मुसलमानों की नई दावेदारी से कांग्रेस परेशान
सत्ता और संगठन में मुस्लिमों को हिस्सेदारी नहीं मिलने से नाराज होकर पूर्व केन्द्रीय मंत्री असलम शेर खां ने नई पार्टी बना कर गुटबाजी को हवा दी तो दूसरी तरफ वक्फ बोर्ड के चेयरमैन गुफराने आजम ने कांग्रेसियों को चिंदी कह कर बखेड़ा खड़ा कर दिया है। |
रमेश कुमार ''रिपु''
मध्यप्रदेश में तेरह फीसदी अल्पसंख्यक किसी भी पार्टी की राजनीति के लिए ग्लूकाॅन डी हैं। इसीलिए भाजपा और कांग्रेस, सियासी सम्मोहन का जाल फेंकने सें नहीं हिचकते। कई कांग्रेसी नेताओं का मानना है कि अल्पसंख्यक, कांग्रेस का भरोसा हैं। साथ है और वोट बैंक भी। वो कभी भी अलग नहीं हो सकते। लेकिन अल्पसंख्यकों ने कांग्रेस के भरोसे को, यूपी के चुनाव में बुरी तरह तोड़ा। मध्यप्रदेश का मुस्लिम वोटर और नेता यू. पी के तरह नहीं हैं। लेकिन एक मामले में दोनों एक हैं। जैसे यूपी के मुस्लिम नेता सत्ता और संगठन में हिस्सेदारी खुलकर मांगते हैं और अब यही राग मध्यप्रदेश के मुस्लिम नेता भी अलापने लगे हैं। जबकि मध्यप्रदेश में अभी तक ऐसा नहीं था। इसकी शुरूआत पूर्व केन्द्रीय मंत्री असलम शेर खां ने की। वो कहते हैं, ''समय के साथ अब सत्ता और संगठन में मुस्लिम नेताओं की हिस्सेदारी का कोटा तय होना चाहिए। आखिर कब तक मुस्लिमों को केवल उपयोग किया जाता रहेगा''। यह सवाल पहले भी कई बार अल्पपसंख्यक नेताओं ने उठाया है। सत्ता और संगठन में जब जब हिस्सेदारी की बात आई है तो अल्पसंख्यक वर्ग के नेताओं को उम्मीद से बहुत कम जगह मिली। ये प्रदेश की 85 विधान सभा और 9 संसदीय क्षेत्र पर दखल देते हैं। अल्पसंख्यक नेता दमदारी से इस बात को अब कहने लगे हैं। मुस्लिम वोट बैंक को ध्यान में रखकर भाजपा ने नजमा हेपतुल्ला को राज्यसभा भेजा। उन्हें राज्यसभा में भेजने के बाद अपने आप भाजपा में अल्पसंख्यक कोटा बन गया। भाजपा को शिकस्त देने के लिए दिग्विजय सिंह ने भी अल्पसंख्यक कार्ड खेला था, ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी इकबाल का नाम आगे करके, लेकिन कांग्रेस ने ब्राम्हण लीडर को बढ़ावा देने के ध्येय से सत्यव्रत चतुर्वेदी को राज्य सभा भेजा। कंाग्रेस हाई कमान दिग्विजय सिंह की बातों को तरजीह देते हुए अजीज कुरैशी को राज्यपाल बनाकर भाजपा के बराबरी पर आकर खड़ी हो गई। इस सब के बावजूद कांग्रेस के अल्पसंख्यक नेता खुश नहीं हैं। कंाग्रेस में पूर्व केन्द्रीय मंत्री असलम शेर ने एक बहस छेड़ दी है। आखिर कब तक अल्पसंख्यक, कांग्रेस के साथ वफादारी निभायेगा। कंाग्रेस तो उम्मीद करती है कि अल्पसंख्यक उसके साथ वफादारी करें, लेकिन सत्ता और संगठन में जब हिस्सेदारी की बात आती है तो कांग्रेस उन्हें उनका हक ईमानदारी से नहीं देती। कंाग्रेस से वफादारी का सिला न मिलने की बात मुस्लिम बिरादरी में हमेशा से उठती आई है। लेकिन इस बार बिरादरी के नेताओं ने कंाग्रेस को कोसने की बजाय अपनी ही बिरादरी की काबिलियत पर सवाल उठाए हैं।
