मेघनाद देसाई
वर्ष 1940 के दशक में जब हम लोग बच्चे थे तो गाया करते थे, हिंदी हैं हम चालीस करोड़. 1940 के दशक के चालीस करोड़ लोग अपने आपको हिंदी यानी हिंद के रहने वाले समझते थे. सुभाष चंद्र बोस ने जर्मनी में एक रेडियो स्टेशन स्थापित किया और उनका नारा जयहिंद था. यही नारा प्रधानमंत्री स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल क़िले से देते हैं. भारत का एक अलग अस्तित्व है. यह विभाजन के बाद की बात है और भारतीय संविधान में इसका ज़िक्र किया गया, ताकि इंडो-आर्यन काल से हम संबंध स्थापित कर सकें. लेकिन देखा जाए तो भारतवर्ष कभी भी पूरा इंडिया नहीं था. इसमें पंजाब, हरियाणा और दिल्ली शामिल था. इसमें बिहार और उत्तर प्रदेश को जोड़ा जा सकता था, लेकिन बंगाल (गौड़) इसमें शामिल नहीं था और विंध्य के दक्षिण का भाग यानी दक्षिण भारत भी इसका हिस्सा नहीं था. इसलिए भारत की बात करना नए स्वतंत्र भारत के विचार के लिए चिंता की बात थी. हिंदू और हिंदूइज्म शब्द मूल रूप से परशियन हैं. हिंद वास्तविक तौर पर सिंध था और हिंदू का मतलब केवल सिंधू यानी सिंधु नदी क्षेत्र के निवासी. भारत के बदले इंडिया हिंद कहना ज़्यादा सही होगा. हिंदू उन लोगों को कहा जाता था, जो इंडस नदी के क्षेत्र में रहते थे.
किसी भी देश में एक ही तरह के लोगों को रहने का विचार यूरोपीय विचार है. इसका उपयोग वहां ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य को तोड़ने की खातिर चलाए गए आंदोलन के लिए किया गया था. ये साम्राज्य विविध राष्ट्रीयता एवं विभिन्न पहचान वाले थे. धर्म और भाषा के आधार पर इन साम्राज्यों को तोड़ा जा सका.
हिंदुत्व के ऊपर सावरकर का लेख हिंदू और हिंदुत्व को लेकर का़फी सुरक्षात्मक है. उन्होंने हिंदू शब्द के विदेशी होने को अस्वीकार किया है. वह सभी इंडियंस (विभाजन पूर्व) की एक महत्वपूर्ण पहचान की तलाश कर रहे थे और इसके लिए उन्होंने हिंदी के बदले हिंदू शब्द को चुना. हिंदू शब्द को धार्मिक संकेत तो जनसंख्या का आकलन करने वाले अंग्रेजों ने दिया. उन्नीसवीं शताब्दी में अंग्रेजों पर किसी को परिभाषित या उसका वर्गीकरण करने का भूत सवार था. अपनी संशय युक्त परंपरा के कारण उन लोगों ने इसके लिए भी विज्ञान का सहारा लिया. उन्हें भारतीय जनसंख्या का वर्गीकरण करना था. इसलिए उन्होंने भारत की बहुसंख्यक जनसंख्या को हिंदू कहा और बाद में यही लेबल भारत की बहुसंख्यक जनसंख्या के ऊपर लग गया. हालांकि इसके लिए ब्राह्मनिज्म या फिर सनातम धर्म ज़्यादा अच्छा शब्द हो सकता था.
अंग्रेजों के भारत आने से पहले इस्लाम का पालन करने वाले लोगों को मुस्लिम के रूप में जाना जाता था, लेकिन ब्राह्मण धर्म को मानने वाले लोगों के लिए ऐसा कोई एक शब्द नहीं था. ब्राह्मनिज्म अब्राहमिक की तरह कोई एक धर्म नहीं रहा है. इसमें सभी लोग अलग-अलग तरह के पर्व मनाते थे और अलग-अलग देवी-देवताओं में विश्वास करते थे. जब अंग्रेजों ने ग़लत तरीक़े से बहुसंख्यक लोगों के ऊपर हिंदुत्व का लेबल चिपका दिया तो उसके पचास साल बाद सावरकर ने इसका उपयोग किया, जिससे कई समस्याएं उभर कर आईं. इससे तो बेहतर शब्द हिंदित्व होता. लेकिन एक विचारधारात्मक कारण से उन्होंने हिंदुत्व शब्द का उपयोग किया था. जो लोग धार्मिक आधार पर हिंदू नहीं हैं, उन्हें हिंदुत्व के साथ जोड़ा गया, क्योंकि उनका जन्म हिंद में हुआ था. जिस शब्द का उपयोग एकता स्थापित करने के लिए किया गया था, बंटवारे के समय वही हत्या के लिए उपयोग किया गया.
किसी भी देश में एक ही तरह के लोगों को रहने का विचार यूरोपीय विचार है. इसका उपयोग वहां ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य को तोड़ने की खातिर चलाए गए आंदोलन के लिए किया गया था. ये साम्राज्य विविध राष्ट्रीयता एवं विभिन्न पहचान वाले थे. धर्म और भाषा के आधार पर इन साम्राज्यों को तोड़ा जा सका. प्रथम विश्व युद्ध ने दो साम्राज्यों को तोड़ दिया. कई राष्ट्र बने, जिनमें फिलीस्तीन जैसे देश भी हैं, जो राष्ट्र राज्य बनने का इंतज़ार कर रहे हैं. भारत के लिए कोई कारण नहीं है कि वह यूरोप के इस रोग को अपने यहां आने दे. ब्रिटेन की बात करें तो वह भी कई राष्ट्रीयताओं जैसे वेल्श, स्कॉटिश, आईरिश, कोर्निश और इंग्लिश का मिश्रण है. मोहन भागवत ने कहा है कि भारत का प्रधानमंत्री हिंदुत्व का चैंपियन होना चाहिए. काश, उन्होंने हिंदुत्व की जगह हिंदित्व कहा होता. आज़ादी मिलने के 65 सालों के बाद भी हमारा देश कमज़ोर है, इसके पीछे यही कारण है.
मेघनाद देसाई
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(Couretsy:ChauthiDuniya)
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