सबसे बड़े सुरक्षा सौदे को अंजाम !3000 नौकरियां खा जाएगा राफेललड़ाकू विमान!
मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
भारत की ओर मंगाए जा रहे 126 लड़ाकू विमान ब्रिटेन के कर्मचारियों के ही पसीने छुड़ाने में लगे हुए हैं। इस सौदे के बाद से यहां के 3000 से ज्यादा कर्मचारियों के रातों की नींद उड़ी हुई है। साथ ही लोगों को नौकरी जाने की चिंता भी सताने लगी है। यह सौदा शुरू में तो 20 अरब डॉलर का था लेकिन माना जा रहा है कि यह उससे कहीं ज्यादा का होगा।भारत ने रक्षा पंक्ति में विनाशक विमानों की तैनाती के लिए बनाई योजना पर मंगलवार को अंतिम मुहर लगा दी। 5.40 खरब रूपए (10.4 बिलियन डॉलर) के इस सबसे ब़डे रक्षा सौदे के तहत वायुसेना के लिए 126 बहुउद्देशीय ल़डाकू विमान खरीदे जाने हैं। फ्रांस के राफेल लड़ाकू विमान ने 50000 करोड़ रुपए के भारतीय रक्षा सौदे को जीत लिया है। 126 मीडियम मल्टीरोल लड़ाकू विमानो की आपूर्ति फ्रांस की दसोल्ट कंपनी करेगी। भारतीय रक्षा मंत्रालय द्वारा सभी परीक्षणो पर खरा उतरने के बाद राफेल विमान ने यह सौदा अपने नाम किया है। राफाल ने अपने चार साथी यूरोपीय देशों के लड़ाकू विमान यूरो फाइटर विमान की कीमत के मामले में पस्त कर दिया। जानकार सूत्रों के अनुसार यूरो फाइटर के मुकाबले राफाल विमान की कीमत के मामले में सस्ता पाया गया। रडार की पकड़ में न आने वाले ये विमान वायुसेना में उम्रदराज मिग-21 की जगह लेंगे। करार के मुताबिक डसाल्ट को 18 विमानों की पहली खेप की आपूर्ति तीन साल में करनी होगी।
फ्रांस के राष्ट्रपति प्रशासन कार्यालय ने फ्रांसीसी कंपनी डसाल्ट से रफ़ाल नामक लड़ाकू विमान ख़रीदने के लिए विशेष बातचीत शुरू करने के भारतीय अधिकारियों के निर्णय का स्वागत किया है।
भावी अनुबंध के अंतर्गत फ्रांसीसी कंपनी भारतीय वायु सेना के लिए लड़ाकू विमानों की आपूर्ति के अलावा फ्रांसीसी सैन्य प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण भी करेगी।
फ्रांसीसी राष्ट्रपति निकोला सर्कोज़ी के इस जानकारी की पुष्टि करने के लिए एक बयान भी जारी किया है।
भारत के साथ एमएमआरसीए निविदा में विफल रहने पर यूरोपीय कंपनी ईएडीएस ने निराश जतई। भारत को 126 लड़ाकू विमानों की आपूर्ति के सौदे में फ्रांस के डसाल्ट राफेल से हारने के बाद यूरोपीय कंपनी ईएडीएस ने कहा कि इससे वह निराश है लेकिन रक्षा मंत्रालय के निर्णय का कंपनी सम्मान करती है।
भारत ने अब तक के सबसे बड़े सुरक्षा सौदे को अंजाम दिया है। इस सौदे के तहत भारत 52 हजार करोड़ रुपए से 126 लड़ाकू विमान खरीदेगा। भारत ने यह सौदा फ्रांस की विमानन कंपनी डसाल्ट राफेल से किया है। ये विमान मिग-21 की जगह लेंगे। भारत लगभग पिछले 10 साल से इन विमानों को खरीदने के लिए प्रयासरत था। इस सौदे में फ्रांसीसी कंपनी ने यूरोपीय कंपनी ईएडीएस को पीछे छोड़ा।
रक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी ने दसॉ द्वारा लगाई गई सबसे कम बोली का हवाला देते हुए कहा, दसॉ को बता दिया गया है कि वह 126 बहुउद्देश्यीय ल़डाकू विमानों की आपूर्ति का ठेका जीत चुका है।
अधिकारी ने हालांकि कहा कि इस सौदे पर अगले कारोबारी साल में ही हस्ताक्षर हो सकेगा। वहीं, दसॉ ने पेरिस से भेजे गए अपने ई-मेल संदेश में कहा कि कम्पनी भारतीय वायु सेना (आईएएफ) की संचालन जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है और आधी शताब्दी से अधिक समय तक भारत के रक्षा क्षेत्र में योगदान देने के लिए गौरवान्वित है। फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी ने अपनी प्रतिक्रिया
में कहा कि इस करार से भारत को महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण होगा। सरकोजी ने प्रतिबद्धता जताई कि उनकी सरकार करार पर अंतिम बातचीत के समय दसॉ का समर्थन करेगी। सरकोजी ने कहा, ""फ्रांस के अधिकारियों के पूरे समर्थन के साथ करार की वार्ता बहुत जल्द शुरू होगी। इसमें फ्रांस द्वारा महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण का भरोसा शामिल होगा।"" दो इंजनों वाले रफाल विमान में डेल्टा आकार के डैने हैं।
दरअसल, फ्रांस की कंपनी डसाल्ट रफाएल ने यूरोफाइटर टायफून की बोली को मात देकर भारत से ये सौदा हासिल किया है। यूरोफाइटर टायफून को इस सौदे के मिलने की काफी उम्मीद थी। कंपनी ने इस सौदे के न मिल पाने की स्थिति में 2011 में ही करीब 3000 कर्मचारियों की छटनी के संकेत दे दिए थे। हालांकि कंपनी ने इसका कारण यूरोफाइटर की सुस्त होती बिक्री को बताया था। ऐसे में भारत से अब ये सौदा डसाल्ट रफाएल को मिल जाने के बाद यहां के कर्मचारियों को नौकरी जाने का डर और बढ़ गया है।
यूरोफाइटर टायफून फर्म जर्मनी, फ्रांस और इटली में मौजूद है। इसे ब्रिटेन में ही बीएई सिस्टम की मदद से तैयार किया जाता है। इसके चलते इस फर्म में ब्रिटेन के कर्मचारियों की तादात काफी ज्यादा है।
गौरतलब है कि डसाल्ट रफाएल ने यूरोफाइटर टायफून से कम बोली लगाकर यह सौदा हासिल किया है। रक्षा मंत्रालय के सूत्रों की माने तो टायफून की तुलना में रफाएल की बोली काफी कम थी। वहीं रफाएल के हक में दूसरी सबसे बड़ी बात ये रही कि इसे फ्रेंच विमान मिराज 2000 जैसा ही पाया गया। भारतीय वायुसेना के पूर्व प्रमुख फाली होमी मेजर ने इस सौदे पर खुशी भी जताई है।
इन विमानों में 2 इंजन हैं और ये रडार की रेंज से भी बाहर रहते हैं। इस सौदे के तहत अगले तीन साल में भारत को 18 विमान मिल जाएंगे। रक्षा सौदे में अभी विमानों की कीमत तय नहीं की गई है। कंपनी के अधिकारियों के मुताबिक आने वाले 15 दिनों में इनकी कीमत तय कर ली जाएगी। फ्रांस की वायुसेना और नौसेना इन विमानों का इस्तेमाल पिछले काफी समय से कर रह है। वहां इसका निर्माण 2000 में हुआ था।
