सच यह है कि इस वक्त भारत को बाबासाहेब डा. भीमराव अंबेडकर की सख्त जरुरत है।संवाद का फोकस भी यही होना चाहिए।
पलाश विशवास
अरुंधति राय के जाति उन्मूलन के सिलसिले में जो संवाद हमने शुरु करने की कोशिश की है,हमेशा की तरह उसके मुद्दों को संबोधित करने की कोशिश नहीं हो पा रही है। यह साफ करना जरुरी नहीं है कि हमने लगातार वामपंथी विश्वासघात,उनके सवर्ण नेतृत्व और भारत के मौजूदा संकट के लिए उनकी जवाबदेही पर निरंतर लिखा है।जाहिर है कि हमारे विद्वतजन मुझ जैसे मामूली लेखक का लिखा पढ़ते नहीं होंगे।
हम लगातार अंबेडकरी आंदोलन और विचारधारा के मुद्दे ही उठाते रहे हैं और अब भी अंबेडकर के जाति उन्मूलन एजंडा को मौजूदा संकट से निकलने और उसके प्रतिरोध का एकमात्र विकल्प मानते हैं।
मैं साम्यवादियों का पक्ष नहीं ले रहा हूं।जो मैंने अंबेडकरी आंदोलन के बारे में लिखा है,वह दरअसल आत्मालोचना ही है। हम अंबेडकर की विचारधारा से उसीतरह विचलने के शिकार हो रहे हैं जैसा कि वाम विचारधारा के लोग।उनका सवर्ण वर्चस्व इसका जिम्मेदार है तो अबेडकरी आंदोलन के तमाम सिपाहसालार कारपोरेट राज के हक में खड़े हैं।सत्ता की राजनीति के तहत।
मैं मामूली पत्रकार हूं।कोई लेखक भी नहीं हूं। अपनी सक्रियता या प्रतिबद्धता का दावा भी मैं नहीं करता।आपके सारे आरोप हमारे सर माथे। हमारे बारे में आपका आकलन जो भी हो,उसका ताल्लुकात भारत के इतिहास,वर्तमान और भविष्य के सात नहीं है।यह बहस का मुद्दा भी नहीं है। न वामपंथ हमारे सरोकार का मामला है।उसके झंडेवरदारों ने ही उस विचारधारा को विसर्जित कर दिया है।
लेकिन जैसे अरुंधति ने लिखा है, अरुंधति के बारे में आपका जो भी आकलन हो,सही या गलत,वह सच यह है कि इस वक्त भारत को बाबासाहेब डा. भीमराव अंबेडकर की सख्त जरुरत है।संवाद का फोकस भी यही होना चाहिए।
अगर भारतीय बहुजन आंदोलन के मौजूदा नेतृत्व की आलोचना करके हमने भारी गलती की तो वह आलोचना भी मैं वापस लेने के लिए तैयार हूं।
लेकिन अंबेडकरी एजंडे पर हम संवाद तो करें।सही प्रसंगों और संदर्भों में अंबेडकरी आंदोलन की दिशा तो तय करें। मैं तो नाचीज हूं और मुझे कोई श्रेयभी नहीं लेना और न आप अरुंधति जैसी किसी को कोई श्रेय दें।बराबर।चलेगा।
लेकिन अंबेडकरी आंदोलन के महिमामंडन के वामपंथी अभ्यास से बचकर उसकी दशा दिशा का सही विवेचन तो करें।
मसलन माननीय एच एल दुसाध के लिखे से हर वक्त मैं सहमत नहीं होता लेकिन मैं उनकी इस कोशिश की हमेशा सराहना करता हूं कि तमाम समस्याओं को वे अंबेडकरी निकष से जांचते हैं।उनके विश्लेषण से हम सहमत असहमत हो सकते हैं लेकिन वे अंबेडकर के अनुसरण की ईमानदार कोशिश करते हैं,इसपर संदेह का अवकाश नहीं है।
मैं फिर अरुंदति ने जो लिखा है,उसपर आप लोगों की राय का इंतजार कर रहा हूं।
क्या जाति का खात्मा हो सकता है?
