हिंदूवादी श्रेष्ठता में सरोबार नंदी
पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
इतिहास उठाकर देखें तो पायेंगे कि सौहार्द बिगाड़ने का काम भारत के तथाकथित बड़े कहलाने वाले लोगों ने ही किया है. बात चाहे पाकिस्तान के जनक मुहम्मद अली जिन्ना की हो या शूद्रों (दलित, आदिवासियों और पिछड़ों) के सेपरेट इलेक्ट्रोल के अधिकार को छीनने वाले गाँधी की, या फिर गाँधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे की, ये सभी एक ही जमात के हैं. आगे देखें तो अयोध्या-बाबरी विवाद को भड़काने वाले लालकृष्ण आडवाणी, कट्टर हिन्दुत्व के भरोसे अपनी रोटी सेकने वाले संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, उनके उत्पाद प्रवीण तोगड़िया, उमा भारती, विनय कटारिया, नरेन्द्र मोदी जैसे मुसलमान विरोधी भी उसी श्रेणी में हैं. शिव सेना के बाला साहेब ठाकरे, उद्धव ठाकरे, राज ठाकरे और उनके गुंडे हों, या फिर हों कथित समाज विज्ञानी और प्रोफेसर आशीष नंदी, सभी उसी बड़े लोगों की परम्परा से ही आते हैं. स्त्री एवं शूद्र विरोधी ढोंगी संत आसाराम या हिंदुत्व के ठेकेदार संघ के मुखिया मोहन भागवत में तो आप बड़े लोगों की चरम अभिव्यक्ति पा सकते हैं.
ये सब के सब इस देश के बहुसंख्यक लोगों (अर्थात शूद्रों), स्त्रियों और मुसलमानों को दूसरे, तीसरे और चौथे दर्जे का नागरिक मानते हैं. शूद्र, स्त्री एवं मुसलमानों को देश की कुल आबादी में से घटाने के बाद बचे शेष कुलीन मुनवादी लोग इस देश पर विगत हजारों सालों की भांति आगे भी हजारों सालों तक अपना अमानवीय राज कायम रखने के लिये तरह-तरह के पेंतरे चलते रहते हैं. जिसके लिये इन लोगों ने शूद्रों, स्त्रियों और मुसलमानों में से भी कुछ समाज-द्रोहियों को ललचाकर अपने मिला लिया है. जिन्हें दिखावटी तौर पर आगे रखकर ये सभी वर्गों के हितचिन्तक होने का ढोंग करते रहते हैं!
हिन्दुत्व के ये कथित संरक्षण अपनी संविधानेत्तर और कथित धार्मिक सत्ता और मनुवादी विचारधारा को हर कीमत पर कायम रखने के लिये अपनी खुद की गुण्डा-पुलिस रखते हैं. जो 14 फरवरी को वेलैटाइंस डे पर, मुम्बई से उत्तर भारतीयों को खदेड़ते समय, दलितों को मन्दिरों से लतियाते समय और स्त्रियों को धार्मिक आयोजनों पर बहिष्कृत करते हुए और छेड़ते समय अपना कमाल दिखाती रहती है.
बावजूद मनुवादी आशीष नंदी कहते हैं कि भ्रष्टाचार के जनक अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोक सेवक हैं. आशीष नंदी को ये सब कहने का साहस इस कारण से हुआ कि कुछ ही दिन पूर्व प्रवीण तोगड़िया ने कहा कि यदि वह भारत का प्रधानमंत्री बन जाये तो मुसलमानों से सभी प्रकार के संवैधानिक हकों को एक झटके में छीन लेंगे. इस बयान पर देश के शूद्र, तथाकथित बुद्धिजीवी, संविधान के रक्षक चुप्पी साधे रहे. सभी जानते हैं कि देश के 90 फीसदी से अधिक मुसलमानों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल जातियों के पूर्वजों के वंशज हिन्दुओं से धर्मपरिवर्तित होकर मुसलमान बने हैं, जो मनुवादियों के लिये आज भी शूद्र ही हैं.
शूद्रों को अजा, अजजा, ओबीसी और मुसलमानों के नाम पर मनुवादी लगातार गालियॉं देते रहते हैं और शूद्र चुपचाप सब कुछ सहते और सुनते रहते हैं. यही कारण है कि शूद्र विरोधी भारतीय न्यायपालिका के कुछ जजों ने ऐसे निर्णय दिये हैं, जिनके कारण इस देश के सामाजिक माहौल को बिगाड़ने का काम किया है. इन निर्णयों से इस देश का माहौल मनुवाद को मजबूत करने में सहायक का काम कर रहा है.
सभी जानते हैं कि शूद्रों को हजारों सालों तक भारत में मानव नहीं समझा गया. इसी वजह से उन्हें सरकारी क्षेत्र में प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिये आरक्षण प्रदान किया गया. जिसे अमलीजामा पहनाने के लिये संविधान के अनुच्छेद 16 (4) में साफ़ तौर पर प्रारम्भ से ही ये सुस्पष्ट व्यवस्था की गयी थी कि आरक्षण "नियुक्ति के समय" अर्थात् "नौकरी प्राप्त करते समय" और "पदों पर" अर्थात् "पदोन्नति के समय" दिया जायेगा.
लेकिन मनुवादी विचारधारा के पोषक जजों ने बार-बार, मनुवादियों और आरक्षणविरोधियों के पक्ष में और संसद की भावना के विपरीत व्याख्या की गयी, जिसे संसद ने अनेक बार ख़ारिज किया. ये सिलसिला अनवरत आज भी जारी है. इस प्रकार इस देश के सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक और न्यायिक माहोल को बिगाड़ने में सबसे अधिक यदि किसी का योगदान है तो वे हैं शूद्र-विरोधी-मनुवादी तथाकथित बड़े-बुद्धिजीवी, राजनेता, धर्मनेता और जज.
पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश' राजस्थान में आदिवासी अधिकारों के लिए सक्रिय हैं.
No comments:
Post a Comment