स्वस्ती श्री: सपनों का उत्तराखंड और शौचालय
लेखक : नैनीताल समाचार :: :: वर्ष :: :February 27, 2012 पर प्रकाशित
गरुड़ बाजार में शौचालय की व्यवस्था की जाये
http://www.nainitalsamachar.in/grivance-garur-problems-and-dream-uttarakhand/
स्वस्ती श्री: सपनों का उत्तराखंड और शौचालय
लेखक : नैनीताल समाचार :: :: वर्ष :: :February 27, 2012 पर प्रकाशित
गरुड़ बाजार में शौचालय की व्यवस्था की जाये
कौसानी गरुड़ मार्ग में वन संरक्षण अधिनियम की अनदेखी कर अनगिनत चीड़ के पेड़ ठेकेदार द्वारा काटे जा रहे हैं, जो ठीक नही है। सरकार एक तरफ लोगों र्को इंधन के लिये भी पेड़ काटने को मना करती है वहीं दूसरी तरफ खुद पेड़ को काटने को कह रही है।
उन अनगित चीड़ के गिल्टों को देखकर जनपद चमोली में गौरा देवी द्वारा चलाये गये चिपको आन्दोलन की याद आ गई। चिपको आन्दोलन ने यह साबित किया था कि पर्यावरण को गाँव के लोग ही बचा कर रख सकते हैं। मेरा सरकार से अनुरोध है कि इन पेड़ों को काटने से रोका जाये।
गरुड़ बाजार में शौचालय न होने से यात्रियों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। कभी-कभी तो गाड़ी वाले यात्री के सामान को लेकर आगे चले जाते हैं और यात्री पीछे ही रह जाता है, क्योंकि यात्रियों के शौच कर नदी से वापस आने तक गाड़ी चली जाती है । यात्री ठगा सा महसूस करता है। मेरा प्रशासन से अनुरोध है कि जल्दी से जल्दी गरुड़ बाजार में शौचालय की व्यवस्था की जाये, ताकि यात्रियों एवं पर्यटकों को कोई परेशानी न हो।
मदन राम आर्य, अल्मोड़ा
मेरे स्वप्नों का उत्तराखंड क्या इसी अराजकता की भेंट चढ़ जायेगा?
अल्मोड़ा जनपद के अन्तर्गत कैड़ारो घाटी कृषि के लिये अति उपजाऊ है। जनपद बागेश्वर की गेवाड़ घाटी भी धान-गेहूँ के लिये काफी उपजाऊ है, जहाँ से लोगों को गुजारे लायक अनाज प्राप्त हो जाता है। घाटी के लोग अपनी जरूरत के लिये सब्जी, आलू, प्याज, लहसुन, धनिया व बरसाती सब्जी पैदा करते थे। उन्हें बाजार से अनाज तथा सब्जी लेने की कोई आवश्यकता नहीं थी। अपनी जरूरत पूरी कर बचे हुए उत्पाद को मार्केट में बेचकर कृषक कुछ आमदनी भी कर लेते थे।
अब राज्य बनने के बाद की अराजकता के फलस्वरूप दिन-प्रतिदिन कृषि उत्पादन में कमी आ रही है। किसान फसल तो बो रहा है, किन्तु आवारा पशु व जंगली जानवर फसल को भारी नुकसान पहुँचा रहे हैं। पूर्व में गाँव में एकता होती थी व फसल की रक्षा के लिये चौकीदार रखे जाते थे। वोट की राजनीति से वह एकता नष्ट हो गई है। फलस्वरूप किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। पहले आवारा पशुओं के लिये जिला परिषद के काजी हाऊस बने थे। गाय को माँ व बैल को पिता का दर्जा देने वाले धर्म के ठेकेदारों ने बुढ़ापे में दूध न दे सकने व हल न चला सकने के कारण इन पशुओं को आवारा छोड़ दिया है। उत्तराखंड में 90 प्रतिशत से अधिक हिन्दू हैं। फिर इन पशुओं को आवारा छोड़ने का क्या औचित्य है ? सुनने में तो आता है कि प्रत्येक ग्राम सभा में एक ग्राम प्रहरी नियुक्त है, जिसे शासन द्वारा वेतन भी मिलता है।
बिन्ता सेरा का एक बड़ा भाग बिन्ता सेरा व चौथाई भाग नानसेरा के नाम से जाना जाता है। लगभग 50 एकड़ के करीब इस सेरे से इस साल आवारा पशुओं के कारण लगभग दो हजार क्विंटल धान का नुकसान किसानों को उठाना पड़ा। अभी वे गेहूँ की फसल बोने से वंचित हैं। पूर्व में ग्राम सभा बिन्ता की ओर से एक फसली चौकीदार इस नानसेरी के लिये रखा जाता था। उसे प्रत्येक कृषक परिवार अनाज या रुपये देते थे। इस सेरे में पाँच ग्राम सभाओं की भूमि है। आज के हालात में पाँच ग्राम प्रहरियों व पाँच ग्राम प्रधानों का यह नैतिक कर्तव्य था कि आवारा पशुओं व जंगली जानवरों से किसानों को राहत दिलाई जाती या क्षेत्र पंचायत के माध्यम से प्रदेश सरकार से किसानों को फसल का मुआवजा दिलाया जाता। भविष्य के लिये इस भूमि का कोई लाभकारी उपयोग, जैसे चाय बागान या कोई उद्योग लगाना ही एक समाधान लगता है। कौन करेगा यह सब काम ? इस कैड़ारो घाटी के सुनहरे भविष्य के लिये ही मैं 79 से उत्तराखंड राज्य आंदोलन में शामिल हुआ। मगर अब मैं 88 साल का हूँ। मेरे स्वप्नों का उत्तराखंड क्या इसी अराजकता की भेंट चढ़ जायेगा ? इस तरह तो शेष उपजाऊ भूमि भी एक दिन बंजर पड़ जायेगी।
हयात सिंह कैड़ा,बिनता, जिला अल्मोड़ा
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