तब तक नहीं जब तक हम अपने आसमान के सितारों की जगहें बदलने की हिम्मत नहीं दिखाते. तब तक नहीं जब तक खुद को क्रांतिकारी कहने वाले लोग ब्राह्मणवाद की एक क्रांतिकारी आलोचना विकसित नहीं करते. तब तक नहीं जब तक ब्राह्मणवाद को समझने वाले लोग पूंजीवाद की अपनी आलोचना की धार को तेज नहीं करते.
और तब तक नहीं जब तक हम बाबासाहेब आंबेडकर को नहीं पढ़ते. अगर क्लासरूमों के भीतर नहीं तो उनके बाहर. और ऐसा होने तक हम वही बने रहेंगे जिन्हें बाबासाहेब ने हिंदुस्तान के 'बीमार मर्द' और औरतें कहा था, जिसमें अच्छा नहीं होने की चाहत नहीं दिखती.
इसके साथ ही निवेदन है कि आनंद तेलतुंबड़े जी का यह आलेख भी देख लेंः
शासक वर्ग सोने के अंडे देने वाली जाति की मुर्गी को मारना नहीं चाहते
http://ambedkaractions.blogspot.in/2014/03/blog-post_18.html
अंबेडकर का यह लिखा भी देख लें
A Reply To The Mahatma Excerpted from Annihilation of Caste: The Annotated Critical Edition, published by Navayana B.R. AMBEDKAR
A Reply To The Mahatma
Excerpted from Annihilation of Caste: The Annotated Critical Edition, published by Navayana
फिर यह इंटरव्यू भी
NTERVIEW
"We Need Ambedkar--Now, Urgently..."
The Booker prize-winning author on her essay The Doctor and the Saint and more
SABA NAQVI INTERVIEWS ARUNDHATI ROY
HTTP://WWW.OUTLOOKINDIA.COM/ARTICLE.ASPX?289691
अरुंधति का लिखा भी
The Doctor and the Saint ARUNDHATI ROY
The Doctor and the Saint
http://ambedkaractions.blogspot.in/2014/03/the-doctor-and-saint-arundhati-roy.html
The Doctor and the Saint Ambedkar, Gandhi and the battle against caste By ARUNDHATI ROY - See more at: http://caravanmagazine.in/reportage/doctor-and-saint#sthash.YmhkjBkq.dpuf
Arundhati Roy replies to Dalit Camera
http://ambedkaractions.blogspot.in/2014/03/arundhati-roy-replies-to-dalit-camera.html
इस पर आपके लिखे का हम इंतजार कर रहे हैं।
बहरहाल आप लिखें न लिखें,यह संवाद जारी रहेगा।
Anita Bharti
मुझे Palash Biswas जी के द्वारा लिखे गए लेख पर हैरानी हो रही है. मैने अरुंधति राय के राउंड टेबल इंडिया पर छपे पत्र को पढकर कुछ प्रतिक्रिया अपनी फेसबुक की वाल पर लिखी थी. पता नही क्यों पलाश जी ने मेरे बात का मंतव्य समझे बिना जल्दी जल्दी स मेरे खिलाफ लेख लिख मारा और अब देखा वही लेख हस्तक्षेप में भी छपा हुआ है.. मुझसे अगर आप इस मुद्दे पर बातचीत करने के इच्छुक थे तो मैं भी थी आपसे बातचीत करने में उतनी ही इच्छुक थी और. यह बात मैने अपनी वाल पर भी आपके जबाब में लिखी थी. पर अब देख रही हूँ कि वे अब हमें या मुझे जिसे भी कहो, सुपारी किलर भी बता रहे है उनका एक वाक्य पढिए, जो मेरे अनुसार बहुत ही आपत्तिजनक है- अस्मिता राजनीति के लोग तो अब सुपारी किलर हो गये हैं जो कॉरपोरेटवधस्थल में बहुसंख्यआबादी जिनमें बहिष्कृत मूक जनगण ही हैं,के नरसंहार हेतु पुरोहिती सुपारी किलर बन गये। ।"
Like · · Share · 6 hours ago ·
Musafir D. Baitha, Subhash Gautam, Sanjeev Chandan and 21 others like this.
