दिलों में मुहब्बत नहीं तो कायनात में यह कैसी बहार?
रवींद्र जयंती के मौके पर भी सियासती मजहब और मजहबी सियासत के शिकंजे में इंसानियत का मुल्क?
যদি প্রেম দিলেনা প্রাণে..
যদি প্রেম দিলেনা প্রাণে,,..
কেনো ভোরের আকাশ ভরে দিলে এমন গানে গানে...!!
কেনো তাঁরার মেলা গাঁথা,,
কেনো ফুলের শয়ন পাথা.....
কেনো দক্ষিন হাওয়া গোপন কথা জানায় কানে কানে.....!
যদি প্রেম দিলেনা প্রাণে,,
কেন আকাশ তবে এমন চাওয়া,
চায় এ মুখের পানে...........!
हाल में बंगाल में हुए लोकतंत्र महोत्सव के दौरान बाहुबलि भूतों का रणहुकार यही रहा है कि अब बंगाल में गली गली में रवींद्र संगीत नहीं बजेगा और उसके बदले पीठ की खाल उतारने वाले ढाक के चड़ा चड़ाम बोल दसों दिशाओं में गुंजेंगे और तब प्रचंड लू से दम घुट रहा था मनुष्यता का और दावानल में राख हो रहा था हिमालय भी।
अब रवीन्द्रजयंती के साथ सूखे के सर्वग्रासी माहौल में भुखमरी के बादलों को धता बताकर फिर वृष्टि है और कालवैशाखी भी है।
बंगाल की गली गली में फिर वही रवींद्र संगीत है।
कल हमारे आदरणीय मित्र आनद तेलतुंबड़े से एक लंबे व्यवधाने के बाद फोन पर लंबी बातचीत हुई और इस बातचीत का निष्कर्ष यही है कि समता और न्याय की लड़ाई में आज छात्र युवा सड़कों पर हैं तो हमें बिना शर्त उनका साथ देना चाहिए।इसके साथ ही पितृसत्ता के खिलाफ हमारी लड़ाई अगर शुरु ही नहीं होती तो आधी आबादी को बदलाव की लड़ाई में शामिल किये बिना और उनके नेतृत्व को स्वीकार किये बिना हमारी समता और न्याय की यह लड़ाई अधूरी होगी।
रवींद्र साहित्य और लोकसंस्कृति का पहला पाठ यही है।
মন্ত্রহীণ,ব্রাত্য,জাতিহারা রবীন্দ্র,রবীন্দ্র সঙ্গীত! Tagore liberated Woman in Music!
https://www.youtube.com/watch?v=FiEACpJo54w
पलाश विश्वास
आज मां दिवस है और कमसकम मैंने अपनी मां कि सेवा में कुछ भी नहीं किया।साझा परिवार में पला बढ़ा और किशोरावस्था में जो घर छोड़कर निकला,मां के पास रहा ही नहीं कभी और न मां गांव छोड़कर हमारे पास कभी रही नहीं।वे बसंतीपुर छोड़कर कहीं नहीं गयीं।
उन्हींके नाम बसा है बसंतीपुर।
आज सड़क पर उतरने से पहले सड़क पर तजिंदगी जनता के हक हकूक के लिए लड़ने वाले पिता को याद करता हूं तो मां की वह धूमिल सी तस्वीर खूब याद आ रही है कि उनने कभी आहिस्ते से भी पिता के जुनून के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठायी।
उनके बिना पिता की जनप्रतिबद्धता कितनी संभव थी?
