उत्तराखंड में प्रदूषण का व्यापक कारोबार
नई उद्योग नीति के विस्तार के बाद उन्नत प्राकृतिक स्थल को प्रदूषित करने के लिए उद्योगपतियों ने शासन-प्रशासन को भी अपने पक्ष में राजी कर लिया है, मुट्ठी भर टटपूंजियों का हित साधक बन शासन-प्रशासन शिद्दत से जनविरोधी कार्यवाहियों में जुटा है...
संजय रावत
उत्तराखण्ड के जल-जंगल-जमीन राजनीतिक पाटिर्यों और उद्योगपतियों के लिए ऐसी मुफीद जगह है जहां वे संविधान को पैरो तलें रौंदते हुए अपने जनविरोधी मंसूबों को आसानी से अमली जामा पहनाते चले आये हैं. ये दुर्भाग्य ही है कि - इनके अट्टाहस की गूंज अब तक न्यायपालिका के कानों तक नहीं पहुंच पायी है. सिर्फ मुनाफे की हवस से प्रेरित उद्योगपतियों ने शासन-प्रशासन को भी जन विरोधी नीतियों के लिए इस तरह तैयार किया है कि वे भी न्यायपालिका को, अपने चरित्र सा समझने लगे हैं.
इस बात का पुख्ता प्रमाण है जनपद नैनीताल की कालाढूंगी तहसील के नया गांव जुल्फकार में लगाये जाने वाले अति प्रदूषण जनित उद्योग जहां उद्योगपतियों के मुनाफे को केन्द्र में रखकर शासन-प्रशासन ने तमाम कायदे कानूनों को ताक में रख जन विरोधी होने का ऐलान कर दिया है.
नई उद्योग नीति और स्टोन क्रशर - बेरोजगारी और पलायन रोकने के नाम पर उद्यमियों को सीधा फायदा पहुंचाने की नीयत से बनायी गयी नीति को उत्तराखण्ड सरकार ने एकीकृत औद्योगिक प्रोत्साहन नीति नाम दिया है. इस नीति के तहत राज्य भर में 13 जिले चिन्हित किये गये, पर नीति नियंताओं और प्रशासनिक मिली भगत से तमाम उद्योग राज्य की उर्वरक भूमि तथा पर्यटन क्षेत्रों में ही स्थापित किये गये हैं जिसका जीवंत उदाहरण है सिडकुल पंतनगर, और सिडकुल हरिद्वार.
औद्योगिक सेवा क्षेत्र के चिन्हित उद्यमों के वर्गीकरण में सबसे पहले जो बात उल्लेखित की गयी वह यह कि हरी तथा नारंगी श्रेणी के अप्रदूषणकारी उद्योग ही लगाये जायेंगे. शासन द्वारा तय मानकों के आलोक में यह भी स्पष्ट दिखता है कि स्टोन क्रशर एक अति प्रदूषणकारी उद्यम है. जिसे उत्तराखण्ड शासन की अधिसूचना के तहत लाल श्रेणी के 40 उद्योगों में 29 वें स्थान पर रखा गया है.
औद्योगिक नीति का विस्तार और प्रदूषण का कारोबार - एकीकृत औद्योगिक नीति की अव्यवहारिकता के चलते जब देशी-विदेशी कम्पनियों ने अनुदान राशि हड़पने के बाद अपने हाथ खींचने शुरू किये तो राज्य के नीति नियंताओं को लगा इस बार अनुदान की गंगा में डुबकी लगाने का मौका राज्य के अराजक उद्यमियों को ही क्यों न दिया जाये. जिसके फलस्वरूप औद्योगिक प्रोत्साहन नीति का विस्तार करते हुए उसमें जनपद नैनीताल के दो विकास खण्ड शामिल कर दिये गये. यह कार्य भाजपा के कार्यकाल में सम्पन्न हो गया था. पर बेपर्दा हुआ चुनाव के बाद कांग्रेस शासनकाल में.
खैर 20 प्रतिशत अनुदान व अन्य लाभों की गणना के बाद राज्य के उद्योगपतियों ने न्याय प्रणाली को धता बताते हुए प्रदूषणजनित उद्योगों के लिए आवेदन शुरू किया. इस क्रम में 'मां काली स्टोन क्रशर' नामक एक फर्म ने 16-12-2011 को भूतत्व एवं खनिकर्म इकाई, उद्योग निदेशालय भूपाल पानी, देहरादून को, खान अधिकारी नैनीताल द्वारा ''पर्वतीय क्षेत्र में स्टोन क्रशर/स्क्रीनिंग प्लांट/प्लवराईजर सयंत्र के स्थापना अनुज्ञप्ति'' आवेदन पत्र भेजा गया.