Vinod Kumar Bhasker कभी कभी मिस-understanding हो जाती है |
6 hours ago · Like · 1
Palash Biswas अनिता जी,यह वाक्य आपके खिलाफ नहीं है।यह अस्मिता राजनीति करने वालों के लिए है।राजनीति यानी सत्ता की राजनीति।वह आप नहीं कर रही हैं।मैंने तो आपकी टिप्पणी को बतौर सूत्र इस्तेमाल करते हुए एक संवाद की शुरुआत करने कीकोशिश की है।मुझे आपके सरोकार और आपके मं...See More
5 hours ago · Like · 5
Musafir D. Baitha अनीता जी, पलाश जी की तो सफाई आ गयी, अब आप कुछ कहिये. अगर उनके इस वक्तव्य से कन्फ्यूजन एवं द्वंद्व खत्म हो जाएगा तो हमें भी राहत मिलेगी.
5 hours ago · Like · 2
Anita Bharti पलाश जी, आपके द्वारा लिखे गये लेख में उठाएं गए मुद्दों और आरोपों से क्या मैं यह समझू कि क्या केवल दलित या अम्बेडकरवादी या फिर वंचित समाज ही अकेला जिम्मेदार है? और अगर ऐसा है तो इस सबके लिए किसी की कोई भूमिका या नाकामी जिम्मेदार नही है? मेरे ख्याल कारपोरेटी लूटेरे, पूंजीवादी, जातिवादी, धार्मिक उन्मादी फौज, सुपारी किलर, तर्कविहान, मिलावटी, दुकानदार आदि-आदि. क्या आपकी निगाह में या आपकी विचारधारा की निगाह में दलित वंचित शोषित की यही छवि है? आपने यह छवि कैसे और क्यूं गढी है? क्या पूरी बहुजन दलित विचारधारा आपको यही लगती है आपने आंदोलन साहित्य राजनीति सबका घालमेल करके सबका एक ही सार निकाला है जो आपके अनुसार आपके लेख से यह दिखता है या आप ऐसा कह रहे है. उसका मैं पूरे लेख पढने के बाद पाईंट वाईज दे रही हूँ. कृपया आप भी देखे कि आप क्या कहना चाहते थे और क्या कह गए है. 1 दलित बस्तियों में नीला झंडा उठाये लोगों ने बाबासाहेब का एजेण्डा का जो हश्र किया और जाति व्यवस्था बहाल रखने वाली मुक्त बाजारी धर्मोन्मादी हिन्दुत्व में जो ब्रांडेड फौज समाहित हो गयी है,
2 हमारे जो मलाईदार लोग हैं, आरक्षण समृद्ध नवधनाढ्य वे कितनी बार सत्ता हैसियत छोड़कर अपने लोगों के बीच जाते रहे हैं, इसका भी हिसाब होना चाहिए।
-
3 अस्मिता राजनीति के लोग तो अब सुपारी किलर हो गये हैं जो कॉरपोरेटवधस्थल में बहुसंख्यआबादी जिनमें बहिष्कृत मूक जनगण ही हैं,के नरसंहार हेतु पुरोहिती सुपारी किलर बन गये।
4 अरुंधति की बात क्या करें, हमारे लोग तो बाबासाहेब के परिजनों में से एक अंबेडकरी आंदोलन के वस्तुवादी अध्येता और चिंतक आनंद तेलतुंबड़े को भी कम्युनिस्ट कहकर गरियाते हैं। क्योंकि वे अंबेडकर की प्रासंगिकता बनाये रखने की कोशिश कर रहे हैं और दुकानदार प्रजाति के लोग तो अंबेडकरी आंदोलन का बतौर एटीएम इस्तेमाल जो कर रहे हैं सो कर रहे हैं,
5.अंबेडकरी साहित्यकों भी मरी हुई मछलियों की तरह हिमघर में बंद कर देना चाहते हैं। लोग कुछ अपढ़, अधपढ़ लोग, जिनकी एकमात्र पहचान जाति है और खास विशेषता पुरखों के नाम का अखंड जाप, ऐसे लोगों के बाजारू फतवेबाज टॉर्च की रोशनी में अंबेडकर का अध्ययन हो, तो हो गयी क्रांति।
