ashish k Singh
A poem by Devi Prasad Mishra, senior Hindi poet
carrying shades of Khusro, Nagarjun and Raghuvir Sahay
* * *
ढूँढ़ो अब इस रेत में
जो भी सोचेगा अलग हम लेंगे संज्ञान
जेएनयू का तोड़ दो मेधामय अभिमान
रात हुई इस राष्ट्र की जैसे किया मसान
आसपास हैं घूमते नव नाज़ी बलवान
अधिनायक की आँख में हत्या का वीरान
इस विदर्भ में झूलते लुटते हुए किसान
हर कोने से गूँजता फासिस्टी जयगान
उस कोने बजरंग है, पतंग लिये सलमान
इस ताक़त के सामने काँप गया ईमान
दावत में दिखते रहे पीके नर्वस खान
किस हक़ से हो जाँचते बार बार ईमान
हर भाषा में पूछते कितने पाकिस्तान
साँस भरी पानी पिया खुसरो लुटा मकान
ढूँढ़ रहे इस रेत में अपना नखलिस्तान
(देवी प्रसाद मिश्र)
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