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Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Monday, April 29, 2013

लानत है !

लानत है !


जगमोहन फुटेला

 


'अमर उजालामें था मैं तो कभी अपनी जीप से जाता थाकभी रात में अख़बार के बंडलों वाली टैक्सी में लद कर भी लौटना पड़ता था.टैक्सी वाला रास्ते में हर चौकीचुंगी और नाके पे एक एक अख़बार फेंकता हुआ चलता थाइस लिए नहीं कि अख़बार की टैक्सी भीरोक लेगा कोईउसे दरअसल वापसी में बरेली की सवारियां भी लादनी होती थींकंपनी भी उसे बीस कापियां फालतू देती थीयेसुविधा का खेल था.

 

ट्रैफिक पोस्ट के अलावा भी नाके लगते हैं जगह जगह हर रातहर प्रदेश में सड़कों परचालान किसी का नहीं कटताजो  माने उसको चार घंटे रोक के रखा जाता हैकोई बोले तो गाली गुफ्तम से लेकर थपड़ा थपड़ी तक कुछ भीये धंधा बरसों से अनवरत चल रहाहै पूरे देश मेंये व्यवस्था हैकानून व्यवस्था.

 

नेता और पार्टियां (ज़ाहिर है अपनेलोगों के काम करती हैंपंपों के परमिटफिर ज़मीनफिर उनसे सरकारी वाहनों के लिए तेलउसमें भी कम भरने और ज्यादा का भुगतान लेने की गुंजायशऐसे ही स्कूलकालेजयूनिवर्सिटी और इंडस्ट्रीचुनाव आने पे यही लोग'मददकरते हैंनोटों और वोटों सेमाल अपना हैज़रूरत के वक्त हाज़िर हो जाता हैकिसी चोरीडकैतीछापे का डर या खाते मेंटेनकरने का झंझट भी नहींये राजनीति है.

 

कोई भी बड़ा प्रोजेक्ट आना हो तो बीस बंधन हैंकायदे ऐसे हैं कि शर्तें नहीं फ़ार्म भरते भरते ही उम्र निकल जाएउस प्रोजेक्ट में अगरपार्टनरशिप की हिस्सा पत्ती फिक्स हो जाए तो ज़मीन पांच की बजाय पचास या पांच सौ की बजाय हज़ार एकड़ भी मिल जाएगीसारीपरमीशनें पंद्रह दिन मेंये विकास है.

 

सरकारों के पास एक सुविधा और विकल्प हमेशा रहता है कि सड़कों की सफाई से लेकर पब्लिक ट्रांसपोर्ट और बिजली उत्पादन तक केकाम वो खुद करेगी या किसी ठेकेदार या कंपनी से कराएगी. 'सारी शर्तें स्वीकार्य होने परप्रोजेक्ट के लिए ज़मीनवहां तक रेल लिंकऔर ये सब करने के लिए उस ज़मीन से लोगों को भगाने तक का काम सरकार करेगीकितनों और किन को नौकरी मिलेगी येसरकार तय करेगीउजाड़ीकरण कैसे होगाकंपनी तय करेगीये औद्योगीकरण है.

 

कितने उद्योग जस्ता और खनिज नदियोंनालों में बहा कर पानी में कैंसर के कारण पैदा करते रहेंगे इस पे कोई नियंत्रण नहीं हैकैंसरकी दस हज़ार वाली दवा सवा लाख में क्यों बिकेगीइस पे कोई स्पष्टीकरण नहीं हैरोज़ देश में अरबों के वारे न्यारे होंगेयेउदारीकरण है.

 

कौन कब किस से बलात्कार कर के उस के गुप्तांगों में बजरी भरवा देगा इस की कहीं कोई सुनवाई नहीं हैऐसे लोगों के पास राशन औरवोटर कार्ड भी नहीं होंगेहोंगे तो भी उन को कोई वोट नहीं डालने देगासत्ता के गठन में लाखों लोगों का कोई दखल नहीं होगायेलोकतंत्र है.

 

सरबजीत भेजा पाकिस्तान जाकर रेकी के लिए या रास्ता भटक कर भूले से खुद चला गयावो तेईस साल उधर रोज़ मरतारोज़ रोता,पिटता और एक दिन मौत के मुंह में धकेल दिया जाएगादेश की जनता त्राहि त्राहि कर उठेगीआप चैन की नींद सोते रहोगेआज तकहुई दोस्ती की कोशिशें नाकाम हो कर

युद्ध देर सबेर अवश्यंभावी हो जाने वाले नासूर में बदल जाएंगी.ये आप की कूटनीति है.

 

 

लेकिन यही शासनयही संवेदनशीलता और यही राष्ट्रीयता है तो फिर हम सब पे लानत है !

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