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Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Tuesday, May 6, 2014

मेरे प्यारे देशवासियों, आंखों में भर लो आतंक और तानाशाह से डरना सीखो कि गुजरात अब सारा देश हुआ जाय रे। स्वतःस्फूर्त तरीके से होता है कि हवा में बंदूक की तरह उठा हुआ उसका हाथ या बंधी हुई मुट्ठी के साथ पिस्तौल की नोंक की तरह उठी हुई अंगुली किसी पुराने तानाशाह की याद दिला जाती है या एक काली गुफा जैसा खुला हुआ उसका मुंह इतिहास

मेरे प्यारे देशवासियों, आंखों में भर लो आतंक और तानाशाह से डरना सीखो कि

गुजरात अब सारा देश हुआ जाय रे।


स्वतःस्फूर्त तरीके से होता है कि हवा में बंदूक की तरह उठा हुआ उसका हाथ या बंधी हुई

मुट्ठी के साथ पिस्तौल की नोंक की तरह उठी हुई अंगुली किसी पुराने तानाशाह

की याद दिला जाती है या एक काली गुफा जैसा खुला हुआ उसका मुंह इतिहास

पलाश विश्वास


हम मीडिया विशेषज्ञ जगदीश्वर चतुर्वेदी के आभारी है कि इस घनघोर संक्रमणकाल के संधिमहूर्त पर उन्होंने पहाड़ पर लालटेन सुलगा दिया।मंगलेश दाज्यू के दर्शन नहीं हुए अरसा बीता।उत्तराखंड जाना नहीं हुआ तो दिल्ली भी नहीं गये, बहुत दिन हुए।जब दिल्ली गये मंगलेशदा नहीं मिले।इलाहाबाद में इन्हीं मंगलेशदा,अनिल सिन्हा,रामजी राय, वीरेनदा, नीलाभ ,केडी यादव जैसे मित्रों से मुलाकाते ही हमारी दिनचर्या रही है।अपने प्रिय बांग्ला कवि नवारुण भट्टाचार्य कैंसर से जूझ रहे हैं तो अपने वीरेनदा भी कैंसर के शिकार।शुक्र है कि मंगलेशदा सही सलामत हैं।उनकी यह कविता पढ़ने की नहीं,जितनी महसूस करने की है।आज का संवाद इसी कविता के साथ।


आज के प्रसंग में सामयिक कविता - तानाशाह- मंगलेश डबराल

तानाशाह को अपने किसी पूर्वज के जीवन का अध्ययन नहीं करना पड़ता।वह उनकी

पुरानी तस्वीरों को जेब में नहीं रखता या उनके दिल का एक्स-रे नहीं देखता।यह

स्वतःस्फूर्त तरीके से होता है कि हवा में बंदूक की तरह उठा हुआ उसका हाथ या बंधी हुई

मुट्ठी के साथ पिस्तौल की नोंक की तरह उठी हुई अंगुली किसी पुराने तानाशाह

की याद दिला जाती है या एक काली गुफा जैसा खुला हुआ उसका मुंह इतिहास

में किसी ऐसे ही खुले हुए मुंह की नकल बन जाता है।वह अपनी आंखों में

काफी कोमलता और मासूमियत लाने की कोशिश करता है लेकिन क्रूरता

कोमलता से ज्यादा ताकतवर होती है इसलिए वह एक झिल्ली को भेदती हुई बाहर आती है और

इतिहास की सबसे ठंडी क्रूर आंखों में तब्दील हो जाती है। तानाशाह

मुस्कराता है भाषण देता है और भरोसा दिलाने की कोशिश करता है कि वह

एक मनुष्य है,लेकिन इस कोशिश में उसकी मुद्राएं और भंगिमाएं उन दानवों-दैत्यों-राक्षसों की

मुद्राओं का रुप लेती रहती हैं जिनका जिक्र प्राचीन ग्रंथों-गाथाओं-धारणाओं-विश्वासों में मिलता है।