प्रशासन की तत्परता देखिए कि अगले ही दिन 17-12-2011 को खान अधिकारी (भूतत्व एवं खनिकर्म इकाई, जनपद नैनीताल, स्थित हल्द्वानी) ने पर्वतीय स्टोन क्रशर नीति 2011 के अनुसार, स्टोन क्रशर स्थापित करने हेतु संयुक्त निदेशक के लिए (1) उपजिलाधिकारी हल्द्वानी (अध्यक्ष), (2) प्रभागीय वनाधिकारी/प्रतिनिधि, रामनगर वन प्रभाग, रामनगर (सदस्य), (3) प्रतिनिधि उत्तराखण्ड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, हल्द्वानी (सदस्य), (4) भू-वैज्ञानिक, भूतत्व एवं खनिकर्म इकाई, हल्द्वानी (सदस्य) को प्रस्ताव भेजा.
प्रस्ताव में कहा गया कि - आप उक्त, स्वयं या अपने सक्षम प्रतिनिधि दिनांक 20-12-2011 को सायं 3 बजे मौके पर उपस्थित रहें, जिससे कि प्रस्तावित स्थल का निरीक्षण कर आख्या जिलाधिकारी नैनीताल को प्रेषित की जा सके. ठीक 6 दिन बाद 27-12-2011 को जिलाधिकारी नैनीताल ने निदेशक भू तत्व एवं खनिकर्म इकाई, उद्योग निदेशालय, देहरादून को अवगत कराया कि उपजिलाधिकारी हल्द्वानी की अध्यक्षता में गठित चयन समिति के सदस्यों द्वारा संयुक्त निरीक्षण 20-12-2011 को किया गया है. निरीक्षण के उपरान्त पाया गया है कि ः- आवेदित स्थल ''उत्तराखण्ड पर्वतीय स्टोन क्रशर नीति 2011'' के मानकों को पूरा करता है. अतः स्टोन क्रशर स्थापित करने हेतु उपयुक्त है.
इस तरह शासन प्रशासन की त्वरित कार्यवाहियों के चलते नया गांव, जुल्फकार, तहसील कालाढूंगी में मां काली स्टोन क्रशर की स्थापना को हरी झंडी मिल गयी.
जनता का विरोध और पर्वतीय क्षेत्र बनाम मैदानी क्षेत्र - दिसम्बर 2011 में शासन-प्रशासन की राजी खुशी के बाद मां काली स्टोन क्रशर को स्थापित करने की स्वीकृति मिल गयी, पर वहां (नया गांव, जुल्फकार, तहसील कालाढूंगी) की जनता को स्टोन क्रशर के स्थापना की संस्तुति की खबर तक न थी.
स्थानीय जनता को इसकी खबर मार्च 2012 में हुई तो उन्हांेने शासनादेश के उल्लंघन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया तथा शासन-प्रशासन के घेराव का सिलसिला शुरू हो गया. स्थानीय जनता का कहना है कि - नया गांव, जुल्फकार मैदानी क्षेत्र में आता है जिसके ढेरों प्रमाण हैं जो कभी झुठलाये नहीं जा सकते हैं. फिर क्यों शासन-प्रशासन ने उद्योगपतियों की मंशा के अनुरूप इस क्षेत्र को प्रदूषित करने के लिए पर्वतीय क्षेत्र की संज्ञा दी है. यह एक अनैतिक एवं असंवैधानिक कृत्य है जिसे हम शासन की जन विरोधी कार्य प्रणाली मानते हैं.
इस बात से शासन-प्रशासन के कान में जूं तक नहीं रेंगी पर जागरूक स्थानीय जनता ने सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 का सदुपयोग करते हुए सारे साक्ष्य एकत्र कर लिये, जो अब शासन-प्रशासन के गले की हड्डी बन गये हैं. ये साक्ष्य यह भी बताते हैं कि आम जन मानस की मूलभूत आवश्यकताओं के काम शासन-प्रशासन की उदासीनता के चलते कैसे महीनों-सालों लम्बित रहते हैं पर अराजक उद्योगपतियों के काम प्रकाश की गति के अनुरूप करने की मशक्कत की जाती है.
शासनादेश को ताक पर रखकर स्टोन क्रशर की स्थापना के लिए सुनिश्चित किया गया स्थान नया गांव पर्वतीय क्षेत्र में आता है अथवा मैदानी क्षेत्र में, इसकी प्रमाणिकता पर हम आगे बात करेंगे पर उससे पहले एक नजर मां काली स्टोन क्रशर नामक फर्म पर.......
मां काली स्टोन क्रशर और योगेश अग्रवाल के पार्टनर - नया गांव में स्थापित किये जाने वाले स्टोन क्रशर के मालिकान एक फर्म है, जिसे 'मां काली स्टोन क्रशर' के नाम से जाना जाने लगा है. इस फर्म के पांच हिस्सेदार हैं जो तीन परिवारों से हैं. मूलतः पार्टनरशिप फर्म ऐसे ही बनती है कि कौन धन लगायेगा, कौन बल लगायेगा, कौन किस राजनीतिक पार्टी की दलाली करेगा अथवा कौन अमुक विभाग की दलाली.
