संघियों ने नहीं बनने दिया था बाबू जगजीवन राम को प्रधानमंत्री!
ब्रज भाई ने मधु लिमये पर लिखी एक पुस्तक के विमोचन के सन्दर्भ में कहा कि उन्हें मधु जी का लिखा आखिरी हिस्सा 'कांग्रेस का नाश, देश का विनाश होगा ' पसंद नहीं आया… और आखिर में भाई खंडेलवाल कहते हैं कि मधु जी शायद सोवियत संघ के सहयोग से प्रधान मंत्री बनना चाहते थे. पहले मै उनकी दूसरी स्थापना पर आता हूँ. ब्रज भाई! आप भी मधु जी को अच्छी तरह से जानते रहें हैं. उनके मन में किसी के सहयोग से किसी ओहदे पर जाने की बात सोची तक नहीं जा सकती. उस समय की परिस्थिति देखिये. 1977 भारतीय राजनीति का परिदृश्य, यह टर्निंग प्वाइंट है. पार्टी नहीं बनी उसके पहले ही सरकार बन गयी. एक संघ को छोड़ कर बाकी सब ने अपने आपको एक दल 'जनता पार्टी' में समाहित कर दिया. मधुजी अगर चाहे होते तो इस समय वे अपने लिए ( किसी भी ओहदे के लिए ) लोगो को मना सकते थे. लेकिन मधु जी शुरू से ही प्रधानमंत्री के लिए बाबू जगजीवन राम के लिए सर्वानुमति तैयार करने में लगे थे. इस पूरे खेल को आज की भाजपा ने अपने पक्ष में करने के लिए चौधरी चरण से गुप्त समझौता करके सत्ता का बँटवारा कर लिया. मोरार जी भाई के नाम पर सब की सहमति बन गयी लेकिन समाजवादियों का एक खेमा इससे बाहर रखा गया जिसमे मधु लिमये, जार्ज फर्नांडीज़ गैरह रहें हैं …
जिस समय लोकदल कांग्रेस (ओ) और संघी घराने का समझौता हुआ इससे समाजवादियों को दूर ही रखा गया था (राज नारायण तब तक चौधरी चरण सिंह के साथ जा चुके थे ) तीन तीन राज्य संघ और रालोद को मिला. समाजवादी और बाबू जगजीवन राम का ग्रुप इस समझौते के खिलाफ था लेकिन जन 'आकांक्षा' के दबाव ने खामोश कर दिया.
ब्रज भाई अब आप आइये मधु जी के कांग्रेस 'प्रेम' पर. इसके लिए हम आपको थोड़ा पीछे ले चलेंगे. एक दिन जब समाजवादियों ने कांग्रेस छोड़ने का फैसला लिया तो डॉ लोहिया इसके पक्ष में नहीं थे. वे बार बार जे पी को मनाते रहे, जी पी नहीं माने. डॉ लोहिया ने नेहरु से कहा भी… आपके सारे प्रिय आपको छोड़ कर जा रहें हैं आप इनको रोक नहीं सकते? नेहरु ग़मगीन बने बैठे रहें. जंतर मंतर की सीढ़ियों से उतरते समय डॉ लोहिया ने जे पी को फिर रोका और बोले – एक बार फिर सोच लो …जे पी नहीं माने, तब डॉ लोहिया ने कहा अगर हम एक बार सीढ़ियों से नीचे उतर गए तो फिर दोबारा पलट कर नहीं आएँगे. और एक पार्टी और बन गई,'समाजवादी पार्टी'. ब्रज भाई यहाँ एक बात जिसका जिक्र नहीं होता आपने उस हिस्से को छेड़ा है. समाजवादियों और कांग्रेस के बीच मतभेद रहें लेकिन मनभेद कभी नहीं रहा. नेहरू. लोहिया, जे पी, अच्युत, आसफ अली इनके बीच जो जो संवाद हुए है, अलग होने के बाद वे बहुत दिलचस्प हैं. नेहरु जिस तरह से कांग्रेस की फिसलन का जिक्र करते हैं, अपनी तकलीफ को उजागर करते हैं इन सब को वापस बुलाते हैं उन दस्तावेजों को देखना चाहिए. नेहरू और लोहिया के रिश्तों की एक झलक … 'प्रिय राम मनोहर .. तुम कैसे हो? तुम्हे देखे हुए बहुत दिन हो गया है …'
आगे देखिये डॉ लोहिया अस्पताल में हैं. इंदिरा गांधी प्रधान मंत्री हैं … एक प्रधान मंत्री अपने मुखर आलोचक को देखने हर रोज अस्पताल जाती हैं. डॉ लोहिया की मौत के बाद अगर उनकी अर्थी को किसी ने पहला कंधा दिया है तो वह इंदिरा गांधी हैं और उनका पूरा मंत्रिमंडल है. आख़री बात ब्रज भाई! 1977 में इंदिरा गांधी सत्ता से बाहर हैं पूरा देश उनसे नाराज है. जनता सरकार शपथ ले रही है. जे पी इंदिरा जी के घर जाते हैं (शायद कुमार प्रशांत साथ थे ) इंदिरा जे पी को पकड़ कर रोती हैं, जे पी भी अपने को नहीं रोक पाए थे केवल एक शब्द बोले थे 'धैर्य रखो, सब ठीक होगा.'
ब्रज भाई कांग्रेस और समाजवादियों के बीच सियासी मुद्दों के अलावा भी एक सूत्र था. कांग्रेस समाजवादियो का घर रहा है… इसीलिये मधुजी यह कहते हैं कि 'कांग्रेस का नाश, देश का विनाश होगा'
No comments:
Post a Comment