वह सुंदर दिखने की कोशिश करता है,आकर्षक कपड़े पहनता है

बार-बार सज-धज बदलता है ,लेकिन इस पर उसका कोई वश नहीं कि यह सब

एक तानाशाह का मेकअप बनकर रह जाता है।

इतिहास में तानाशाह कई बार मर चुका है लेकिन इससे उस पर कोई फर्क नहीं पड़ता

क्योंकि उसे लगता है उससे पहले कोई नहीं हुआ है।


मेरे प्यारे देशवासियों,आंखों में भर लो आतंक और तानाशाह से डरना सीखो कि

गुजरात अब सारा देश हुआ जाय रे।


मेरे प्यारे देशवासियों,आंखों में भर लो आतंक और तानाशाह से डरना सीखो कि गुजरात के विकास के माडल का कायाकल्प 16 मई के चुनाव नतीजे का इंतजार किये बिना गुजरात नरसंहार के देशव्यापी विस्तार में होने लगा है।विकास का सर्वनाशी माडल अब देश का दंगाई यथार्थ है।


मेरे प्यारे देशवासियों,आंखों में भर लो आतंक और तानाशाह से डरना सीखो कि इस कल्कि अवतार ने इस पूरे भारतीय उपमहादेश को अनंत कुरुक्षेत्र में तब्दील कर दिया है।


तसलिमा नसरीन के उपन्यास लज्जा का एक बार फिर पाठ कर लो या पढ़ लो सलाम आजाद या शहरियार कबीर कि बाबरी विध्वंस के बाद दुनियाभर में हिंदुओं की क्या शामत आयी थी।


1947 के बाद भारत आये तमाम बांग्लादेशियों को 16 मई के बाद देश से निकाले की धमकी देने के बाद बार बार केशरिया ब्रिगेड अति आक्रामक शैली में शरणार्थी हिंदुओं की हिफाजत करने और 16 मई के बाद मुसलमान घुसपैठियों के देशनिकाले का फतवा दोहराने का जो ध्रूवीकरण खेल रच रहे हैं,उसमें इस इतिहास को भी मुड़कर देखने की तमीज नहीं है कि बांग्लादेश का जन्म 1971 मे ङुआ न कि 1957 में और भारत में पूर्वी बंगाल से आने वाले शरणार्थियों का पंजीकरण इंदिरा मुजीब समझौते के मुताबिक 1971 से ही बंद हुआ।जो कोई संसद में बनाया कानून है नहीं और जिसका कोई कानूनी आधार भी नहीं है।


संघियों की ही अगुवाई में सन साठ से लेकर अस्सी के दशक तक बाहरी लोगों के खिलाफ निरंतर दंगा सिलसिले को थामने के लिए राजीव गांधी ने असम समझौते के तहत जो कट आफ ईअर 1971 तय किया,उसका आधार कोई कानून नहीं,महज एक शासनादेश है,जिसके आधार पर केसरिया दलित शरणार्थी भगाओ बांग्लाबाषी भगाओ अभियान के तहत नागरिकता संशोधन कानून में 18 मई,1947 के बाद आये तमाम लोगों को विदेशी घुसपैठिया करार देने के सर्वदलीय शरणार्थी विरोधी फैसले के बाद शरणार्थी वोट बैंक को पालतू बनाये रखने के लिए कांग्रेस भी 1971 तक आये लोगों को गैरकानूनी तौर पर नागरिकता देने का सब्जबाग दिखाते रहते हैं।


अब हिंदुत्व की हवा बांधने के लिए बंगाल के अलावा देश भर में दो करोड़ से ज्यादा शरणार्थी वोट भी जरुरी हैं और मोदी के श्रीरामपुर वक्तव्य में हिंदुओं के लिए कोई अभयवाणी न होने की वजह से राजनाथ सिंह ने तत्काल नुकसान भरपाई के तहत हिंदू शरणार्थियों के सम्मान का संकल्प लिया तो संघी प्रचारक 1947 के संघी कट आफ कानूनी प्रावधान को झुठलाने के लिए 1971 की रट लगानी शुरु कर दी है।


श्रीरामपुर में बोले मोदी तो बंगाल में मुसलिम वोट बैंक खतरे में पड़ जाने के डर से रायल बंगाल टाइगर की गरज सुनने को मिली। सारी वोट फसल एकतरफा तौर पर काट लेने की सत्ता उपलब्धि की काट बतौर क्रांति स्वर भी अब धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देकर हफ्तेभर बाद मुखर होने लगे हैं।

लेकिन इन्ही शब्दों में असम में नरेंद्र मोदी ने जब मुसलमानों को घुसपैठिया करार देकर देशबाहर करने की धमकी दी,सारा देश खामोश रह गया।


