২০০৪-এর অবস্থা হলে কংগ্রেসকে নিয়ে ভাববেন বুদ্ধ
मतलब साफ है कि भाजपा के मुकाबले कांग्रेस का सहारा बनने को तैयार है बेसहारा माकपा।
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
২০০৪-এর অবস্থা হলে কংগ্রেসকে নিয়ে ভাববেন বুদ্ধ
बंगाल कांग्रेस और बंगाली माकपा का चोली दामन का साथ रहा है।अपना अलग दल बनाने से पहले कांग्रेस में रहकर मुक्यमंत्री ममता बनर्जी बाकायदा कांग्रेस की केंद्रीय मंत्री और प्रदेश युवा कांग्रेस अध्यक्ष की हैसियत से माकपापरस्त कांग्रेसी दिग्गजों के खुलेाम तरबूज कहा करती थी।भीतर से हरा और अंदर से लाल।लेकिन कामरेड ज्योति बसु सरकार ने जनवरी 1979 में जब सुंदरवन इलाके में शरणार्थियों की बसावट उजाड़ने के लिए मरीचझांपी में पुलुस फायरिंग,आगजनी से लेकर नदियों में नाव डुबो देने और पेयजल में जहर मिलाने तक का कृत्य कर डाला,बाहैसियत कांग्रेस नेता ममता बनर्जी खामोश रही।कांग्रेस संस्कृति का तालमेली असर उन पर भी रहा है।मरीचझांपी नरसंहार की जांच का आदेश उन्होंने नहीं दिया है,इसे इस तरह समझा जाये कि माकपा दिग्गज सोमनाथ चटर्जी को जादवपुर से हराकर ममता दीदी जब पहलीबार केंद्रीय मंत्री बनीं,तो वे सीधे राइटर्स पहुंच गयीं तत्कालीन मुख्यमंत्री कामरेड ज्योति बसु को प्रणाम करने।आपस में तलवारे खिंची रहने के बावजूद कांग्रेस वामपंथ का चोली दामन का साथ कबी नहीं छूटा है और न छूटेगा।
बंगाल के माकपाई अपनी दुर्गति के लिए पहली यूपीए सरकार से भारत अमेरिका परमाणु संधि के मुद्दे पर समर्थन वापसी को जिम्मेदार मानते हैं और ज्योति बसु को प्रधानमंत्री बनने से रोकने के फैसले को नहीं,बल्कि कांग्रेस को अकेली बेसहारा छोड़ देने के फैसले को ऐतिहासिक हिमालयी भूल मानते हैं।न नौ मन तेल होता और न राधा नाचती,यह उनकी दलील है।यानि न कांग्रेस तृणमूल कांग्रेस के साथ होती और न परिवर्तन की हवा बनती।अब विडंबना देखिये कि कांग्रेस और तृणमूल फिर अलग अलग है और इसके बावजूद माकपाई अपना अपना सिर धुन रहे हैं।यह कांग्रेस अब पुरानी कांग्रेस है ही नहीं।जिसके अधीर चौधरी और बेनजीर मौसम तक की सीट अब पक्की नहीं है और जिसका वोटबैंक केसरिया झोली में स्थानांतरित है।
लेकिन फिर उनकी याद आयी है।फिर हानीमून के याद सता रहे हैं माकपाई को और उथल पुथल हो रहा पुरातन प्रेम जाम से छलक छलक कर निकल रहा है।आखिरकार बुद्धदेव बाबू ने कह ही दिया कि फिर 2004 जैसी हालत हुई तो कांग्रेस का ही समर्थन करेंगे।दिल ने फिर याद किया है तो बहारें फिर आयेंगी शायद।मतलब साफ है कि कांग्रेस का सहारा बनने को तैयार है बेसहारा माकपा।
