बंगाल में बिना इलाज मरने को अभिशप्त है नवजात शिशु!थम नहीं रहा मृत्यु जुलूस!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
एक तरफ जहां हमारी सरकार चिकित्सा - पर्यटन को बढ़ावा देने की बात करती है तो वहीं कवि सुकान्त भट्टाचार्य की कविता बंगाल के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अत्यंत प्रासंगिक है। यह धरती नवजात शिशु के लिए एकदम सुरक्षित नहीं है और न उसे सुरक्षित बनाने की कोई चेष्टा होती है। बंगाल में ३५ साल के वामराज के अवसान के बाद अबभी नवजात शिशु जनमते हैं बिना इलाज मरने को अभिशप्त। थोक भाव से अस्पतालों में नवजात शिशुओं का मृत्युजुलूस एक ऐसा परिदृश्य है , जो बहुचर्चित परिवर्तन के बाद भी बदला नहीं है। हालत यह है कि राज्य के नंबर एक शिशु चिकित्सालय कोलकाता स्थित विधानचंद्रराय शिशु अस्पताल में आलम यह है कि मरणासन्न शिशु के आपात आपरेशन की तिथि डेढ़ डेढ़ साल बाद तिथि निश्चित होती है। विशेषज्ञ सर्जन या विशेषज्ञ चिकित्सक अस्पाताल में होते ही नहीं है। सत्ता संभालते ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अस्पतालों का दौरा करके सुर्खियां बटोरी थीं, पर हालात अभी जस के तस हैं। नवजात शिशु के प्रति व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के दायित्व की अद्बुत अभिव्यक्ति है इस कविता में और इसी उदात्त कार्यभार से मुक्त है सत्ता प्रबंधन।दावा तो यह है कि पश्चिम बंगाल में स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार की जोरदार कोशिशें की जा रही हैं! बंगाल में तृणमूल कांग्रेस सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारने की दिशा में अग्रसर है। कई स्वास्थ्य सेवा से संबद्ध योजनाओं को हरी झंडी दी गयी है।स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक महानगर में पांच मेडिकल कॉलेज व अस्पताल हैं। इनके अलावा बांकुड़ा, मालदा, बर्दवान, दार्जिलिंग, नदिया, उत्तर 24 परगना व पश्चिम मेदिनीपुर में भी मेडिकल कॉलेज व अस्पताल हैं।मेडिकल कॉलेज व अस्पतालों के अलावा राज्य में 15 जिला अस्पताल, 45 सब डिवीजनल अस्पताल व 33 स्टेट जनरल अस्पताल हैं। अन्य अस्पतालों की संख्या भी 33 है, जबकि राज्य में करीब 269 ग्रामीण अस्पताल, 79 ब्लॉक प्राइमरी हेल्थ सेंटर, 909 प्राइमरी हेल्थ सेंटर व 10356 सब सेंटर मौजूद हैं। इसके बावजूद राज्य में स्वास्थ्य के क्षेत्र में कई समस्याएं हैं।जैसे रोगियों की भर्ती के लिए बेड की कमी, नये उपकरणों का अभाव।
पश्चिम बंगाल में शिशु मृत्यु दर बढ़ गयी है।इसके मद्देनजर राज्य की सरकारी अस्पतालों में एसएन केयर यूनिट खोली जा रही है।पहले राज्य के करीब छह सरकारी अस्पतालों में एसएन केयर यूनिट थी।सत्ता परिवर्तन के बाद शिशु मृत्यु की घटनाओं से बचने के लिए करीब 20 अस्पतालों में एसएन केयर यूनिट खोली गयी है। वर्ष 2013 तक 50 अस्पतालों में एसएन केयर यूनिट खोलने का लक्ष्य है।स्वास्थ्य राज्यमंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य ने कहा है कि राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद यहां के अस्पतालों की स्थिति सुधारने पर जोर दिया गया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के निर्देश पर स्वास्थ्य विभाग की ओर से अस्पतालों को और संसाधनों से लैस करने की चेष्टा हो रही है। कई अहम परियोजनाओं पर भी विचार किया जा रहा है।पर जमीनी हकीकत कुछ और बयान करती है।
गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल के विभिन्न सरकारी अस्पतालों में पिछले साल कुछ समय में लगातार हो रही शिशुओं की मौत के मामले पर संज्ञान लेते हुए राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग .एनसीपीसीआर. ने राज्य सरकार से इस बाबत कड़े कदम उठाने की मांग की थी। आयोग ने पश्चिम बंगाल सरकार से राज्य में ऐसे प्रसव जिसमें खतरे की संभावना अधिक हो की सूची तैयार करने. उनके प्रसव के लिए उचित कार्रवाई आंगनवाड़ी में पंजीकृत गर्भवती महिलाओं की सूची तथा मालदा जिले के सरकारी अस्पताल में हुई शिशुओं की मौत आदि संबंधी जानकारी मांगी थी। स्वास्थ्य राज्य मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य ने बंगाल की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए पूर्व वाम मोरचा सरकार, पूर्व स्वास्थ्य मंत्री और वर्तमान में विपक्ष के नेता डॉ सूर्यकांत मिश्र को जिम्मेदार ठहराया। हालांकि श्रीमती भट्टाचार्य ने दावा किया कि मां, माटी, मानुष की सरकार के सत्ता में आने के बाद राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार आया है।शिशु मृत्यु दर जून से दिसंबर 2010 में 14862 थी, जो जून से दिसंबर 2011 में घट कर 9942 हो गयी। 1000 शिशुओं में अब मात्र 31 की मौत हो रही है, जबकि राष्ट्रीय औसत 47 है। उन्होंने कहा कि राज्य में तीन मेडिकल कॉलेज खोले गये हैं, जबकि वामो सरकार के दौरान मात्र मेदिनीपुर में ही एक मेडिकल कॉलेज खोला गया था। स्वास्थ्य भरती बोर्ड के माध्यम से स्वास्थ्य विभाग में नियुक्ति होगी।
गौरतलब है कि समस्त भारत में जीवित पैदा हुए प्रति एक हजार बच्चो में से औसत 58 बच्चे मौत के मुंह में चले जाते हैं। विकसित देशो में यह संख्या 5 से भी कम है। इस दिशा में राज्यों के मध्य काफी अंतर है। जीवित पैदा हुए प्रति 1000 में से केरल में शिशु मृत्यु दर 12 है जबकि मध्य प्रदेश में 79 है।विकासशील देशों में पैदा होने वाले कम भार वाले बच्चों में से 35 प्रतिशत अकेले भारत में ही पैदा होते हैं। विकासशील देशों में कुपोषण का शिकार हुए बच्चों में से 40 प्रतिशत बच्चे अकेले भारत में हैं।अधिकांश सम्याएं प्रसवपूर्ण अवधि और प्रसव के दौरान तथा जन्म के तुरंत बाद अपर्याप्त देखरेख के कारण पैदा होती हैं।जन्म के समय कम भार होने के तथा कुपोषण के कारण बच्चे के पूर्ण विकास में बाधा उप्पन्न होती है।कुल मौतों में से दो तिहाई मौतें जन्म के पहले सप्ताह में हो जाती हैं और इनमें से दो- तिहाई मौतें जन्म के पहले दो दिन के भीतर हो जाती हैं (भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद आई. सी एम. आर.)।इस प्रकार 45 प्रतिशत नवजात शिशुओं की मृत्यु उनके जन्म से 48 घंटों के भीतर हो जाती है।! सीआईए के आकड़ों के अनुरूप शिशु मृत्यु-दर सबसे कम मोनैको देश में है जहा 1.8 बच्चे ही काल-ग्रसित होते हैं तो वही भारत में स्थिति बिलकुल उल्टी है ! भारत में आज भी एक हजार बच्चो में से 46 बच्चे काल के शिकार हो जाते हैं और 40 प्रतिशत से अधिक बच्चे कुपोषण के शिकार हो जाते हैं !
इस पर आगे चर्चा से पहले कवि सुकान्त की कविता जरुर पढ़ लें!
