अधिकारी महोदय का एक संक्षिप्त किस्सा
वनीकरण के लिए जो पौधे दिए जाते हैं, उनका जांच के दौरान कहीं पता न चले कि कितने पेड़ लगाए गए, इसलिए पूरे जंगल में ही आग लगा दी जाती है, ताकि इल्जाम एक अदद बीड़ी या बेचारी माचिस की तीली पर डाला जा सके...
मनु मनस्वी
एक और पर्यावरण मंत्रालय वन्यजीवों की सुरक्षा को लेकर चिंतित है, तो वहीं पर्यावरण की सुरक्षा जिनके जिम्मे है, वे ही वन्यजीवों के लिए खतरा बने हुए हैं. कहना न होगा कि वन्यजीवों को सबसे अधिक खतरा किसी तस्कर से नहीं, बल्कि वन विभाग से ही है.
वन्यजीवों के लिए आदर्श समझा जाने वाला उत्तराखंड वन्यजीवों के लिए कितना सुरक्षित है, ये तो पता नहीं, लेकिन इतना तो तय है कि उत्तराखंड वन विभाग के लिए जरूर किसी ऐशगाह से कमतर नहीं. कभी जंगलों की आग बेकाबू हो जाती है तो कभी वनों में निरीह जानवर तस्करों की भेंट चढ़ जाते हैं.
आमलोगों का कहना है कि उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने के पीछे भी कई खेल हैं. वनीकरण के लिए जो पौधे दिए जाते हैं, उनका जांच के दौरान कहीं पता न चले कि कितने पेड़ लगाए गए, इसलिए पूरे जंगल में ही आग लगा दी जाती है, ताकि इल्जाम एक अदद बीड़ी या बेचारी माचिस की तीली पर डाला जा सके. बाकायदा ठूंठ तक का नामोंनिशान मिटा दिया जाता है. अब न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी. अब लाख लट्ठमलट्ठ कीजिए, कुछ पता नहीं चलेगा.
प्रमुख वन्यजीव संरक्षक (पीसीसरएफ) डा. आरबीएस रावत वन्यजीवों की सुरक्षा की बजाय वन्यजीव तस्करों और लकड़ी माफियाओं के संरक्षक बने बैठे हैं. फैशनेबुल कपड़ों के शौक़ीन जनाब रावत की ऐंठ ऐसी है कि जंगलों में गश्त करने से इसलिए बचते हैं कि कहीं पेंट की क्रीज खराब न हो जाए. अपने सेवा काल के दौरान शायद ही कभी जनाब ने जंगल का चक्कर लगाया हो.
हां, मंत्रियों-नेताओं के साथ एक अदद फोटू खिंचवाने को जनाब हर दम तैयार रहते हैं. वन्यजीव मरें तो मरें, पर जनाब की पैंट की क्रीज खराब नहीं होनी चाहिए. अब उनके नक्शेकदम पर चलते हुए उनकी लाडो ने बीते दिनों एक युवक को अपनी महंगी कार तले ठोक डाला. अब कर ले कोई कुछ. साहिबा पर मामला दर्ज किया गया या नहीं, कुछ पता नहीं चला. शायद बाप-बेटी में एक अनुबंध हो गया है कि बेटी तुम इंसानों को ठोको, जानवरों से मैं निपट लूंगा.
(मनु मनस्वी उत्तराखंड में पत्रकार हैं.)
No comments:
Post a Comment