असलम कहते हैं, ''मायनरटीज नाकाबिल हो गई हैं। कम्युनिटी में लीडरशिप नहीं है। ऐसे मंे चुनावी टिकट कैसे मिलेगी''। कंाग्रेस नेताओं पर भेद भाव का आरोप लगाने वाली मायनरटीज में पहली पंक्ति के नेताओं के बाद काबिल चेहरों में कमी आई है। कई मुस्लिम नेताओं को भी पहली बार लगा कि कांग्रेस उनके साथ इंसाफ नहीं कर रही है। वहीं कुछ मुस्लिम नेता असलम की बातों से सहमत नहीं है। लेकिन दबी जुबान से यह स्वीकारते हैं कि प्रदेश कांग्रेस कमेटी से लेकर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी, जिला स्तर से ब्लाक स्तर तक देखा जाए तो मुस्लिम नेताओं को उम्मीद से कम तरजीह दी गई है।
असलम शेर की बातों को लेकर कई विधायकों ने नाराजगी जाहिर की है। जैसा कि विधायक आरिफ अकील कहते हैं, ''बिरादरी को नाकाबिल बताने वाले असलम आखिर केन्द्रीय मंत्री कैसे बन गए? मुस्लिमों का खैरख्वाह बनने की चाहत में असलम शेर खान, दिग्विजय सिंह पर भी कटाक्ष करने से हिचके नहीं।'' यूपी में कंाग्रेस इस पुश्तैनी वर्ग का भरोसा हासिल नहीं कर सकी और सपा को इसका फायदा मिला। इसके लिए कांग्रेस के बड़े नेता कहीं न कहीं दोषी हैं। उन्होंनेे मुस्लिम वर्ग को अपना वोट बैक तो माना,लेकिन उनके लिए कुछ करने की दिशा में हाथ नहीं बढ़ाया''। कांग्रेस में जितने भी बड़े मुस्लिम नेता हैं उनकी पूछ परख केवल चुनाव तक ही रहती है। इसके बाद कोई उनका नाम तक नहीं लेता। पूर्व सांसद एवं वक्फ बोर्ड के चेयरमैन गुफराने आजम की पार्टी में पूछ परख कम हो गई। गुफराने आजम के संबंध में कहा जाता है कि भाजपा के दम पर ये वक्फ बोर्ड के चेयरमैन बने हैं। प्रदेश सरकार ने इनके खिलाफ करोड़ों की खनिज रायल्टी की नोटिस भेज कर इन्हें इनकी हैसियत का भान करा दिया है कि जिस तालाब में रहते हैं, वहां के मगर मच्छ से बैर लेना ठीक नहीं है। पिछले दिनों भाजपा प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा के साथ इनकी घंटो बंद कमरे में वार्ता, चर्चा का केन्द्र बना। जानकारों का कहना था कि गुफराने आजम ने भाजपा में आने के लिए प्रभात से मुलाकात की। लेकिन उनकी शर्तो को प्रभात नहीं माने। उनका कहना था कि भाजपा में आना है तो आइये, लेकिन सशर्त नहीं। बात आगे नहीं बढ़ी। फिर भी गुफराने आजम द्वारा कांग्रेस नेताओं को चिंदी शब्द का इस्तेमाल करने से कइयों ने आपत्ति जाहिर की है। भोपाल के उत्तरी क्षेत्र के विधायक आरिफ अकील कहते हैं, ''गुफराने आजम का दिमागी संतुलन बिगड़ गया है। सच्चाई तो यह है कि गुफरान ने ही भाजपा से चिंदी ले रखी है। फिर वो दूसरों पर उंगली क्यों उठाते हैं।" वहीं असलम द्वारा अलग से मोर्चा बनाये जाने पर आरिफ चुटकी लेते हुए कहते हैं, "मोर्चा गठित करने वाले नेता के पास लोग ही नहीं है तो, फिर ऐसे मोर्चे के गठन करने क्या मतलब। सही तो यह है कि जब भी इन नेताओं को पद की जरूरत होती है, तब ये कांग्रेस पार्टी को ब्लेकमेल करते हैं''।