6.बहुजन साहित्य और बहुजन आंदोलन के तौर तरीके ब्राह्मणवादी होते गये हैं, क्यों कि हम भी शुद्ध अशुद्ध जिसपर सारी नस्ली बंदोब्सत तय है, उसीको उन्हीं की शैली अपनाकर खुद को शुद्ध साबित करके नव पुरोहित बनते जा रहे हैं।
7.बहुजनों में विमर्श अनुपस्थित है और कोई संवाद नहीं है क्योंकि पहले से ही आप तय कर लेते हैं कि कौन दलित हैं, कौन दलित नहीं है, कौन ओबीसी है कौन ओबीसी नहीं है। फिर त्थ्य विश्लेषण करने से पहले आप सीधे किसी को भी ब्राह्मण या ब्राह्मण का दलाल या फिर कम्युनिस्ट, वामपंथी या माओवादी डिक्लेअर कर देते हैं।
8.सत्ता वर्ग के लोग ऐसी गलती हरगिज नहीं करते हैं और हर पक्ष को आत्मसात करके ही उनकी सत्ता चलती है। देख लीजिये, हिन्दू साम्राज्य के राजप्रासाद की ईंटों की शक्लों की कृपया शिनाख्त कर लें।
9.अंबेडकरी विचारधारा और आंदोलन पर सही संवाद में सबसे बड़ी बाधा यही है कि हर ब्राण्ड के हर दुकानदार ने अपना अपना अंबेडकर छाप दिया है। हर ब्राण्ड का अंबेडकर बिकाऊ है। और असली अंबेडकर बाकायदा निषिद्ध धर्मस्थल है और अंबेडकर विमर्श गुप्त तांत्रिक क्रिया है और इस विद्या के अधिकारी बहुजन भी नहीं है।
10.संस्कृत मंत्र की तरह है अंबेडकर साहित्य, जिसका उच्चारण जनेऊधारी द्विज ही कर सकते हैं।
-
11.नीले रंग की मिलावट की जाँच भी तो होनी चाहिए। वरना बार-बार बहुजन हाथी गणेश बनता रहेगा और आपके महाजन हिन्दुत्व के खंभे बनते चले जायेंगे।
12. बहुजन राजनीति कुल मिलाकर आरक्षण बचाओ राजनीति रही है अब तक।
-
13.आरक्षण की यह राजनीति जो खुद मौकापरस्त और वर्चस्ववादी है और बहुजनों में जाति व्यवस्था को बहाल रखने में सबसे कामयाब औजार भी है,अंबेडकर के जाति उन्मूलन के एजेण्डे को हाशिये पर रखकर सत्ता नीति अपनी अपनी जाति को मजबूत बनाने लगी है।
14.मजबूत जातियों की आरक्षण की यह राजनीति यथास्थिति को बनाये रखने की राजनीति है, जो आजादी की लड़ाई में तब्दील हो भी नहीं सकती।
-
15.इसलिये बुनियादी मुद्दों पर वंचितों को संबोधित करने के रास्ते पर सबसे बड़ी बाधा बहुजन राजनीति के झंडेवरदार,ब्रांडेड ग्लोबीकरण समर्थक बुद्धिजीवी और आरक्षणसमृद्ध पढ़े लिखे लोग हैं। लेकिन बहुजन समाज उन्हींके नेतृत्व में चल रहा है।
3 hours ago · Edited · Unlike · 4
Ujjwal Bhattacharya बहुत ईमानदारी के साथ सवाल उठाये हैं अनिता जी ने. मेरा सिर्फ़ एक सवाल है - ऐसा क्यों हो रहा है ? मुझे लगता है कि अनिता जी के तीखेपन में मेरा यह सवाल कहीं खो जाता है. मैं उनकी टिप्पणी सेव करके रख ले रहा हूं. सामयिक राजनीति से थोड़ा छुटकारा मिले तो इन मुद्दों को फिर से छेड़ना चाहूंगा.
