समूची सियासी जिंदगी में कुल डेढ़ चुनाव जीते लेकिन तीन प्रधान मंत्री को कुर्सी से हटाया
संसद की साठवीं सालगिरह पर ————
चंचल
भारतीय संसद का इतिहास सही मायने में भारतीय परम्पराओं का आइना है. भारत आजाद होता है. आजादी के बाद भारत की रचना कैसी होगी, इसका खाका आजादी के बहुत पहले से ही तैयार किया जा चुका है. १९१० में गांधी ने 'मेरे सपनो का भारत' नामक पुस्तक लिख कर कांग्रेस को कांग्रेस के बहाने समूचे देश को मानसिक रूप से तैयार करना शुरू कर दिया था कि यदि भारत आजाद होता है तो भारत की तस्वीर किस तरह की होगी. जनतंत्र सत्ता और संपत्ति का विकेन्द्रीकरण, विकेंद्रित अर्थ व्यवस्था ,….. आदि आदि .. .अगर आपको याद हो तो आजादी के बाद कांग्रेस के अलावा दूसरा कोई दल नहीं है जो कांग्रेस के काम में कोई रुकावट डाले. इसकी वाजिब वजह भी रही. आजादी की लड़ाई के समय दो और ताकते थी. एक दक्षिणपंथी संघी घराना जो न केवल आजादी की लड़ाई से दूर रहा बल्कि कांग्रेस को भी मुसीबत में डालता रहा .इसे गाँधी का वह रुख कतई पसंद नहीं था जब गांधीजी मुल्क के बटवारे के खिलाफ पहल कर रहें थे और बार बार जिन्ना को मना रहें थे तब संघी घराना गाँधी के खिलाफ नारा लगा रहें थे .'मुसलमानों भारत छोड़ो' इन्ही का नारा रहा है. इसलिए आजादी के बाद कांग्रेस निर्विवाद रूप से एक अकेली पार्टी है जिसे भारत की तकदीर का फैसला करना था और कांग्रेस ने फैसला किया जनतंत्र का, बहुदलीय व्यवस्था का. चौखम्भा राज का, संसदीय व्यवस्था इसी का एक मजबूत स्तंभ बना. जनता द्वारा, जनता से चुने गए प्रतिनिधि की पंचायत. इस पंचायत को बने हुए साठ साल हो गए हैं. आज हम यहाँ एक सांसद का जिक्र करेंगे जो अपने ढंग के अकेले थे, बेबाक थे बेलौस थे. अकेले थे लेकिन बेचारे नहीं थे. अपनी समूची सियासी जिंदगी में कुल डेढ़ चुनाव जीते लेकिन तीन प्रधान मंत्री को कुर्सी से हटाया, उनका नम है .. राज नारायण . राज नारायण समाजवादी थे. आजादी की लड़ाई से राजनीति शुरू की और आखिर तक डटे रहे, उन्हें गुस्सा आता था लेकिन 'हिंसक' नहीं और उस समय नेता जी इसका जिक्र जरूर करते कि अगर बापू के सामने प्रतिज्ञा न की होती तो आज तुम्हे इतनी मार मारता कि …फिर फिस्स से हंस कर उसका हाथ पकड लेते और उसे नेता जी के साथ साथ चलना पड़ता,, यह उनकी एक अलग ही अदा थी. गुस्सा करना और हाथ पकड़ कर लंबी सजा देना. एक वाकया सुनिए. आपात काल के बाद हुए सत्ता परिवर्तन में नेता जी स्वास्थ्य मंत्री बन गए, (बनाए गए,-संघियों की चाल थी, आपातकाल में नसबंदी सबसे बड़ा कारण था जो आम जन के लिए मुसीबत बना और कांग्रेस चली गयी) वही नसबंदी महकमा नेता जी को मिला (देखिये साहब मूल कहानी से एक क्षेपक निकल रहा है सुनाऊं कि रहने दूँ ) लेकिन सुन ही लीजिए .. उन दिनो की बात है ७७ की जब दूरदर्शन का दफ्तर विज्ञान भवन में हुआ करता था और तकनीकी तौर पर निहायत ही गरीब था, उन दिनो नीरजा गुलेरी वहाँ काम करती थी और मेरे बहुत सारे दोस्त वहाँ थे इसलिए मेरा आना जाना था. नीरजा जी ने कहा आप किसी तरह नेता जी का एक साक्षात्कार करा दीजिए. नेता जी को ले आया. नेता जी से सवाल पूछा नीरजा ने नसबंदी पर. नेता जी काउंटर सवाल सुनिए… मै आबादी को रोकना चाहता हूँ लेकिन जोर जबर दस्ती नही. .. एक बात बताओ, राम के कितने लड़के थे… उन्होंने नसबंदी कराई थी ? इंदिरा जी……..नेता जी बोल रहें हैं लेकिन रिकार्ड नहीं हो रहा है… न ही यह कार्यक्रम प्रसारित हुआ .गो कि इसके लिए नेता जी ने तत्कालीन मंत्री अडवानी तक को तलब कर लिया .. किसी तरह मधु जी ने बीच बचाव करके मामले को रफा दफा किया .
अब आइये मूल कथा पर -मै बनारस विश्वविद्यालय छात्र संघ का अधक्ष था नेता जी का सन्देश मिला कि मेरी एक मीटिंग विश्वविद्यालय में होनी चाहिए . प्रोग्राम तय हो गया. नेता जी आये खुली जीप में, मै उनके बगल में खड़ा था .एक चौराहे पर नारा लगाते हुए कुछ लोग दिखे मैंने देखा ये कांग्रेसी थे नारा लगा रहें थे 'राज नारायण मुर्दाबाद' नेता जी ने हमसे पूछा कौन लोग हैं, क्या नारा लगा रहें हैं? हमने कहा सब आपके लोग हैं जिंदाबाद बोल रहें हैं. नेता जी खुश हो गए लेकिन जब जीप नजदीक पहुची और नारा साफ़ साफ़ सुनाई पड़ने लगा तो पुलिस दौडी उनकी तरफ नेता जी बड़ी फुर्ती से गाड़ी के नीचे कूदे और उनके बीच पहुच कर सबसे पहले पुलिस को डाटा, उन्हें हटाया और नारा लगा रहे एक का हाथ पकड़ लिया …. क्या बोल रहे हो राज नारायण वापस जाओ .. कहाँ वापस जाऊं .. यहीं पैदा हुआ, यहीं पढ़ा लिखा, यही राजनीति किया. वापस कहाँ जाऊं? और उसका हाथ पकड़ कर जीप तक ले आये, उसे अपने साथ मंच तक ले गए पूरे भाषण तक उसका हाथ पकडे रहे… वह नेता जी के साथ मंच पर खड़ा रहा… उसका नाम आप जानते है ?. चन्द्र कान्त त्रिपाठी जो बाद में महाराष्ट्र में अंतुले सरकार में एक दमदार मंत्री बना और आज कल पवार कांग्रेस में है …….
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