सत्याग्रह का स्थगन और भविष्य दृष्टि
मित्रो ,
०९ जनवरी को अनिवार्य-समयबद्ध –चक्रवार स्थानान्तरण कानून के लिए सत्याग्रह ,शुरू किया था I यह दिन इसलिए चुना था क्योंकि इसी दिन सत्याग्रह का मन्त्र देने वाले गांधी जी दक्षिण अफ्रीका में बीस वर्ष रहने के बाद स्वदेश लौटे थे –स्वदेश में स्वराज की अलख जगाने I
तब इस देश को चलाने वाला तंत्र सात समन्दर पार रहा करता था तंत्र परायो द्वारा संचालित था I
आज सत्याग्रह का १८ वां दिन है , और आज गणतंत्र दिवस भी है I तंत्र अब सात समन्दर पार नहीं रहता , न ही इसे चलाने वाले पराये हैं I
पर शायद अब अपनों के ही द्वारा चलाया जाने वाला तंत्र कुछ और ज्यादा ही अ-संवेदनशील सा हो गया है , गण और तंत्र के बीच में दूरियां –संवादहीनता कम होने के बजाय बढ़ सी गयी हैं I फर्क सिर्फ इतना है कि तब छलने वाले पराये थे , उस समय छल की पीड़ा मर्मभेदी तो होती थी ,पर उसे प्रकट करने –उसका प्रतिरोध करने में गौरवयुक्त कर्तव्य बोध होता था I लकिन अपने ही द्वारा बांये गए तंत्र में अपनों के ही द्वारा किये जा रहे छल से जो पीड़ा होती है वह दारुण तो होती है ,साथ में उसे व्यक्त करने में लज्जा भी आती है I अपनों की ही शिकायत करें भी तो कैसे ? और किससे ? शायद उसी माँ की पीड़ा की तरह जिसकी संतान प्रिय तो होती है पर नालायक हो I पर पीड़ा तो व्यक्त करनी ही होगी , और प्रतिकार करना कर्तव्य भी है I
सत्याग्रह का यह प्रयास न तो आत्मगौरव के लिए है ,, न ही पर-सेवा के लिए I यह प्रयास है स्वयं ,स्वयं जैसे अनेकोनेक गणों और तंत्र के बीच परस्परता और संबंधो को समझने के लिए I
आज इस सत्याग्रह को कुछ समय के लिए स्थगित कर रहा हूँ , इसलिए नहीं कि थक गया हूँ , या हार गया हूँ , या निराश हो गया हूँ ,या स्वप्न के साकार और बड़े होने की संभावना नहीं दिखती I
स्थगित इसलिए कर रहा हूँ , कि इस दौरान जो उर्जा प्राप्त हुई , अँधेरे में दूर जो रौशनी की किरण दिखाई दी , उस उर्जा ,उस प्रकाश किरण को सहेज सकूँ और व्यक्तिगत प्रयास को एक साझा –सामूहिक –सत्य के लिए सहकार में बदलने का प्रयास हो सके I प्रकाश की किरण के सहारे रश्मि-पुंज तक पहुंचा जा सके I
सत्याग्रह स्थगित किया है , समाप्त नहीं , इस दौरान मित्रो से जो समर्थन मिला उसके लिए सबका आभारी और ऋणी हूँ I मित्रो की सलाह यह भी है कि इसे व्यापक –अर्थवान बनाने हेतु व्यकतिगत प्रयासों को सामूहिक प्रयास में बदलने के लिए कार्य किया जाय I
इस बीच मैंने शिक्षकगण के तंत्र – राजकीय शिक्षक संघ – से भी अपील की थी कि यदि मेरे चुनाव में प्रत्याशी होने से उनकी एकजुटता और एक्ट के प्रयासों में बाधा आ रही है तो मैं इस बाधा को ख़त्म कर देता हूँ –यानि मैं चुनाव नहीं लडूंगा I किन्तु शायद देश और दुनिया के सभी तंत्रों की तरह इस तंत्र ने भी गण की आवाज अनसुनी कर दी I तंत्र बोझिल –बेकार हो जाय तो उसमे सुधार नहीं बल्कि बदलना ही विकल्प है I
जल्दी ही पूरे राज्य में मित्रो से बात कर आगे के निर्णय के बारे में तय किया जाएगा , गणों का सामूहिक चिंतन और कार्य हो सके तब तक के लिए सत्याग्रह को स्थगित करने का मन है I तभी तंत्र बदलेगा और कुछ खास –विशेष लोगों के तंत्र के स्थान पर सही-साझा गणतंत्र स्थापित होगा ,जो तंत्र की बजाय गणों के हित में कार्य करेगा , ऐसा विश्वास है I
दिशा और लक्ष्य पूर्ववत ही है ,, पथ निर्धारण शेष है I
हैं दीप छोटा सा जला मगर , रोशनी इरादे बुलंद समेटे है ,
सितारों की बात न करो साथी , हम तो सूरज को चुनौती देते हैं
No comments:
Post a Comment