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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Thursday, January 31, 2013

भ्रष्टाचार का 'सवर्ण' समाजशास्त्री

भ्रष्टाचार का 'सवर्ण' समाजशास्त्री

जुबान की चूक तो नहीं यह

आशीष नंदी के बयान के बाद अचानक एक वरदान देने वाले देवता की तरह मीडिया खड़ा हो गया, जैसे भक्त की रक्षा के लिए साक्षात ईश्वर जैसे प्रकट होते हैं. नंदी को संकट में घिरा देख कर मीडिया ने उनके अभयदान की पृष्ठभूमि लिख दी...

संजय कुमार

समाजशास्त्री प्रोफेसर आशीष नंदी का जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के मंच से दिया गया बयान देशभर में बहस का मुद्दा बना हुआ है. उन्होंने देश में भ्रष्टाचार की जड़ तलाशकरते हुए यह फैसला सुना दिया कि पिछड़े और दलित ज्यादा भ्रष्ट हैं. नंदी ने पश्चिम बंगाल का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां साफ सुथरी राजव्यवस्था है और इसका कारण हैपिछले 100 वर्षों में वहां पिछड़े तथा दलित वर्ग के लोग सत्ता से दूर रखे गये.

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नंदी उवाच से हंगामा बरपना ही था. मीडिया और राजनीतिक गलियारे में आशीष नंदी के कथन की आलोचना हो रही है. खबरिया चैनल, फेसबुक और प्रिन्ट मीडिया ने मुद्दे को लेकर बहस किया. समाजषास्त्री प्रोफेसर आशीष नंदी जी विद्वान है ? कुछ भी बोल सकते हैं ?तर्क दे सकते हैं ? खबरों में बनने रहने के लिए बौद्धिक अंदाज में दलितों एवं पिछड़ों को गरिया सकते है ? 

लेकिन, सवाल उठता है कि दलित एवं पिछड़ें ही क्यों ? कहीं यहउनका भड़ास, द्विज मानसिकता का परिचायक तो नहीं ? कई सवाल है, जो बहस पैदा कर जाते हैं. यह अच्छा हुआ कि उनके बहाने द्विज समाज की वह सोच सामने आयी जोदलित-पिछड़ों को द्विजों के साथ खड़ा नहीं होने देना चाहता है.

बयान पर विरोध के बाद उनका सफाई अभियान भी चला. इस पर आलोचक सफदर इमाम कादरी लिखते हैं, ''प्रोफेसर आशीष नंदी इतने प्रबुद्ध विचारक हैं कि यह नहीं कहाजा सकता कि उनका बयान जुबान की फिसलन है या किसी तरंग में आ कर उन्होंने ये शब्द कहे. अपनी तथाकथित माफी में उनहोंने जो सफाई दी तथा उनके सहयोगियों नेप्रेस सम्मलेन में जिस प्रकार मजबूती के साथ उनका साथ दिया, इससे देश के बौद्धिक समाज का ब्राह्मणवादी चेहरा और अधिक उजागर हो रहा है. सजे धजे ड्राइंग रूम मेंअंग्रेजी भाषा में पढ़कर तथा अंग्रेजी भाषा में लिख कर एक वैश्विक समाज के निर्माण का दिखावा असल में संभ्रांत बुद्धिवाद को चालाकी से स्थापित करते हुए समाज केकमजोर वर्ग के संघर्षों पर कुठाराघात करना है(नौकरशाहीडाटइन,27जनवरी13).

दलित एवं पिछड़ें को पहले गाली फिर दिखावे के लिए माफी को मजबूती के साथ मीडिया ने भी उठाया और एक बार फिर अपना सवर्ण होने के चेहरे को चमकाते हुए, साबितकर दिया कि वह किसके साथ है? प्रोफेसर आशीष नंदी की जितनी आलोचना की जाये कम होगी. दलित एवं पिछडों के खिलाफ इस तरह की टिप्पणी के लिए इतनी जल्दीउन्हें छोड़ना अनुचित है.