तेभागा से लेकर शरणार्थी किसान आंदोलनों के साथियों के बसाये गांव बसंतीपुर में दरअसल कोई औरत मेरी मां से कम नहीं थीं और मेरा बचपन ऐसी असंख्य मांओं की ममता की छांव में पला जहां हिमालय की छांव भी उनके प्यार के आगे छोटी रही है।
शादी से पहले तक मेरी तहेरी दीदी मीरा दीदी पल पल मेरा ख्याल रखती थीं तो ताई और चाची और गांव की दूसरी तमाम औरतों के प्यार के मुकाबले मुझे अपनी मां के प्यार का अहसास अलग से कभी नहीं हुआ।तराई के हर गांव में फैला था मेरा बचपन।तमाम दीवारों के आर पार।जाति,भाषा और धर्म की सरहदों के बाहर।इसलिए अलग से मां का वजूद मैंने समझा ही नहीं।
पढ़ने के लिए नैनीताल गया तो तराई और पहाड़ की हर मां मेरी मां बन गयी और आज बूढ़ा अकेला जब सड़क पर उतरने की नौबत है हर बेटी,बहन मां के चेहरे पर मेरी मां की तस्वीर चस्पां हैं।
इस कोलकाता में हाट में सब्जी बेचने वाली और घरघर काम करने वाली औरतें फिर वही मेरी मां है तो तमाम आदिवासी औरतें जो उत्पीड़न और दमन के खिलाफ सोनी सोरी से भी बड़ी लड़ाई रोज रोज लड़ रही हैं,वे भी मेरी मां है और मेरे लिए वही भारत माता का असल चेहरा है।
मेरे लिए वही भारत मां का असल चेहरा है जो सेना को चुनौती देने वाली मणिपुर की निर्वस्त्र माताओं का है या रोज रोज देश के कोने कोने में पितृसत्ता के खिलाफ खड़ी हर औरत और पितृसत्ता के अनंत भोग और बलात्कार की शिकार औरत का चेहरा है।
इसलिए मुक्तबाजार के मुकाबले मैं इंफल के इमा बाजार,14 साल से अनशन पर इरोम शर्मिला और जल जंगल जमीन के लिए आदिवासी औरतों की तरह हर रोज लड़ रही मेरे हिमालय की इजाओं और वैणियों की गोलबंदी देखता हूं जो बाकी देश में अनुपस्थित है।
आज रवींद्र जयंती है और सरहद के आर पार इंसानियत के मुल्क पर सिर्फ रवींद्र संगीत की पूंजी के सहारे उत्पीड़ित वंचित स्त्री की जीजिविषा ही मेरे लिए असल रवींद्र संस्कृति है जो बंगाल और भारत की भी संस्कृति है,जहां धर्म या ईश्वर कही नहीं है और राष्ट्रीयता है तो वह विशुद्ध वैश्विक मानवता है,और उसका भी चेहरा मां का ही चेहरा है।
रवींद्र साहित्य और रवींद्र रचनाधर्मिता के मूल में बंगाल की बौद्धमय विरासत प्रबल स्थाईभाव है और उनकी तमाम कविताओं और यहां तक की गद्य रचनाओं में मूल स्वर बुद्धं शरणम् गच्छामी है और इसी लिए किसी मोहनदास करमचंद गांधी को उन्होंने ही महात्मा की उपाधि दी क्योंकि उनका जीवन दर्शन भी बंगाल की तरह बुद्धमय रहा है और उनका धर्म धम्म रहा है,सत्य और अहिंसा का ,जबकि वे खुद कट्टर हिंदू थे और वर्णाश्रम और जाति व्यवस्था के खिलाफ नहीं थे लेकिन अस्पृश्यता उनकी भी बाबासाहेब डा.भीमराव अंबेडकर की तरह मुख्य चिंता थी।
हमारे पुरखों की विविधता और बहुलता,सहिष्णुता और उदारता,विश्वबंधुत्व की गौरवशाली परंपरा ही दरअसल रवींद्र संस्कृति है और उसकी नींव वही भारत तीर्थ है जहां मनुष्यता की असंख्य धाराएं मानवता की एकच रक्तधारा में तब्दील है।