गुफराने आजम कांग्रेस को ही भला बुरा कहकर पार्टी हाईकमान पर इस बात का दबाव बना रहे हैं कि उनका वजन असलम शेर से अधिक है। वहीं कांग्रेस के अंदर इस बात की चर्चा जोरों पर है कि गुुफरान कहीं भाजपा के एजेंडे पर तो काम नहीं कर रहे हैं। कंाग्रेस का चोला धारणकर गुफरान इन दिनों सीधे कंाग्रेस पर हमला कर रहे हैं। शिवराज सरकार की तारीफें जिस विश्वास के साथ कर रहे हैं, उससे इस शंका को बल मिल रहा है कि कंागे्रेस के प्रति वफादार रहे नेता अब कांग्रेस की लाचारी का फायदा उठाने की फिराक में हैं। लेकिन कंाग्रेस हाईकमान ऐसे नेताआंे के खिलाफ कार्रवाई करने में हिचक रहा है। सवाल वोट बैंक का है। दरअसल सत्ता और संगठन में हिस्सेदारी की मांग को लेकर मुस्लिम नेताओं में ही एका नहीं है। सभी एक दूसरे के बयान की खाल निकालने में लगे हैं। ताकि कंाग्रेस में अपनी हैसियत बढ़ा सकें। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के विशेष आंमंत्रित सदस्य सईद अहमद सुरूर कहते हैं, ''गुफराने आजम ने यदि चिंदी शब्द का इस्तेमाल किया है तो उन्होंने सोनिया गांधी, पीसीसी और स्वयं अपना अपमान किया है। वह वर्तमान में कांग्रेस में दबाव की राजनीति कर रहे है। उससे कोई समस्या का हल नहीं होने वाला''।
गौरतलब है कि असलम शेर खान ने कांग्रेस से अलग होकर अपना नया दल बना लिया। दल का नाम है मध्यप्रदेश कांग्रेस जनसंघर्ष समिति। उन्होंने यह दल अल्पसंख्यकों को लुभाने के लिए बनाया है। असलम कहते हैं, ''हमारा दल कांग्रेस को मजबूती देगा। हम एक साथ भाजपा को कड़ी टक्कर देंगे। हमारी कोशिश है कांग्रेस के परंपरागत वोट को वापस लाना''। प्रदेश कंाग्रेस के महामंत्री रज्जी जाॅन कहते है, ''असलम नया मोर्चा बनाकर क्या कांग्रेस के समानांतर एक नई कांग्रेस चलाना चाहते हैं? यह उन्हें स्पष्ट करना होगा। वैसे भी कांग्रेस में मोर्चा संगठन और विभाग प्रकोष्ठ बनाए गए है। बावजूद प्रदेश समन्वय समिति के सदस्य द्वारा स्वयंभू संगठन खड़ा करने पर मायने तलाशे जाएंगे। जबकि किसी नए संगठन का सृजन पीसीसी की अनुमति के बाद ही संभव है। मुझे लगता है असलम ने केवल ओहदा हासिल करने के लिए ही ऐसा किया है''।
प्रदेश कांग्रेस प्रभारी बी.के हरिप्रसाद ने प्रदेश कांगे्रस की समन्वय समिति के सदस्य असलम शेर खान के इस रवैये को पार्टी गाइड लाइन के विरूद्ध ठहराते हुए कहा, ''कांग्रेस के अंदर किसी भी व्यक्ति को मोर्चा गठित करने का कोई अधिकार नहीं है। और ऐसे किसी भी मोर्चे से पार्टी का कोई लेना देना नहीं है''। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कांतिलाल भूरिया कहते हैं, ''असलम के मोर्चा गठन करने से मै नहीं समझता कि कोई मुस्लिम नेता खुश होगा। उन्हें कांगे्रस पार्टी से निकालने की मांग जोर पकड़ने लगी है। पार्टी की गाइड लाइन का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ संगठन कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई करने में संकोच नहीं करेगा''। कांग्रेस के पूर्व सचिव अकबर बेग कहते हैं,'' मुद्दों को पार्टी में रहकर उठाया जा सकता है। असलम को कांग्रेस से बाहर किया जाए। उनका मोर्चा कांग्रेस को कमजोर करेगा, इसे तत्काल भंग कर दिया जाना चाहिए''।