श्रीरामपुर वक्तव्य के बाद असम में भड़की हिंसा के लिए हो सकता है कि कांग्रेस का भी कुछ खेल रहा हो और हो सकता है कि सचमुच यह बोड़ो उग्रवादियों की जघन्य वारदात हो,लेकिन इस आंकड़े का क्या करें कि मारे जाने वालों की संख्या एकमुश्त बांग्लाभाषी मुसलमान हैं,जिन्हें संघ परिवार देशभर में भांग्लादेशी घुसपैठिया बताता है और घुसपैठियों के खिलाफ ही यह कार्रवाई हुई इसमे दो राय नहीं है।


बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद अब बांग्लादेश में हिंदुओं की सुरक्षा को लेकर फिक्रमंद है।


वैसे भी बंगाल में हिंदुओं को मुजीब इंदिरा मित्रता और पूर्वी बंगाल में आजादी के महारण में भारतीय सैन्य हस्तक्षेप की वजह से कट्टरपंथी आवामी लीग और भारते का समर्तक मानते हैं और राजनीतिक हिंसा के बाद उन्ही पर हमला करते हैं।


हाल में 1971 के युद्ध अपराधियों को सजा दिलाने की मांग पर हुए शहबाग आंदोलन के दौरान भी जमायत हिफाजत बीएनपी समर्थकों ने हिंदुओं पर व्यापक पैमाने पर हमले किये।


कट्टरपंथ के खिलाफ पाक समर्थक धर्मांध तत्वों के खिलाफ बांग्लादेश में एक मजबूत प्रतिरोधी धर्मनिरपेक्ष आंदोलन हमेशा अल्पसंख्यक हिंदुओं के लिए रक्षा कवच का काम करता है।


भारत में हिंदू बंगाली शरणार्थियों का जो हाल सत्ता वर्ग ने कर रखा है,उस पर हम निरंतर लिखते रहे हैं और उन बातों को हम दोहराना नहीं चाहते,लेकिन भारत में अच्छे दिन लाने के कारपोरेट मुहिम के तहत सत्ता कब्जाने को अधीर रामधुन गा रहे कल्कि अवतार ने उस रक्षा कवच को छिन्न भिन्न कर दिया है,इसमें किसी शक की गुंजाइश नहीं है।

धरमनिरपेक्षता के मौकापरस्त चूके हुए हथियार से नमो सुनामी रुकने नहीं जा रही है,क्षत्रपों पर भरोसा है,भरोसा है पहचान और अस्मिता पर। मां बेटे की सरकार जाने का एलान करने वाले मोदी का चुनाव हारने पर फिर चाय बेचने का वायदा मंहगा भी साबित हो सकता है,क्योंकि मीडिया सुनामी धार्मिक पहचान के मुकाबले खड़ी जाति और क्षेत्रीयअस्मिताओं से टकराकर हांफने लगी है।


अब चाहे सरकार जिसकी बने,मोदी के किये कराये की वजह से  उसे सीमापार होने वाली हिंदू विरोधी कार्रवाइयों से उत्पन्न नये शरणार्थी सैलाब से निपटना ही होगा।


1947 के बाद आये लोगों को देशबाहर करने के दावे का नतीजा यह कि देश को फिर सीमापार से आने वाले शरणार्थियों के मानवीय संकट के सम्मुखीन कर दिया है भावी प्रधानमंत्रित्व के सबसे मुखर स्वयंभू दावेदार ने।

देश के भीतर क्या होने वाला है,इसका भी अंदाजा लगा लीजिये असम की घटनाों को कायदे से समझते हुए।


गुजरात के विकास माडल के इस तात्पर्य को भी समझ लीजिये।


संघ परिवार ने एक रणनीतिक गलती भी कर दी।


मोदी के आक्रामक दौरे से केसरिया हो रहे बंगाली चुनाव समीकरण संघ वांछित ध्रूवीकरण संपन्न हो जाने के बावजूद अब उतना भी केसरिया नहीं रहा।


मुसलामानों के मोदी ने आतंक और अनिश्चितता में डालकर एकतरफा मतदान के लिए मजबूर कर दिया है।


