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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Wednesday, May 16, 2012

मध्य प्रदेश में माफिया राज

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मध्य प्रदेश में माफिया राज

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मध्य प्रदेश में माफिया राज
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घुन की तरह प्रदेश की नैसर्गिक संपदा को चट कर रहे खनन माफ़िया से टक्कर लेते हुए युवा आईपीएस नरेन्द्र कुमार ने होली के दिन शहादत दी थी, लेकिन सत्ता मद में चूर सरकार के रहनुमाओं ने युवा पुलिस अधिकारी की मौत को हादसा बताकर कुछ इस तरह की दलीलें पेश कीं, मानो सरकार को बदनाम करने की साज़िश रची जा रही हो। प्रदेश सरकार की इस बेहयाई ने माफ़ियाओं के हौंसले इतने बुलंद कर दिये हैं कि अब जंगल, खनिज और रेत, ज़मीन,पानी, बिजली और शराब का गैरकानूनी धंधा करने वाले बेखौफ़ होकर सरकारी मुलाज़िमों को अपना निशाना बना रहे हैं।

अवैध कारोबार पर नकेल कसने की कोशिश में सरकार के कारिंदे कहीं बँधक बनाये जा रहे हैं , कहीं सरेआम रौंदे जा रहे हैं या फ़िर बदमाशों के गोली, लाठी,डंडे खाने को मजबूर हैं। सत्ता का गुरुर अब मगरुरी में तब्दील होता जा रहा है। जो अधिकारी अपना ईमान और ज़मीर बेचने को राज़ी नहीं है, वो सत्ताधारी दल के लोगों की आँखों की किरकिरी बने हुए हैं। उन्हें झूठे आरोपों में फ़ँसाकर निलंबन या बार-बार तबादले की सज़ा दी जा रही है। 

यह हमारे लोकतंत्र की विडंबना है कि जब एक जाँबाज युवा पुलिस अधिकारी मुरैना में खनन माफियाओं की चुनौती को स्वीकार करते हुए अपने लहू की अंतिम बूँद भी धरती पर बहा रहा था... तब हमारे प्रदेश के मुखिया होली के रंगों में सराबोर हो रहे थे । जब उस युवा पुलिस अधिकारी की पत्नी अपनी कोख में साढ़े आठ माह के शिशु को लेकर अपने सुहाग को मुखाग्नि दे रही थी... फाग गाते, ढोल मँजीरे बजाते हमारे प्रदेश के मुख्यमंत्री की तस्वीरें अखबारों और चैनलों में छाई थीं। 

एक ऐसी हत्या, जिसकी चर्चा केवल प्रदेश में ही नहीं, बल्कि देश में हो रही हो, उस घटना पर सूबे के मुख्यमंत्री का बयान चौबीस घंटे बीत जाने के बाद आता है। अपनी पत्रकार वार्ता में भी वे इस बात पर ज्यादा खफा दिखाई पड़े कि बार बार माफियाओं का नाम लेकर प्रदेश को बदनाम किया जा रहा है। जब नरेन्द्र कुमार के पिता और आईएएस पत्नी इस हत्या के पीछे खदान माफियाओं का हाथ होने की बात बार -बार दोहरा रहे थे, तब मुख्यमंत्री प्रदेश में कोई भी खदान माफिया न होने का दावा कर रहे थे। 

मुख्यमंत्री प्रदेश में कोई खदान माफिया नहीं होने का जितना दावा करते हैं , राजनीतिक संरक्षण का भरोसा पाकर माफियाओं के हौंसले उतने ही बुलंद होते जा रहे हैं। सियासी आकाओं का प्रश्रय पाकर अब माफ़िया पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को अपना निशाना बना रहे हैं। एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले एक साल में 20 आईपीएस और आईएएस अधिकारियों सहित 65 पुलिस वालों पर हमले हुए हैं। ग्रामीण इलाकों में छोटे कर्मचारियों की पिटाई का आँकड़ा तो हज़ारों में है। हालत ये है कि प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों का मध्यप्रदेश से मोह भंग होने लगा है। हाल ही में नरेन्द्र कुमार की आईएएस पत्नी मधुरानी तेवतिया ने अपना भी कैडर बदलने का आवेदन दिया है।  