आज बदली परिस्थितियों में अल्पसंख्यक वोट बैंक कांग्रेस के साथ कितना है, इसका कोई दावा नहीं कर सकता है। फिर भी कई बार अल्पसंख्यक वोटरों के दम पर कांग्रेस ने सत्ता हासिल की है। कई बार अल्पसंख्यक वोटरों की नाराजगी की वजह के चलते उसे नुकसान भी उठाना पड़ा है। इस बात को मुस्लिम नेता भी स्वीकारने लगे हैं कि कंाग्रेस के भीतर इस वर्ग और खास तौर मुस्लिम नेताओं की अहमियत कम हुई है। उनकी राजनीति का सूचकांक गिरा है। हालत यह है कि गिनती के मुस्लिम नेता हैं, फिर भी उनकी पहचान प्रदेश स्तर पर नही बन सकी। एक स्थान तक ही सिमट कर रह गए हैं। पार्टी के अंदर अपनी जमात का चेहरा नहीं बन सके। ऐसा कोई अल्पसंख्यक नेता नहीं है जो प्रदेश स्तर पर अल्पसंख्यक नेता के रूप में जाना जाए अथवा उसके कहने पर एक मुश्त कांग्रेस को वोट मिल सके। महिला नेत्रियों में भी यही स्थिति हैं। नूरी खान प्रदेश प्रतिनिधि बनी, लेकिन कोई दूसरी इस मुकाम से आगे नहीं बढ़ सकीं। रीवा मे सईदा बेगम, हफीजन खातून पार्षदी से आगे नहीं बढ़ सकी। जिला शहर कांग्रेस अध्यक्ष डाॅ.मुजीब खान थे, मेयर का टिकट नहीं मिलने पर बगावत कर बसपा में चले गये। चुनाव लड़ा और भाजपा को कांटे की टक्कर दी। उनकी बराबरी का कोई दूसरा मुस्लिम नेता रीवा संभाग में कांग्रेस अब तक नहीं तैयार कर सकी। सतना से सईद अहमद पिछले दो बार से विधान सभा का चुनाव हार रहे हैं। जाहिर है कि मुस्लिम नेताओं की पकड़ ढीली होती जा रही हैं। फिर भी संगठन में अल्पसंख्यक नेता उचित हिस्सेदारी नहीं मिलने से पार्टी नेतृत्व को जिस तरह कोसने लगे हैं, उससे पार्टी नेतृत्व भी हैरान है। प्रदेश में गिनती के अल्पसंख्यक नेता हैं, अजीज कुरैशी, असलम शेर खां, गुफराने आजम, अकबर बेग, हैदर खान, आरिफ मसूद, साजिद अली, जहीर अहमद, सईद अहमद, मो.सलीम आदि। मुस्लिम नेताओं का आरोप है कि कांग्रेस ने उनका केवल उपयोग किया है। देखा जाए तो अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में मध्यप्रदेश से राष्ट्रीय महामंत्री दिग्विजय ंिसंह, सचिव पंकज शर्मा, विजयालक्ष्मी साधो, अरूण यादव, और सुश्री मीनाक्षी नटराजन हैं। लेकिन एक भी पद अल्पसंख्यक नेताओं के खाते में नहीं आया। अखिल भारतीय कार्यकारिणी में भी उन्हें जगह नहीं मिली।