बंगाल में हालात संगीन है।कांग्रेस और माकपा समेत सारे वामदल खस्ताहाल है और तेजी से उत्थान हो रहा है केसरिया भाजपा का।अभी से यह हिसाब लगाना बेमानी है कि भाजपा को बंगाल में कुल कितनी सीटें मिलेंगी।लेकिन जितनी भी सीटें मिलेंगी ,वह रिकार्ड होगा बंगाल के लिहाज से।एक बात तय है कि कांग्रेस को पछाड़कर और शायद माकपा को भी पीछे धकेलकर भाजपा बंगाल में मुख्य विपक्ष बनने जा रहा है।आगामी लोकसभा चुनाव में बंगाल में पड़ने वाले भाजपा मतों का प्रतिशत पंद्रह से बीस तक कुछ भी हो सकता है।इसका मतलब हुआ कि अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा सत्ता का दावेदार बन जायेगी खासकर तब जबकि बंगाल में रज्जाक मोल्ला और नजरुल इस्लाम की अगुवाई में दलित मुस्लिम गठबंधन मुकम्मल आकार ले लेगा।पूंछकटी हालत हो जायेगी दलित मुस्लिम वोटबैंक के बाहुबली दलों की।तब अलग अलग इकाइयों के विरुद्ध निःसंदेह भाजपाई हिंदुत्व ही सत्ता का सबसे कारगर रसायन होगा।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की नजर में दिल्ली की कुर्सी हो ,न हो,अगले विधानसभा चुनाव के समीकरण जरुर होंगे।इसी के मद्देनजर अबतक मोदी के खिलाफ खामोशी उनकी मुखर होने लगी है।वे चीख चीखकर कह रही हैं कि भाजपा को एक वोट भी न दें।
तो अपने अपने खेत के रखवाले बेखबर हो ही नहीं सकते।बाकी देश में कोई ऐसा राजनेता नहीं है,जो सपने में भी कांग्रेस को सत्ता के नजदीक पहुंचने के करीब देख रहा हो।लेकिन बुद्धबाबू देख रहे हैं। जाहिर है कि बनारस के घाट पर गांजा सेवन के मानस से नहीं बोल रहे हैं बुद्धबाबू। उनकी नजर में भी दिल्ली नहीं,बंगाल का विधानसभा चुनाव है।जैसे बाकी देश में कांग्रेस चुनाव से बहले ही हार बैठी है,वैसा ही किस्सा बंगाल में भी दोहराया जा रहा है।
बुनियादी फर्क सिर्फ इतना है कि यहां कांग्रेस के साथ साथ वामपंथ भी सफाये के कगार पर है।विकल्प तेजी से ममता बनाम भाजपा बनता जा रहा है। लोकसभा चुनाव का नतीजा जो हो सो हो,विचारधारा गयी तेल लेने गयी,बंगाली माकपाइयों की नाक में बंगाल की सत्ता की आदिम गंध ही भरी पूरी होती है।जैसे महुआगंध से झूमता है भालू,वैसा ही भालू मिजाज बंगाली कामरेडों का है जिन्होंने इस बंगाली सत्ता गंध में मदहोश बाकी देश में वामपंथ की खेती ही बंद करवा दी है।
एक बुनियादी फर्क और है।सत्ता के शिखर पर दस साल बिताने वाल भारत पाक परमाणुसंधि को अमली जामा पहनाने वाले,आर्थिक सुधारों के मसीहा मनमोहन सिंह और उनके वित्तमंत्री पी चिदंबरम इस कुरुक्षेत्र में सिरे से गायब हैं। राहुल गांधी की अगुवाई में कांग्रेस का कायकल्प हो रहा है।सत्ता से बाहर होने के बाद अग्निपाखी की तरह जिस कांग्रेस का पुनर्जन्म होगा,वह यकीनन ममोहनी कांग्रेस तो होगी नहीं।लेकिन माकपा के किसी कायाकल्प की कोई संभावना नहीं है।सांगठनिक कवायद में नेतृत्व बदलने में फेल माकपा ने कायाक्प के प्रवक्ता रज्जाक मोल्ला को बाहर कर दिया है।