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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Tuesday, April 30, 2013

[अपना मोर्चा] मई दिवस का सन्देश


From: Satya Narayan <notification+kr4marbae4mn@facebookmail.com>
Date: 2013/5/1
Subject: [अपना मोर्चा] मई दिवस का सन्देश
To: अपना मोर्चा <ApnaMorcha@groups.facebook.com>


मई दिवस का सन्देश स्मृति से प्रेरणा लो! संकल्प...
Satya Narayan 9:19am May 1
मई दिवस का सन्देश

स्मृति से प्रेरणा लो! संकल्प को फौलाद बनाओ! संघर्ष को सही दिशा दो!

मजदूर साथियो! नयी सदी में पूँजी के खिलाफ वर्ग युध्द में फैसलाकुन और मुकम्मल जीत के लिए आगे बढ़ो!!

जब तक लोग कुछ सपनों और आदर्शों को लेकर लड़ते रहते हैं, किसी ठोस, न्यायपूर्ण मकसद को लेकर लड़ते रहते हैं, तब तक अपनी शहादत की चमक से राह रोशन करने वाले पूर्वजों को याद करना उनके लिए रस्म या रुटीन नहीं होता। यह एक जरूरी आपसी, साझा, याददिहानी का दिन होता है, इतिहास के पन्नों पर लिखी कुछ धुँधली इबारतों को पढ़कर उनमें से जरूरी बातों की नये पन्नों पर फिर से चटख रोशनाई से इन्दराजी का दिन होता है, अपने संकल्पों से फिर नया फौलाद ढालने का दिन होता है।
अक्सर ऐसा होता है कि लोग लड़ते हैं और हारते हैं और हार के बावजूद, वे पाते हैं कि अन्तत: उन्हें वह हासिल हो गया है, जिसके लिए वे लड़े थे। लेकिन तब वे पाते हैं कि वास्तव में उससे आगे की किसी चीज को पाने के लिए उन्हें लड़ना है और वे उसकी तैयारियों में जुट जाते हैं। अक्सर ऐसा भी होता है कि लोग कुछ सपनों-आदर्शों के लिए लड़ते हैं और जीतने के बाद उन्हें अमल में उतारना भी शुरू कर देते हैं। इस सिलसिले में वे नौसिखुए की तरह कुछ अनगढ़ गढ़ते हैं, गलतियाँ करते और सीखते हैं। फिर उन्हें दिल तोड़ देने वाली हार का सामना करना पड़ता है। ऐसा लगता है कि सब कुछ खो-बिखर गया और हालात फिर एकदम वैसे ही हो गये, जैसे उनकी जीत के पहले थे। लेकिन हताशा और संशय से उबरने के बाद वे पाते हैं कि हालात एकदम पहले जैसे नहीं हैं। इन नये हालात में वे फिर से अपने उन्हीं सपनों-आदर्शों के लिए लड़ना शुरू करते हैं तो पाते हैं कि अब उन्हें एक नये उन्नततर धरातल पर लड़ना है और विगत के अनुभवों की समझ (स्मृति) और नये वर्तमान की समझ (मति) ने उनके सपनों-आदर्शों का नवीकरण करते हुए उन्हें भी उन्नत बना दिया है, यानी उनकी प्रज्ञा का विस्तार कर दिया है। लोग पाते हैं कि उनकी लड़ाई की जमीन उन्नत हो गयी है; नीति, रणनीति और रणकौशल बदल गये हैं, लेकिन पूरी लड़ाई में रोजमर्रे की छोटी-छोटी लड़ाइयों की कड़ियाँ पिरोते हुए कई बार मुद्दों के स्तर पर पीछे लौटकर शुरुआत उन्हें उन प्रारम्भिक स्तर की माँगों से करनी पड़ती है, जो लोगों ने कभी हासिल कर ली थीं और जो अब फिर उनसे छीन ली गयी हैं। ये कुछ बुनियादी नारे और मुद्दे पुराने लगते हुए भी नये होते हैं क्योंकि लड़ाई की जमीन (परिप्रेक्ष्य) बदल चुकी होती है। लगता है कि शुरुआत फिर वहीं से करनी पड़ रही है, लेकिन वास्तव में यह एक नयी शुरुआत होती है।

अब से 124 वर्षों पहले मई दिवस के वीर शहीदों - पार्सन्स, स्पाइस, एंजेल, फिशर और उनके साथियों के नेतृत्व में शिकागो के मजदूरों ने आठ घण्टे के कार्यदिवस के लिए एक शानदार, एकजुट लड़ाई लड़ी थी। तब हालात ऐसे थे कि मजदूर कारखानों में बारह, चौदह और सोलह घण्टों तक काम करते थे। काम के घण्टे कम करने की आवाज उन्नीसवीं शताब्दी के मध्‍य से ही यूरोप, अमेरिका से लेकर लातिन अमेरिकी और एशियाई देशों तक के मजदूर उठा रहे थे। पहली बार 1862 में भारतीय मजदूरों ने भी इस माँग को लेकर कामबन्दी की थी। 1 मई, 1886 को पूरे अमेरिका के 11,000 कारखानों के तीन लाख अस्सी हजार मजदूरों ने आठ घण्टे के कार्यदिवस की माँग को लेकर एक साथ हड़ताल की शुरुआत की थी। शिकागो शहर इस हड़ताल का मुख्य केन्द्र था। वहीं 4 मई को इतिहास-प्रसिध्द 'हे मार्केट स्क्वायर गोलीकाण्ड' हुआ। फिर मजदूर बस्तियों पर भयंकर अत्याचार का ताण्डव हुआ। भीड़ में बम फेंकने के फर्जी आरोप (बम वास्तव में पुलिस के उकसावेबाज ने फेंका था) में आठ मजदूर नेताओं पर मुकदमा चलाकर पार्सन्स, स्पाइस, एंजेल और फिशर को फाँसी दे दी गयी। अपने इन चार शहीद नायकों की शवयात्रा में छह लाख से भी अधिक लोग सड़कों पर उमड़ पड़े थे। पूरे अमेरिकी इतिहास में इतने लोग केवल दासप्रथा समाप्त करने वाले लोकप्रिय अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की हत्या के बाद, उनकी शवयात्रा में ही शामिल हुए थे।

शिकागो की बहादुराना लड़ाई को ख़ून के दलदल में डुबो दिया गया, पर यह मुद्दा जीवित बना रहा और उसे लेकर दुनिया के अलग-अलग कोनों में मजदूर आवाजें उठाते रहे और कुचले जाते रहे। काम के घण्टे की लड़ाई उजरती ग़ुलामी के खिलाफ इंसान की तरह जीने की लड़ाई थी। यह पूँजीवाद की बुनियाद पर चोट करने वाला एक मुद्दा था। इसे उठाना मजदूर वर्ग की बढ़ती वर्ग-चेतना का, उदीयमान राजनीतिक चेतना का परिचायक था। इसीलिए मई दिवस को दुनिया के मेहनतकशों के राजनीतिक चेतना के युग में प्रवेश का प्रतीक दिवस माना जाता है।
https://sites.google.com/site/bigulakhbar/may-2010/mai-divas-ka-sandesh
मई दिवस का सन्देश - मज़दूर बिगुल
sites.google.com
स्मृति से प्रेरणा लो! संकल्प को फौलाद बनाओ! संघर्ष को सही दिशा दो!

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