स्टोन क्रशर के आवेदन को दी गयी प्रोजेक्ट रिपोर्ट के मुताबिक इसके पहले पार्टनर विजय कुमार पुत्र श्री रामकुमार, मकान नं. 103, पी.डब्लूडी वार्ड नं. 9, किच्छा, ऊधम सिंह नगर निवासी हैं. दूसरे पार्टनर पहले पार्टनर विजय कुमार के भाई सुशील कुमार पुत्र श्री रामकुमार, मकान नं. 103, पी.डब्लूडी वार्ड नं. 9, किच्छा, ऊधम सिंह नगर निवासी हैं. तीसरे पार्टनर जतेन्द्र कुमार, पुत्र श्री लक्ष्मण दास, विजयपुर, धमोला (नैनीताल) निवासी हैं. चौथे पार्टनर श्रीपाल अग्रवाल, पुत्र श्री राम स्वरूप हैं जो मुण्डियाकाला, बाजपुर निवासी हैं. पांचवे पार्टनर योगेश अग्रवाल पुत्र श्रीपाल अग्रवाल हैं जो चैथे पार्टनर के बेटे हैं. मां काली स्टोन क्रशर नामक फर्म के मुखिया योगेश अग्रवाल ही हैं क्योंकि फर्म का सारा काम शासन-प्रशासन के बीच इन्हीं के नाम से हुआ है.
नया गांव एक मैदानी क्षेत्र है - अब तक जो साक्ष्य उपलब्ध हैं उनके आधार पर कहा जा सकता है कि जब शासन के नुमाइंदों ने 'स्टोन क्रशर अनुज्ञा नीति 2011' का कल्पना लोक बुना होगा तब उनके शातिर दिमागों में इतना ही होगा कि इसका हर संभव लाभ उद्योगपतियों को ही मिले. दशकों से रह रहे स्थानीय निवासियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति से जोड़कर एक बार भी इसका मूल्यांकन नहीं किया गया. यही वह मूल कारण था जिसके चलते पूरा प्रशासनिक अमला उद्योगपतियों के पक्ष में अपनी भूमिका निभाता नजर आया. नीति बनाने वाले सचिव स्तर के अधिकारी क्या ये नहीं जानते थे कि किसी क्षेत्र विशेष को पर्वतीय या मैदानी क्षेत्र की संज्ञा देने से पहले किन मूलभूत बिन्दुओं को इंगित करना होता है.
हम यहां कुछ बिन्दु इंगित कर रहे हैं जिनसे सिद्ध होता है कि नया गांव एक मैदानी क्षेत्र है.
1- वन विभाग द्वारा मैदानी क्षेत्रों को हक हूकूक नहीं मिलता.
2- मैदानी क्षेत्रों में किसी भी सरकारी@गैर सरकारी संस्थान द्वारा पर्वतीय भत्ता नहीं मिलता.
3- तहसील द्वारा मैदानी क्षेत्रवासियों को पर्वतीय मूल का प्रमाण पत्र जारी नहीं होता.
4- मैदानी क्षेत्रों में कृषि विभाग द्वारा कृषि उत्पादन में कोई अनुदान नहीं मिलता.
5- मैदानी क्षेत्रों में परिवहन विभाग द्वारा पर्वतीय क्षेत्र के परमिट नहीं दिये जाते.
6- मैदानी क्षेत्रों में पटवारी चैकी नहीं कोतवाली होती है.
कोमा में है क्षेत्र के कर्णधार- नया गांव विधान सभा क्षेत्र कालाढूंगी में आता है, ये विधानसभा क्षेत्र परिसीमन के बाद पहली बार अस्तित्व में आया. जिसके चलते कई महत्वाकांक्षी जनप्रतिनिधियों ने इसे अपने राजनैतिक कैरियर के लिए शुभ माना, पर अफसोस ये सारे जनप्रतिनिधि स्थानीय जनता के लिए अशुभ साबित हुए. इनमें से जनता के साथ कोई खड़ा है तो वो है दीवान सिंह बिष्ट. दीवान सिंह बिष्ट कालाढूंगी विधान सभा क्षेत्र से बसपा के प्रत्याशी रहे हैं.
इनके अलावा इस क्षेत्र से किस्मत का जुआं 10 अन्य ने भी खेला पर जीत ऐसे जुआरी की हुई जिसे पत्ते लगाने भी नहीं आते. जिनका नाम है, बंशीधर भगत. भगत जी इस क्षेत्र के विधायक हैं जिनका कहना है कि ''भाई हमने तो जनता के दबाव में उद्योग लगाने को विवश हुए हैं''. इस पर बसपा प्रत्याशी दीवान सिंह का कहना था कि नया गांव मैदानी क्षेत्र में आता है इसलिए यहां किसी उद्योग को पर्वतीय क्षेत्र के नाम पर स्थापित करना अपने आप में असंवैधानिक है और ये प्राकृतिक सम्पदा को प्रदूषित करने की साजिश है.
क्षेत्र प्रतिनिधि भूपेन्द्र सिंह भाई जी कहना है कि मेरे संज्ञान में नहीं है कि यह क्षेत्र मैदानी है अथवा पर्वतीय है. तहसीलदार से बातचीत कर ही आपको बता पाउंगा. अगर गैर संवैधानिक तरीके से कोई उद्योग लगाया जाता है तो हम उसका विरोध करेंगे वहीं महेश शर्मा का कहना था कि नया गांव मैदानी क्षेत्र है इस पर मैं फिर कभी विस्तार से बात करूंगा. कांग्रेस नेता प्रकाश जोशी व अन्य से बातचीत नहीं हो सकी.
कर्णधारों की सूची -
1. बंशीधर भगत -भाजपा,
2. प्रकाश जोशी - कांग्रेस,
3. दीवान सिंह बिष्ट - बसपा
4. नारायण सिंह जंतवाल - यूकेडी
5. उमेश शर्मा - सपा
6. फिदाउल रहमान - तृणमूल कांग्रेस
7. सुरेन्द्र सिंह निगल्टिया - रक्षा मोर्चा
8. महेश शर्मा -निर्दलीय
9. भूपेन्द्र सिंह भाई जी - निर्दलीय
10. जगदीश पन्त - निर्दलीय
11. वीर सिंह - निर्दलीय
एक साजिश अभी और बांकी है - 'स्टोन क्रशर अनुज्ञा नीति 2011' तो उत्तराखण्ड के विभत्स बुद्धिजीवियों ने कल्पना लोक में विचरते हुए बना ही डाली है जो कानूनी और नैतिकता के दृष्टिकोण से जनविरोधी साबित हो चुकी है लेकिन सवाल यह है कि इस भस्मासुर का अब क्या किया जाये? ऐसे में शासन एक ही कार्यवाही करता है.
रातों-रात मानकों में परिवर्तन. लेकिन यहां तो मामला बेहद पेचीदा है, मानक बदलकर भी मामला सुलझने वाला नहीं है. क्योंकि स्टोन क्रशर तो पर्यावरण की दृष्टि से लाल श्रेणी (अतिप्रदूषणकारी) उद्योग में आते हैं. अब हो न हो ये अवश्य होगा कि स्टोर क्रशर को हरित या नारंगी श्रेणी में तब्दील करने की साजिश अमल में लायी जायेगी.
ऐसा हुआ तो आश्चर्य की बात नहीं होगी, जन विरोधी नीतियों को अंजाम देने के अपने तरीके होते हैं और ये पहली बार भी नहीं होगा. इससे पहले भी पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खण्डूडी ऐसा कर चुके हैं. स्टोन क्रशर के मानकों का उल्लंघन का मुकदमा जब माननीय उच्च न्यायालय में चला उसके फैसला आने से पहले ही खण्डूरी ने मानक बदल डाले. जिसके फलस्वरूप ही स्टोन क्रशर अनुज्ञा नीति 2011 वजूद में आयी.
अन्ततः - उत्तराखण्ड शासनादेश के मुताबिक बी श्रेणी में आने वाले उद्योगों को 20 प्रतिशत अनुदान की सिफारिश की गयी है जिसकी कवायदों का नतीजा सामने है. प्राकृतिक जल स्रोत व साल के जंगलों के लिए उर्वरक माने जाने वाले नया गांव (कमोला) में आधारहीन सरकारी नीतियों के तहत स्टोन क्रशर लगाया जाना तय हो चुका तथा जनता के विरोध और पर्यावरण प्रदूषण का नया सत्र भी शुरू हो गया है.
उत्तराखण्ड शासन द्वारा ही घोषित अति प्रदूषणकारी उद्योगों को 20 प्रतिशत अनुदान देने के लिए बनायी गयी नीति के अगले चरण में लाल श्रेणी (अति प्रदूषणकारी उद्योग) के उद्योगों को हरित अथवा नारंगी श्रेणी का दर्जा भी मिल जायेगा. अब देखना यह है कि यदि मामला माननीय उच्च न्यायालय तक जाता है तो हमारी न्याय व्यवस्था जन विरोधी नीतियों के खिलाफ क्या फैसला देती है.
पत्रकार संजय रावत उत्तराखंड से प्रकशित पाक्षिक अख़बार 'सामानांतर' के संपादक हैं.
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