Prosperity of Anarya or Das in Rigvedic Period in context Haridwar, Bijnor and Saharanpur History
हरिद्वार , बिजनौर और सहारनपुर इतिहास संदर्भ में ऋग्वेदकालीन अनार्यों या दास भूमि की समृद्धि
हरिद्वार , बिजनौर और सहारनपुर इतिहास संदर्भ में ऋग्वेदकालीन अनार्यों या दास भूमि की समृद्धि
History of Haridwar Part --49
हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग -49
इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग -49
इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
ऋग्वेद अनुसार उस काल में अनार्य या दास जन समृद्ध थे। आर्यों ने पंजाब की पहाड़ियों के अनार्य नरेशों से उलझना स्वीकार किया किन्तु यमुना पूर्व मैदानी हिस्सों पर आक्रमण नही किया और ऋग्वेद इस विषय में मौन है। इसका एक अर्थ यह भी निकलता है कि यमुना पूर्व के अनार्य शक्तिशाली थे।
आर्यों को अपने बढ़ते पशुधन हेतु चारागाहों की आवश्यकता थी। और पहाड़ों की घास अधिक रसीली थी /गर्मियों में भी हरी घास की प्रचुरता थी। अतः आर्यों ने पहाड़ी किरातों याने शंबर के क्षेत्र पर अधिकार किया।
शंबर के अधिकार क्षेत्र में धन सम्पनता ,, पुष्ट जानवर , अश्व , भेड़ बकरी , आदि की प्रचुरता थी और आर्य इन्हे छीनने के लिए आतुर रहते थे।
पर्वतीय प्रदेशों में खनिज -ताम्र , बहुमूल्य पत्थर , स्फटिक , जड़ी बूटियाँ प्रचुर मात्रा में थीं।
आर्य पर्वतीय प्रदेशों से बहुमूल्य सम्पति छें कर ऋषियों में भी उत्साह से वितरित करते थे। (ऋग्वेद - ६ /४७ /२२ )
**संदर्भ - ---
वैदिक इंडेक्स
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड इतिहास - भाग -२
राहुल -ऋग्वेदिक आर्य
मजूमदार , पुसलकर , वैदिक एज
Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India 21 /1/2015
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