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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Saturday, April 27, 2013

मृत्यु जुलूस थामना मकसद भी नहीं है, मकसद महज इतना है कि कैसे अपनी अपनी मुलायम मलाईदार खाल बचा ली जाये!

मृत्यु जुलूस थामना मकसद भी नहीं है, मकसद महज इतना है कि कैसे अपनी अपनी मुलायम मलाईदार खाल बचा ली जाये!


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


शारदा समूह के फर्जीवाड़े से यह खुलासा हुआ के कानून के हाथ कितने छोटे हैं इस देश में।चिटफंड प्रकरण कोई नया मामला नहीं है।बंगाल में संचयनी का पटाक्षेप और उत्तरप्रदेश में अपेस इंडिया के फरेब में पहले भी करोड़ों लोग ठगे जाते रहे हैं। पर शक की सुई इतने व्यापक पैमाने पर राजनीतिक जमात के खिलाफ कभी नहीं थी।अभी पश्चिम बंगाल में एक चिटफंड घोटाला उजागर हुआ है। जो सामने आया है, वह तो पूरे घोटाले का एक छोटा-सा हिस्सा है।और भी चिटफंड कंपनियां डूबेंगी। सेबी की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ेगी, डूबने वाली कंपनियों की सूची भी बढ़ती जाएगी। पंद्रह से पचास प्रतिशत कमीशन पर काम करने वाले इस चिटफंड कंपनी के हजारों एजेंट सड़कों पर उतर आए हैं, क्योंकि न सिर्फ उनकी रोजी-रोटी खतरे में है, बल्कि लाखों गरीब लोग इससे प्रभावित हुए हैं।इन सबसे बेखबर वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने कहा है कि अगले कुछ महीनों में आर्थिक सुधारों को पूरी रफ्तार दी जाएगी। इकोनॉमिस्ट की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी यानी अभी 13 महीने और चलेगी। फिलहाल चुनाव नहीं होने वाले हैं।संसद में विपक्षी दलों से सहयोग की अपेक्षा करते हुए उन्होंने कहा कि संसद में कुछ अहम विधेयक लंबित हैं, उन्हें पारित कराने में उनका सहयोग चाहिए। वित्त मंत्री ने कहा की जीएसटी से संबंधित विधेयक पर विपक्षी सहयोग की बहुत आवश्यकता है क्योंकि यह संविधान संशोधन विधेयक है। इसके साथ ही भूमि अधिग्रहण विधेयक, बीमा विधेयक भी लंबित हैं। चिदंबरम ने कहा कि सरकार जो करना चाहती है, उसकी सूची बाकायदा बन चुकी है।सुधारों की परिणति खुल्ला बाजार में कुछ भी करने की छूट से तो यह हालत है। पर प्रकृति का नियम है कि जंगल की आग बहुत तेजी से फैलती है। देशभर में फैलने लगी है यह आगे। शीशमहल में रहनेवाले लोग बेचैन हो गये हैं और चारों तरफ से दमकल सेवाएं ली जा रही हैं।नियमानुसार कोई भी आग लंबे समय तक जिंदा नहीं रहती। लेकिन वह अपने पीछे तबाही का मजर जरुर छोड़ जाती है। अब देखना है कि इस आग की तपिश किसे किसे छूती है और इसकी आंच से कौन कौमन झुलसता है। चौबीसों घंटे यही दर्शन जारी है लाइव। तबाही का मंजर बदलने का लेकिन कोई इंतजाम नहीं है।आम जनता तो अपने तमाशे का भी मजा लेने को अभ्यस्त है।अंजाम क्या होना है , इसीसे समझ लीजिये कि निवेशक मनी के रिफंड मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सहारा ग्रुप और इसके प्रमोटर सुब्रत राय की कड़ी खिंचाई की है। निवेशकों को 24,000 करोड़ रुपये रिफंड न करने को लेकर अदालत ने उन्हें कड़ी फटकार लगाई। यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने तो सहारा ग्रुप और सुब्रत राय पर यह आरोप भी लगाया है कि वे इस मामले में राहत पाने के लिए विभिन्न फोरमों को दरवाजा खटखटाकर अदालती निर्णय अपने पक्ष में कराने की गैर वाजिब कोशिश कर रहे हैं। खंडपीठ ने एक समय कहा था कि सुब्रत राय के वकील यह वक्तव्य दें कि राय देश नहीं छोड़ेंगे, नहीं तो वह इस बारे में निर्देश जारी करेगी।


