रेडियो पत्रकारिता में प्राण फूंकेगी महादलित रेडियो योजना
रेडियो पत्रकारिता में प्राण फूंकेगी महादलित रेडियो योजना
♦ संजय कुमार
मीडिया का इस्तेमाल कैसे किया जाए, इस फिराक में हर कोई रहता है। चाहे वह सरकार हो या राजीतिक दल या फिर नेता या आम-खास आदमी, हर कोई अपने जनसंपर्क के लिए मीडिया को किसी न किसी रूप में अपनाने की जी तोड़ कोशिश करता रहता है। इसके लिए खबर या विज्ञापन का सहारा लिया जाता है। ताकि लोगों तक उनकी बातें पहुंच सकें। अखबार को पढ़ने के लिए रोजाना पैसे देकर खरीदना पड़ता है और खबरिया चैनलों को देखने के लिए जनता को मासिक शुल्क देने पड़ते हैं। जबकि, सरकारी मीडिया रेडियो-दूरदर्शन सुनने एवं देखने के लिए कोई शुल्क नहीं देना पड़ता है। अखबार ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे, इसके लिए अखबार पाठकों को समय-समय पर स्कीम निकाल कर प्रलोभित करता रहता है। वहीं, खबरिया चैनल अपनी टीआरपी को बढ़ाने के लिए खबरों को मसालेदार बनाने से बाज नहीं आते। लेकिन रेडियो-दूरदर्शन अपनी चाल में चलते हैं, मामला सरकारी जो है।
यह सब जानते हैं कि सरकार जनहित में इसका प्रयेाग करती है। इसमें रेडियो की पहुंच को नकारा नहीं जा सकता। सबसे सशक्त और सहज मीडिया है यह। तभी तो बिहार सरकार की इस पर नजर गयी है। रेडियो से बिहार के महादलितों को जोड़ने की दिशा में एक नयाब प्रयोग शुरू किया गया है। वह है, 'मुख्यमंत्री महादलित रेडियो योजना'।
रेडियो पर बिहार सरकार की खास नजर पड़ी है। बिहार के महादलितों को रेडियो जैसे जनसाधारण मीडिया से जोड़ने की ये पहल अपने आप में मिसाल है। इसके तहत महादलित, गरीब परिवार को सरकार की ओर से रेडियो-सेट खरीदने के लिए कूपन देने की योजना शुरू की गयी है। हालांकि बड़े पैमाने पर बिहार सरकार के मुखिया नीतीश कुमार 25 फरवरी को पटना के मसौढ़ी में 'महादलित रेडियो योजना' की राज्यव्यापी शुरुआत करने जा रहे हैं। मसैढ़ी के सैकड़ों महादलित परिवार को इस दिन रेडियो खरीदने के लिए मुफ्त कूपन दिये जाएंगे।
महादलित परिवारों के बीच उनके विकास से संबंधित योजनाओं की जानकारी और उनके स्वास्थ्य या शिक्षा से जुड़ी सूचनाएं रेडियो के माध्यम से उन तक पहुंचाना इस योजना का मुख्य मकसद है। साथ ही देश-दुनिया की खबरों से भी वे जुड़ेंगे। गीत-संगीत और मनोरंजन का लाभ उठाएंगे। हालांकि, बिहार सरकार ने इसके लिए उपयोगी कार्यक्रम तैयार करने और सामुदायिक रेडियो जैसी व्यवस्था पर कार्य करना शुरू कर दिया है। वैसे, अभी इसमें वक्त लगेगा।
'मुख्यमंत्री महादलित रेडियो योजना' की शुरुआत 09 जनवरी को पायलट योजना के तहत पटना सदर, दानापुर और जहानाबाद के कुल 22,284 हजार दो सौ चैरासी महादलित परिवारों के बीच बांटकर किया गया। दानापुर में 3297, पटना सदर में 1602, काको में 6898 और मखदुमपुर में 10487 महादलित परिवारों के बीच रेडियो का वितरण किया जा चुका है। इस योजना की राज्यव्यापी शुरुआत से बिहार के अन्य जिलों के दलित परिवारों को रेडियो मिलेगा और वे मीडिया से जुड़ेंगे। बिहार में 22 लाख महादलित परिवार हैं।
महादलितों को रेडियो देने की बिहार सरकार की यह योजना राजनीतिक गलियारें में हलचल भी पैदा कर चुकी है। विपक्षी दल इस योजना को वोट की राजनीति या फिर सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की बात करते हैं, जबकि सत्तापक्ष का मानना है कि महादलित परिवारों के बीच रेडियो पहुंचने से उनके विकास से संबंधित योजनाओं की जानकारी सीधे उन तक पहुंच पाएगी।
मुख्यमंत्री महादलित रेडियो योजना से रेडियो पा चुके महादलितों के बीच खुशी भी है। वे कहते भी हैं कि इससे वे जहां खबरें सुनते हैं, वहीं अपना मनोरंजन भी कर लेते हैं। रेडियो जैसे सशक्त मीडिया को बिहार सरकार ने चुनकर एक बेहतरीन कार्य भले ही किया हो, लेकिन सवाल उठने से रोका नहीं जा सका। इसके पीछे राजनीतिक रणनीति और चुनावी लाभ का सवाल खड़ा हुआ, तो वहीं दलित समुदाय की कुल 22 जातियों में से सिर्फ एक जाति दुसाध यानी पासवान को दरकिनार कर महादलित वर्ग बनाकर बिहार सरकार पहले ही सवालों के घेरे में है। दलितों को बांटने का आरोप मढ़ा गया है।
रेडियो से महादलितों को जोड़ने की योजना के पीछे भले ही राजनीति हो, लेकिन एक बड़ा काम यह है कि बिहार की महादलित बस्तियों में घर-घर रेडियो पहुंचाने का जो कार्यक्रम शुरू हुआ है, यकीनन वह रेडियो पत्रकारिता की पहुंच को और मजबूत बनाएगा। इसके पीछे पक्ष-विपक्ष का जो भी राजनीतिक मामला हो, यह तय है कि जनहित, जनसाधारण और सहज, सुगम, मीडिया, रेडियो की पहुंच से महादलितों को यकीनन फायदा पहुंचेगा। रेडियो सेट के माध्यम से केवल बिहार सरकार ही नहीं, केंद्र सरकार की जन उपयोगी योजनाओं के बारे में जान सकेंगे। मुख्यधारा से कटे या अंतिम कतार में खड़े महादलित समय-समय पर प्रसारित होने वाले सरकारी (केंद्र व राज्य सरकार) कार्यक्रमों को जान सकेंगे। रेडियो सुन कर केंद्र या राज्य सरकार द्वारा चलायी जा रही योजनाओं के बारे में लाभान्वित होने की दिशा में वे गोलबंद भी हो सकेंगे, जिससे वे वंचित रहते हैं। क्योंकि, ऐसे महादलितों के बीच खबरिया चैनल या फिर अखबारों की पहुंच नहीं के बराबर होती है। ऐसे में मुफ्त में मिले रेडियो सेट के माध्यम से महादलित अपनी योजनाओं-परियोजनाओं से अपने को जोड़ अपने जीवन को साकार कर पाएंगे।
(संजय कुमार। आकाशवाणी, पटना में समाचार संपादक। दो दशकों से सक्रिय। इतिहास, समाज और पत्रकारिता पर अब तक छह पुस्तकें प्रकाशित। बिहार राष्ट्रभाषा परिषद सहित कई संस्थानों से सम्मानित। अखबारों-पत्रिकाओं में समय-समाज पर लगातार लेखन। उनसे sanju3feb@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)
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