संत फकीर बाउल आंदोलन,आदिवासी किसान विद्रोह की जनसंस्कृति से गढ़ी है रचनाधर्मिता रवींद्र की,जो भारत मां की असली तस्वीर बनाती है जो अंततः पितृसत्ता के विरुद्ध खड़ी स्त्री है। चंडालिका से लेकर चित्रांगदा,रक्तकबरी से लेकर गोरा,चोखेर बाली और राशियार चिठि तक वह स्त्रीकाल सर्वत्र व्याप्त है।
इसीलिए बंगाल में सत्री की अस्मिता की लड़ाई पितृसत्ता के खिलाफ मोर्चाबंद रवींद्र संस्कृति और इंक्लाब जिंदाबाद के कोलाहल के स्थान पर उनके प्रतिवाद का स्वर संगीतबद्ध आमार सोनार बांग्ला तोमाय भालोबासि है,जिसकी अभिव्यक्ति का चरमोत्कर्ष अंतर्निहित शक्ति बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम में इस महादेश की हुई भारत विभाजन के बाद सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा है।
हाल में बंगाल में हुए लोकतंत्र महोत्सव के दौरान बाहुबलि भूतों का रणहुकार यही रहा है कि अब बंगाल में गली गली में रवींद्र संगीत नहीं बजेगा और उसके बदले पीठ की खाल उतारने वाले ढाक के चड़ा चड़ाम बोल दसों दिशाओं में गुंजेंगे और तब प्रचंड लू से दम घुट रहा था मनुष्यता का और दावानल में राख हो रहा था हिमालय भी।
अब रवीन्द्र जयंती के साथ सूखे के सर्वग्रासी माहौल में भुखमरी के बादलों को धता बताकर फिर वृष्टि है और कालवैशाखी भी है।
बंगाल की गली गली में फिर वही रवींद्र संगीत है।
वैसे तो बंगाल रवींद्र की छाया से बाहर कभी नहीं रहा है और रवींद्र जयंती के मौसम में हर छवि फिर रवींद्रनाथ की है।संगीत भी वही रवींद्र संगीत है।
फिर भी खुशवंत सिंह के कहे मुताबिक रवींद्र को ई पवित्र गाय नहीं है और उनकी हर छवि में भारतीयता और बारत की लोकविरासत भातर बाहर गूंथी हुई है और उसे देखने की दृष्टि हो तो सियासती या मजहबी उन्माद की कोई जगह ही नहीं बनती।
यह भी समझना हबेहद अनिवार्य है कि रवींद्र पक्ष दरअसल स्त्री पक्ष है और बंगाल में जब तक एक भी स्त्री के कंठ में गूंजेगा रवींद्र संगीत,रवींद्रनाथ की मृत्यु हो ही नहीं सकती।
इसी संदर्भ में यह भी समझना बेहद जरुरी है कि चिंत्रांगदा की तरह स्त्री जब सत्ता के विरुद्ध मोर्चाबंद हो जाती है तो जीत स्त्री की ही होती है और हारती हरबार पितृसत्ता है।
रवींद्र विमर्श एकमुश्त स्त्रीविमर्श और दलितविमर्श का समाहार है,जिसपर भारत या बंगाल में भी कायदे से चर्चा शुरु नहीं हुई है,जबकि पितृसत्ता के मुक्तबाजारी राष्ट्र के चरित्र को लोकतांत्रिक और जनपक्षधर बनाने के लिए इसपर सिलसिलेवार चर्चा भी अनिवार्य है।
संक्षेप में बोलें तो एक वाक्य में कहा जा सकता है कि लोकसंस्कृति की विरासत जहां स्त्री के हवाले है,वहां लोकसंस्कृति की मृत्यु हो नहीं सकती चाहे तमाम माध्यमों और विधाओं की मृत्यु हो जाये।