देश के भ्रष्टाचार में सबसे बड़ा हाथ दलितों, पिछड़ों और अनुसूचित जाति जनजाति के लोगों का है के बयान पर आशीष नंदी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर लिया गया है. उनपर गैर जमानती धाराएं लगाई गई हैं. बसपा सुप्रीमो मायावती सहित कई दलित नेताओं ने आशीष नंदी के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा कि सरकार कोआशीष नंदी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए. वहीं, अभी भी राजनीतिक गलियारे में मजबूत पिछड़ी जाति के नेताओं ने दलित नेताओं की तरह प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है.

हालांकि आशीष नंदी ने यह बात पहली बार नहीं कही है, बल्कि उन्होंने पाक्षिक हिंदी पत्रिका द पब्लिक अजेंडा के 2011 अगस्त अंक में बातचीत के दौरान भी अपने इस मत को तर्कसम्मत तौर पर रखा था, जिसे जनज्वार डॉट ने प्रकाशित किया था. बातचीत में आशीष नंदी कहते हैं, ''मैंने दलितों में अंबेडकर को भी देखा और अब मायावती भी हैं. इसी तरह ओबीसी नेताओं में भी ईमानदार और भ्रष्ट लोग हैं. लेकिन मैं इतना जरूर कहूंगा कि जैसा लोकतंत्र हमारे देश में है, वैसा कहीं और नहीं है. हमारे देश में तेजी के साथवंचित और पिछड़ी जातियों और समुदायों ने सत्ता में भागीदारी की है और लोकतंत्र में सभी की भागीदारी बढ़ी है. मेरा मानना है कि लोकतंत्र की इसी भागीदारी का बाई प्रोडक्टहै भ्रष्टाचार. लेकिन मैं राजनीतिक और कर्नाटक और ओडिशा या दूसरे राज्यों में जारी कॉरपोरेट लूट के भ्रष्टाचार को अलग करके देखता हूं. मुझे कहने में संकोच नहीं कि हमारे देश में जारी भ्रष्टाचार में बहुतायत सत्ता का भ्रष्टाचार ही है. पिछले पचास वर्षों में हमारे लोकतंत्र का ढांचा बदल गया है. जिन संस्थाओं और सदनों में सवर्णों की भरमार हुआ करती थी, वहां पर्याप्त संख्या में वे लोग पहुंच रहे हैं जिन्हें हमेशा ताकत से दूर रखा गया. ताकत की यही भूख राजनीतिक नैतिकताओं को बेड़े को तहस-नहस कर रही है, मगर दूसरी ओर यह लोकतंत्र में भागीदारी को मजबूत भी कर रही है'' (देखें जनज्वार डॉट).

देखा जाये तो यह आशीष नंदी की अकेली सोच नहीं है. जब भी दलित-पिछड़ों के हित यानी उन्हें समाज-देष के मुख्यधारा से जोड़ने के लिए सरकारी स्तर पर प्रयास होता हैतो उसका सवर्ण समाज खिलाफत करने लगता है. उसे अपने हकमारी दिखने लगती है. लेकिन यह नहीं दिखता कि आजादी के 65 वर्ष बाद भी समाज-देश में व्याप्तबराबरी-गैरबराबरी का फासला आज भी बरकरार है. जो सवर्ण दलित-पिछड़ों के हक की वकालत करते हैं तो उन्हें सलाह दी जाती है कि वे दलित के साथ मिल कर दलितस्तानबना लंे ! आशीष नंदी की सोच जो भी हो अभी भी दलित-पिछड़ों के लिए दिल्ली दूर है. फासले अभी भी मुंह चिढ़ाते हैं. और यह भी सच है कि फासलों में भी संभावना देखनेवाले लोग भी काफी हैं लेकिन इनमें ज्यादातर अपनी दूकानें चला लेते हैं.