पिछले दो चरणों में कांग्रेस तृणमूल वामदलों में विभाजित मुसलिम वोट बैंक ने श्रीरामपुर फतवे के बाद तीसरे चरण में एकतरफा तौर पर तृणमूल के हक में वोट डाला है।तमाम घोटालों से घिरी ममताक का कांग्रेस विरुद्धे जिहाद खत्म है और बदले में उन्हें छप्पा वोट का एकाधिकार भी मिल गया।


हर दो मिनट पर मोदी सरकार के टीवी जिंगल से ईवीएम में कमल की लहलहाती फसल की उम्मीद अब न ही करें तो बेहतर।


जो वामपंथी और कांग्रेसी केसरिया लहर को अपनी अपनी जीत के खातिर हवा दे रहे थे,वे भी अब संघविरुद्धे लामबंद होने लगे हैं।


यह भूलना नहीं चाहिए कि बंगाल ही नहीं देश के दूसरे राज्यों में भी और भगवा राज्यों में भी मुसलमान वोट बैंक एक बड़ी ताकत है।

संघ परिवार कुछ भी कर लें ,जिस हिंदू राष्ट्र की वे बात करते हैं,उसकी बुनियाद ही जाति व्यवस्था में है और जाति आधारित अस्मिताएं छह हजार से ज्यादा हैं,इस पर जोड़ लीजिये, क्षेत्रीय और नस्ली अस्मिताएं।


जाति व्यवस्था के अभिशाप को बहाल रखने की जोर आजमाइश करने वाले,सामाजिक न्याय,समता,संसाधनं के न्यायपूर्ण बंटवारे ,नागरिक मानवाधिकारों के धुरंधर कारोबारी दिग्गज समूचे हिंदू जनगण को एक सूत्र में पिरोकर हिंदू राष्ट्र बना लेंगे,ऐसा सब्जबाग मुक्त बाजारी अश्वमेध के लिए बहुत माफिक हो सकता है,हिंदुओं के एकीकरण के लिए नहीं।


संघियों की कारस्तानी की वजह से ही हिंदू वोट बैंक नाम की कोई चीज हो ही नहीं सकती।


हिंदु्त्व के नाम पर ध्रूवीकरण एक मिथक के सिवाय कुछ भी नहीं है,ठीक वैसा ही जैसे धर्मनिरपेक्षता के पाखंड से कारपोरेट राज और जनसंहारी अश्वमेध का प्रतिरोध।


लेकिन नमो सुनामी ने इस देश के मुसलमानों और दूसरे अल्पसंक्यकों में जो डर पैदा कर दिया है वह एक लाख करोड़ के चुनावी सट्टे के आईपीएल नतीजे निकाले और जीतती हुई टीम के खिलाफ हैट्रिक गोलंदाजी हो जाये तो कोई अचरज नहीं।


सही कहें तो अपरिणामदर्शी मोदी ने हिंदुओं के ध्रूवीकरण की कोशिश में मुसलामानों में इतना डर पैदा कर दिया है कि मोदी के खिलाफ वोट देने के अलावा उनके लिए जीने की कोई राह नहीं।


उत्तर प्रदेश बिहार बंगाल आंध्र से लेकर तमाम राज्यों में मुसलमानों की जनसंख्या वोट बैंक के हिसाब से निर्णायक है और उनका निर्णय अब मोदी ने संघ परिवार के खिलाफ हो ,ऐसा तय कर दिया है।


मुश्किल तो यह है कि देश भर में गैरबंगाली मुसलमानों को संघ परिवार घुसपैठिया साबित नहीं कर सकते और न देश की आबादी से मुसलमानों का नामनिशान मिटाने की किसी की कोई औकात है।

संघ परिवार को अब यह समझना होगा कि वह तय करें कि अपने तमाम चेहरों क हाशिये पर रखकर कल्कि अवतार की जो सरकार वह बनाने को तत्पर है,वह हिंदुओं और हिंदुत्व के लिए कितना खतरनाक है।


देश के भीतर जो भारत विभाजन के सिकार हैं,वे संघी नस्ली वर्णवर्चस्वी भेदभाव और घृणा अभियान के शिकार हैं तो देश के बाहर कहीं भी हिंदुओं को कमजोर निशाना बनाकर कौन सा हिंदू हित साध रहा है संघ परिवार,यह समझ से बाहर है।





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