नवरुणा अपहरण कांड को दबाना क्यों चाहती है बिहार सरकार
18 सितम्बर, 2012 को मुजफ्फरपुर शहर से नवरुणा का अपहरण हुए 135 दिन हो गए, लेकिन अब तक उसका पता नही चल पाया है। 7वीं कक्षा में पढ़ने वाली बंगाली मूल की 12 वर्षीय नवरुणा की सुरक्षित घर वापसी हेतु राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री से लेकर मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग सहित सुप्रीम कोर्ट तक में गुहार लगाई जा चुकी है। तमाम पुलिसिया आश्वासनों के बावजूद नतीजा शून्य है। दुर्भाग्य तो यह है कि सुशासन की पुलिस एक सुराग तक ढूंढ नहीं पाई है। इसी बीच तक़रीबन 67 दिन बीतने के बाद 26 नवंबर, 2012 को अचानक इस अपहरण कांड में एक नया मोड़ आ जाता है और नाटकीय अंदाज में नवरुणा के घर के समीप एक कंकाल बरामद हो जाता है। पहले प्रेम प्रसंग, फिर दबाब बढ़ने पर अपहरण की बात करने वाली पुलिस एकाएक नवरुणा के घर के समीप मिले कंकाल को नवरुणा का होने की बात को लेकर इतना ज्यादा सक्रिय हो जाती है कि अनुसन्धान का मतलब सिर्फ मेडिकल टेस्ट हो जाता है। प्रतिदिन बेटी की बरामदगी के वादे करने वाले पुलिस अधिकारी इस कंकाल के मिलने के बाद चुप्पी साध लेते हैं। आज स्थिति यह है कि हर तरफ नवरुणा केस का जिक्र आते ही "डीएनए टेस्ट परिजन क्यों नहीं दे रहे हैं" के सवाल गूंज रहे है। मर्यादित रूप से सवाल उठाना, लोकतांत्रिक विचारों की अभिव्यक्ति का ही एक रूप है जो न्यायसंगत भी है और जरूरी भी। लेकिन सवाल उठाने के नाम पर पूरे प्रकरण को एक गलत दिशा देना सर्वथा अनुचित है। शायद नवरुणा का अपहरण करने वाले व अपहरण के षड्यंत्रकर्ता भी यही चाहते हैं कि अपहरण की बात भूलकर लोग इधर उधर की बातों में उलझे रहें।
इससे पहले कि और कुछ कहा जाए पूरे मसले को समझना बहुत जरुरी है। हुआ यूँ कि जवाहरलाल रोड स्थित नवरुणा के घर के पास की नाली की सफाई के दौरान 26 नवंबर को एक कंकाल दो थैलियों में बरामद हुआ। बहुत कम चौड़ी नाली में मिले इस कंकाल ने अचानक पूरे अनुसन्धान की दिशा मोड़ दी। कंकाल के प्रत्यक्षदर्शियों ने इसे किसी वयस्क का माना। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, एसएसपी ने भी इस बात को स्वीकार किया था कि कंकाल किसी बड़े व्यक्ति का है। इसी नाली से दो दिनों बाद एक कटी हुई हाथ के टुकड़े, खून के धब्बे मिले। अज्ञात के विरुद्ध दफा 302 के तहत मुकदमा ( न. 640/12, दिनांक-26.11.2012) दर्ज हुआ। नवरुणा के पिता को एसएसपी ने कंकाल की जब तस्वीरें दिखाई तब उन्होंने इसे अपनी बेटी का होने से पूरी तरह इंकार किया और इसे साजिश के तहत की गई करतूत बतलाया। कंकाल मिलने के समय कुछ लोगों ने यह भी कहा कि यह शहर में मधुबनी कांड की तरह आग लगाने के लिए रचे गए षडयंत्र का हिस्सा था लेकिन मुजफ्फरपुर के लोगो ने धैर्य का परिचय दिया और शहर में शांति बनी रही।
कंकाल के मिलने के बाद अचानक नवरुणा को ढूंढ निकालने के वादे करने वाले पुलिस अधिकारियों का रुख ही बदल गया। सब कंकाल के पीछे पड़ गए। हद तो तब हो गयी जब कंकाल मिलते ही अप्रत्यक्ष तरीके से यह मान लिया गया कि यह नवरुणा का ही है। यहाँ तक कि भारत का यह पहला मामला होगा जहाँ कंकाल घर के समीप बरामद होते ही पुलिस डीएनए टेस्ट के लिए सैम्पल लेने के लिए दबाब बनाना शुरू कर दी। सवाल उठता है कि कंकाल के सम्बन्ध में कुछ जानकारी, जैसे उम्र, लिंग, हत्या की अनुमानित तिथि आदि की जानकारी बगैर कैसे पुलिस टेस्ट के लिए कह सकती थी जबकि अभी तक फोरेंसिक जाँच की रिपोर्ट भी नहीं आई थी। इस बात की पुष्टि एसएसपी द्वारा प्रभात खबर को 30 नवंबर को दिए इस इंटरव्यू से भी होती है, जिसमें टेस्ट लेने के लिए कोर्ट का आदेश लेने की बात एसएसपी राजेश कुमार ने कही थी।
इसके अलावा यह भी सुनने में आया है कि कंकाल के साथ बरामद खोपड़ी देखने से लगभग एक वर्ष पुराना लगता था। अगर उसमें से मिट्टी निकाली जाती तो तक़रीबन आधा किलो मिट्टी के अंश पाए जाते।
कंकाल मामले में एक नया मोड़ तब आया जब प्रभात खबर में छपी रिपोर्ट ने इस बात पर मुहर लगाने का काम किया कि कंकाल नवरुणा का नहीं है बल्कि 30-40 साल के किसी व्यस्क का है। सूत्रों के हवाले से 2 दिसंबर, 2012 को छपी अख़बार के पहले पृष्ठ की इस पहली खबर में यह दावा किया गया था कि कंकाल 30 से 40 साल के किसी व्यक्ति का है। यह खबर दो बार छपी।
ऐसे में यह सवाल उठाना क्या गलत होगा कि जो तथाकथित फोरेंसिक जाँच की रिपोर्ट गोपनीय तरीके से ही सही सार्वजनिक हुई है, वह गलत है, झूठी है ? अगर प्रभात खबर में छपी खबर झूठी थी तो दो सवाल उठते हैं; पहला, क्या ऐसे संवेदनशील मामलों में कोई अख़बार अपनी लीडिंग स्टोरी बिना किसी तथ्य के छाप सकता है ?दूसरा, पुलिस ने इसका खंडन क्यों नहीं किया?
इस प्रकार देखा जाए तो लगता है कि सुनुयोजित तरीके से इस अपहरण कांड की पूरी स्क्रिप्ट पहले ही रची जा चुकी थी जिसका एकमात्र मकसद महज ज़मीन के लिए इंसानियत को गिरवी रखना था।
पूरे प्रकरण को लेकर मन में कुछ सवाल बार बार उठता है कि –
(1) नवरुणा के घर के समीप मिले कंकाल और फोरेंसिक जाँच को भेजी गयी कंकाल क्या एक थे या अलग अलग ? क्योंकि कंकाल के प्रत्यक्षदर्शी कंकाल के किसी बड़े व्यक्ति का होने की बात कह रहे थे, जिसकी पुष्टि स्थानीय अखबारों ने भी की है।
(2) निदान, जिसके जिम्मे शहर की सफाई है, के कर्मचारी इतने सुबह किसके कहने पर उसके घर के पास सफाई करने पहुंचे थे ? सफाई करना वहीं से क्यों प्रारंभ किया जहाँ से कंकाल मिला ?
(3) नाली से बरामद खून के धब्बे, कटी हुई हाथ आखिर किसका था?
(4) कंकाल मिलने के साथ ही पुलिस तत्काल जाँच के लिए परिजन पर क्यों दबाब बनाना शुरू कर दिया जबकि फोरेंसिक रिपोर्ट आई भी नहीं थी?
(5) अभी तक कंकाल घर के समीप डालने वालों तक पुलिस क्यों नहीं पहुँच पाई है ?
(6) जब से कंकाल मिला है तबसे नवरुणा के सुरक्षित घर लौटने के आश्वासन देने की बजाए इस प्रकार का माहौल क्यों बनाया जा रहा है कि कंकाल नवरुणा का ही है ?
(7) अभी तक नवरुणा के घर लौट आने के दावें करने वाला प्रशासन अचानक कंकाल तक ही अपनी जाँच को क्यों सीमित कर दिया है ?
(8) फोरेंसिक जाँच रिपोर्ट आने में एक महीने का समय क्यों लगा, जबकि यह महज चंद घंटों या दिनों में हो सकता था ?
(9) फोरेंसिक जाँच रिपोर्ट परिजनों या मीडिया को क्यों नहीं दिखायी गयी ? (10) जब CID को जाँच का जिम्मा सौंपा गया तो वह लड़की को खोजने की बजाए टेस्ट की बात क्यों कर रही है ?
