साहित्य अकादमी है या ब्राम्हण अकादमी
राजस्थान में हिंदी, राजस्थानी और ब्रज भाषा की तीन अकादमियों में ब्राह्मण अध्यक्ष हैं। इनमें से राजस्थानी अकादमी के अध्यक्ष श्याम महर्षि की एकमात्र योग्यता यही है और वह ब्राह्मण संगठनों का सक्रिय कार्यकर्ता है...
कुमार मयंक
राजस्थान में जहां आज 21वीं सदी में भी जातिवाद की जड़ें इतनी गहरी हैं कि दलित दूल्हों को घोड़ी पर नहीं बैठने दिया जाता. दलित महिलाओं से बदसलूकियों की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं.पूरे प्रदेश में जगह-जगह दलितों पर सवर्णों के दमन और आतंक की पुलिस-न्यायालय में शिकायतों के अंबार लगे हुए हैं और अशोक गहलोत की कांग्रेस सरकार का एक कथित ब्राह्मणवादी बुद्धिजीवी दलितों-पिछड़ों को बेईज्ज़त करने वाला बयान दे रहा है.
यह कथित बुद्धिजीवी कोई और नहीं, अपने आपको लेखक-पत्रकार और लोकतंत्र का समर्थक, सांप्रदायिकता-विरोध का पैरोकार कहने वाला राजस्थान साहित्य अकादमी का मनोनीत अध्यक्ष वेद व्यास है। प्रदेश में बहुत से लोग इस ब्राह्मण बुद्धिजीवी के काले कारनामों और इसकी जातिवादी कारगुजारियों से परिचित हैं, लेकिन अशोक गहलोत के स्वयंभू सलाहकार वेद व्यास ने रविवार, 13 मई, 2012 को दैनिक भास्कर को अपने साक्षात्कार में अपने असली जातिवादी एजेंडे और चेहरे को जगजाहिर कर दिया है।
अपने इंटरव्यू में वेद व्यास ने कहा है कि अपनी सवर्णवादी पीड़ा इन शब्दों में जाहिर की है, 'छोटी जातियां काफी आगे आ गई हैं और इस शक्ति संतुलन में सवर्ण जातियों का वर्चस्व कहीं दिखाई नहीं दे रहा है।' तो राजस्थान में साहित्य की सबसे बड़ी संस्था का अध्यक्ष इस बात से बुरी तरह मरे जा रहा है कि हाय, ये दलित-पिछड़े क्यों आगे आ रहे हैं, जिससे शक्ति संतुलन गड़बड़ा रहा है और सवर्णों की बुरी हालत हुई जा रही है।
क्या इस आदमी की मंशा मनुवादी ब्राह्मणवादी व्यवस्था लागू करने की नहीं दिखाई दे रही है इन शब्दों में? राजस्थान में हिंदी, राजस्थानी और ब्रज भाषा की तीन अकादमियों में ब्राह्मण अध्यक्ष हैं और तीनों ही घनघोर सवर्ण मानसिकता के हैं। इनमें से राजस्थानी अकादमी के अध्यक्ष श्याम महर्षि तो वेद व्यास के ही परम शिष्य, जिसकी एकमात्र योग्यता यही है और वह ब्राह्मण संगठनों का सक्रिय कार्यकर्ता है और चुनावों के दौरान भाजपा के ब्राह्मण उम्मीदवारों के भी पक्ष में प्रचार करता रहता है।
भास्कर को दिये इंटरव्यू में वेद व्यास ने एक सवाल के जवाब में जो कहा है, उसे हूबहू पढि़ये और इस आदमी की घृणित सवर्ण मानसिकता का अंदाज लगाइये।
'प्रश्न- सरकार में जातियों के हिसाब से पदस्थापन को आप किस रूप में देखते हैं?
वेद व्यास- ये नीति ग़लत है। नौकरशाही में आरक्षण और जातिवाद के दूरगामी परिणाम निकलेंगे। आप सुप्रीम कोर्ट की भी राय नहीं मान रहे हैं। इसके सामाजिक परिणाम डिजास्ट्रस हैं। हर चीज की एक सीमा होती है। आरक्षण को लगातार आगे बढ़ाना घातक है। इससे सामाजिक उपद्रव पैदा हो रहा है। समरसता नहीं बन रही। विग्रह पैदा हो रहा है।'
राजस्थान में ही नहीं पूरे देश में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के आरक्षित पदों का बैकलॉग कई सालों से भरा नहीं गया है। अकेले राजस्थान में ही क्लास वन अफसरों से ऊपर के 40 से 70 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं, उन खाली पदों पर नियुक्ति की बात तो दूर, सुप्रीम कोर्ट की आड़ में उच्च प्रशासनिक पदों पर दलित-पिछड़े-आदिवासी अधिकारियों की नियुक्ति को विध्वंसकारी मानने वाला एक आदमी कह रहा है कि इससे सामाजिक उपद्रव पैदा हो रहा है।
यह किस साहित्य की भाषा है? साफ तौर पर देखा जाए तो वेद व्यास का यह कथन उन लाखों गुर्जरों की मांग के विरुद्ध है जो 5 साल से आरक्षण की मांग करते हुए अपने नौजवानों को शहीद कर चुके हैं। यह बयान उन पिछड़ी जातियों के भी खिलाफ है जो विकास की धारा में पिछड़ने के कारण आरक्षण की मांग कर रहे हैं। क्या वेद व्यास यह बताने की कृपा करेंगे कि नौकरशाही में आरक्षण के कारण कितनी जगह सामाजिक उपद्रव पैदा हुआ और उसके क्या परिणाम निकले?
'समरसता' जैसा संघी शब्द इस्तेमाल करने वाले वेद व्यास का सामाजिक एजेंडा भी क्या संघ संप्रदाय की संघी मानसिकता जैसा ही है? निश्चय ही वेद व्यास संघ की मानसिकता वाली मनुवादी व्यवस्था को लागू करने की चाह रखते हैं, जिसमें दलित-पिछड़े-आदिवासी हों या अल्पसंख्यक, वे सब को सवर्णों में भी सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मणों के अधीन लाना चाहते हैं।
(कुमार मयंक - स्वतंत्र पत्रकार एवं चिन्तक है )
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