संक्षेप में बोलें तो एक वाक्य में कहा जा सकता है कि राष्ट्रीयता की पैठ जितनी गहरी लोकसंस्कृति में होगी उतनी ही वह निरंकुश सत्ता के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी और जैसे निर्वासित सीता के पुत्रों ने रामराज्य के अश्वेमेधी घोड़ों के लगाम थाम लिये,जैसे अशवमेधी सर्वश्रेष्छ धनुर्धर अर्जुन मणिपुर की चित्रांगदा से पराजित हो गयी,जैसे चीरहरण से अपमानित द्रोपदी की शपथ से कुरुक्षेत्र में हारे कुरु रथी महारथी,वैसे ही स्त्री शक्ति के आगे अंध राष्ट्रवाद की पराजय तय है और यह रवींद्र विमर्श है , मेरा मौलिक दर्शन नहीं।
हालिया उदाहरण बांग्लादेश में लाखों औरतों का बलात्कार है और उनकी कुर्बानी किसी सैन्य हस्तक्षेप से छोटी हरगिज नहीं है और मरते दम उनके मुस्काते लहूलुहान होंठों पर धरे थे रवींद्र के परमाणु बम जैसे अमोघ बोल,आमार सोनार बांग्ला आमि तोमाय भालोबासि,बांग्लादेश स्वत्त्रता संग्राम का प्रस्थानबिंदू वही है।
उससे भी हालिया एकदम ताजा उदाहरण बंगाल में लोकतंत्र महोत्सव में भूत बिरादरी की हिंसा तांडव दहशतगर्दी के विरुद्ध झाड़ू,दरांती वगैरह वगैरह घरेलू हथियार लेकर अपने मताधिकार के लिए मोर्चा बंद स्त्रियों के चेहरे हैं।
हालीशहर में तीन साल की बच्ची की पिटाई के बावजूद उसकी मां ने बूथ तक पहुंचकर वोट डाले और माफियाराज के खिलाफ अबतक खुलकर बोल रही।खास कोलकाता में अपने कलेजे के टुकड़ों,दूधमुंहा शिशुओं पर हमले के बाद भी स्त्री के प्रतिवाद का स्वर कुंद नहीं हुआ।वर्धमान में बूथलुटेरों को हथिरयारबंद औरतों ने खदेड़ दिया।
यह प्रतिरोध निरंकुश सत्ता का प्रतीक बनीं ममताबनर्जी के
फासिस्ट केसरिया गठबंधन के खिलाफ हैं तो याद करें कि दीदी का वह अभ्युत्थान भी और पुरानी तस्वीरें देख लें,नंदीग्राम,सिंगुर और लालगढ़ के मोर्चे पर परिवर्तन के लिए लड़ रही थीं स्त्रियां तो भूमि अधिग्रहण के खिलाफ प्रतिरोध में ममता के अलावा मेधा,अनुराधा जैसी तमाम स्त्रियां नेतृत्व में थीं।भूल गयीं दीदी इतनी जल्दी।
बंगाल में तेभागा आंदोलन और खाद्यआंदोलन से लेकर नक्सल आंदोलन तक सर्वत्र फिर वहीं स्त्रीकाल है।
मणिपुर की कथा सभी जानते हैं।
सोनी सोरी की कथा भी मालूम है।
जेएनयू से लेकर यादवपुर तक हमारी बहादुर बेटियों की तस्वीरें भी लाइव हैं।
आज सुबह सुबह संडे इकोनामिक टाइम्स में आगजनी का परिणाम है उत्तराखंड दावानल आशय का आलेख पढ़ा तो लेखक का नाम भीमताल तितली अनुसंधान केंद्र के तितिली अनुसंधान केंद्र के तितली विशेषज्ञ पीटर स्मैटचेक का नाम देख बहुत सारी पुरानी यादें ताजा हो गयीं।तुरंत नैनीताल में राजीव लोचन दाज्यू को मोबाइल पर पकड़ा।
शमशेर दाज्यू की तबीयत खराब थी और वे दिल्ली एम्स में भर्ती थे तो उनकी चिंता पहले से थी।सबसे पहले उनका हाल पूछा तो पता चला कि शमशेर दाज्यू अल्मोड़ा में सकुशल वापस पहुंच गये हैं क्योंकि लड़ाई अभी बाकी है।
फिर मैंने पूछा कि यह पीटर तो फेड्रिक के भाई हैं तो दाज्यू ने कंफर्म कर दिया।कई बरस हुए फेड्रिक स्मैटचेक की असमय मौत हो गयी।वे डीएसबी में एमए इंग्लिश फर्स्ट ईयर में हमें प्रोज पढ़ाते थे और डीएसबी के पुराने टापर थे।वे पर्यावरण कार्यकर्ता थे और उनकी संस्था थी S.A.V.E.भारतभर में उनके पसंदीदी लेखक दो ही थे,भारत डोगरा और अनिल अग्रवाल।तब हमारा लिखा इधर उधर छप ही रहा था और नैनीताल समाचार में यदा कदा फेड्रिक भी लिख देते थे और वे राजीवदाज्यू के दोस्त भी थे।