आजतक कार्रवाई इसलिए नहीं हो पायी कि कम से कम देश के किसी वित्तमंत्री तक आंच नहीं पहुंची थी।देश का वित्तीय प्रबंधन अचानक हरकत में आ गया है। खुले बाजार में कंपनियों को बिना जांच पड़ताल , बिना निगरानी रेबड़ी बांटने वाला कंपनी मामलों का मंत्रालय उपाय कर रहा है।प्रधानमंत्री अलग से बयान जारी कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट का आदेश भी आ गया। सेबी के अधिकार भी बढ़ाये जा रहे हैं।बंगाल सरकार नये सिरे से २००३ से लंबित विधेयक को नये सिरे से कानून में बदलने पर तुली है।इस पूरी कवायद में राजनीतिक जमात की छवि बचाने और राजनीतिक दलों के धंसते जनाधार को  बचाने की कवायद ज्यादा है, सचमुच जनहित का तकाजा कम है। अब अगर कानून प्रयाप्त नहीं हैं, तो अब किये गये अपराधों को भविष्य में बनने वाले कानून के तहत कैसे कानून के दायरे में लाया जायेगा, संविधान विशेषज्ञ और कानून विशेषज्ञ इस पहेली को बूझने में असमर्थ है। जबकि आयकर दफ्तर के हिसाब से अकेले शारदा समूह ने आम लोगों से सत्तर हजार करोड़ रुपये निकाले, लौटाने के वैधानिक इंतजाम किये बिना।बंगाल की सौ से ज्यादा चिटफंड कंपनियों समेत देशभर की चिटफंड कंपनियों ने जिस व्यापक पैमाने पर आम जनता की जमा पूंजी पर डाका डाला है, अब उसकी भरपायी मौजूदा कानून के तहत होने के कोई आसार नहीं है। मृत्यु जुलूस जो शुरु हुआ है, वह निकट भविष्य में तमने नहीं जा रहा है। उसे थामना मकसद भी नहीं है, मकसद है उस राजनीति क सुनामी को रोकना जिसकी चपेट में आ गयी है केंद्र और राज्य सरकारें।


तमाम केंद्रीय एजंसियां अब तक सोयी रहीं।संचयिनी और अपेस इंडिया समेत तमाम पिछले प्रकरणों में न्याय दिलाने में इस देश की न्यायप्रणाली काम नहीं आयी। लोग लगातार ठगे जाते रहे हैं। मारे जाते रहे हैं। तबाह होते रहे हैं। किसी ने आम जनता के प्रति जवाबदेही नहीं निभायी। देश के प्रति भी नहीं। अब इन चिटफंड कपंपनियों के कारोबारमें माओवाद, आतंकवाद, उग्रवाद  और जिहाद के तार भी जुड़े हुए निकल रहे हैं। वित्त प्रबंधन नींद से जागा है अभी अभी, क्योंकि केंद्रीय वित्तमंत्री की पत्नी तक लाभर्थियों में शामिल हैं। पर सुरक्षा एजंसियां तो अबभी गहरी नींद में हैं।छह अप्रैल को सेबी को पत्र लिखने से महीनों पहले से कारोबार समेटने में लगे सुदीप्त और उनकी खासमखास ने सबूत मिटा ही दिये, लेकिन इनी बड़ी रकम कहां छुपा दी,इस बारे में अभीतक पुलिस को सघन पूछताछ से कुछ भी मालूम नहीं चला है। सुंदरी ब्रिगेड  की तरह सुदीप्त की कानून ब्रिगेड भी लंबी है। कानूनी रक्षाकवच के होते उनसे कोई सुराग निकालना असंभव है। देवयानी अगर सरकारी गवाह बन जाये या फिर दूसरे और  लोग गिरफ्त में भी आ जाये, तो भी तहकीकात को कोई दिशा मिलने की उम्मीद नहीं है। खुले बाजार पर सराकारी नियंत्रण हैं ही नहीं! आर्थिक अपराधों से निपटने के लिए  कानून हैं ही नहीं! हम किस जंगल में रहते हैं?घोटालों को रफा दफा करने की विशषज्ञता के मद्देनजर भारत देश का नाम कभी घोटाला देश कहकर पुकारे  विदेशी और स्वदेशी भी, तो हम उन्हें दोष नहीं दे सकते!


