीमत पर हवाई यात्रा की पेशकश की जाती है। पिछले साल विमानन र्इंधन की कीमतों में चालीस फीसद का इजाफा हुआ है, जबकि इसी अवधि में हवाई किरायों में दस फीसद की गिरावट आई है। सस्ते किरायों की जंग का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश के कई हवाई मार्गों पर विमान-किराए प्रथम श्रेणी के रेल भाडेÞ और पांचसितारा बसों के किरायों से भी कम हैं। कर्ज के दलदल में फंसने पर किंगफिशर एअरलाइंस ने सहायता के लिए सरकार के सामने हाथ फैला रखे हैं, मगर जनता के पैसे से निजी कंपनी को राहत देने की कोशिशों का जोरदार विरोध हो रहा है। दरअसल, निजी कंपनी को राहत पैकेज देने से अर्थव्यवस्था में गलत संदेश जा सकता है और कई कंपनियां 'मानसिक आघात' की ओर तरफ बढ़ सकती हैं। 'मानसिक आघात' पूंजीवादी कारोबार का सिद्धांत है जिसमें कंपनियां बेहतर दिनों में किसी भी तरह के सरकारी नियंत्रण का विरोध करते हुए मुनाफा कमाती हैं, लेकिन संकट में फंसने पर सरकार की शरण में जाती हैं। 2008 की आर्थिक मंदी और उसके बाद दुनिया भर में करदाताओं के पैसे से शुरू हुआ राहत पैकेजों का सिलसिला इसी सिद्धांत की व्यावहारिकता पर मोहर लगाता है। जर्जर आर्थिक हालत वाली भारतीय विमानन कंपनियों के पास देश में बढ़ रही मांग को पूरा करने के संसाधन नहीं हैं। 2011 में भारतीय विमानन कंपनियों की क्षमता में तीन फीसद का इजाफा हुआ है वहीं इस दरम्यान यात्रियों की संख्या में सत्रह फीसद की बढ़ोतरी हुई है। भोपाल, कोयंबटूर, आगरा, बरेली, पटना और गुवाहाटी जैसे दूसरे और तीसरे दर्जे के शहरों में अब भी विमानन सेवाओं का पूरी तरह विस्तार नहीं हो पाया है और भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ने के साथ ही विमानन सेवाओं की मांग भी बढ़ती जाएगी। चीन में जहां इस समय 1,100 यात्री विमान हैं वहीं भारत में महज सात सौ। भारतीय विमानन उद्योग की सफलतम उड़ान के लिए सरकार को कई मोर्चों पर काम करने की जरूरत है। सबसे बडेÞ सुधार के रूप में विमानन उद्योग पर लागू कर प्रणाली को तार्किक बनाए जाने की जरूरत है। विमानन र्इंधन पर लगा भारी-भरकम शुल्क, हवाई अड््डा विकास शुल्क, किरायों पर ऊंचा कर और विदेशी हवाई अड्डों से र्इंधन भरवाने पर लगी रोक जैसे नियमों में समयानुकूल बदलाव करने की जरूरत है। देश में हवाई यात्रा की बढ़ती मांग के साथ तालमेल बिठा कर आधारभूत ढांचे मसलन हवाई अड््डों की क्षमता में विस्तार, विमानों की खरीद में सबसिडी, देश के प्रमुख हवाई अड््डों पर विमान-मरम्मत सुविधाओं का विस्तार, वायुमार्ग परिवहन नियंत्रण प्रणाली में सुधार और छोटे शहरों में विमानन सेवाओं के विस्तार पर काम करना होगा। विमानन उद्योग के सही संचालन के लिए देश में एक स्वतंत्र विनियामक बनाए जाने की जरूरत है। यह विनियामक इस क्षेत्र के विकास की योजनाएं बनाने के साथ ही विमानन कंपनियों की गलत नीतियों पर भी नजर रख सकेगा। |
This Blog is all about Black Untouchables,Indigenous, Aboriginal People worldwide, Refugees, Persecuted nationalities, Minorities and golbal RESISTANCE. The style is autobiographical full of Experiences with Academic Indepth Investigation. It is all against Brahminical Zionist White Postmodern Galaxy MANUSMRITI APARTEID order, ILLUMINITY worldwide and HEGEMONIES Worldwide to ensure LIBERATION of our Peoeple Enslaved and Persecuted, Displaced and Kiled.
Monday, February 27, 2012
परवाज का संकट
परवाज का संकट
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment