क्या भारत में लोग एक दूसरे की भावनाओं को सबसे ज्यादा ठेस पहुंचाते हैं? या हम अचानक अधिक असहनशील और असुरक्षित हो गए हैं?
हाल के दिनों में बड़ी संख्या में बैन, रोक और गिरफ्तारी यह बतलाती है कि भारतीय पहले की तुलना में ज्यादा अप्रसन्न हो रहे हैं. अगर ऐसे ही चलता रहा तो जल्द ही अभिव्यक्ति की आजादी खतरे में पड़ जाएगी. तो क्या अभिव्यक्ति की आजादी को बचाने के लिए हमें भावनाओं को ठेस पहुंचाने की भी आजादी मिलनी चाहिए?
हाल के दिनों में बड़ी संख्या में बैन, रोक और गिरफ्तारी यह बतलाती है कि भारतीय पहले की तुलना में ज्यादा अप्रसन्न हो रहे हैं. अगर ऐसे ही चलता रहा तो जल्द ही अभिव्यक्ति की आजादी खतरे में पड़ जाएगी. तो क्या अभिव्यक्ति की आजादी को बचाने के लिए हमें भावनाओं को ठेस पहुंचाने की भी आजादी मिलनी चाहिए?
हाल की कुछ घटनाओं की पड़ताल कर हम इसका निर्णय कर सकते हैं:
घटना
आशीष नंदी ने कहा कि SC/ST और OBC अन्य बड़ी जातियों की तुलना में भ्रष्टाचार में अधिक लिप्त हैं.
प्रतिक्रिया
SC और ST एक्ट के तहत नंदी की गिरफ्तारी की मांग
घटना
कमल हासन की फिल्म विश्वरूपम का रिलीज होना
प्रतिक्रिया
फिल्म पर बैन लगाने की मांग क्योंकि इसमें एक अल्पसंख्यक को आतंकवाद में लिप्त दिखाया गया है.
घटना
बाल ठाकरे की मृत्यु के बाद मुंबई बंद पर एक लड़की द्वारा किए गए फेसबुक कमेंट पर शिवसैनिकों का हंगामा.
प्रतिक्रिया
लड़की को पुणे पुलिस ने गिरफ्तार किया. हालांकि, सरकार की दखलअंदाजी के बाद उसे रिहा किया गया.
घटना
कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी को भारतीय संविधान का हास्य चित्र बनाने पर देशद्रोही करार देना
प्रतिक्रिया
उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए के तहत राजद्रोह, आईटी एक्ट की धारा 66 ए और नेशनल एम्बलम एक्ट 1971 के तहत गिरफ्तार किया गया.
घटना
सलमान रुश्दी का जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल 2012 में भाग नहीं ले पाना
प्रतिक्रिया
उनके भाग लेने पर रोक लगा क्योंकि उन्होंने मुस्लिमों की भावना को अपने किताब 'द सेटेनिक वर्सेस' के जरिए ठेस पहुंचाई लेकिन माफी नहीं मांगी.
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