दरअसल भ्रष्टाचार एक देशव्यापी समस्या है जिसका किसी जाति विशेष या वर्ग विशेष से कोई लेना देना नहीं है. आज की तारीख में भ्रष्टाचार एक रोजगार, एक व्यवसाय बनगया है और भ्रष्टाचारियों का पूरी तरह से विकसित एक तंत्र है जो षासन-प्रशासन के महत्वपूर्ण पदों पर काबिज है. आशीष नंदी जब दलितों, पिछड़ों को भ्रष्टाचार का कारण याजिम्मेवार मानते हैं तो सबसे पहले उन्हें यह देखना-पढ़ना-शोध करना चाहिए था कि शासन'-प्रशासन में देश में दलितों-पिछड़ों के प्रतिनिधित्व का प्रतिशत क्या है और इसप्रतिशत में आजादी के बाद आज तक कितना इजाफा हुआ है. भ्रष्टाचार के शिकार आज सर्वाधिक दलित और पिछड़े ही है.

आशीष नंदी की उक्ति सीधे तौर पर उस मानसिकता का ही प्रतिनिधित्व कर रही है जिस मानसिकता के तहत एक आदि पुरुष की कल्पना की गयी थी जिसके मुख सेब्राहमण, भुजाओं से क्षत्रिय, जंघा से वैश्य और पैर से शूद्र की उत्पति बतायी गयी थी और शूद्र का कार्य उपरोक्त तीनों वर्णों की सेवा करना मात्र था. लगता है कि आज सेलगभग तीन हजार वर्ष की मानसिकता के साथ आज भी नंदी जी खड़े है. उनका बयान एक गैर वाजिब और दलित पिछड़ा विरोधी मानसिकता का ही प्रतिनिधित्व कर रहा है.

कुछ दलितों का अपनी मूल स्थिति से थोड़ा ऊपर उठ जाना, प्रशासनिक कुर्सियों पर बैठ जाना या संसद में पहुंच जाना शायद वे पचा ही नहीं पा रहे हैं, तभी वे इस तरह की बातें सोचते और फिर कर देते हैं. कायदे से उनके जैसी प्रखर शख्सियत के मुँह से निकली बात माफी की हकदार नहीं होनी चाहिए लेकिन जितनी प्रमुखता से उन्हें मीडिया ने सहयोग किया, उनकी बयानबाजी के बाद आनन-फानन में उसके निपटारे में मीडिया जिस उत्साह के साथ खड़ा हो गया-अचानक एक वरदान देने वाले देवता की तरह, जैसे भक्त की रक्षा के लिए साक्षात ईश्वर जैसे प्रकट होते हैं, मानो ठीक उसी तरह मीडिया भी अपने भक्त को संकट में घिरा देखकर भगवान की शक्ल में उनके सामने प्रकट हुआ और उनके अभयदान की पृष्ठभूमि लिख दी.

पूर्वाग्रहों से रहित होकर कोई भी बुद्धिजीवी अगर इसकी तह में जायेगा तो सब कुछ आईने की तरह साफ हो जायेगा कि अभी तक हमारे देष में कितने दलित-पिछड़ों ने सत्ता कास्वाद चखा है, कितने दलित शासन-प्रशासन के महत्वपूर्ण पदों को छू पाये हैं. इसलिए यह मानना कि भ्रष्टाचार के लिए दलित या पिछड़े जिम्मेवार हैं-बिल्कुल गैरजिम्मेदाराना बयान है और यह प्रत्यक्षतः एक वर्ग विशेष विरोधी मानसिकता का ही पर्दाफाश करता है. अंत में आशीष नंदी जी को जानना होगा कि देश में बराबरी और गैरबराबरी का फासला बड़े पैमाने पर कायम है और इसे देखने के लिए किसी तरह का चष्मा लगाने की जरूरत नहीं है. साथ ही इस फासले को मीडिया को भी जानने की जरूरत हैऔर उसे सवर्ण लबादे को छोड़ कर दलितों-पिछड़ों के लिए खड़ा होना चाहिये.

sanjay-kumarसंजय कुमार इलेक्ट्रोनिक मीडिया से जुडे़ हैं.

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