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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Sunday, May 25, 2014

‘दलितों के पास जमीन होती तो उनका उत्पीड़न नहीं होता’

'दलितों के पास जमीन होती तो उनका उत्पीड़न नहीं होता'

जनसत्ता संवाददाता

नई दिल्ली। दलितों के पास अगर जमीन होती तो उनका उत्पीड़न नहीं होता।

उनका सामाजिक बहिष्कार नहीं होता। वे शिक्षित होते और शासन-प्रशासन में उनकी भागीदारी होती। यह कहना है हरियाणा के हिसार जिले के भगाणा निवासी वीरेंद्र भागोरिया का। वे शनिवार को गांधी शांति प्रतिष्ठान में भगाणा में दलित युवतियों के साथ हुए सामूहिक बलात्कार और देशभर में हो रही दलित उत्पीड़न की घटनाओं के खिलाफ आयोजित सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। सम्मेलन का आयोजन जाति उन्मूलन आंदोलन ने किया था। उन्होंने कहा कि हरियाणा में असली सरकार खाप पंचायतें चला रही हैं। वही फैसले सुना रही हैं। किसी भी अपराध में उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं होती है।

वीरेंद्र भागोरिया ने कहा कि भगाणा गांव के दबंग गांव की सार्वजनिक जमीन पर कब्जा करना चाहते थे। इसका दलितों ने विरोध किया। इस वजह से उनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया। इससे दलितों को 21 मई 2012 को गांव छोड़ना पड़ा था। उन्होंने कहा कि दलितों ने इसके खिलाफ हरियाणा से लेकर दिल्ली तक आवाज उठाई। लेकिन किसी ने भी उनकी बात नहीं सुनी। जब इसकी शिकायत शासन-प्रशासन में की गई तो दबंगों ने शिकायत वापस लेने के लिए उन पर दबाव डाला। उन्हें डराया-धमकाया गया। भागोरिया ने कहा कि गांव के दलित वहां के दबंगों के खेतों पर मेहनत-मजदूरी करते हैं। बंटाई पर खेती करते हैं। इसलिए दबंग उनका उत्पीड़न करते रहते हैं। भागोरिया ने दलितों का उत्पीड़न रोकने के लिए जमीनों का राष्ट्रीयकरण करने की मांग की। भगाणा में इस साल 23 मार्च को दलित युवतियों के साथ हुए सामूहिक बलात्कार की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि इस मामले में जिस सरपंच पर आरोप लगाया गया है, वह पहले वाले मामले में भी शामिल था। लेकिन उसके खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई। उन्होंने कहा कि हरियाणा में असली सरकार खाप पंचायतें चला रही हैं। असली अदालतें भी खाप पंचायतें ही हैं। लेकिन उनके किसी भी अपराध के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती है। दलित उत्पीड़न के खिलाफ दलितों को एकजुट होकर लड़ना होगा, क्योंकि अब उन्हें सरकार, प्रशासन और अदालतों से कोई उम्मीद नहीं रह गई है।