अबाध पूंजी प्रवाह और निवेशकों की आस्था के लक्ष्य हासिल करने के लिए जिस कालाधन की अर्तव्यवस्था में पूंजी बाजार चल रहा है, उसपर नियंत्रण के लिए सेबी की सीमाएं पहली बार खुल गयी हैं। अब सेबी के अधिकार बढ़ानेकी बात की जा रही है। सेबी ने जो चेतावनी पहले से दी थी,उसके मद्देनजर राज्य सरकार और केंद्र सरकार कैसे फाइलें दबाकर बैठी रहीं और राजकाज में बेखटके शामिल होते रहे वे तमाम लोग जो इस गोरखधंधे के साझेदार हैं। जनप्रतिनिधि कातमगा हासिल करके विशेषाधिकार प्राप्त इस पूरे तबके को पूरी छूट देते हुए कानून के हाथ असली अपराधियों तक कभी पहुंच ही नहीं सकता। १९८८ में सैय्यद मोदी की हत्या के पूरे इक्कीस साल बाद २००९ में एक अभियुक्त को सजा देकर इस मामले के पटाक्षेप और बाकी लोगों के बेदाग बच निकलने से साफ जाहिर है कि यहां कुछ भी होता नहीं है। जो विधेयक २००३ में पास हुआ जिसमें ऐसी कंपनी के किळाप कार्रवाई करने और उसकी संपत्ति जब्त करने के ठोस प्रावधान हैं, वह २०१३ में भी कानून नहीं बना। रातोंरात कानून बनाकर क्या कीजियेगा जबकि मकसद महज इतना है कि कैसे अपनी अपनी मुलायम मलाईदार खाल बचा ली जाये।


बहरहाल उच्चतम न्यायालय ने बाजार नियामक सेबी से कहा है कि देश में बाजार व्यवस्था का दुरपयोग बर्दाश्त नहीं करने का स्पष्ट संदेश देने के लिये जोड़ तोड़ और भ्रामक आचरण में लिप्त कंपनियों से सख्ती से निपटा जाये। न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की खंडपीठ ने कहा, 'बाजार नियामक सेबी को जोड़ तोड़, कपटपूर्ण तरीके और भेदिया कारोबार जैसी गतिविधियों में लिप्त कंपनियों और उनके निदेशकों से सख्ती से पेश आना होगा। अन्यथा वे प्रतिभूति बाजार के सुव्यवस्थित और स्वस्थ्य विकास को बढावा देने के अपने कर्तव्य को निभाने में असफल रहेंगे।' कोयला आवंटन घोटाले की प्रगति रपट को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सीबीआइ द्वारा दाखिल हलफनामे के बाद अपने और कानून मंत्री के इस्तीफे की मांग को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सिरे से खारिज कर दिया है। साथ ही उन्होंने संसद न चलने देने को लेकर विपक्ष को आड़े हाथ लिया और कहा कि पूरी दुनिया हम पर हंस रही है।राष्ट्रपति भवन में शनिवार को वीरता पुरस्कार समारोह के बाद मीडिया से मुखातिब मनमोहन ने कोयला घोटाले में अपने इस्तीफे की विपक्ष की मांग को ठुकरा दिया।इसी मौके पर प्रधानमंत्री ने चिटफंड गतिविधियों को खत्म करने पर जोर दिया। पश्चिम बंगाल में शारदा समूह इसी तरह की गतिविधियों में शामिल था। डॉ. सिंह ने कहा कि उच्च ब्याज दर का प्रलोभन देकर गलत तरीके से पैसा जमा करने जैसी गतिविधियों को खत्म करना पड़ेगा।


जब प्रधानमंत्री खुद कटघरे में हो और न्यायप्रणाली लोकतंत्रिक व्यवस्था को भ्रष्टाचार से मुक्त करने में समर्थ न हो तो ऐसी जुबानी मलहम से जख्म तो सूखने से रहे। अब हम हर भारतीय को अपने दिलोदिमाग में रिसते हुए नासूर के साथ जीने का अभ्यास जरुर करनी चाहिए।



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