उन्हीं फेड्रिक के पिता अंतरराष्ट्रीय तितली विशेषज्ञ थे और उन्हीं का बनाया हुआ भीमताल तितली अनुसंधान केंद्र है जो उनका स्टेट भी है सात ताल और भीमताल के मध्य नौकुचियाताल के ऊपर।
फेड्रिक मुझे कहा करते थे कि पर्यावरण पर ही लिखो क्योंकि भारत डोगरा और अनिल अग्रवाल के अलावा बारत में किसी को वे पर्यावरण का लेखक नहीं मानते थे और उनकी इच्छा थी कि सामाजिक कार्यकर्ता के बजाये हम पर्यावरण कार्यकर्ता बने।
उस तितली केंद्र में हम फेड्रिक के साथ ठहरे भी।
यह सत्तर के दशक के आखिरी दौर की बात थी और तब शमशेर सिंह बिष्ट उत्तराखंड संघर्षवाहिनी के अध्यक्ष थे और हमारे नेता थे।हम लोग तब गिरदा के साथ वैकल्पिक मीडिया बनाने में लगे थे और आंदोलन भी कर रहे थे।उधर दिल्ली में आनंद स्वरुप वर्मा तीसरी दुनिया निकाल रहे थे या निकालने ही वाले थे।
गिर्दा कहा करते थे कि पैसा वैसा कुछ नहीं चाहिए,बस,जनता का साथ होना चाहिए।जनता से लेकर जो लौटाओ,लोकसंस्कृति की वही धरोहर रचनाधर्मिता है और वैकल्पिक मीडिया की नींव भी वहीं लोकसंस्कृति है जो हमेशा सत्ता के खिलाफ मोर्चाबंद रही है।उनका मानना था कि आंदोलन के रास्ते ही वैकल्पिक मीडिया लोक संस्कृति की जमीन पर बन सकता है।वरना हर्गिज नहीं।
उस वक्त बंगाल की लोकविरासत और रवींद्र साहित्य के बारे में हमें कुछ खास नहीं मालूम था हालांकि हम बचपन से रवींद्र नजरुल पढ़ते रहे हैं लेकिन लोक विरासत की समझ के बिना वह पढ़ाई हमें रवींद्र संस्कृति को समझने में कोई मदद कर नहीं रही थी।
आज रवींद्र संगीत और रवींद्र साहित्य पर बोलते लिखते हुए चिपको आंदोलन समेत पहाड़ में हर आंदोलन में सबसे आगे रहने वाली तमाम इजाओं और वैणियों की याद आती हैं जो मेरी मां से कम नहीं हैं और मैंने उनकी भी कभी कोई सेवा नहीं की है।
कल हमारे आदरणीय मित्र आनद तेलतुंबड़े से एक लंबे व्यवधाने के बाद फोन पर लंबी बातचीत हुई और इस बातचीत का निष्कर्ष यही है कि समता और न्याय की लड़ाई में आज छात्र युवा सड़कों पर हैं तो हमें बिना शर्त उनका साथ देना चाहिए।इसके साथ ही पितृसत्ता के खिलाफ हमारी लड़ाई अगर शुरु ही नहीं होती तो आधी आबादी को बदलाव की लड़ाई में शामिल किये बिना और उनके नेतृत्व को स्वीकार किये बिना हमारी समता और न्याय की यह लड़ाई अधूरी होगी।
रवींद्र साहित्य और लोकसंस्कृति का पहला पाठ यही है।
दिलों में मुहब्बत नहीं तो कायनात में यह कैसी बहार?
रवींद्र जयंती के मौके पर भी सियासती मजहब और मजहबी सियासत के शिकंजे में इंसानियत का मुल्क?
যদি প্রেম দিলেনা প্রাণে..
যদি প্রেম দিলেনা প্রাণে,,..
কেনো ভোরের আকাশ ভরে দিলে এমন গানে গানে...!!
কেনো তাঁরার মেলা গাঁথা,,
কেনো ফুলের শয়ন পাথা.....
কেনো দক্ষিন হাওয়া গোপন কথা জানায় কানে কানে.....!