सम्मेलन को संबोधित करते हुए दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर तुलसी राम ने कहा कि दलितों के लिए नाजुक दौर आ चुका है। देश में हिंदुत्ववादी ताकतों का विकास दलितों पर अत्याचार का मुख्य कारण है। उन्होंने कहा कि देश में दलितों पर अत्याचार बढ़ रहा है। आज भी दलितों पर वैदिक युग के अत्याचार हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि आज दुनिया में करीब 350 धर्म प्रचलन में हैं। इनमें से केवल हिंदू धर्म ही एक ऐसा धर्म है जिसके सभी देवी-देवता हथियारों से लैस हैं। उन्होंने कहा कि जिस धर्म के देवी-देवता हथियारों से लैस हो उनके अनुयायियों के बारे में आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है। प्रोफेसर तुलसी राम ने कहा कि दलितों पर अत्याचार के पीछे हिंदू धर्म की मान्यताएं काम कर रही हैं। महात्मा गांधी और डॉक्टर आंबेडकर के बीच के द्वंद्व का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि डॉक्टर आंबेडकर जहां जाति व्यवस्था को दलितों की स्थिति के लिए जिम्मेदार मानकर उसके खिलाफ लड़ाई की बात करते थे, वहीं महात्मा गांधी जाति व्यवस्था को ईश्वर की देन मानते हुए केवल छुआछूत के खिलाफ लड़ने की बात करते थे। उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म के धर्मग्रंथ ही नहीं दूसरी किताबें भी जाति व्यवस्था की वकालत करती हैं। इसके लिए उन्होंने कौटिल्य की किताब  'अर्थशास्त्र' का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि 'अर्थशास्त्र' के एक अध्याय में चोरी के लिए सजाओं का प्रावधान है। इसमें कहा गया है कि अगर कोई दलित चोरी करते हुए पकड़ा जाए तो उसके उस हाथ को काट लेना चाहिए, जिससे उसने चोरी की है। अगर कोई वैश्य चोरी करते हुए पकड़ा जाए तो उस पर अर्थदंड लगाना चाहिए। चोरी करते हुए किसी क्षत्रिय के पकड़े जाने पर उससे कहा जाना चाहिए की आप राजवंश से आते हैं, इसलिए चोरी आपको शोभा नहीं देती। लेकिन अगर कोई ब्राह्मण चोरी करते हुए पकड़ा जाए, तो उससे यह प्रार्थना की जाए कि वह आगे से ऐसा न करे। उन्होंने बताया कि कौटिल्य का 'अर्थशास्त्र' मसूरी स्थित लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी के पाठ्यक्रम में शामिल है। यही वजह है कि उस अकादमी से निकलने वाले आइएएस अधिकारी दलित उत्पीड़न के मामलों को दरकिनार कर देते हैं।

हरियाणा के कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर सुभाष चंद्र ने कहा कि नरेंद्र मोदी देशभर में जिस गुजरात मॉडल को दोहराना चाहते हैं, वह हरियाणा में पहले से ही मौजूद है। देश भर में हो रहे दलित आंदोलनों का कोई गुणात्मक परिणाम सामने नहीं आ रहा है, क्योंकि यह आंदोलन मुख्यतौर पर शासन-प्रशासन के खिलाफ होते हैं, उस मानसिकता के खिलाफ नहीं होते हैं, जो दलित उत्पीड़न के लिए जिम्मेदार हैं। दलित उत्पीड़न के खिलाफ आंदोलन को जाति उन्मूलन की लड़ाई बनाना पड़ेगा और उसे अपनी जमीन पर लड़ना पड़ेगा। उन्होंने जाति के सवाल को धर्मांतरण से जोड़ने पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह एक खाई से दूसरी खाई में गिरने जैसा है।

सीपीआइएमल (रेडस्टार) के केएन रामचंद्रन ने कहा कि आज किसी भी राजनीतिक दल के एजंडे में जाति उन्मूलन का सवाल शामिल नहीं है। दलित उत्पीड़न की घटनाओं को रोकने के लिए वर्ग संघर्ष और जाति संघर्ष को एक साथ लेकर आगे बढ़ना होगा। इसके लिए उन्होंने युवकों से आगे आने और राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन खड़ा करने की अपील की।

सम्मेलन की अध्यक्षता 'विकल्प' के दिगंबर ने की। सम्मेलन की शुरुआत में जाति उन्मूलन आंदोलन के समन्वयक जयप्रकाश नरेला ने देशभर में हो रही दलित उत्पीड़न की घटनाओं और उनके खिलाफ हो रहे संघर्ष पर प्रकाश डाला।

http://www.jansatta.com/index.php?option=com_content&view=article&id=69106:2014-05-25-04-20-12&catid=7:2009-08-27-03-37-40

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