http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/20-2009-09-11-07-46-16/25363-2012-07-31-05-48-42
Tuesday, 31 July 2012 11:17
जॉन दयाल
जनसत्ता 31 जुलाई, 2012: इस साल चौबीस अगस्त को कंधमाल की घटना को चार वर्ष पूरे हो जाएंगे। बंदूकों और कुल्हाड़ी के जरिए यह खूनी तांडव कई हफ्तों तक चलता रहा। तीन हफ्तों तक चली हिंसा की घटनाओं के महीनों बाद भी हिंसा की छिटपुट घटनाएं तीन महीने तक होती रहीं। उपद्रवियों से अपनी जान बचाने के लिए बावन हजार से ज्यादा लोगों को जंगलों में पनाह लेने को मजबूर होना पड़ा। करीब छह हजार घरों को आग के हवाले कर दिया गया, जबकि तीन सौ से ज्यादा धार्मिक स्थल और चर्च द्वारा संचालित संस्थान नष्ट कर दिए गए। साथ ही लगभग सौ लोगों को निर्मम तरीके से मौत के घाट उतार दिया गया, जिनमें महिलाएं भी शामिल थीं। इस मामले में सिर्फ एक व्यक्ति को दोषी पाया गया। जबकि अन्य मामलों में गंभीर खामियों के साथ की गई जांच और उसकी रिपोर्ट, आतंकित चश्मदीदों के मुकरने और न्यायालय के निष्क्रिय रवैये के चलते मुख्य अपराधी कानून के फंदे से बचने में कामयाब रहे।
सैकड़ों परिवार अब भी बेघर हैं। चर्च की ओर से भारी मदद दिए जाने के बावजूद सैकड़ों घरों का पुनर्निर्माण अभी तक पूरा नहीं हो पाया है, क्योंकि बहुत सारे लोग अब भी पैसा हड़पने की जुगत में लगे हुए हैं। वहीं हजारों बेरोजगार पड़े हुए हैं जबकि सैकड़ों बच्चों को पढ़ाई-लिखाई से हाथ धोना पड़ा और स्थानीय लोगों का अभी अपना कारोबार खड़ा करना बाकी है। मानवीय तौर पर देखा जाए, तो पूरे कंधमाल को मानसिक आघात से बाहर निकलने के लिए चिकित्सकीय और मनोवैज्ञानिक सहयोग की सख्त जरूरत है। उपद्रवियों के खौफ का अंदाजा एक पादरी की इस बात से सहज ही लगाया जा सकता है। उनका कहना है कि ''मुझे आज भी अपने इलाके में वापस लौटने से डर लगता है। मैं अभी तक उस खौफ से उबर नहीं पाया हूं।''
राहत और पुनर्वास कार्यक्रम पर चर्च ने करोड़ों रुपए खर्च किए, लेकिन उनके प्रयासों में तालमेल का अभाव स्पष्ट झलकता है। चर्च ने हिंसा के दौरान पहले महीने से ही शरणार्थियों के भोजन से लेकर आवासीय पुनर्निर्माण के लिए प्रत्येक प्रभावित परिवार को तीस हजार रुपए तक की राशि दी, क्योंकि सरकार की ओर से दी जाने वाली बीस से पचास हजार रुपए की आर्थिक मदद नाकाफी थी। स्थान और आकार के लिहाज से एक घर के पुनर्निर्माण पर सत्तर हजार से एक लाख रुपए तक का खर्च आ रहा था। ज्यादातर मामलों में नष्ट किए गए घर पुनर्निर्माण के तहत बनाए गए घरों से बड़े थे। लेकिन इस पर किसी ने विचार नहीं किया कि इतनी कम रकम में कोई परिवार कैसे घर बना सकेगा और जरूरत की घरेलू चीजें जुटा पाएगा।
भ्रष्टाचार का आरोप वैसे तो किसी चर्च पर नहीं लगाया जा रहा है लेकिन प्रत्येक चर्च- कैथोलिक, प्रोस्टेंट, इवैजेंलिकल और पेंटीकॉस्ट- को कंधमाल में 2007 से अब तक किए गए खर्च का ब्योरा तैयार करने की जरूरत है। जाहिर है कि आर्थिक मदद मुहैया कराने वाली एजेंसियां और देश और दुनिया भर के उदार चर्च यह उम्मीद करेंगे और जानना चाहेंगे कि उनके दान किए धन से पीड़ितों को कितना लाभ हुआ। यहां प्रार्थना स्थलों के पुनर्निर्माण में सरकारी सहायता बिल्कुल नहीं मिली है। ऐसी स्थिति में भारत में ईसाई समुदाय के खिलाफ हुई इस हिंसा की चौथी बरसी का अवलोकन, प्रार्थना और विरोध के अलावा कैसे किया जाए।
मेरे विचार से न्याय के लिए संघर्ष के रूप में इसका अवलोकन किया जाए। यही सबसे अच्छा तरीका हो सकता है। ओड़िशा ही नहीं, गुजरात जैसे राज्य को भी संवैधानिक सबक सीखने की जरूरत है, जहां वर्ष 2000 में मुसलिम समुदाय का निर्मम जनसंहार हुआ। इसके अलावा, 1984 में सिख समुदाय के खिलाफ दिल्ली समेत देश के तमाम शहरों में भारी रक्तपात हुआ था। सिख वकीलों, सेवानिवृत्त जजों और विधवाओं ने न्याय के लिए लड़ने का हमें उल्लेखनीय सबक सिखाया है। अपने खिलाफ जनसंहार की घटना के दशकों बाद भी उनके उत्साह में रत्ती भर कमी नहीं आई है। उन्होंने अपने जुनून की बदौलत न्याय की लड़ाई में उल्लेखनीय कामयाबी हासिल की है जिसका नतीजा निश्चित रूप से फलदायी रहा।
सिख समुदाय ने दिखा दिया है कि संघर्ष के जरिए उचित राहत और मुआवजा हासिल किया जा सकता है। उन्होंने सिविल सोसायटी के साथ प्रभावशाली संपर्क बनाया, जिसने रक्तपात के जिम्मेदार लोगों को माफी मांगने को मजबूर किया। साथ ही सिख दंगों के लिए जिम्मेदार ताकतवर राजनीतिकों के खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित कराई है। वहीं मुसलिम समुदाय ने न्याय के लिए नागरिक और राजनीतिक साधनों का प्रयोग किया है और इस तरह सिविल समाज के साथ अपने नेटवर्क की प्रासंगिकता को साबित किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात मामले में कई ऐसे फैसले दिए जिनसे न्याय सुनिश्चित हो सका है। कुल मिला कर उम्मीद है कि राजनेता, पुलिस अफसर और न्यायिक पदों पर बैठे लोग अपराध के लिए जिम्मेदार लोगों की सजा मुकम्मल करेंगे।
कंधमाल मामले
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