पहले 18 विमानों के अलावा बाकी जो विमान बनेंगे वह भारत और फ्रांस मिलकर बनाएंगें। इन विमानों को फ्रांसीसी कंपनी और भारतीय कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिकल लिमिटेड की बेंगलूरु इकाई मिलकर करेगी। इस सौदे के बाद फ्रांसीसी कंपनी डसाल्ट राफेल के शेयर में 22 फीसदी का उछाल आया है।
भारत ने ये विमान खरीदने के लिए 2007 में टेडर जारी किया था। जिसके लिए दुनिया की 6 बड़ी कंपनियों ने निविदाएं भरी थीं। इस होड़ में अमेरिका की बोंइंड व लॉकहीड मार्टिन, रूस की यूनाइटेड एयरक्राफ्ट और स्वीडन की साब शामिल है। जिसके लिए फ्रांस की डसाल्ट और यूरोप की ईएडीएस को अंतिम होड़ के लिए चुना गया था। जिसमें बाजी फ्रांस की कंपनी डसाल्ट ने बाजी मार ली।
इसका निर्माण वर्ष 2000 में हुआ था। इसके बाद से इसका उत्पादन फ्रांस की वायु सेना और नौ सेना के लिए होता रहा है। कम्पनी हालांकि इस विमान का निर्यात करने के लिए तैयार है, लेकिन इसके लिए अभी तक कोई विदेशी ठेका नहीं मिला। ठेके के प्रावधान के मुताबिक इसे हासिल करने वाली कम्पनी को कुल राशि का आधा वापस भारतीय रक्षा उद्योग में निवेश करना है। ठेके की शर्तो के मुताबिक 18 विमानों को तैयार अवस्था में उ़डाकर देश लाया जाएगा, जबकि 108 विमानों का निर्माण प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौते के तहत हिंदुस्तान एरॉनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा किया जाएगा। पहले 18 विमानों की आपूर्ति 36 महीनों में की जाएगी। ठेके की शर्तो के तहत विमानों की संख्या को बढ़ाकर 200 तक किया जा सकता है और इसके लिए कीमत बढ़ाई नहीं जाएगी। अब अगले 10 से 15 दिनों में कम्पनी के साथ कीमत पर फैसला किया जाएगा। जानकार सूत्रों के मुताबिक महंगाई के असर के कारण कीमत बढ़कर 15 अबर डॉलर तक पहुंच सकती है।
इसमें प्रशिक्षण तथा रखरखाव का खर्च भी शामिल है। ठेके के लिए प्रतियोगिता कर रही चार अन्य कम्पनियों के विमानों में अमेरिकी कम्पनी लॉकहीड मार्टीन का एफ-16, बोइंग का एफ/ए-18, रूसी युनाईटेड एयरRाफ्ट कारपोरेशन का मिग-35 और स्वीडन की कम्पनी साब का ग्रिपेन शामिल हैं। इसके अलावा दसॉ ने वायु सेना के फ्रांस में निर्मित मिराज-2000 ल़डाकू विमान के बे़डे के आधुनिकीकरण का ठेका भी जीत लिया है। यह ठेका 1.4 अरब डॉलर का है।
भारत 65 हजार करोड़ रुपए से भी ज्यादा के लड़ाकू विमान खरीदने की तैयारी में है। ये विमान भारतीय वायुसेना के लिए खरीदे जाएंगे।
सरकार आधुनिक एसयू 30 एमके 1 लड़ाकू विमानों और तेजस हल्के लड़ाकू विमानों को भारतीय वायुसेना के बेड़े में शामिल करने के लिए बातचीत कर रही है। एसयू 30 एमके 1 विमानों की कुल खरीद 55,717 करोड़ रुपये से अधिक जबकि तेजस हल्के लड़ाकू विमानों की खरीद लगभग 8691 करोड़ रुपये की है।
मेसर्स हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) पहले से ही एसयू 30 एमके 1 और तेजस हल्के लड़ाकू विमानों का निर्माण कर रहा है। इसके अतिरिक्त मेसर्स एचएएल मध्यम श्रेणी के बहुउद्देशीय लड़ाकू विमानों (एमएमआरसीए) और लड़ाकू विमानों की पांचवी पीढ़ी (एफजीएफए) का निर्माण करेगा ताकि उन्हें भारतीय वायुसेना में शामिल किया जा सके।