पारपत्र.. / सुकान्त भट्टाचार्य
भूमिष्ठ हुआ जो शिशु आज रात
उसी के मुँह से मिली है ख़बर
कि पास उसके एक पारपत्र
जिसके साथ खड़ा वह विश्व के द्वार
भर कर एक ज़ोर की चीख़
उसने जताया है अपना हक़ जनमते ही ।
नन्हा, निस्सहाय वह
फिर भी मुट्ठियाँ भिंची हुई
लहराती-फ़हराती
न जाने किस अबूझ अंगीकार में ।
अबूझ उसकी भाषा सबके लिए
कोई हँसता, कोई देता मीठी झिड़की ।
मैंने समझी उसकी भाषा मन ही मन
पाई चिट्ठी नई, आने वाले युग की
मैंने पढ़ा वह पहचान-पत्र
भूमिष्ठ शिशु की धुँधली, कुहासे से भरी
आँखों में ।
आया है नवीन शिशु
छोड़ देनी होगी जगह उसके लिए
चले जाना होगा हमें व्यर्थ ही
जीर्ण-धरा पर मृत ध्वंसस्तूप की ओट ।
जाऊँगा, लेकिन जब तक है जान
हटाऊँगा धरती के सब जंजाल
दुनिया को इस शिशु के रहने लायक
बना जाऊँगा
नवजातक के प्रति यह मेरा दृढ़ अंगीकार ।
और अन्त में निबटा कर सारे काम
अपने लहू से नवीन शिशु को दूँगा आशीर्वाद
हो जाऊँगा इतिहास उसके बाद ।
मूल बंगला से अनुवाद : नील कमल
अभी हाल में मालदह से मरणासन्न एक शिशु को विधानचंद्रराय शिशु अस्पताल में इलाज के लिए लाया गया।उसे बचाने के लिए तत्काल शल्य चिकित्सा की आवश्यकता थी। पर सोमवार के दिन भी साम छह बजे के बाद इस शिशु अस्पताल में न तो शिशु विशेषज्ञ होते हैं और शिशु शल्य विशेषज्ञ। आवासीय चिकित्सकों के भरोसे चलता है अस्पताल। मजबूरन बाहर से चिकित्सक लाना पड़ा और पूरे तीन घंटे बेकार चले गये। मरणासन्न शिशु के लिए तीन घंटे बेकार जाने का मतलब उसके असहाय मां बाप से पूछकर देखें।
यह कोई अनहोनी नहीं है बल्कि इस अस्पताल की रेजमर्रे की वास्तव जिंदगी है, जिसमें नवजात शिशुों का दम घुटता चला जाता है।परिस्थिति इतनी भयावह है कि राज्य के एकमात्र सरकारी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल की खासियत ही यही है कि यहां टौबीसों गंटों में आपात शल्यक्रिया के लिए एक भी रेजिडेंसियल मेडिकल अफसर नहीं होता। अस्पताल के सुपर भी असहाय हैं। वे कहते हैं कि इस स्थिति में चौबीसों घंटा सेवा जारी रखना हमारे लिए समस्या है। उनके मुताबिक इस सिलसिले में उन्होंने स्वास्थ्य भवन को इत्तला कर दिया है । नतीजा? फिर वही ढाक के तीन पात!मालूम हो कि पेडियट्रिक सर्जरी विबाग के लिए इस अस्पताल में साठ शय्याएं हैं।इस विबाग की जिम्मेवारी चार कंस्लटेंट और एक रेजिडेंसियल मेडिकल अपसर पर है।इतने कम चिकित्सकों के भरोसे हफ्ते में छह दिन आउटडोर इनडोर के अलावा चौबीसों घंटे सेवा जारी रखना नामुमकिन है।यही वजह है कि सोम, बुध और शुक्रवार को शाम छह बजे के बाद अस्पाताल में कोी शिशु शल्य विशेषज्ञ नहीं होते।परिस्थति कितनी संगीन है , इससे सणझिये कि चिकित्साधीन सभी शिशुओं के आपरेशन की तिथि ्भी जनवरी , २०१३ में ही २०१४ में तय कि गयी है।वह भी जून जुलाई में । यानी डेढ़ साल तक इंतजार करने के बाद आपरेशन है। जाहिर है कि बहुत मजबूर कमजोर तबके के मां बाप की यह दुर्गति हो रही है , जिनकी कोई सूरत नहीं बनती सरकारी अस्पताल के सिवाय निजी अस्पताल की तरफ मुखातिब होने की।चार आपरेशन थियेटर हैं। इनमें से एक प्लांडड आपरेशन के लिए नियत । बाकी तीन में आपरेशन होते हैं।इतने चिकित्सक नहीं हैं कि इन तीन आपरेशन थिएटरों में भी प्रतिदिन छह आपरेशन हो सकें।
बंगाल में शिशु चिकित्सा की कुछ इसतरह होती है:
