नौकरशाही की अदूरदर्शिता से घूमता उत्तराखण्ड का पहिया
लेखक : नैनीताल समाचार :: अंक: 15 || 15 मार्च से 31 मार्च 2011:: वर्ष :: 34 :April 14, 2011 पर प्रकाशित
घनश्याम 'विद्रोही'
उत्तराखंड राज्य के दस साल लूट भरे रहे। अनियंत्रित विकास ने राज्य की नींव कमजोर की। कांग्रेस तथा भाजपा के विकास में शायद ही कोई अंतर रहा। विकास के नाम पर उत्तराखंड वासियों की खून-पसीने की गाढ़ी कमाई को लुटाया जा रहा है। इस फिजूलखर्ची की, पाँच साल से पहले बने पर्यटक सुविधा केन्द्र एक बानगी भर हैं। इन केन्द्रों पर करोड़ों की धनराशि खर्च की गई है, लेकिन आमदनी शून्य। राज्य के नौकरशाहों द्वारा बनाई गई इस तरह की नीतियाँ हमारे माननीय कैसे टाल सकते हैं, आखिर पूरा राज्य नौकरशाह ही तो चला रहे हैं।
उत्तराखंड के हितैषियों को सोचना ही होगा, कि हम कहाँ जा रहे हैं ? राज्य को किस गर्त में धकेला जा रहा है ? यदि जनता की गाढ़ी कमाई माननीय यूँ गँवाते रहे तो यह राज्य दिवालिया हो जाएगा। राज्य की जनता के पास है क्या ? जंगल हैं तो वन विभाग के अधीन, जमीन है तो राज्य सरकार की, जल पर भी बिजली कंपनियों का कब्जा हो गया है। ऐसे में उत्तराखंड की जनता के पास कुछ भी रहने वाला नहीं है। हमें तो महानगरों में जाकर ही वहाँ के लोगों की सेवा करनी है। होटलों में बर्तन उठाने और साफ करने हैं। अब तो बुढ़ापे में घर लौटने की स्थिति भी नजर नहीं आ रही है। यदि उत्तराखंड के जंगल, जल तथा जमीन ऐसे ही बिकती रही तो यहाँ हमें घर बनाने को जमीन, पीने को पानी तथा आजीविका चलाने को जंगल भी नहीं बचेगा। ऐसे में हमें पेट पालने के लिए अपनी पैतृक भूमि से हाथ धोना ही पड़ेगा। भाजपा तथा कांग्रेस ने राज्य की नींव ही हिला दी है। अंनियंत्रित विकास लोगों के लिए जानलेवा बना हुआ है। बिना भू-वैज्ञानिकों की सलाह के योजनाएं तैयार कर ली गई हैं। योजनाओं में करोड़ों खर्च भी हो गए हैं। हिमालयी क्षेत्र से सटे गाँवों की तबाही के लिए सुरंग बनाई जा रही हैं। अवैध खनन, खड़िया खनन जोरशोर पर है। जिन पहाड़ों में जोर से बोलने पर पत्थर गिरते थे, वहाँ बुल्डोजर से खुदाई हो रही है। ब्लास्टिंग से पहाड़ थर्रा रहे हैं। ऐसे में उत्तराखंड का विकास के नाम पर विनाश ही तो हो रहा है।
आज से करीब छः साल पूर्व की बात है। सत्ता पर कांग्रेस की सरकार थी। पर्यटन के क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन की बात चल रही थी। जगह-जगह पर्यटन सुविधा केन्द्र बनाए जा रहे थे। नौकरशाहों को पर्यटन सुविधा केन्द्रों की भूमि तलाशने का काम दिया गया। माननीयों का ऑर्डर मिलने पर उन्होंने नक्शे निकाले और पटवारियों को जगह की तलाश का फरमान सुनाया। पटवारियों ने नदी किनारे, घनघोर जंगल में भूमि का चयन कर आला अधिकारियों को नक्शे थमा दिए। नौकरशाहों ने शासन को और वहाँ से बन गई करोड़ों की योजना। योजनाओं को देख ठेकेदार भी खुश। भारी लागत से खड़े कर दिए गए सुविधा केन्द्र। इन सुविधा केन्द्रों को संचालित करने के लिए किसी भी व्यक्ति को जिम्मेदारी नहीं सौंपी गई। दो साल तक सुविधा केन्द्र अराजक तत्वों के अड्डे बने रहे। भारी तोड़-फोड़ के बाद कुमाऊँ तथा गढ़वाल विकास निगम के हवाले हो गए। सुविधा केन्द्र पर्यटकों को आकर्षित करने में तो नाकाम रहे, लेकिन निगमों को भी इनकी परवाह नहीं रही। सूचना के अधिकार के तहत इन सुविधा केन्द्रों की जानकारी ली गई तो, चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। लोक सूचना अधिकारी, उप निदेशक पर्यटन मुख्यालय चंद्रसेन के अनुसार नैनीताल जिले में घटगड़, आमपड़ाव, ढिकुली तथा तेलपुरा, अल्मोड़ा में मजखाली, चौखुटिया, द्वाराहाट तथा काकाड़ी घाट, पिथौरागढ़ में तेजम, भूलिगाँव तथा सतगढ़, उद्यमसिंहनगर में सितारगंज, पुलभट्टा तथा जसपुर, बागेश्वर में फटगली, घिंघारतोला, विजयपुर तथा कौसानी, चंपावत में टनकपुर, चंपावत, धूनाकोट, टिहरी गढ़वाल में पिन्सवाड़ टिहरी, नैनबाग, झाला, कैम्टीफॉल, रीह टिहरी, गंगी, उत्तरकाशी में रतूड़ीसेरा, राणाचट्टी, डाम्टा, संगमपट्टी, पौड़ी में घुड़दौड़ी तथा रथुवाढाव, चमोली में बद्रीनाथ, गोविन्दघाट, कर्णप्रयाग, विरही तथा बद्रीनाथ चमोली के अलावा देहरादून में सहस्त्रधारा, सहसपुर, त्यूनी, अटाल, धर्मावाला तथा टपकेश्वर समेत करीब 44 पर्यटन सुविधा केन्द्रों का निर्माण हुआ। एक सुविधा केन्द्र के निर्माण में दस लाख से लेकर बीस लाख रुपये की धनराशि खर्च हुई। सभी सुविधा केन्द्रों में 516.19 करोड़ रुपये व्यय हुए। इन सूचना केन्द्रों के संचालन के लिए स्थानीय बेरोजगार व्यक्तियों को कुमाऊँ तथा गढ़वाल मंडल निगम के माध्यम से रोजगार मुहैया कराना था, लेकिन शासन द्वारा विस्तृत नियम, शर्तें, दरें निर्धारित की गई थी, उस पर बेरोजगारों ने टेंडर उठाने से दिल्ली में नौकरी करना अच्छा समझा। नियमों की जटिलता के चलते बेरोजगार हाथ मलते रहे। हालांकि दस सुविधा केन्द्रों को कुछ रसूकदार लोगों ने ले लिया। जो वर्तमान में भी संचालित हो रहे हैं। बाँकी बचे सुविधा केन्द्र शोपीस की भूमिका निभा रहे हैं। इन सुविधा केन्द्रों को अराजक तत्वों ने क्षतिग्रस्त कर दिया है। इसकी जानकारी भी पर्यटन विभाग के पास है। अलबत्ता पर्यटन के नाम से जो भी योजनाएं संचालित हो रही हैं, उनका हश्र यहाँ बुरा हुआ। ऐसे में जनता की गाढ़ी कमाई को फिजूलखर्ची में उड़ाया जा रहा है। रही-सही कसर से नौकरशाह तथा माननीयों के जेब तथा चूल्हे जल रह रहे हैं। राज्य की जनता के सामने दोनों ओर खाई बना दी गई है।
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