जानकारों की मानें तो, यूरोफाइटर टायफून का इस सौदे को हासिल न कर पाना प्रधानमंत्री डेविड कैमरून के लिए काफी बड़ा झटका है। वहीं इसे फ्रांस के निकोलस सरकोजी की जीत के रूप में देखा जा रहा है।
दिलचस्प है कि भारतीय वायुसेना ने फ्रांस की कंपनी डसाल्ट रफाएल से तकरीबन 50 हजार करोड़ रुपये में 126 लड़ाकू विमान (मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट) मुहैया कराने का सौदा किया है। भारत को ये 126 लड़ाकू विमान अगले 10 सालों में मिलेंगे।
बोइंग कंपनी के मार्क क्रोएनबर्ग का कहना है कि 1990 के बाद आज तक दुनिया में इतना बड़ा लड़ाकू विमान सौदा नहीं हुआ है। भारत 126 शक्तिशाली लड़ाकू विमान खरीदने की तैयारी के आखिरी चरण में है। भारत के मिग विमानों का बेड़ा अब अपनी आखिरी सांसें गिन रहा है।
भारत अब पहले की तरह कम रेंज वाले विमान नहीं चाह रहा है। उसकी चाहत बढ़ गई है और वह दो इंजिनों वाले महंगे लड़ाकू विमानो की तरफ निगाहें गड़ाए बैठा है। ये विमान बहुत दूर तक जाकर कहर बरपा सकते हैं। दो इंजिनों वाले ये विमान महंगे हैं और महज एक विमान की कीमत साढ़े छह करोड़ डॉलर से 12 करोड़ डॉलर तक है। इनमें ही रैफेल और यूरो फाइटर आते हैं जिनके नाम पर लगभग सहमति हो चुकी है। इन दोनों में से कोई एक विमान भारत के लिए चुना जाएगा। ये विमान दुनिया के सबसे शक्तिशाली फाइटर प्लेन माने जाते हैं।
रैफेल फ्रांस के दासॉ का बनाया हुआ विमान है और यह लंबी दूरी तक मार करने वाला विमान है। इसके अलावा यह बड़े पैमाने पर हथियार लादकर ले जा सकता है। दूसरा विमान है यूरोफाइटर जिसे इंग्लैंड ने कुछ अन्य देशों के साथ बनाया गया है। इसे अगली पीढी का विमान कहा जा रहा है। इसके एक विमान की कीमत दस करोड़ डॉलर (लगभग 520 करोड़ रुपए) होगी। दुनिया में इतना महंगा पाइटर प्लेन कोई नहीं है।
इन दो विमानों के शामिल हो जाने से भारतीय वायुसेना की ताकत में कई गुना इजाफा हो जाएगा। भारत ने अमेरिका की विमान निर्माता कंपनी लॉकहीड मार्टिन के साथ छह सी-130 लड़ाकू विमानों सौदा किया है यह पूरी डील 950 मिलियन डॉलर में हुई है। इसमें से चार विमान भारत को मिल चुके हैं जबकि दो विमान इस गर्मियों में मिल जाएंगे।
लॉकहीड मार्टिन के मुताबिक इस विमान में कई खूबियां है यह विमान कम ऊंचाई में उड़ सकता है और अंधेरे में भी लैंड कर सकता है। इस विमान में हवा से हवा में ईंधन भरने की क्षमता है
यह एक मालवाहक जहाज है चार ईंजनों से लैस यह हवाई जहाज 660 किलोमीटर प्रति घंटे की तेजी से उड़ सकता है इस विमान में 21,770 किलो सामान लादा जा सकता है इस विमान का उपयोग स्पेशल ऑपरेशन में किया जाएगा इसमें 92 सैनिक पैराशूट के सहारे कहीं भी उतर सकते हैं इसके अलावा में भारी सामान भी लाया ले जाया जा सकता है।
Palash Biswas
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