(11) जब नवरुणा के परिजन स्थानीय अदालत के आदेश को ऊपरी अदालत में चुनौती देने की बात लगातार कर रहे हैं, फिर पुलिस लगातार दबाब क्यों बना रही है ? अगर उसे फोरेंसिक रिपोर्ट पर भरोसा है तो वह ऊपरी अदालत से समान आदेश के लिए निश्चिंत रहें।
इसके अलावा भी कुछ सवाल है जिनका उत्तर नवरुणा के शुभचिंतक जानना चाहते है :-
(अ) 12 वर्षीया नवरुणा के अपहरण की शिकायत दर्ज करवाने के बाद मामले में तुरंत करवाई क्यों नहीं की गई? कार्रवाई में हुए देरी के लिए किसी को दंडित क्यों नहीं किया गया या उससे अभी तक पूछताछ क्यों नहीं की गयी देरी होने के सम्बन्ध में? हो सकता है जाँच में देरी किसी ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके करवाया हो! अगर यह पता चल जाए तो अपहरणकर्ताओ तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।
(आ) क्या प्रेम प्रसंग का मामला बताकर पुलिस मामले को दबाना चाहती थी?
(इ) फोरेंसिक जाँच अपहरण के तुरंत बाद क्यों नहीं की गयी जबकि पूरा मामला शुरुआत से ही भूमि विवाद से बताया जा रहा था ?
(ई) दिल्ली में सेव नवरुणा कैम्पेन चला रहे छात्रों को धमकाने पुलिस क्यों आई थी और किसके कहने पर आई थी ?
(उ) मामले की जाँच कर रहे अधिकारी को बार बार क्यों बदला गया ?
(ऊ) बिहार सरकार का कोई प्रतिनिधि अभी तक पीड़ित परिवार से क्यों नहीं मिला ?
(ए) कुछ औपचारिकाताओ को छोड़ दें तो सभी राजनीतिक दल अभी तक क्यों चुप्पी साधे हुए हैं? क्या उनपर दबाब है ?
(ऐ) बार-बार परिजनों द्वारा सहयोग न करने की बात क्यों कही जा रही है जबकि जो जानकारी हमें मिली है, उसके मुताबिक वे लगातार पुलिस के संपर्क में है और हर छोटी-बड़ी जानकारी तुरंत पुलिस से शेयर करते हैं। आज भी सबसे ज्यादा यकीन उनका मीठी मीठी बातें करके अब तक झूठी दिलासा देने वाले एसएसपी पर ही है।
(ङ) मुजफ्फरपुर से लेकर दिल्ली तक के छात्रों को, जो लोकतान्त्रिक तरीके से नवरुणा के लिए आवाज उठा रहे थे, उनके मुँह बंद करने की कोशिश क्यों की गई पुलिस द्वारा?
(ऋ) परिजनों ने अपहरण के तुरंत बाद ही भूमि माफियाओं का इसमें हाथ होने की बात कही और इस अपहरण के मूल को शुरुआत से ही ज़मीन को माना, फिर पुलिस यह सवाल क्यों उठाती रहती है कि परिजनों ने ज़मीन विवाद की बात छिपाई।
जब से इस इस केस पर हमने काम करना शुरू किया तबसे लगातार यह सुनने में आता था कि नवरुणा को खोजने के लिए दर्जन भर अधिकारियों को लगाया गया है। पुलिस की टीम ने शहर व आस-पास के जिलों के अलावा दिल्ली, कोलकाता व हावड़ा जाकर जांच की है। नवरुणा व उसके परिवार के हर कनेक्शन को खंगाला गया। कुछ लोग शक के आधार पर पकड़े भी गए। जेल भेजे गए। रिमांड पर लेकर पूछताछ भी की गई। लेकिन अंत में हुआ अभी तक क्या? जबाब है कुछ नहीं।
इन परिस्थितियों में, पुलिस और राज्य सरकार के नुमायन्दों को डीएनए टेस्ट न देने सम्बन्धी परिजनों का फैसला बिलकुल उचित है। पुलिस को टेस्ट देने के लिए दबाब बिल्कुल नहीं बनाना चाहिए। दबाब की स्थिति में परेशान करने की शिकायत कोर्ट में दर्ज करवाई जा सकती है। परिजन हमेशा टेस्ट देने की बात करते हैं लेकिन वे टेस्ट सिर्फ सीबीआई को ही देंगे, इस बात में दम है। लोगो को चाहिए कि नवरुणा के बहादुर परिजनों का साथ दें।
पूरी उम्मीद है कि आगामी 25 फ़रवरी को जब सुप्रीम कोर्ट में नवरुणा मामले की सुनवाई होगी तो कोर्ट नवरुणा को तुरंत कहीं से भी ढूंढकर लाने का आदेश देगा। नवरुणा के शुभचिंतक के नाते हम फिर से बिहार सरकार से विनम्र आग्रह करते है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से पहले वह बिना देरी किए तुरंत अपहरण के इस मामले को सीबीआई को सौंपे। विश्वास है, नवरुणा के साथ न्याय होगा। हम अंतिम दम तक नवरुणा के न्याय के लिए लड़ते रहेंगे।
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