वृहत्तर वामपंथ की बात करने वाली माकपा अपने ही सिपाहसालारों सोमनाथ चटर्जी, समीर पुतुतुंडु, सैफुद्दीन, प्रसेेनजीत बोस,रज्जाक मोल्ला,लक्ष्मण सेट जैसे लोगों को किनारे पर लगा रही है।कांग्रेस ने सरदार के सारे निशान मिटा दिये हैं,लेकिन वामपक्ष के भीष्मपितामह वहीं हैं।एक तो बुद्धदेव हैं,बाकी कौन कौन हैं,हिसाब लगाते रहिये।
तीसरे मोर्चा की चुनावी रस्म शुरु होने से पहले ही विघ्नित है।अकबर,पासवान,उदितराज जैसे लोगों के केसरिया हो जाने से बिखर गया है धर्मनिरपेक्षता मोर्चा भी। लेकिन बाकी देश में जो हो,बंगाल में अपना वजूद बचाने के लिए भाजपी की कड़ी चुनौती के लिए धर्मनिरपेक्षता का थीमसांग एकसाथ गाने लगे हैं ममता बनर्जी, बुद्धदेव और अधीर चौधरी।
अब देखते हैं कि आखिरकार बीरबल की खिचडी़ जब पककर आयेगी तो क्या होगा और कैसा होगा उसका स्वाद। धीरज रखिये,शायद सोलह मई तक का भी इंतजार नहीं ही करना पड़े।
২০০৪-এর অবস্থা হলে কংগ্রেসকে নিয়ে ভাববেন বুদ্ধ
নিজস্ব সংবাদদাতা
কলকাতা, ২৪ মার্চ , ২০১৪, ০৪:১৫:২৩
রাজনীতি যে সম্ভাবনার শিল্প, বুঝিয়ে দিলেন বুদ্ধদেব ভট্টাচার্য!
ভোটে বামেদের লড়াই বিজেপি এবং কংগ্রেস, দু'পক্ষের বিরুদ্ধেই। কিন্তু ২০০৪-এর মতো পরিস্থিতি আবার হলে এবং অন্য কোনও বিকল্প না-থাকলে ভোটের পরে কংগ্রেসকে সমর্থনের সম্ভাবনা ভেবে দেখতে হবে বলে মন্তব্য করলেন বুদ্ধবাবু। যদিও তাঁরই দলের সাধারণ সম্পাদক প্রকাশ কারাট ইতিমধ্যেই জানিয়ে দিয়েছেন, কংগ্রেসের জন্য বামেদের দরজা বন্ধ। সিপিএম পলিটব্যুরোর দুই নেতার মতের এই ফারাক ভোটের মুখে জল্পনা উস্কে দিয়েছে।
কেন্দ্রে ২০০৪ সালের মতো পরিস্থিতি তৈরি হলে ভোটের পরে বামেরা কি আবার কংগ্রেসকে সমর্থন করতে পারে? এই প্রশ্নের জবাবে সংবাদসংস্থা পিটিআই-কে বুদ্ধবাবু বলেছেন, "একমাত্র যদি ২০০৪-এর মতোই পরিস্থিতি আসে এবং সেখানে অন্য কোনও রাস্তা যদি খোলা না থাকে!" তবে একই সঙ্গে প্রাক্তন মুখ্যমন্ত্রীর বক্তব্য, "আমাদের আশা, ২০০৪-এর মতো পরিস্থিতি আর হবে না। তখন সাম্প্রদায়িক বিজেপি-কে ঠেকানোর জন্য আমাদের কংগ্রেসের দিকে যেতে হয়েছিল।"
বুদ্ধবাবুর মন্তব্য ফের জল্পনা খুঁচিয়ে তুললেও সিপিএমের অন্দরেই এই প্রশ্নে দু'রকমের ব্যাখ্যা মিলছে। দলের একাংশের মতে, ইদানীং বিজেপি-কে বেশি আক্রমণ করে তৃণমূল নেত্রী কংগ্রেসের জন্য সম্ভাবনার দরজা খুলে রাখছেন। এই পরিপ্রেক্ষিতে বুদ্ধবাবুও কংগ্রেসের প্রতি কৌশলে বার্তা দিয়ে রাখলেন। আবার সিপিএমেরই অন্য একাংশের বক্তব্য, ২০০৪-এর উদাহরণ দিয়ে বুদ্ধবাবু একটি তাত্ত্বিক অবস্থানের কথা বলেছেন। কিন্তু একই সঙ্গে বলেছেন যে, ওই পরিস্থিতি আর ফিরবে বলে তাঁরা মনে করেন না। সুতরাং, তার পরে আর নতুন জল্পনা অর্থহীন!