कोलकाता के विधान चंद्र राय शिशु अस्पताल में बीते 48 घंटों में 17 शिशुओं की मौत का मामला सामने आया है। इनमें ज्यादातर नवजात थे जिन्हें बंगाल के विभिन्न इलाकों से वहां इलाज के लिए लाया गया था। इन मौतों से गुस्साए अभिभावकों ने अस्पताल में नारेबाजी करते हुए तोड़फोड़ शुरू कर दी। इसके बाद पुलिस को स्थिति नियंत्रित करने के लिए लाठीचार्ज करना पड़ा। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मामले की जांच के आदेश दिये हैं। स्वास्थ्य विभाग उन्हीं के पास है। पता चला है कि गुरुवार पूर्वाह्न दस बजे तक 15 शिशुओं की मौत थोड़े-थोड़े अंतर पर हुई। इससे नाराज परिजन नारेबाजी करते हुए उग्र हो गए। उन्होंने चिकित्सकों पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए अस्पताल में तोड़फोड़ की और गुजर रही सड़क को जाम कर दिया। इसी दौरान दो और बच्चों की मौत हो जाने से स्थिति और बिगड़ गई। हालात को काबू करने के लिए पुलिस को दो बार लाठीचार्ज करना पड़ा। अस्पताल में बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात कर दिया गया है। बीसी राय शिशु अस्पताल व मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल मृणालकांति चटर्जी ने कहा है कि सभी बच्चों को चिंताजनक हालत में भर्ती कराया गया था। बच्चों में किडनी व लीवर की गड़बड़ी और खून की कमी बीमारियां थीं। डा.चटर्जी ने अधिकतर बच्चों की मौत की वजह उनका अंडर वेट होना भी बताया। ज्यादातर शिशुओं की आयु एक से पांच दिनों की थी। उन्होंने इलाज में किसी लापरवाही से साफ इंकार किया। उल्लेखनीय है कि 2002 में भी महज तीन दिनों के अंदर अस्पताल में भर्ती 32 शिशुओं की मौत हुई थी।
१९ जनवरी , २०१२ को स्वास्थ्य सेवा के स्तर में गिरावट की शिकायत के बीच कोलकाता से दो सदस्यीय टीम ने मालदा जिला अस्पताल समेत अन्य स्वास्थ्य केंद्रों का दौरा किया। प्रतिनिधिदल ने इस रोज अस्पताल परिसर के प्रत्येक वार्ड का जायजा लिया। इस दौरान मरीजों के परिजनों ने दल को चिकित्सा सेवा को लेकर अपनी शिकायत दर्ज कराई। इसी रोज प्रतिनिधिदल ने जिला स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक की। इस बीच बीते 36 घंटे के भीतर मालदा मेडिकल कॉलेज समेत जिला अस्पतालों में मृत शिशु मरीजों की संख्या बढ़कर 17 हो गई। कोलकाता के डा. विधान चंद्र राय शिशु अस्पताल में घटी शिशु मरीजों की मौत की घटना के बाद मालदा मेडिकल कॉलेज में इस हादसे से विचलित राज्य सरकार ने इस प्रतिनिधिदल को हालात का जायजा लेने के लिए भेजा है। जैसे ही प्रतिनिधिदल के सदस्य शिशु वार्ड में दाखिल हुए वैसे ही मरीजों के परिजनों ने शिकायतों की झड़ी लगा दी। उन्होंने चिकित्सा सेवा और अस्पताल की बुनियादी सुविधाओं की कमी बताई। इनका आरोप है कि मेडिकल कॉलेज में पर्याप्त संख्या में चिकित्सक नहीं हैं। बिस्तर का अभाव है। इस वजह से एक बिस्तर पर तीन तीन बच्चों को रखा गया है। कई बच्चों को फर्श पर भी सुलाया गया है। जब अस्पताल प्रबंधन से इसकी शिकायत की जाती है तो उनके साथ स्वास्थ्य कर्मी दुर्व्यवहार करते हैं। शिशु वार्ड की कई खिड़कियों के शीशे टूटे हुए हैं। इनसे वार्ड के भीतर ठंडी हवा घुस रही है। इससे बच्चों की बीमारी बढ़ रही है। शिकायत करने से भी कोई लाभ नहीं हो रहा है। दल के अध्यक्ष डा. त्रिदिव बनर्जी ने बताया कि इस संबंध में रिपोर्ट मुख्य सचिव को सौंपी जाएगी। उन्होंने स्वीकार किया कि मेडिकल कॉलेज में चिकित्सक एवं स्वास्थ्य कर्मियों का अभाव है। इस बाबत पड़ताल की जा रही है। बिस्तर की संख्या बढ़ाए जाने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि शिशु वार्ड में कई रूम हीटर लगाने के निर्देश दिए गए हैं। प्रतिनिधिदल ने हालांकि चिकित्सा सेवा के बाबत कोई खुलासा नहीं किया।