Arvind Shesh पलाश विश्वास की यह भाषा और "क्रांति" का ठेका उठाने वालों का इसी तरह का बर्ताव दरअसल इस बात का प्रतिनिधि उदाहरण है कि अस्मिता के संघर्ष अस्मिता की राजनीति में कैसे तब्दील हुए होंगे। (विस्तार से लिखूंगा) एक सवाल करने का हक नहीं देंगे, एक सवाल बर्दाश्त नहीं करेंगे और उम्मीद करेंगे कि ये अचानक "देवदूत" की आसमान से उतरें और हजारों सालों से वंचना के शिकार लोग (दूसरे "मसीहाओं" को छोड़कर) इन्हें अपना "मसीहा" घोषित कर दें, अपने सिर पर बिठा लें। ...एक बात और कि इक्का-दुक्का उदाहरणों से ये लोग समूचे वंचित वर्ग के अब तक के संघर्ष को खारिज करने और उसे अपने मकड़जाल की गिरफ्त में लेने की मंशा से सबको एक ही डंडे से हांक रहे हैं।पलाश विश्वास ने जिन्हें निशाना बनाकर "सुपारी किलर" टर्म का इस्तेमाल किया है, उन "किलरों" और जिनके नाम की "सुपारी" ली गई है, उनका साफ-साफ नाम लेने की हिम्मत करनी चाहिए और उसकी वजहें भी बतानी चाहिए, क्योंकि मार्क्सवाद का गाना गाने वालों को सबसे पहले "कार्य-कारण संबंध" के अनिवार्य पहलू का ध्यान रखना होगा...! वैसे हम अब इस बात की पड़ताल तो कर ही रहे हैं कि जिस मार्क्सवाद की जरूरत इस देश के सबसे वंचित तबकों को रही, उसे उनसे दूर करने और यहां तक कि मार्क्सवाद की इस देश में हत्या करने की "सुपारी" किसने उठाई हुई है...!
3 hours ago · Like · 3
Musafir D. Baitha अनीता जी ने पलाश विश्वास के वक्तव्य से जो पॉइंट निकाले हैं वे किसी द्विज वामपंथी टाइप के विचारक की पूंजी होनी चाहिए थी....
3 hours ago · Like · 2
Dharmendra Kumar पलाश बिस्वास जी बहुत दिनो से भरे हुये बैठे थे... वैसे भी नीले झंडे के उफान ने इनको बेरोजगार जो कर दिया है... बस उसी बात ...गुस्सा निकाल दिया..... और सारे दलित आंदोलन का क्रिटिकल एनालिसिस कर दिया... अब जब कि वे कमिया गिना चुके है, शतुमुर्ग स्टाईल मे रेत मे सर दिये आराम फरमा रहे होंगे ..... मैं उस समय उस पोस्ट पर ही था अनीता जी ने जो प्रश्न उठाए वे स्वाभाविक थे, मैं भी पूछ सकता हूँ कि आखिर अरुंधति को जाती व्यवस्था के उच्छेद पर टिप्पणी लिखने कि अचानक क्या आवश्यकतों हो गई, उभरती हुई दलित चेतना औए दलितो मे पढे लिखे लोगो कि बड़ी संख्या मे शायद इन्हे बाज़ार नज़र आता होगा, हालांकि हम अरुंधति के लिखे गए इंटरोंडकसन के खिलाफ नहीं है, लेकिन इस बात को भी समझते है, कि जाति व्यवस्था के उन्मूलन के लिए यह पुस्तक एक प्रस्थान बिन्दु है.... जिससे जुड़ कर वे अपनी जमीन तलाश रही हो..... इस पुस्तक के संरक्षक तो प्रश्न पूछेंगे ही....
2 hours ago · Like · 1
No comments:
Post a Comment