दरअसल गुफराने आजम, असलम शेर खां और अजीज कुरैशी जैसे नेता किसी न किसी पद में रहे हैं। आज जब ये हाशिये पर चले गए हैं तो कांग्रेस को कोस रहे हैं। जबकि इन्होंने अपना अस्तित्व स्वयं मिटाया है। दूसरी पंक्ति के नेताओ का आरोप है कि यह दिग्गज नेता कभी युवा वर्ग को लेकर साथ चले नहीं और उन्हें आगे आने का मौका नहीं दिया। इनके साथ इनकी ही बिरादरी के लोग खड़े नहीं हैं। ये जबरिया दबाव की राजनीति कर रहे हैं आज पद के लिए। कांग्रेस के एक नेता के अनुसार, '' आज मध्यप्रदेश में यूपी की तरह अल्पसंख्यक के पास कोई विकल्प नहीं है। इसलिए अल्पसंख्यक कंाग्रेस से अलग नहीं हो सकते''। वहीं दबी जुबान से यह भी कहा जा रहा है कि मुलायम सिंह यादव ने मध्यप्रदेश से चैधरी मुन्नवर सलीम को राज्य सभा भेजकर संकेत दे दिए हैं कि उन्होंने कम से कम मुस्लिम वोटरों के लिए विकल्प के रूप में सपा का दरवाजा खोल दिया है। मोहम्मद आजम खान भी विदिशा में खुल कर बोल चुके हैं कि यूपी के बाद एमपी ही सपा का टारगेट है। पूर्व विधान सभा अध्यक्ष भी कह चुके हैं कि सावधान, सपाई आ रहे हंै। जाहिर है, मुस्लिम नेताओं ने बहुत सोच समझ कर ही आवाज उठाई है कि कांग्रेस उन्हें सत्ता और संगठन में उनका कोटा तय करे अन्यथा उनके लिए मौलाना मुलायम झोली लिए खड़े हैं।
गुफराने-आजम |
इनकी पहचान खिलाड़ी के रूप में अधिक है। राजनीति में आये, सांसद बने, लेकिन अभी तक अपने आप को मुस्लिम नेता के रूप में स्थापित नहीं कर पाये। आरोप और प्रत्यारोप में ज्यादा रूचि लेते हैं। वक्फ बोर्ड के चेयरमैन है, लेकिन भाजपा के रहमोकरम पर। इसी वजह से शिवराज सरकार की तारीफ करने से नहीं चूकते। |
आरिफ अकील | असलम शेर खान | अजीज कुरैशी | सईद अहमद |
भोपाल में उत्तरी विधान सभा क्षेत्र के विधायक हैं। जब तक सुरेश पचैरी प्रदेशाध्यक्ष रहे ,उनके घोर विरोधी रहे। विधान सभा में मुद्दा उठाते हैं। लेकिन गिनती के विधायक ही उनके साथ होते हैं। गुफराने आजम से इनकी नहीं जमती। गुफराने आजम कहते हैं, वक्फ की जमीन पर आरिफ नगर बसा दिया। जिससे एक मुश्त इनकी झोली में पचास हजार आ गये। | हाॅकी खिलाड़ी थे। राजनीति में कांग्रेस इन्हें लाई और कंाग्रेस की टिकट पर सांसद बने। बाद में भाजपा में चले गये। फिर कांग्रेस में लौटे। लेकिन ऐसी छवि नहीं बना सके कि उन्हें कांग्रेस के अल्पसंख्यक नेता के रूप में पहचान मिली हो। सांसद से अधिक खिलाड़ी के रूप में जाने जाते हैं। | ब्राम्हण विरोधी नेता के रूप में अजीज कुरैशी ने अपनी छाप बनाई। सुरेश पचैरी से इनकी कभी नहीं पटी। हमेशा सुरेश पचैरी विरोधी गुटों को एकजुट करने में लगे रहे। विपक्ष पर हमला करने से बचते रहे। पार्टी के नेताओ से विवाद इनका हमेशा रहा। पचैरी समर्थकों से अपनी सुरक्षा के लिए हाई कमान से कई बार गुहार भी लगाये। अब राज्यपाल है। | सतना जिले में राजनीति करते है। जहां ब्राम्हण और ठाकुरों का दबदबा है। पूर्व राज्यपाल गुलशेर अहमद के बेटे हैं। पिता की वजह से विधायक और मंत्री तो बने, लेकिन पिता की तरह पहचान नहंी बना सके। पिछले दो बार से चुनाव हार रहे हैं। अब सतना के ही लोग इन्हें भूलते जा रहे हैं। |
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