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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Monday, May 26, 2014

मसीहियत बदला लेने में नहीं बल्कि माफ़ करने में विश्वास करती है, इसलिए तुम भी उन्हें माफ़ कर दो

मसीहियत बदला लेने में नहीं बल्कि माफ़ करने में विश्वास करती है, इसलिए तुम भी उन्हें माफ़ कर दो
भंवर मेघवंशी की आत्मकथा 'हिन्दू तालिबान'

मसीहियत बदला लेने में नहीं बल्कि माफ़ करने में विश्वास करती है, इसलिए तुम भी उन्हें माफ़ कर दो


धर्मान्तरण की कोशिशें

हिन्दू तालिबान -21

भंवर मेघवंशी

मैंने गंभीरता से धर्मान्तरण के बारे में सोचना शुरू किया, संघ में रहते हुए यह समझ थी कि सिख, जैन और बौद्ध तो हिन्दू ही है और मुसलमानों को लेकर अभी भी दिल दिमाग में कई शंकाए आशंकाएं थीं, इसलिए इस बारे में सोचना भी जरुरी नहीं लगा, तब एक मात्र विकल्प के रूप में इसाई ही बचे थे, मैंने सोचा क्यों नहीं इसाई लोगों से बात की जाये,ये लोग पढ़े लिखे भी होते है और कम कट्टर भी…रही बात संघ की तो वो ईसाईयों से भी उतने ही चिढ़ते है जितने कि मुस्लिमों से ..लेकिन सवाल यह उठ खड़ा हुआ कि ये इसाई लोग पाए कहाँ जाते हैं। मैं आज तक किसी भी इसाई से नहीं मिला और ना ही कोई परिचित था हालाँकि आर एस एस में रहते उनके खिलाफ बहुत पढ़ा था। यह भी सुन रखा था कि जो भी उनके धरम में जाता है, उन्हें 'लड़की' और 'नौकरी' दी जाती है, पर मुझे तो दोनों की ही जरूरत नहीं थी, मुझे तो सिर्फ बदला लेना था। मुझे तो सिर्फ उनको चिढ़ाना था, जिन्होंने मेरी बेइज्जती की थी और मुझे ठुकरा दिया था…

मैंने इसाई खोजो अभियान शुरू कर दिया। जल्दी ही मैं भीलवाड़ा शहर के आजादनगर क्षेत्र के एक प्रिंटिंग प्रेस के मालिक से मिलने में सफल रहा जिनका नाम बथुअल गायकवाड़ बताया गया था। दरअसल मेरे जीजाजी जो कि प्रेस पर कम्पोजीटर थे, वे कुछ ही दिन पहले इस प्रेस पर काम पर लगे थे और मैं उनको ढूंढते हुए वहां पंहुचा तो मेरी दोनों खोजें पूरी हो गयी। ये महाशय एक स्कूल और चर्च के भी मालिक थे। मैंने उनसे बात की और अपना छिपा हुआ एजेंडा बताया और उनसे पूछा कि- क्या मैं इसाई बन सकता हूँ ? उन्होंने पूछा कि क्यों बनाना चाहते हो ? तब मैंने उन्हें आर एस एस के साथ चल रहे अपने पंगे के बारे में बताया और कहा कि मैं उनको सबक सिखाना चाहता हूँ। इस पर पास्टर गायकवाड़ बोले- मसीहियत बदला लेने में नहीं बल्कि माफ़ करने में विश्वास करती है। इसलिए तुम भी उन्हें माफ़ कर दो और रेगुलर चर्च आना शुरू करो, जीजस में यकीन करो, वही हमारा मुक्तिदाता और सारे सवालों का जवाब है।

मैंने उनसे साफ कहा कि मैं मुक्ति नहीं खोज रहा और न ही धर्म और भगवान। ना ही मेरे कोई सवाल है, मुझे कोई जवाब नहीं चाहिए मैं तो सिर्फ और सिर्फ संघ की पाखंडी और दोगली नीति को बेनकाब करना चाहता हूँ। उन्होंने मेरी बात को पूरी ओढ़ी हुयी धार्मिक गंभीरता से सुना और अगले रविवार को प्रार्थना में आने का न्योता दिया। मैं रविवार को उनकी प्रार्थना सभा का हिस्सा बनता इससे पहले ही पादरी साहब ने मेरे जीजाजी के मार्फ़त मेरे परिवार तक यह समाचार भिजवा दिए कि मुझे समझाया जाये क्योंकि मैं इसाई बनने की कोशिश कर रहा हूँ।

बाद में उन्हें छोड़ कर मैं मेथोडिस्ट, बैप्टिस्ट, सी अन आई, सीरियन, केथोलिक और भी न जाने कैसे-कैसे अजीबो गरीब नाम वाले चर्च समूहों के पास पंहुचा, उन्हें अपनी बात बताई और कहा कि इसाई बना दो, लेकिन सब लोग आर एस एस का नाम लेते ही घबरा जाते थे,उन्हें लगता था कि मैं आर एस एस का ही आदमी था जो किसी साज़िश के तहत उन्हें जाल में फंसाने की कोशिश कर रहा था। इसलिए वे जल्दी ही किसी न किसी बहाने अपना पिंड छुड़ा लेते ..मुझे कहीं भी सफलता नहीं मिल पा रही थी ………………….(जारी …….)

- भंवर मेघवंशी की आत्मकथा 'हिंदू तालिबान' की इक्कीसवीं कड़ी

बदलाव नहीं बदला लेने की इच्छा

दहकते अंगारे- दोस्त हो तो दौलतराज जैसा

- See more at: http://www.hastakshep.com/hindi-literature/book-excerpts/2014/05/26/%e0%a4%ae%e0%a4%b8%e0%a5%80%e0%a4%b9%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%a4-%e0%a4%ac%e0%a4%a6%e0%a4%b2%e0%a4%be-%e0%a4%b2%e0%a5%87%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%a8%e0%a4%b9%e0%a5%80#.U4O1z3KSxz8

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