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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Friday, July 20, 2012

अभी कई चुनौतियां हैं राहुल की राह में


अभी कई चुनौतियां हैं राहुल की राह में
http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/16-highlight/24551-2012-07-20-04-55-00

Friday, 20 July 2012 10:24

अंबरीश कुमार लखनऊ, 20 जुलाई। कांग्रेस में बड़ी जिम्मेदारी संभालने जा रहे राहुल गांधी के लिए आगे का रास्ता बहुत आसान नहीं है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार के बाद उनकी लंबे समय तक दूरी पार्टी कार्यकर्ताओं को खली है। उत्तर प्रदेश में चुनाव के दौरान दो नौजवान प्रचार में जुटे थे और तब कहा जा रहा था 'एक नौजवान गुस्से में घूम रहा है, तो दूसरा मुस्कराता हुआ।' साफ तौर पर यह इशारा राहुल की तरफ था, जो कमजोर पार्टी संगठन और लचर प्रदेश नेतृत्व के साथ बहुजन समाज पार्टी से लड़ने का दिखावा कर रहे थे पर लड़ रहे थे समाजवादी पार्टी से। 
दूसरी तरफ पार्टी के नेता सब जगह यह प्रचार करने में जुटे थे कि बिना कांग्रेस के समर्थन के कोई सरकार राज्य में नहीं बन सकती। यानी कांग्रेस पहले से यह मान कर चल रही थी कि वह अपनी ताकत पर सत्ता में नहीं आने वाली। जबकि भाजपा नेताओं ने चुनाव के पहले दौर के बाद ही यह कहना शुरू कर दिया था कि त्रिशंकु विधानसभा बनने वाली है। ऐसे में समाजवादी पार्टी जो पूर्ण बहुमत के लिए लड़ रही थी, उसे बहुमत मिला और रणनीतिक गलती के बाद कांग्रेस और भाजपा बुरी तरह हारी।
राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश की जनता खासकर दलितों, मुसलमानों और किसानों को लगातार यह संदेश देने का प्रयास किया कि कांग्रेस उनके साथ है। इसके लिए वे पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लेकर पूर्वांचल के किसानों के बीच गए भी। दलितों के घर रुके और उनके हाथ का बना खाना खाया। हैंडपंप के पानी से नहाया भी। आजादी के बाद इस तरह गांधी परिवार का कोई नेता गांव तक नहीं पहुंचा पर उनका यह सब करना एक राजनीतिक संदेश ही बन कर रह गया।
राहुल की प्रतिबद्धता और सदाशयता पर किसी को कोई शक नहीं था। वाराणसी में चुनाव के दौरान जब वे दलितों के साथ खाना खा रहे थे, तो एक दलित बुजुर्ग ने आंसू पोछते हुए कहा था -कभी सोचा नहीं था इंदिराजी का पोता हमारे साथ बैठ कर खाना खाएगा। इससे उनके असर का अंदाजा लगाया जा सकता है। मगर उनके पास वह संगठन नहीं था, जो यह भरोसा दिलाता कि कांग्रेस सत्ता में आएगी। दूसरे वे उत्तर प्रदेश संभालने के लिए तैयार भी नहीं थे। यह पार्टी के रणनीतिकारों की दूसरी बड़ी भूल थी।

उत्तर प्रदेश की राजनीति को करीब से देखने वाले प्रो प्रमोद कुमार ने कहा-अगर कांग्रेस राहुल गांधी को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट कर मैदान में उतारती, तो कमजोर संगठन के बावजूद राहुल गांधी को बहुमत मिल सकता था। इसके बाद वे केंद्र की राजनीति में जाते, तो रास्ता आसान होता। अब उत्तर प्रदेश का चुनाव हारने के बाद इंदिरा नेहरू परिवार का करिश्मा टूटता नजर आ रहा है। तीन पीढ़ियों के बाद वैसे भी कोई डाइनेस्टी नहीं चल पाती।
लेकिन राजनीति में भविष्यवाणी आसान नहीं होती। इसलिए गांधी परिवार को पूरी तरह खारिज कर देना ठीक नहीं लगता। राहुल की आगे की राजनीति पर उत्तर प्रदेश हावी रहेगा, यह भी सच है। लोकसभा चुनाव में फिर उन्हें दूसरी परीक्षा देनी होगी । वे पार्टी में कायर्कारी अध्यक्ष बनाए जा सकते हैं पर इसके बावजूद उत्तर प्रदेश उनका घर ही माना जाएगा। इसलिए लोकसभा चुनाव में उन्हें काफी मेहनत करनी पड़ेगी। 
अखिलेश यादव सरकार जो बेरोजगारी भत्ता, टैबलेट और लैपटाप के नारे के साथ विधानसभा चुनाव में बहुमत लेकर आई है, वह इस रणनीति को फिर लोकसभा में दोहरा कर अपनी लोकसभा सीटों को बढ़ा सकती है। हालांकि विधानसभा जैसा प्रदर्शन सपा कर पाएगी, यह नहीं लगता और तब कुछ और समय निकल चुका होगा। फिर भी सपा पूरी तैयारी में जुट रही है। पार्टी प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा कि लोकसभा में सपा अपनी पूरी ताकत दिखाएगी और किसी पार्टी से तालमेल का सवाल भी नहीं है। पार्टी के इस रुख से साफ है कि कांग्रेस को इस चुनाव में कोई बैसाखी भी नहीं मिलनी। इस सबको देखते हुए राहुल गांधी ने अगर उत्तर प्रदेश में पार्टी संगठन में जान नहीं फूंकी, तो उनका आगे का रास्ता आसान नहीं होगा।

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