বস্তুত, সংবাদসংস্থাকে দেওয়া ওই সাক্ষাৎকারে বুদ্ধবাবু এ-ও বলেছেন, "যেমন করে হোক কিছু রাজনৈতিক শক্তিকে একজোট করে ভোটের পরে আবার কংগ্রেসের ধামাই ধরতে হবে, এটা আমাদের দলের কৌশলগত লাইনের অংশ নয়!" তিনি পরিষ্কারই জানিয়েছেন, সর্বশক্তি দিয়ে তাঁরা বিজেপি-কে ঠেকানোর চেষ্টা করছেন। পরাস্ত করতে চাইছেন কংগ্রেসকেও। গড়ে তুলতে চাইছেন বিকল্প শক্তি।
বিজেপি-র প্রধানমন্ত্রী পদপ্রার্থী নরেন্দ্র মোদীর উত্থানের সঙ্গে হিটলারের তুলনাও টেনেছেন বুদ্ধবাবু। বলেছেন, "জার্মানিতে ১৯৩৩ সালে নির্বাচনে জিতেছিলেন হিটলার। তার মানে কি তাঁর নীতি ঠিক ছিল?" তাৎপর্যপূর্ণ ভাবে কংগ্রেসের রাহুল গাঁধী সম্পর্কে মন্তব্য করতে চাননি বুদ্ধবাবু। তাঁর কথায়, "তিনি দায়িত্ব নেওয়ার চেষ্টা করছেন। ওঁকে চেষ্টা করতে দিন। ওই যুবক সম্পর্কে মন্তব্য করতে চাই না।"
রাজ্যে প্রায় ২৭% সংখ্যালঘু ভোটের কথা ভেবে বিজেপি-কে আক্রমণ এখন বাকি সব দলেরই মূল রাজনৈতিক কৌশল হয়ে উঠেছে। মমতার মতো বুদ্ধবাবুরাও আক্রমণ করছেন মোদীকে। আবার একই সঙ্গে সিপিএম-কে রাজ্যে প্রতিষ্ঠান-বিরোধী ভোটের বেশির ভাগ ঝুলি টনার চেষ্টা চালাতে হচ্ছে। তৃণমূল-বিরোধী ভোটের বিভাজন আটকাতে তাই কংগ্রেস এবং বিজেপি-র বিরুদ্ধে সূর্যকান্ত মিশ্রদের অভিযোগ, তারা অনেক আসনে দুর্বল প্রার্থী দিয়েছে। বাম সূত্রের ব্যাখ্যায়, চতুর্মুখী লড়াইয়ে এ বার সামান্য কিছু ভোটও তফাত গড়ে দিতে পারে। তাই সম্ভাব্য সব পথই বাজিয়ে দেখতে হচ্ছে সকলকে।
দক্ষিণ ২৪ পরগনার ভাঙড়ে রবিবারই দলীয় প্রার্থী সুজন চক্রবর্তীর কেন্দ্রে কর্মিসভা করতে গিয়ে কংগ্রেস-সহ সব দলের সমর্থকদের কাছেই সমর্থন চাওয়ার জন্য দলের কর্মীদের পরামর্শ দিয়েছেন সিপিএম পলিটব্যুরোর আর এক সদস্য সূর্যবাবু। তিনি বলেছেন, "ভাঙড়ে তৃণমূলের একাংশের অত্যাচারে সিপিএম, কংগ্রেস-সহ সব দলের কর্মীরা ভীত হয়ে পড়েছেন। আপনারা বাড়ি বাড়ি গিয়ে প্রচার করা শুরু করুন। অন্য রাজনৈতিক দলের সমর্থকেরা গালিগালাজ করলেও কিছু মনে করবেন না। একজোট হয়ে লড়াই করার চেষ্টা করুন।"
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