2011 मेंसाल 40 से अधिक बच्चों की मौत के कारण सुर्खियों में आए बीसी राय शिशु अस्पताल में पिछले 24 घंटे में 5 बच्चों की मौत हुई है। मारे गए सभी बच्चों की उम्र 1 से 5 महीने के बीच थी, उन्हें महानगर के आस पास इलाकों से रेफर किया गया था। इसी बीच मारे गए पांच महीने के शिशु की माता सुनीता हल्दर ने अस्पताल की नर्सो पर दुर्व्यवहार का आरोप लगाया। सुनीता ने कहा कि उसके बच्चे को सलाइन चढ़ाया जा रहा था। बच्चे को तकलीफ होने पर नर्स का सूचना दी गई लेकिन वह नहीं आई। नर्सो ने सुनीता के बार बार आवेदन करने पर अपशब्द कहे। इस घटना की खबर मिलते ही अन्य अभिभावक जिनके शिशुओं की मौत हुई थी, उग्र हो गए और उन्होंने अस्पताल के अलावा रास्ते पर प्रदर्शन किया। बाद में फूलबागान थाने की पुलिस ने मौके पर पहुंच कर उग्र लोगों का समझा बुझा कर शांत किया। अस्पताल में प्रदर्शन के दौरान मातम का दृश्य था और महिलाएं जोर जोर से रो रही थीं।वहीं अस्पताल के सुपर डी पाल ने बताया कि सभी मौतें जटिल बीमारियों के कारण हुई हैं। उन्होंने चिकित्सकीय लापरवाही की बातों को खारिज कर दिया।उल्लेखनीय है कि पिछले सप्ताह मालदा जिले में भी शिशु मौतों का सिलसिला शुरू हुआ था। जिले में10 दिन में करीब 20 से अधिक शिशुओं की मौत हो गई है। इसी बीच राज्य की नई तृणमूल सरकार की स्वास्थ्य राज्यमंत्री चंद्रिमा भंट्टाचार्य ने दावा किया है शिशु मृत्यु दर 3 फीसदी तक घट गई है। मालदा के अलावा मुर्शिदाबाद जिला अस्पताल के शिशु विभाग में भी कल 9 नवजातों की मौत हुई थी।
03-10-2007 – एक ही दिन में लगातार पांच बच्चों की हुई पांच बच्चों की मौत की घटना को लेकर विधान चंद्र राय शिशु अस्पताल में तनाव का माहौल है। स्थिति की गंभीरता को देखते हुये पुलिस ने अस्पताल परिसर की सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी है।
20 मार्च, 2012 को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री गुलाम नबी आजाद ने राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान बताया कि पश्चिम बंगाल में मुर्शिदाबाद के जिला अस्पताल में जुलाई 2011 में 12 शिशुओं और मालदा मेडिकल कॉलेज में जनवरी 2012 के दौरान 15 शिशुओं की मौत की खबर थी। राज्य सरकार की जांच में पता चला कि ज्यादातर बच्चों को गंभीर स्थिति में इन अस्पतालों में रेफर किया गया था। इनमें से ज्यादातर नवजात थे। इनकी मृत्यु के मुख्य कारण समय से पहले उनका जन्म होना, उनका वजन कम होना, उनका न्यूमोनिया, सेप्टीसेमिया और बर्थ एस्फीक्शिया (जन्मजात श्वांनस अवरोध) से पीडित होना था।आजाद ने बताया कि शिशु मृत्युदर में कमी के लिए तीन साल में कई योजनाएं शुरू की गई है। इनके लिए केंद्र से अलग-अलग धन भी दिया गया। इसी के तहत अस्पतालों में नवजात शिशु देखभाल यूनिट स्थापित किए जा रहे हैं। प्रत्येक यूनिट में चार डॉक्टर और दस प्रशिक्षित नर्स होंगी।
इन दावों के बीच केंद्र में यूपीए सरकार से तृणमूल के अलग हो जाने के ्लावा कोई सिुधार हुआ हो, ऐसा नहीं लगता।क्या मुख्यमंत्री िइस ओर
ध्यान देंगी?