যদি প্রেম দিলেনা প্রাণে,,
কেন আকাশ তবে এমন চাওয়া,
চায় এ মুখের পানে...........!
odi Prem Dile Na Prane - Sraboni Sen [ Ekante ] - YouTube
https://www.youtube.com/watch?v=qtNmKia_BPg
১৮ জানুয়ারী, ২০১৪ - GsM RahmaN আপলোড করেছেন
কেন আকাশ তবে এমন চাওয়া চায় এ মুখের পানে? তবে ক্ষণে ক্ষণে কেন আমার হৃদয় পাগল-হেন তরী সেই সাগরে ভাসায় যাহার কূল সে নাহি জানে?
Jodi prem dile na prane - YouTube
https://www.youtube.com/watch?v=Y1qc7_MJnBI
৫ জানুয়ারী, ২০১১ - shamarahmanweb আপলোড করেছেন
Jodi prem dile na prane. Shama Rahman: ... Jadi Prem Dile Na Prane(rabindra sangeet) by Srikanto ...
Jodi Prem Dile Na Prane.flv Rabindra Sangeet - YouTube
https://www.youtube.com/watch?v=V8wTas4gPpY
১১ সেপ্টেম্বর, ২০১০ - arindam8585 আপলোড করেছেন
Jodi Prem Dile Na Prane.flv Rabindra Sangeet ... Jadi Prem Dile Na Prane(rabindra sangeet) by ...
Jadi Prem Dile Na Prane by Suchitra Mitra - YouTube
https://www.youtube.com/watch?v=3QDD_APy...
২৩ সেপ্টেম্বর, ২০১২ - Abhik Chatterjee আপলোড করেছেন
Jadi Prem Dile Na Prane by Suchitra Mitra. Abhik Chatterjee ...JODI PREM DILE NA PRANE Subinoy ...
Jadi Prem Dile Na Prane(rabindra sangeet) by Srikanto Acharya ...
https://www.youtube.com/watch?v=B_7u-35JMw0
২৪ নভেম্বর, ২০১২ - Amit Debnath আপলোড করেছেন
Jadi Prem Dile Na Prane(rabindra sangeet) by Srikanto Acharya ... jodi prem dile na praane alada ...
Jodi Prem Na Dele Prane - YouTube
https://www.youtube.com/watch?v=cC_754FNSyU
২২ নভেম্বর, ২০১০ - Aniruddha Bose আপলোড করেছেন
Jodi Prem Na Dele Prane. Aniruddha Bose .... Jadi Prem Dile Na Prane(rabindra sangeet) by ...
Jodi Prem Dile Na Prane (English Translation) Rabindra Sangeet By ...
https://www.youtube.com/watch?v=g5xvsPMlkmo
১৪ ফেব্রুয়ারী, ২০১১ - infinityTObeyond আপলোড করেছেন
Jodi Prem Dile Na Prane (English Translation) Rabindra Sangeet By Lopamudra Mitra From Puja Section of ...
JODI PREM DILE NA PRANE Subinoy Roy Rabindrasangeet - YouTube
https://www.youtube.com/watch?v=FkS-u3ZTgd0
১ মার্চ, ২০১৩ - pikeyenL7 আপলোড করেছেন
JODI PREM DILE NA PRANE Subinoy Roy Rabindrasangeet ... Jadi Prem Dile Na Prane(rabindra ...
Jodi Prem Dile Na Prane - Amita Sen (Khuku) - YouTube
https://www.youtube.com/watch?v=h18x1spBBSQ
৮ নভেম্বর, ২০১৪ - Surajit Sen আপলোড করেছেন
Jodi Prem Dile Na Prane - Amita Sen (Khuku). Surajit Sen ...Jodi Prem Dilena Prane (Rabindrasangeet ...
Jodi Prem Dilena Prane (Rabindrasangeet)--Sahana Devi - YouTube
https://www.youtube.com/watch?v=7Gn40QBgimk
২৩ জুন, ২০১৩ - Saroj Sanyal আপলোড করেছেন
Jodi Prem Dilena Prane (Rabindrasangeet)--Sahana Devi. Saroj Sanyal ...
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