मुरैना जिले में खदान माफिया कलेक्टर आकाश त्रिपाठी और पुलिस अधीक्षक हरि सिंह पर भी फायरिंग कर चुके हैं। भिंड में भी शराब माफियाओं ने अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के साथ मारपीट की। खरगोन में एक आरक्षक की हत्या के साथ ही एएसआई पर जानलेवा हमला हुआ। सागर में अवैध खनन पकडऩे की कोशिश कर रहे टीआई पर माफिया ने गोलियाँ चलाईं और उन्हें जान बचाकर भागना पड़ा। पन्ना में रेत माफिया ने नदी पर पुल बना डाला था, जिसे तोड़ने गए एसडीएम पर भी फायरिंग की गई। शहडोल में भाजपा नेता और पूर्व विधायक छोटेलाल सरावगी के बेटे ने कलेक्टर राघवेन्द्र सिंह पर फायरिंग की थी, क्योंकि वह उनकी कोयले की चोरी रोकने की कोशिश कर रहे थे। 

मध्यप्रदेश में सरकारी अमले पर हमलों की लगातार बढ़ रही वारदातें कहती हैं कि सूबे में हालात चिंताजनक है  तुर्रा ये कि यहाँ चोरी और सीनाज़ोरी में ना सत्ता पीछे है और ना ही संगठन। हाल ही में अपनी नाकाबिलियत के बावजूद प्रदेश संगठन की कमान सम्हालने के दो साल पूरे होने का जश्न सरकारी खर्च मनाने पर "आमादा" प्रभात झा छाती ठोक कर दावा कर रहे थे कि प्रदेश में कोई माफ़िया नहीं है। मुख्यमंत्री भी मीडिया के "चोंगे" पर आये दिन कुछ ऎसा ही आलापते सुनाई देते हैं। मगर शायद वे भूल गये कि सत्ता सम्हालते ही उन्होंने कहा था कि प्रदेश में सात किस्म के माफ़िया सक्रिय हैं। उन्होंने बाकायदा इन माफ़ियाओं के नाम भी गिनवाये थे । हाल की घटनाओं पर सरसरी नज़र डालते ही '"रक्तबीज" की तरह तेज़ी से फ़ैलते माफ़िया राज की हकीकत का खुलासा हो जाता है।

वो शायद भूल गये कि वर्ष 2010 में शिवपुरी में दिए कथित बयान में उन्होंने भूमाफ़िया पर तोहमत जड़ी थी कि उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाने की साज़िश रची जा रही है। उनके इस बयान पर मचे बवाल के बाद विधानसभा में दंभ से भरे चौहान ने कहा था कि "उन्हें हटाने का किसी माई के लाल में दम नहीं है और वे किसी से डरते नहीं हैं। न किसी में हिम्मत है कि उन्हें हटा सके। उन्होंने कहा, भूमाफियाओं पर कार्रवाई की बात मैं करता आया हूँ। भूमाफियाओं से मुझे कोई डर नहीं है। " यह स्वीकारोक्ति सूबे में जड़े जमा चुके माफ़िया की मौजूदगी बताने के लिये काफ़ी है। 

श्री चौहान का दावा है कि प्रदेश में सब कुछ बढ़िया है। यहाँ कोई माफ़िया नहीं हैं। लेकिन हकीकत तो ये है कि उनके कार्यकाल में एक और किस्म का यानी मीडिया माफ़िया भी तेज़ी से पनपा है। करोड़ों के विज्ञापनों के ज़रिये छबि गढ़ने की कवायद ने इस 'अमरबेल" को खूब फ़लने-फ़ूलने का मौका दिया है। प्रदेश की पत्रकारिता मीडिया घरानों और चंद चापलूसों के इर्द-गिर्द सिमटकर रह गई है। ''पत्रकारिता के बंध्याकरण" के कारखाने में तब्दील हो चुके जनसंपर्क विभाग के ज़रिये प्रदेश की खुशहाल तस्वीर पेश की जा रही है, जो हकीकत से कोसों दूर है। विज्ञापनों के बूते मीडिया घरानों का मुँह बंद कर और चंद तथाकथित बड़े पत्रकारों को 'एवज़ी' देकर भले ही स्वर्णिम मध्यप्रदेश का ढ़ोल पीटा जा रहा हो, मगर सच्चाई तो यह है कि इस ढ़ोल में पोल ही पोल है। 

मुख्यमंत्री कहते हैं कि न तो प्रदेश में कोई खदान माफिया है और न ही सरकार माफियाओं के दबाव में है। लेकिन सरकारी आँकड़े ही उनके इस दावे की हवा निकालने के लिये काफ़ी हैं। प्रदेश के खनन विभाग द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार राज्य के 27 जिलों में अवैध खनन के मामलों में 141.49 करोड़ रुपये का ज़ुर्माना लगाया गया। मगर 80.81 लाख रुपये की नाम मात्र की रकम वसूल कर मामले निबटा दिये गये। गौरतलब है कि वसूली गई राशि लगाये गये जुर्माने के 1 प्रतिशत से भी कम है। क्या इसके बाद भी किसी सबूत की जरूरत रह जाती है कि राज्य सरकार किसकी मुठ्ठी में है? 

क्या ये महज़ इत्तेफ़ाक है कि जिस मुरैना में  दस महीनों में अवैध खनन का एक भी मामला दर्ज नहीं हुआ था, वहाँ नरेन्द्र कुमार के बानमौर के एसडीओपी बनने के चालीस दिन के भीतर 20 मामले दर्ज हुए। इन मामलों में 18 हज़ार 240 रुपये पैनल्टी लगाई गई, लेकिन केवल 4 हज़ार 240 रुपये वसूल कर मामला रफा दफा कर दिया गया। पड़ोसी जिले भिंड में जहाँ नरेन्द्र कुमार की हत्या के दिन शराब माफियाओं ने एक दूसरे आईपीएस अधिकारी पर जानलेवा हमला किया था, वहाँ इसी साल 1.89 करोड़ रुपये की पैनल्टी अवैध खनन को लेकर की गई और आज तक वसूली नहीं हो सकी है। होशंगाबाद जिले में 4 करोड़ 52 लाख के ज़ुर्माने के एवज़ में 50 लाख 52 हजार रुपये की मामूली रकम वसूल कर मामलों खत्म कर दिया गया। 

खदान माफिया पूरे प्रदेश में फैले हुए हैं। अलीराजपुर जिले में तो खदान माफियाओं ने नकली रसीदें छपवा रखी हैं। इन रसीदों के पकड़े जाने के बाद भी उन अपराधियों पर किसी प्रकार की कोई कार्रवाई नहीं हुई है। रतलाम जिले की पिपलौदा तहसील के गांव चैरासी बड़ायला में तो एक फोरलेन सड़क बनाने वाली कंपनी ने पत्थर और मुरम की पूरी पहाड़ी खोद डाली, लेकिन रायल्टी के 3 करोड़ रुपये में से छदाम भी राज्य सरकार को नहीं दिया है। इसी दौरान नीमच जिले में खनिज अधिकारी वीके सांखला ने अवैध गिट्टी के 10 ट्रैक्टर पकड़ कर उन पर 47 लाख रुपये जुर्माना किया था। भाजपा  नेता ने अपने रसूख के दम पर एक भी पैसा जुर्माना भरे बगैर ही इन ट्रैक्टरों को छुड़वा दिया। धार में नर्मदा नदी की रेत का अवैध खनन हो रहा है। इंदौर जिले में नेमावर और रंगवासा पहाडिय़ों को खनन माफिया ने लीज से कई गुना ज्यादा खोद डाला है। 

प्रदेश में न केवल खदान माफिया ही राज कर रहे हैं, बल्कि भाजपा नेता और राज्य सरकार के मंत्री भी या तो खुद  खनन माफिया बने हुए हैं या फिर वे खनन माफियाओं को संरक्षण दे रहे हैं। बात सिर्फ मुरैना की नहीं है। मुख्यमंत्री के गृह जिले सीहोर और उनके विधान सभा क्षेत्र भी रेत के अवैध खनन का अड्डा बना हुआ है। सवाल लाज़मी है कि मुख्यमंत्री के अपने जिले में ही प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट, क्या राजनीतिक संरक्षण के बिना संभव है? दमोह की खनिज अधिकारी दीपारानी ने मीडिया को बताया था कि किस तरह उन्हें कृषि मंत्री रामकृष्ण कुसमारिया के दबाव में अवैध खनन में लगे वाहनों को छोडऩा पड़ा। लोक निर्माण मंत्री नागेन्द्र सिंह के खिलाफ अवैध खनन के मामले तो केन्द्र सरकार तक पहुँच चुके हैं।

मुरैना में शहीद हुए नरेन्द्र कुमार के पिता भाजपा के राष्ट्रीय नेता और सांसद नरेन्द्र सिंह तोमर को खदान माफिया बता रहे हैं। उधर खनिज मंत्री राजेन्द्र शुक्ला सतना में किसानों को बेदखल कर हजारों एकड़ जमीन की लीज हथियाना चाहते हैं। एनडीए के संयोजक शरद यादव पहले ही पूरे विंध्य-महाकौशल में हर जिले में बैल्लारी होने की बात चुके हैं । लेकिन यदि मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि प्रदेश में खदान माफिया नहीं हैं, तो फिर कहना ही होगा कि प्रदेश में अब माफिया नहीं हैं, माफिया राज है।

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