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री गुलाम नबी आजाद ने राज्यसभा में तब माना था कि देश में शिशु मृत्यु दर दुनिया के विभिन्न देशों की तुलना में बहुत ज्यादा है। जन्म लेने वाले प्रति क हजार शिशुओं में से औसतन 45 की मौत हो जाती है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री गुलाम नबी आजाद ने राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान बताया कि देश में शिशु मृत्युदर 12.5 लाख शिशु सालाना है। इस मामले में नेपाल, श्रीलंका तथा बांग्लादेश की स्थिति भी भारत से अच्छी है।उन्होंने वैष्णव परीडा के पूरक प्रश्न के उत्तर में कहा कि शिशु मृत्युदर में सुधार के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत कई कदम उठाए गए हैं। उन्होंने हालांकि कहा कि मातृ मृत्युदर में 17 फीसदी की कमी आई है। आजाद ने कहा कि केवल पाकिस्तान एकमात्र ऐसा देश है जिससे भारत अपनी तुलना कर सकता है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री ने बताया कि पश्चि म बंगाल में जन्म लेने वाले प्रति एक हजार शिशुओं में से औसतन 32 बच्चों की मौत हो जाती है। इस प्रकार वहां सालाना शिशु मृत्युदर 47 हजार है।
आजाद ने बताया कि शिशु मृत्युदर में कमी के लिए तीन साल में कई योजनाएं शुरू की गई है। इनके लिए केंद्र से अलग-अलग धन भी दिया गया। इसी के तहत अस्पतालों में नवजात शिशु देखभाल यूनिट स्थापित किए जा रहे हैं। प्रत्येक यूनिट में चार डॉक्टर और दस प्रशिक्षित नर्स होंगी।
उन्होंने बताया कि जननी सुरक्षा योजना के तहत गर्भवती महिलाओं को गांवों के सरकारी अस्पताल में 1400 रुपे और शहर के सरकारी अस्पताल में एक हजार रुपए दिए जाते हैं। कई महिलाओं ने इस योजना का लाभ उठाया। इससे मातृ मृत्युदर घटाने में मदद मिली है।
आजाद के अनुसार, एक और योजना शुरू की जा रही है जिसके तहत गर्भवती महिला के सरकारी अस्पताल में आने के बाद से उसकी देखभाल, प्रसव, दवा और उसके आहार का खर्च सरकार देगी। भाजपा की स्मृति ईरान के पूरक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य का विषय है और केंद्र विभिन्न योजनाओ के लिए धन देता है। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत देश भर में कुल 8722 डाक्टरों, 2014 विशेषज्ञों, 14529 पराचिकित्सकों (पैरा मेडिक्स), 33413 स्टाफ नर्स आदि की नियुक्ति की गई है। उन्होंने बताया कि शिशुओं की मौत की घटनाओं के बाद कोलकाता स्थित बी सी राय हॉस्पिटल में 30 बिस्तरों वाला एक विशेष नवजात देखभाल केंद्र बनाने के लिए धन दिया गया। यह केंद्र नवंबर में शुरू हो चुका है। डी. बंदोपाध्याय के पूरक प्रश्न के उत्तर में आजाद ने कहा कि शिशु मृत्यु दर अधिक होने के कई कारण हैं जिनमें अस्पताल अधिक दूर होना, परिवहन की समस्या और डॉक्टरों का अभाव और खास तौर पर हर स्तर पर मानव संसाधन की कमी भी शामिल हैं। उन्होंने कहा कि इस समस्या के हल के लिए बुनियादी ढांचे और दक्षता के उन्नयन की जरूरत है।
This Blog is all about Black Untouchables,Indigenous, Aboriginal People worldwide, Refugees, Persecuted nationalities, Minorities and golbal RESISTANCE. The style is autobiographical full of Experiences with Academic Indepth Investigation. It is all against Brahminical Zionist White Postmodern Galaxy MANUSMRITI APARTEID order, ILLUMINITY worldwide and HEGEMONIES Worldwide to ensure LIBERATION of our Peoeple Enslaved and Persecuted, Displaced and Kiled.
Saturday, February 2, 2013
बंगाल में बिना इलाज मरने को अभिशप्त है नवजात शिशु!थम नहीं रहा मृत्यु जुलूस!
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment